राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-१६९८/२००६
(जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-७२४/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १२-०६-२००६ के विरूद्ध)
सीनियर जनरल मैनेजर, अंसल हाउसिंग एण्ड कन्स्ट्रक्शन लि0, १५, यू0जी0एफ0 इन्द्रप्रकाश, २१, बाराखम्भा रोड, नई दिल्ली।
................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
श्रीमती आशा वर्मा पत्नी श्री वीरेन्द्र वर्मा निवासी मकान नं0-१६७, सैक्टर-४, चिरंजीव विहार, गाजियाबाद। .................... प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१.मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य ।
२.मा0 श्री गोबर्धन यादव, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री वी0एस0 बिसारिया विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री ज्ञान प्रकाश पाण्डेय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ३१-१०-२०१७.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद सं0-७२४/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १२-०६-२००६ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसने अपीलार्थी की हाउसिंग स्कीम के अन्तर्गत एक भवन क्षेत्रफल ११३ वर्म गज के लिए बुक किया था जिसकी कीमत ३,६४,६९१/- रू० थी। परिवादिनी ने समस्त धनराशि अपीलार्थी के यहॉं जमा करा दी थी। धनराशि जमा कराने के तुरन्त बाद अपीलार्थी ने उक्त भवन का कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दे दिया था। अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को सूचित किया कि भवन की रजिस्ट्री होनी है तथा स्टाम्प ड्यूटी व रजिस्ट्रेशन फीस आ कर तुरन्त जमा करा दें तथा रसीद प्राप्त कर लें। परिवादिनी ने आबंटित भवन सं0-१६७ की बाबत् स्टाम्प ड्यूटी व रजिस्ट्रेशन चार्ज जो कि
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४४,९११.५५ रू० चेक के द्वारा अपीलार्थी के यहॉं जमा करवा दिया जिसकी रसीद अपीलार्थी ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिनांक ०५-०४-१९९९ को दी। अपीलार्थी ने परिवादिनी को आश्वासन दिया कि रजिस्ट्री शीघ्र करा दी जायेगी। परिवादिनी ने कई बार अपीलार्थी से टेलीफोन से वार्ता भी की किन्तु कोई सन्तोसजनक उत्तर नहीं दिया गया। परिवादिनी ने कई बार अपीलार्थी के आफिस के चक्कर भी लगाये किन्तु परिवादिनी की बातों पर ध्यान नहीं दिया गया। उसे तंग व परेशान किया गया। परिवादिनी ने विपक्षी को इस सन्दर्भ में नोटिस भी दी। नोटिस प्राप्ति के बाद भी अपीलार्थी ने रजिस्ट्री के सम्बन्ध में कोई कार्यवाही नहीं की, तब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने इस अनुतोष के साथ परिवाद जिला मंच के समक्ष प्रेषित किया कि अपीलार्थी को निर्देशित किया जाय कि वह दिनांक २६-०३-१९९९ से जमा धनराशि ४४,९११.५५ रू० पर परिवादिनी को २४ प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से ब्याज अदा करे तथा अपीलार्थी से परिवादिनी के हक में बुक भवन का बैनामा शीघ्र कराया जाय एवं परिवादिनी को ५०,०००/- रू० बतौर क्षतिपूर्ति दिलाया जाय।
अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया। अपीलार्थी के कथनानुसार अपीलार्थी ने रजिस्ट्री कराने से कभी मना नहीं किया। रजिस्ट्री से सम्बन्धित धनराशि ०५-०४-१९९९ को प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा जमा की गई। अपीलार्थी रजिस्ट्री कराने को तैयार था किन्तु प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अनुरोधकिया कि अभी रजिस्ट्री की कार्यवाही स्थगित रखी जाय। इसके अतिरिक्त परिवादिनी पर ६,३८८/- रू० शेष था जिसका भुगतान दिनांक १०-११-२००० को किया गया। क्योंकि स्टाम्प ड्यूटी ३४,९११/- रू० के स्थान पर ४१,३००/- रू० की सब रजिस्ट्रार को दी गयी थी इसके अतिरिक्त परिवादिनी द्वारा स्वयं दिनांक ०४-१२-२००० को यह प्रार्थना की गई कि रजिस्ट्री विलेख में उसके पति वीरेन्द्र वर्मा का नाम भी जोड़ा जावे। इस सम्बन्ध में परिवादिनी ने दिनांक ०२-१२-२००० को एक शपथ पत्र भी अपीलार्थी के कार्यालय में दिया। इसके पश्चात् परिवादिनी की सहमति से दिनांक १२-०१-२००१ को विक्रय पत्र निष्पादित करा दिया गया।
