राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
पुनरीक्षण संख्या-115/2014
(जिला उपभोक्ता फोरम, प्रथम आगरा द्वारा परिवाद संख्या-419/14 में पारित निर्णय दिनांक 29.09.2014 के विरूद्ध)
1. ब्रांच मेनेजर इण्डसइण्ड बैंक लि0 संजय पैलेस, जिला आगरा।
2. मैनेजर दिल्ली स्टेट इण्डसइण्ड बैंक लि0 भगोरिया हाउस, 43
कम्युनिटी सेन्टर न्यू फ्रेन्डस कालोनी, न्यू दिल्ली। .......पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षीगण
बनाम्
श्रीमती नीलम देवी पत्नी राजेन्द्र कुमार निवासी 432/2, सुहाग नगर
सेक्टर-2 जिला फिरोजाबाद यूपी- 283203 ........प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
2. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :श्री रवि कुमार रावत, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 19.06.2017
मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत निगरानी जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम प्रथम आगरा के परिवाद संख्या 419/2014 द्वारा पारित आदेश दिनांक दि. 29.09.2014 के विरूद्ध योजित की गयी है। जिला मंच द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है:-
'' सुना, पत्रावली का अवलोकन किया परिवादिनी द्वारा 44 किश्तों में से 15 किश्तों को जमा किये जाने का सशपथ स्वीकृति की है विपक्षी के द्वारा परिवादी से बस का कब्जा लिये जाने के बाद परिवादिनी की आय का स्रोत बंद हो गया है जिस कारण किश्तों को चुकता नहीं कर पा रही है। मानवीय दृष्टिकोण से परिवादिनी को निर्देशित किया जाता है कि परिवादिनी वाहन के रूप में लिये गये ऋण खाते में एक सप्ताह में एक किश्त विपक्षी के यहां जमा करे तभी स्टे प्रभावी रहेगा तथा विपक्षी वाहन संख्या यूपी 83 टी-5739 को तत्काल रिलीज करे। पत्रावली वास्ते विपक्षीगण को जवाब एवं प्रतिशपथपत्र हेतु दिनांक 19.11.2014 को पेश हो परिवादिनी पैरवी करे।''
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी ने अपीलार्थी इण्डसइण्ड बैंक से ऋण लेकर एक बस क्रय की। परिवादिनी ने बस की कुछ किश्तें समय से जमा नहीं की,
-2-
जिसके कारण विपक्षी बैंक ने बस को अपने कब्जे में कर लिया। परिवादिनी ने अपने परिवाद पत्र में बस को अवमुक्त कराए जाने की प्रार्थना जिला मंच से की और एक अंतरिम निषेधाज्ञा प्रार्थना पत्र जिला मंच के समक्ष दि. 29.09.14 को ही प्रस्तुत किया। जिस पर उसी दिन सुनवाई कर जिला मंच ने उपरोक्त आदेश पारित किया।
पीठ ने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना एवं पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों व साक्ष्यों का भलीभांति परिशीलन किया गया।
पुनरीक्षणकर्ता का कथन है कि जिला मंच का आदेश मनमाना है और अवैधानिक है। जिला मंच ने आदेश पारित करते समय प्राकृतिक न्याय को पूरी तरह अनदेखा किया है। परिवादिनी/प्रत्यर्थी को लिए गए ऋण की किश्तें जमा करने के लिए पर्याप्त समय दिया गया, परन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने कोई उत्तर नहीं दिया। परिवादी/प्रत्यर्थी ने बस के पुनर्ग्रहण के बाद आर्बीटेशन प्रक्रिया में भी भाग नहीं लिया। आर्बीटेशन ट्रिब्यूनल ने प्रत्यर्थी के विरूद्ध अपना एवार्ड दिया। जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता को बिना कोई अवसर प्रदान किए एक ही दिन में अंतरिम आदेश पारित कर दिया, जबकि परिवाद ही पोषणीय नहीं था।
पत्रावली के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि परिवादिनी ने अपना परिवाद पत्र दि. 29.09.14 को प्रस्तुत किया और उसी दिन अंतरिम निषेधाज्ञा हेतु प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, जिस पर जिला मंच ने उपरोक्त आदेश पारित किया। पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी को कोई नोटिस जारी नहीं हुई और जिला फोरम ने बिना नोटिस निर्गत किए ही अंतरिम आदेश पारित किया, जिसे विधिसम्मत नहीं कहा जा सकता। इसके अतिरिक्त प्रस्तुत प्रकरण एक संविदा का है और संविदा की शर्तों में उपभोक्ता न्यायालय कोई परिवर्तन नहीं कर सकता है। प्रश्नगत आदेश से यह भी स्पष्ट होता है कि जिला मंच ने मानवीय दृष्टिकोण अपनाते हुए यह आदेश पारित किया है, जिसे विधिक दृष्टि से स्थिर नहीं रखा जा सकता, क्योंकि कोई भी आदेश विधि के अनुसार निर्गत किया जाना चाहिए न कि भावनाओं के आधार पर। उपरोक्त विवेचना के दृष्टिगत प्रस्तुत निगरानी स्वीकार किए जाने तथा जिला मंच का आदेश निरस्त किए जाने योग्य है।
-3-
आदेश
प्रस्तुत निगरानी स्वीकार की जाती है तथा जिला मंच का आदेश दि. 29.09.14 निरस्त किया जाता है। जिला मंच को निर्देशित किया जाता है कि वह उभय पक्षों को सुनवाई का पूर्ण अवसर प्रदान करते हुए प्रकरण को गुणदोष के आधार पर यथाशीघ्र निस्तारित करें।
पक्षकार अपना व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध कराई जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द) पीठासीन सदस्य सदस्य
राकेश, आशुलिपिक
कोर्ट-5