Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :-2076/2007 (जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-112/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/08/2007 के विरूद्ध) Dr. Smt. Shalini Tandon Wife of Dr. Anurag Tandon, R/O House No. CK 65/107 Hirapura Kabirchaura Varanasi District Varanasi. - Appellant
Versus - Smt. Manju aged about 50 years wife of Sri Satya Prakash Singh
- Sri Satya Prakash Singh Son of Sri Suraj Prasad Singh aged about 52 years. Both R/O House No. CK 63/118 Chhioti Piari Varanasi District Varanasi.
- United India Insurance Ltd., Anupam Building (2nd Floor) Maldahiya Varanasi through its Manager.
- Respondents
एवं अपील सं0 –1020/2008 - Smt. Manju Singh W/O Sri S.P. Singh
- Satya Prakash Singh S/O Sri Suraj Prasad Singh
Both residents of H.No. CK 63/18 Choti Piyari Varanasi ………….Appellants Versus Dr. Shalini Tandon Director Tandon Nursing Home & Irshita Eye Care Centre H.No. CK 65/107 Nihala Singh Colony Hira Pur Kabir Chowraha Varanasi समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी डॉ0 की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री प्रत्यूष त्रिपाठी प्रत्यर्थी/परिवादीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री कृष्ण मोहन दिनांक:-18.11.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद सं0-112/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 20/08/2007 के विरूद्ध अपील सं0 2076/2007 डॉ0 शालिनी टण्डन द्वारा द्वारा प्रस्तुत की गयी है, जबकि अपील सं0 1020/2008 स्वयं परिवादिनी द्वारा बढ़ोत्तरी हेतु प्रस्तुत की गयी है। चूंकि दोनों अपीलें एक ही निर्णय से प्रभावित हैं। अत: दोनों अपीलों का निस्तारण एक साथ किया जा रहा है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए विपक्षी को अंकन 1,52,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति अदा करने का आदेश पारित किया है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि दिनांक 06.12.2001 को परिवादी नर्सिंग होम में उदर बाधा व वमन होने के कारण दिखाया गया, जिनके द्वारा नव जीवन केन्द्र से अल्ट्रासाउण्ड कराने के लिए कहा गया। रिपोर्ट देखकर कहा कि बच्चे दानी में ट्यूमर है। इस बीच परिवादिनी ने सरसुन्दर लाल चिकित्सालय काशी हिन्दु विश्वविद्यालय में दिखाया, वहां पर इलाज करना प्रारंभ किया। दिनांक 24.12.2001 को अस्पताल में बुलाया गया, परंतु दिनांक 10.01.2002 को अस्पताल मे पुन: बुलवाया गया, परंतु इस मध्य परेशानी बढ़ गयी और विपक्षी द्वारा दिनांक 31.12.2001 को परिवादिनी सं0 1 विपक्षी के अस्पताल में भर्ती हुई, जहां पर 17,000/-रू0 जमा कराया गया। दिनांक 01.01.2002 यूटरस निकाल दिया गया, परंतु ऑपरेशन के बाद पीड़ा अत्यधिक बढ़ गयी और बुखार आने लगा, उल्टी होने लगी तथा पेशाब की परेशानी भी बढ़ गयी। दिनांक 08.01.2002 को मिश्रा पैथोलॉजी को रेफर किया गया, इसके बाद डिस्चार्ज कर दिया गया। डिस्चार्ज के बाद भी प्रतिदिन परेशानी बढ़ने लगी। दिनांक 20.01.2002 को कहा गया कि वह किसी पैथोलॉजी के पास जाये और वह कुछ भी नहीं कर सकती। उसके बाद परिवादिनी ने डॉक्टर को दिखाया, परंतु उनके इलाज से भी लाभ नहीं हुआ, उनके द्वारा दिनांक 01.02.2002 को डॉक्टर संजय गर्ग यूरोलॉजिस्ट को रेफर कर दिया। इसी बीच डॉक्टर