विद्वान जिला मंच ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी का परिवाद ४४,९११.५५ रू० पर दिनांक २६-०३-१९९९ से देय तिथि तक के लिए १८ प्रतिशत ब्याज के लिए डिक्री किया। इसके अतिरिक्त
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५,०००/- रू० मानसिक क्षति तथा ११००/- रू० परिवाद व्यय के रूप में प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्राप्त करने का अधिकारी भी माना गया।
इस निर्णय से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गई।
हमने प्रत्यर्थी/परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री ज्ञान प्रकाश पाण्डेय के तर्क दिनांक ११-१-२०१७ को सुने तथा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया के तर्क आज सुने एवं अभिलेखों का अवलोकन किया।
अपील के आधारों में अपीलार्थी की ओर से यह अभिकथित किया गया कि प्रश्नगत परिवाद असत्य कथनों के आधार पर योजित किया गया। स्वयं प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने विक्रय पत्र निष्पादित कराने में अनिच्छा व्यक्त की थी। इसके अतिरिक्त स्वयं परिवादिनी ने दिनांक ०२-१२-२००० को एक शपथ पत्र अपीलार्थी के समक्ष प्रस्तुत किया जिसमें अपनी अस्वस्थता के कारण विक्रय पत्र निष्पादित करने हेतु उपलब्ध होने में असमर्थता व्यक्त की तथा अपने पति के नाम विक्रय पत्र निष्पादित कराने की प्रार्थना की, अत: दिनांक ०५-०४-९९९९ को ४४,९११.५५ रू० जमा करने के उपरान्त परिवादिनी विक्रय पत्र निष्पादित कराने में रूचि नहीं ले रही थी। अपील के आधारों में अपीलार्थी द्वारा यह भी अभिकथित किया गया कि प्रश्नगत मकान के सन्दर्भ में ६,३८८/- रू० भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा जमा किया जाना था जो उसने दिनांक १०-११-२००० को जमा किया। अपीलार्थी का यह भी कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने जिला मंच के समक्ष ऐसी कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की जिससे यह प्रमाणित हो कि अपीलार्थी द्वारा विक्रय पत्र के निष्पादन में विलम्ब किया गया। अपीलार्थी द्वारा सेवा कोई त्रुटि नहीं की गई।
अपीलार्थी की ओर से यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि प्रतिवाद पत्र के अभिकथनों से यह विदित होता है कि प्रश्नगत भवन के सन्दर्भ में भवन की कीमत ३,६४,६९१/- रू० अदा किया जाना तथा भवन का कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्राप्त किया जाना निर्विवाद है। यह तथ्य भी निर्विवाद है कि प्रश्नगत भवन के विक्रय पत्र के निष्पादन हेतु ४४,९११.५५ रू० प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने चेक दिनांकित २६-०३-१९९९ द्वारा अपीलार्थी को प्राप्त कराया। यह धनराशि अपीलार्थी ने दिनांक ०५-०४-१९९९ को प्राप्त करना स्वीकार किया।
अपीलार्थी का यह कथन है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने रजिस्ट्री की सम्पूर्ण धनराशि जमा
