(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-489/2008
भारतीय जीवन बीमा निगम व अन्य
बनाम
श्रीमती बदामी देवी पत्नी स्व0 ताराचन्द
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
उपस्थिति:-
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री आलोक रंजन, विद्धान अधिवक्ता
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित: कोई नहीं
दिनांक :19.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- परिवाद संख्या-221/2006, श्रीमती बदामी देवी बनाम क्षेत्रीय प्रबंधक, भारतीय जीवन बीमा निगम व अन्य में विद्वान जिला आयोग, (द्वितीय) आगरा द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 25.01.2008 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी अपील पर केवल अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता के तर्क को सुना गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। पत्रावली एवं प्रश्नगत निर्णय/आदेश का अवलोकन किया गया।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए बीमा क्लेम की राशि 45 दिन के अंदर 06 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने का आदेश पारित किया है।
- यह तथ्य बीमा कम्पनी को स्वीकार है कि परिवादिनी के पति ताराचंद के नाम एक पॉलिसी जारी की गयी थी, जिनकी मृत्यु हो चुकी है और मृत्यु के पश्चात बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया है। अत: इन बिन्दुओं पर अतिरिक्त विवेचना की आवश्यकता नहीं है। इस अपील के विनिश्चय के लिए जो विनिश्चायक बिन्दु उत्पन्न होता है वह यह है कि जैसा कि अपील के ज्ञापन में उल्लेख है एवं अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि बीमा पॉलिसी का नवीनीकरण दिनांक 31.01.2006 को कराया गया है। बीमाधारक की मृत्यु इस तिथि से पूर्व हो चुकी थी, जबकि परिवादिनी के अनुसार मृत्यु दिनांक 06.02.2006 को हुई है। जिला उपभोक्ता आयोग ने इस बिन्दु पर विस्तृत साक्ष्य की विवेचना की है कि मृत्यु प्रमाण पत्र फर्जी होने का कोई तथ्य स्थापित नहीं है। जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष मृत्यु प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया गया था।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यही तर्क है कि खाद्य रसद विभाग द्वारा जारी राशन कार्ड में परिवार के मुखिया का नाम श्रीमती बदामी देवी दर्शाया गया है। यदि तारा चन्द इस तिथि (30.01.2006) को जीवित होते तब तारा चंद का नाम परिवार के मुखिया के नाम पर अंकित होता। यह सही है कि किसी राजकीय कर्मचारी द्वारा तैयार किया गया कोई दस्तावेज भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 35 के प्रावधान के अनुसार सुसंगत होता है, परंतु स्वयं किसी तथ्य के प्रमाण के रूप में ग्रहण नहीं किया जा सकता। अधिनियम की धारा 35 के प्रावधान के अनुसार निम्न दो तथ्य साबित करना आवश्यक है:-
- प्रश्नगत दस्तावेज किसी राजकीय कर्मचारी द्वारा अपने कार्यों के दायित्वों के तहत कोई दस्तावेज तैयार किया गया हो
- यह दस्तावेज उस व्यक्ति की सूचना के आधार पर तैयार किया गया, जिसे समस्त तथ्यों का ज्ञान है।
- प्रस्तुत केस में अपीलार्थी बीमा कम्पनी की ओर से क्रमांक सं0 द्वितीय के संबंध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गयी कि यह दस्तावेज किसके अनुरोध पर या किसकी सूचना पर तैयार किया गया है, इसलिए इस दस्तावेज के आधार पर यह स्थिर नहीं किया जा सकता कि बीमा धारक की मृत्यु दिनांक 30.01.2006 को हुई है, जबकि मृत्यु प्रमाण पत्र नवीनीकरण के पश्चात प्रस्तुत किया गया है। अत: जिला उपभोक्ता आयेाग द्वारा पारित निर्णय/आदेश मे हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है।
आदेश
अपील खारिज की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय/आदेश की पुष्टि की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित संबंधित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय एवं आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट 2