एन0एन0 खन्ना को दिखाया गया, जिनके द्वारा अल्ट्रासाउण्ड की सलाह दी गयी। ऑपरेशन में होना कहा गया तथा डॉक्टर संजय गर्ग से सलाह के लिए कहा गया, जिनके द्वारा हेमाटोलाजी क्लीनिकरम में जांच करायी गयी। दिनांक 06.02.2002 को आईवीपी जांच करायी गयी, जिससे स्पष्ट हुआ कि यूटरस निकालते समय ऑपरेशन में पेशाब की नली ( लेफ्ट यूरेटर) कट गयी है, जिसके कारण किडनी फेल हो गयी है। इसके बाद डॉक्टर की सलाह पर डॉक्टर यू0एस0 द्विवेदी से सम्पर्क किया। डॉक्टर द्विवेदी ने दिनांक 07.02.2002 को सिस्टोकोपी की जांच किया और पुन: ऑपरेशन कर पेशाब की नली का उपचार कराने की सलाह दिया। दिनांक 08.02.2001 को गायत्री नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टर जालान ने ऑपरेशन किया। पेशाब की बायीं नली को जोड़ा गया और उसका उपचार दिनांक 17.02.2002 को हुआ। इसके बाद डिस्चार्ज होकर घर आयी और आज ही इलाज चल रहा है, विपक्षी की लापरवाही तथा अज्ञानता के कारण परिवादिनी को अत्यधिक पीड़ा, मानसिक, आर्थिक क्षति को भोगना पड़ा। विपक्षी साधारण एम0बी0बी0बी0एस0 डॉक्टर है, उसके पास सर्जरी का डिप्लोमा या मास्टर डिग्री नहीं है।
- विपक्षी का कथन है कि ब्लेकमेल करने के लिए तथा पैसे ऐंठने के उद्देश्य से परिवाद प्रस्तुत किया गया। विपक्षी एमबीबीएस डिग्रीधारक है। कानपुर यूनिवर्सिटी से डीजीओ की डिग्री भी प्राप्त की है। गायनिक ऑपरेशन करने का पूर्ण अधिकार प्राप्त है, बनारस काशी हिन्दु सेवा सदन अस्पताल में नियुक्त रही है तथा 1999 से अपना नर्सिंग होम चला रही है और हजारों मरीजों का सफल ऑपरेशन कर चुकी है। परिवादी सं0 1 को उल्टी एवं सिर दर्द की शिकायत दिसम्बर 2001 के 25 साल पहले से थी, वह उस इलाज के लिए विपक्षी के पास आयी थी। इसी प्रकार गुप्त रोग से पीडि़त थी, सफेद पानी एवं खून आने की शिकायत तथा पेट में भी दर्द रहा था। दवाओं से लाभ न मिलने के कारण पेट का अल्ट्रास्कैन नव जीवन केन्द्र में कराने के लिए रेफर किया गया कि यहां की रिपोर्ट अत्यधिक विश्वसनीय होती है। इस रिपोर्ट को देखने के बाद ज्ञात हुआ कि परिवादी सं0 1 के गर्भाशय में मांस के लोथड़े हैं, जिसके कारण गुप्तांग में भी इंफेक्शन हो गया है। इस ऑपरेशन के बिना गुप्तांग से सफेद रिसाव बन्द नहीं हो सका था तथा आगे चलकर अनेक रोग हो सकते थे। विपक्षी की राय के पश्चात से परिवादिनी बीएचयू गयी थी, वहां पर भी परामर्श लिया था और वापस विपक्षी के पास आयी थी, वह ऑपरेशन कराने के लिए सहमत हुई थी, ऑपरेशन खर्च बता दिया गया था। स्वयं परिवादी सं0 1, 2 ने ऑपरेशन की सहमति दी थी। ऑपरेशन के पश्चात शरीर से निकाली गये भाग की बायोप्सी के लिए निमित्त मिश्रा पैथोलॉजी की रिपोर्ट के लिए रेफर किया गया। डॉक्टर राजीव गुप्ता को बुलाकर गुप्तांग की बीमारी को दिखाया गया कि डिस्चार्ज स्लिप पर उसे सिर दर्द व उल्टी के लिए दवाएं डॉ0 बाजपेयी से परामर्श लेने की हिदायत दी गयी।
- पेशाब की नली के कटने के संबंध में यह उल्लेख किया है कि ऑपरेशन के समय पर नली नहीं कटी थी और यदि यह मान लिया जाए कि लेफ्ट यूरेटर नली कट गयी थी तो यह कहीं होगा, इसके लिए विपक्षी को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता। यह तथ्य परिवादी को साबित करना चाहिए कि डॉक्टर संजय कुमार गर्ग ने ऑपरेशन करके इस कटी हुई नली को जोड़ा है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया है कि दिनांक 08.02.2002 को परिवादिनी का ऑपरेशन किया गया था तब यह पाया गया कि उसका लेफ्ट यूरेटर अलग था और ऑपरेशन करके यूरिनरी ब्लैडर से जोड़ा गया, यहां पर परिवादिनी द्वारा दिनांक 17.02.2002 तक अपना इलाज कराया गया और प्रथम ऑपरेशन के दौरान यह नली विपक्षी डॉक्टर की लापरवाही के कारण काटना संभव है। इसी आधार पर विपक्षी डॉक्टर के विरूद्ध उपरोक्त वर्णित क्षतिपूर्ति का आदेश पारित किया गया।
- इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध अपील सं0 2076/2007 डॉक्टर श्रीमती शालिनी द्वारा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश को अपास्त करने के लिए प्रस्तुत की गयी, जबकि अपील सं0 1020/2008 स्वयं परिवादिनी द्वारा क्षतिपूर्ति की राशि में बढ़ोत्तरी के लिए प्रस्तुत की गयी है।
- श्रीमती शालिनी टण्डन द्वारा प्रस्तुत की गयी अपील के ज्ञापन तथा मौखिक तर्कों का सार यह है कि परिवादिनी ने यह तथ्य स्थापित नहीं किया है कि डॉक्टर जालान यूरोलॉजिस्ट थे और उनके द्वारा लेफ्ट यूरेटर को जोड़ा गया, इसके बावजूद भी अपीलार्थी/विपक्षी के विरूद्ध निर्णय पारित किया गया। डॉक्टर संजय गर्ग एवं डॉक्टर यू0एस0 द्विवेदी जो प्रसिद्ध यूरोलॉजिस्ट है, उनके द्वारा क्या सुझाव दिया गया, वह रिकार्ड पर प्रस्तुत नहीं किया गया, यह तथ्य भी स्थापित नहीं है कि उनके द्वारा लेफ्ट यूरेटर का ऑपरेशन कराने की सलाह दी गयी, इसलिए एक ऐसे डॉक्टर से इलाज कराना कपोल-कल्पित है, जो यूरोलॉजिस्ट भी नहीं है, गैर साबित फोटोकॉपी पर प्रश्नगत आदेश पारित किया गया है। परिवाद पत्र में यह उल्लेख किया गया है कि यथार्थ मे इलाज में कहीं धन खर्च हुआ और क्षतिपूर्ति मांगने का आधार क्या है। अपीलार्थी द्वारा ऑपरेशन स्वयं परिवादी सं0 1 का जीवन बचाने के उद्देश्य से किया गया था और इलाज के दौरान किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती गयी। डॉक्टर एन0के0 सिंह की रिपोर्ट साबित है न ही अभिलेख पर प्रस्तुत की गयी। अपीलार्थी के असवाधानी का कोई भी तथ्य साबित नहीं है, इसलिए अपीलार्थी के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का आदेश अवैध है।
- मेडिकल लिटरेचर एनेक्जर सं0 1 के दिशा-निर्देशों के अनुसार सर्जरी की प्रक्रिया अपनायी गयी। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपना समस्त निर्णय संभावना एवं कल्पना पर आधारित किया है। जिला उपभोक्ता आयोग ने असावधानी के संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय को दिये गये निर्णयों पर भी कोई विचार नहीं किया और अवैध रूप से साक्ष्य के विपरीत निर्णय पारित किया है, जो अपास्त होने योग्य है।
- परिवाद पत्र में यह उल्लेख है कि परिवादिनी सं0 1 सर्वप्रथम दिनांक 06.12.2001 को विपक्षी के नर्सिंग होम में आयी थी और उसके बाद सुन्दर लाल चिकित्सालय काशी विश्वविद्यालय में स्वयं को दिखाया और वहां अपना इलाज कराया, जिससे संबंधित रिपोर्ट दस्तावेज सं0 69, 70 पर मौजूद है, यह रिपोर्ट दर्शित करती है कि 10 जनवरी 2002 को मरीज को पुन: इस आशय में बुलवाया गया था, परंतु मरीज इस तिथि को इस अस्पताल में उपस्थित नहीं हुई और विपक्षी के अस्पताल में जाकर दिनांक 31.12.2001 को भर्ती हो गयी। ऑपेरशन सहमति से सम्पादित किया गया, इस तथ्य का कोई खण्डन परिवादीगण की ओर से नहीं है। डॉक्टर जालान के गायत्री नर्सिंग होम में इलाज के संबंध में केवल एक डिस्चार्ज मेमो दस्तावेज सं0 115 पर पत्रावली में मौजूद है, जिसमें भर्ती की तिथि दिनांक 08.02.2001 है तथा डिस्चार्ज की तिथि दिनांक 17.02.2002 अंकित है। इस दस्तावेज पर निर्णय तब तक आधारित नहीं किया जा सकता, जब तक ऑपरेशन से संबंधित समस्त उपचार पत्रक प्रस्तुत नहीं कर दिये जाते, इसलिए यह तथ्य स्थापित नहीं है कि प्रथम ऑपरेशन के दौरान लेफ्ट यूरेटर कटा था। यह तथ्य भी स्थापित नहीं है कि द्वितीय ऑपरेशन कर लेफ्ट यूरेटर को जोड़ा गया, तदनुसार इलाज के दौरान लापरवाही का तथ्य स्थापित नहीं है।
