राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-84/1999
सीनियर सुपरिटेन्डेन्ट आफ पोस्ट आफिसेस प्रतापगढ़ व एक
अन्य। ...........अपीलार्थीगण/विपक्षीगण
बनाम्
श्रीमती गीतारानी पाण्डेय पत्नी श्री अशोक कुमार पाण्डेय व
एक अन्य .......प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0डी0 क्रान्ति, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 23.02.2021
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 199/1995 गीतारानी पाण्डेय व एक अन्य बनाम श्री मान डाक अधीक्षक में पारित निर्णय व आदेश दि. 14.12.1998 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। इस निर्णय व आदेश द्वारा जिला उपभोक्ता मंच ने विपक्षी/अपीलार्थी को निर्देशित किया है कि परिवादीगणों के खाता संख्या 301282/2440804 में अंकन रू. 30329/- पर ब्याज रू. 16331/- सहित कुल रू. 46660/- 12 प्रतिशत ब्याज सहित वापस लौटा दिया जाए। साथ ही अंकन रू. 5000/- क्षतिपूर्ति अदा करने का भी आदेश दिया गया है।
परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी के पति श्री अशोक कुमार पाण्डेय ने सेवा के दौरान ही याचीगणों के साथ संयुक्त खाता खुलवाया। मासिक आय योजना खाता संख्या 301282/440884 में प्रति माह रू. 2333/- ब्याज व बोनस भुगतान किया जाता रहा है। यह खाता दो लाख रूपये का था। विपक्षीगणों ने ब्याज व बोनस का भुगतान बंद कर
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दिया। याचीगणों को भुगतान प्राप्त करने हेतु बार-बार दौड़ाने के बावजूद भुगतान नहीं हुआ।
विपक्षीगणों की ओर से मासिक आय योजना के अंतर्गत खाता संख्या 301282/4440884 रू. दो लाख होना स्वीकार किया है। अधिक कथन में कहा गया है कि परिवादीगणों के नाम सिनदरी डाकघर में दो खाते थे। पहला खाता संख्या 301230/4440570 रूपया तीन लाख व दूसरा 301282/4440884 रूपया दो लाख का था। ये दोनों खाते धनबाद जनपद से स्थान्तरित होकर प्रतापगढ़ आये थे। दोनों जमा खातों का योग रू. 500000/- होता है और भुगतान इससे अधिक सीमा अंकन रू. 92000/- से अधिक है।
दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात जिला उपभोक्ता मंच द्वारा उपरोक्त वर्णित निर्णय व आदेश पारित किया गया, जिसे इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि यह निर्णय/आदेश विधि विरूद्ध है। मासिक आय योजना गवर्नमेन्ट सेविंग एक्ट 1873, इसके अंतर्गत निर्मित पोस्ट आफिस मासिक आय का है। नियम 1987 से नियमित है, जिसके रूल नम्बर 4 यह व्यवस्था देता है कि कोई भी जमाकर्ता एक से अधिक खाता खोल सकता है, परन्तु शर्त यह है कि सभी खातों में मिलाकर कुल रू. 204000/- एकल खाता से अधिक राशि जमा नहीं की जाएगी। संयुक्त खाते में अंकन रू. 408000/- जमा किया जा सकता है, जबकि अपीलार्थी द्वारा इस धनराशि से अधिक धनराशि जमा की गई, इसलिए उन्हें अधिक धनराशि पर जो ब्याज अदा किया जा चुका था, उसकी कटौती करते हुए शेष राशि वापस की गई है, जबकि जिला मंच द्वारा नियम के विरूद्ध निर्णय पारित किया गया है।
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दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ताओं को सुना एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश का अवलोकन किया गया।
चूंकि राजकीय सेवक बैंक एक्ट 1873 के तहत निर्मित पोस्ट आफिस रूल्स 1987 के नियम संख्या 4 के अनुसार संयुक्त खाते में केवल रू. 408000/- तक की धनराशि इस योजना के अंतर्गत जमा कराई जा सकती है। चूंकि यह योजना जमा धनराशि पर अधिक लाभ प्रदान करती है, इसलिए जमा की जाने वाली राशि को सीमित रखा गया है ताकि अधिक लोगों को इस योजना का लाभ उठाने का अवसर प्राप्त हो सके। यदि परिवादी द्वारा इस राशि से अधिक धनराशि इस योजना के अंतर्गत जमा कराई गई है तब अधिक राशि पर वह इस योजना में अर्जित ब्याज तथा अन्य लाभ प्राप्त करने के लिए अधिकृत नहीं है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय नियम के विपरीत है तथा अपास्त होने योग्य है। अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश इस रूप में परिवर्तित किया जाता है कि परिवादी को अंकन रू. 30329/- तथा इस पर देय ब्याज अदा नहीं किया जाएगा, अपितु केवल इस राशि पर सेविंग योजना के अंतर्गत जो ब्याज देय है वह ब्याज पोस्ट आफिस द्वारा अदा किया जाएगा।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील-व्यय भार स्वयं वहन करेंगे।
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इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2