राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2212/1998
(जिला उपभोक्ता फोरम, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-143/1997 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 10.11.1997 के विरूद्ध)
दि चेयरमैन, न्यू ओखला इण्डस्ट्रियल डेवलेपमेंट अर्थारिटी, जिला गौतमबुद्ध नगर।
.........................अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
श्रीमती पुष्पलता पत्नी श्री सोम नाथ वर्मा, निवासिनी 70, राजधानी निकुंज, 91, आई.पी. एक्सटेंशन, दिल्ली 92 ।
........................प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री रजनीश कुमार, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 01.10.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री रजनीश कुमार उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को विस्तारपूर्वक सुना गया एवं उनके तर्कों के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली का परिशीलन किया गया।
इस प्रकरण में जिला फोरम, गाजियाबाद द्वारा दिनांक 10.11.1997 को परिवाद संख्या-143/1997 को विपक्षी के विरूद्ध आंशिक स्वीकार किया गया था। अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा यह अपील दिनांक 01.09.1998 को दाखिल की गयी है। अपीलार्थी का कहना है कि उसे एक पक्षीय निर्णय दिनांक 10.11.1997 की प्रमाणित प्रतिलिपि दिनांक 18.07.1998 को उपलब्ध करायी गयी थी। उपरोक्त कथन अपीलार्थी कि ओर से विभागीय विधि अधिकारी द्वारा दाखिल शपथ पत्र के प्रस्तर 6 से असत्य प्रमाणित होता है। उक्त शपथ पत्र में विधि अधिकारी ने यह स्वीकार किया है कि
-2-
प्रत्यर्थी ने दिनांक 08.03.1998 को विभाग को इस निर्णय के बारे में नियमानुसार सूचित किया था, जिस पर अपीलार्थी ने पत्रावली का निरीक्षण किया। दिनांक 08.03.1998 से भी यह अपील समय सीमा से बाधित है। अपील दाखिल करने में हुए विलम्ब का दिन-प्रति-दिन का कोई स्पष्टीकरण अपीलार्थी द्वारा नहीं दिया गया है। अत: माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा महेन्द्रा एण्ड महेन्द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेज लिमिटेड बनाम नरेश सिंह I (2013) CPJ 407 (NC), यू0पी0 आवास एवं विकास परिषद बनाम बृज किशोर पाण्डेय IV (2009) CPJ 217 (NC), दिल्ली डेवलेपमेंट अर्थारिटी बनाम वी0पी0 नारायण IV (2011) CPJ 155 (NC) एवं माननीय उच्च्तम न्यायालय द्वारा अंशुल अग्रवाल बनाम नोएडा IV (2011) CPJ 63 (SC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए यह निष्कर्ष दिया जाता है कि यह अपील समय-सीमा से बाधित है एवं अपील दाखिल करने में हुए विलम्ब को क्षमा किया जाना विधि अनुसार नहीं होगा।
प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश में किसी प्रकार का कोई विधिक अथवा तथ्यात्मक त्रुटि होना नहीं पाया जाता है, अत: इसमें हस्तक्षेप करने का प्रथम दृष्टया कोई आधार नहीं बनता है। वर्णित परिस्थितियों में यह अपील सारहीन तथा समय सीमा से बाधित होने के कारण निरस्त होने योग्य है।
आदेश
यह अपील सारहीन तथा समय सीमा से बाधित होने के कारण निरस्त की जाती है। इस निर्णय/आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(आलोक कुमार बोस) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-3