- अपीलार्थी की ओर से इस बिन्दु पर दृढ़ता से बहस की गयी है कि यथार्थ में यह तथ्य स्थापित ही नहीं है कि डॉक्टर जालान यूरोलॉजिस्ट थे और उनके द्वारा कटी हुई नली को यूरिनरी ब्लैडर में जोड़ा गया। केवल छायाप्रति पर जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा विचार किया गया, यह सही है कि उपभोक्ता विवाद का निस्तारण करते समय भारतीय साक्ष्य अधिनियम के प्रावधान दृढ़ता के साथ लागू नहीं होते, परंतु द्वितीय ऑपरेशन होने तथा पूर्व में कटे हुए लेफ्ट यूरेटर को जोड़े जाने के संबंध में इलाज के दौरान जो कार्यवाही हुई है, उनका सम्पूर्ण विवरण जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत होना आवश्यक था, जिन पर विचार किया जाना चाहिए था, परंतु जिला उपभोक्ता आयोग ने केवल एक वाक्यांश यानि ऑपरेटिंग नॉट पर अपना सम्पूर्ण निर्णय आधारित किया था। आवश्यक तो यह था कि डॉक्टर जालान को भी अनौपचारिक पक्षकार बनाया जाना चाहिए था, जिनके द्वारा द्वितीय ऑपरेशन करना कहा गया है तथा द्वितीय ऑपरेशन का सम्पूर्ण बी0एच0टी0 मूल रूप से जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, जिस प्रकार डॉक्टर शालिनी टण्डन द्वारा संचालित नर्सिंग होम के इलाज का पूर्ण विवरण पत्रावली पर उपलब्ध है, यहां यह उल्लेख करना समीचीन होगा कि डॉक्टर शालिनी एम0बी0बी0एस0 हैं तथा वह रजिस्टर्ड मेडिकल प्रेक्टिशनर है, इसी के साथ डॉक्टर शालिनी को महिलाओं संबंधित रोग के इलाज करने का विस्तृत अनुभव मौजूद है, इसलिए यह तथ्य स्वीकार्य नहीं है कि विपक्षी यूटेरस का ऑपरेशन करने के लिए सक्षम शैक्षिक योग्यता नहीं रखती।
- इलाज के दौरान लापरवाही बरतने के संबंध में कोई एक्सपर्ट रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की गयी तथा घटना स्वयं में लापरवाही का प्रमाण है। यह सिद्धांत प्रस्तुत केस में लागू नहीं होता है। इलाज के दौरान स्थायी लाभ की गारंटी कोई डॉक्टर नहीं दे सकता, केवल इस आधार पर डॉक्टर को लापरवाही बरतने के लिए उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता कि इलाज लम्बित अवधि तक चला या पूर्ण स्वास्थ्य लाभ नहीं हुआ। यह तथ्य स्थापित नहीं है कि डॉक्टर द्वारा यूरेटरस निकालते समय मेडिकल लिटरेचर में मौजूद प्रक्रिया के विपरीत कोई अन्य जान प्रक्रिया अपनायी गयी। डॉक्टर की कुशलता एवं विशेषज्ञता पर भी कोई संदेह नहीं है। अत: इस साक्ष्य में डॉक्टर के विरूद्ध क्षतिपूर्ति का आदेश देने का कोई औचित्य नहीं था। तदनुसार यह अपील सं0 2076/2007 स्वीकार होने योग्य है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है, इसलिए क्षतिपूर्ति बढ़ाये जाने का कोई अवसर नहीं है। तदनुसार अपील सं0 1020/2008 खारिज होने योग्य है।
प्रस्तुत अपील सं0 2076/2007 स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त जाता है। परिवादिनी द्वारा बढ़ोत्तरी के संबंध में प्रस्तुत की गयी अपील सं0 1020/2008 खारिज की जाती है। प्रस्तुत अपील सं0 2076/2007 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। प्रस्तुत अपील सं0 1020/2008 में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0-2 | |