(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-1338/2006
(जिला उपभोक्ता आयोग, अलीगढ़ द्वारा परिवाद संख्या-83/2005 में पारित निणय/आदेश दिनांक 3.5.2006 के विरूद्ध)
सीनियर डिवीजनल मैनेजर, लाइफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया, डिवीजनल आफिस राम घाट रोड, अलीगढ़।
अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
श्रीमती क्षमा देवी पत्नी स्व0 श्री विजय कुमार गुप्ता, निवासी मोहल्ला गीता एण्ड कंपनी तमोली पारा, तहसील कोल, जिला अलीगढ़।
प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. माननीय श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री वी.एस. बिसारिया।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री ओ.पी. दुवेल।
दिनांक: 02.07.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-83/2005, श्रीमती क्षमा देवी बनाम वरिष्ठ मण्डल प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम में विद्वान जिला आयोग, अलीगढ़ द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 3.5.2006 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
2. विद्वान जिला आयोग ने बीमित धनराशि 6 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति द्वारा दिनांक 28.6.2001 को अंकन 2 लाख रूपये की बीमा पालिसी प्राप्त की गई थी। परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक 15.6.2003 को बीमारी के कारण हो गई। बीमाधारक की मृत्यु के पश्चात बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया। बीमा कंपनी की मांग पर सभी दस्तावेज उपलब्ध करा दिए गए, परन्तु बीमा क्लेम निरस्त कर दिया गया। परिवादिनी के पति हर 6 महीने बाद प्रीमियम का पैसा बीमा एजेंट को देते थे। जुलाई 2002 से जनवरी 2003 की किस्त भी बीमा एजेंट को दी थी, जिसकी रसीद मांगने पर परिवादी को बताया गया कि वह किस्त जमा नहीं कर पाया है। दिनांक 31.12.2002 को फार्म पर हस्ताक्षर कराए, जो पालिसी के पुनर्चलन से संबंधित है।
4. बीमा कंपनी का कथन है कि बीमा एजेंट को जो भुगतान किया गया है, वह बीमा कंपनी को भुगतान नहीं माना जा सकता। पालिसी के नवीनीकरण के समय बीमाधारक पूर्णतया स्वस्थ नहीं थे और बीमारी के तथ्य को छिपाया गया। दिनांक 31.1.2003 को बकाया किस्तों का भुगतान करने पर पालिसी का नवीनीकरण किया गया, इसके बाद चार माह के अंदर बीमाधारक की मृत्यु हो गई, इसलिए जांच कराई गई। परिवादिनी द्वारा स्वंय डा0 सुमित सिंघल, अलीगढ़ एवं डा0 टी.के. कटारिया, राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट द्वारा हस्ताक्षरित पर्चे स्वंय परिवादिनी ने दाखिल किए हैं, जिनके अनुसार दिनांक 21.2.2003 को परिवादिनी के पति को निगलने में और अप्रत्याशित वजन कम होने की शिकायत पर दाखिल किया गया था, इसलिए बीमा क्लेम देय नहीं है।
5. विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य की व्याख्या करते हुए यह निष्कर्ष दिया है कि नवीनीकरण से पूर्व किसी भी बीमारी का इलाज कराने का कोई सबूत नहीं है, क्योंकि इलाज से संबंधित पर्चे नवीनीकरण के बाद के दाखिल हुए हैं।
6. बीमा कंपनी द्वारा इस निर्णय/आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है। विद्वान जिला आयोग ने साक्ष्य के विपरीत निर्णय/आदेश पारित किया है। नवीनीकरण के समय मौजूद बीमारी के तथ्य को छिपाया गया है।
7. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह तर्क है कि इलाज के पर्चे जो स्वंय परिवादिनी ने दाखिल किए हैं, उनसे साबित है कि नवीनीकरण से पूर्व मरीज गंभीर बीमारी से ग्रसित थे, उनके द्वारा अपने तर्क के समर्थन में नजीर, पुष्पा चौहान बनाम एलआईसी आफ इण्डिया II (2011) CPJ 44 (NC) प्रस्तुत की गई है, जिसमें व्यवस्था दी गई है कि जिस डा0 द्वारा मेडिकल कंटेंडेंट सर्टिफिकेट तथा हॉस्पिटल ट्रीटमेंट सर्टिफिकेट जारी किया गया है, उसका शपथ पत्र पेश होना आवश्यक नहीं है। जिस डा0 द्वारा इलाज से संबंधित प्रमाण पत्र दिया गया है, उसका शपथ पत्र पेश करना आवश्यक नहीं है, परन्तु प्रश्नगत केस में नवीनीकरण से पूर्व इलाज कराने का कोई सबूत मौजूद नहीं है, इसलिए विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
8. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय/आदेश आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
दिनांक 02.07.2024
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2