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नहीं की। मु0 ६,३८८/- रू० शेष था जिसका भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक १०-११-२००० को किया। उल्लेखनीय है कि परिवाद के अभिकथनों के आधार पर परिवादिनी का यह कथन है कि अपीलार्थी द्वारा भवन की रजिस्ट्री हेतु ४४,९११.५५ रू० की मांग की गयी थी जो उसने चेक दिनांक २६-०३-१९९९ द्वारा जमा कर दी। परिवादिनी का यह भी अभिकथन है कि यह धनराशि प्राप्त करने एवं बार-बार अनुरोध के बाबजूद रजिस्ट्री न किए जाने पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी को नोटिस भी भेजी जो उसे दिनांक ०३-०७-२००० को प्राप्त हुई, नोटिस प्राप्ति के बाबजूद भी अपीलार्थी द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। परिवादिनी के परिवाद में उल्िलखित इस अभिकथन से अपीलार्थी ने जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत प्रतिवाद पत्र में इन्कार नहीं किया है। अपील के आधारों में भी अपीलार्थी द्वारा यह अभिकथित नहीं किया गया है कि परिवादिनी द्वारा प्रेषित पत्र दिनांकित ०३-०७-२००० अपीलार्थी को प्राप्त नहीं हुआ। यदि वास्तव में परिवादिनी द्वारा भवन की रजिस्ट्री हेतु मांगी गई धनराशि से कम धनराशि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी को अदा की गई होती तो इस सन्दर्भ में अपीलार्थी द्वारा उसी समय आपत्ति की जाती अथवा प्रत्यर्थी/परिवादिनी से शेष धनराशि की अदायगी की मांग की जाती एवं प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा दी गई नोटिस के उत्तर में यह तथ्य उल्लिखित किया जाता। अपीलार्थी द्वारा शेष धनराशि की अदायगी की मांग किए जाने पर निर्विवाद रूप से प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा शेष धनराशि दिनांक १०-११-२००० को अपीलार्थी को भुगतान की गई।
जहॉं तक अपीलार्थी के इस कथन का प्रश्न है कि स्वयं परिवादिनी विक्रय पत्र निष्पादित कराने के लिए प्रारम्भ से ही इच्छुक नहीं थी, इस सन्दर्भ में कोई साक्ष्य अपीलार्थी की ओर से जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं की गई। यदि वास्तव में परिवादिनी विक्रय पत्र निष्पादित करने के लिए उस समय इच्छुक नहीं होती तो रजिस्ट्री हेतु ४४,९११.५५ रू० की धनराशि अपीलार्थी को अदा नहीं करती। जहॉं तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी को प्रेषित किए गये शपथ पत्र दिनांकित ०२-१२-२००० का प्रश्न है यह शपथ पत्र दिनांक ०५-०९-२००० को रजिस्ट्री हेतु धनराशि जमा किए जाने के डेढ़ वर्ष बाद प्रस्तुत किया गया। इस श्पथ पत्र के माध्यम से मात्र प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अस्वस्थता एवं पारिवारिक दायित्व के कारण विक्रय पत्र अपने पति के नाम निष्पादित किए जाने का अनुरोध किया है। इस शपथ पत्र के आधार पर यह निष्कर्ष
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नहीं निकाला जा सकता कि परिवादिनी विक्रय पत्र निष्पादित कराने के लिए धनराशि जमा कराने के बाबजूद इच्छुक नहीं थी।
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में हमारे विचार से अपीलार्थी का यह कथन स्वीकार किए जाने योग्य नहीं है कि स्वयं परिवादिनी द्वारा विक्रय पत्र निष्पादन हेतु रूचि न लिए जाने के कारण विक्रय पत्र निष्पादन में विलम्ब हुआ, बल्कि परिवादिनी का यह कथन स्वीकार किए जाने योग्य है कि ४४,९११.५५ रू० प्राप्त करने के बाबजूद अपीलार्थी द्वारा बिना किसी तर्कसंगत आधार के रजिस्ट्री कराने में विलम्ब किया गया। अत: जिला मंच का यह निष्कर्ष कि अपीलार्थी द्वारा सेवा में त्रुटि की गई, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
यह तथ्य निर्विवाद है कि रजिस्ट्री की धनराशि ४४,९११.५५ रू० प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने दिनांक २६-०३-१९९९ को चेक द्वारा अपीलार्थी को अदा की। अपीलार्थी के कथनानुसार यह धनराशि उसे दिनांक ०५-०४-१९९९ को प्राप्त हुई। क्योंकि भुगतान चेक से किया गया, अत: अपीलार्थी का यह कथन स्वीकार किए योग्य माना जा सकता है कि यह धनराशि अपीलार्थी को दिनांक ०५-०४-१९९९ को प्राप्त हुई। यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत भवन का विक्रय पत्र दिनांक १२-०१-२००१ को निष्पादित कराया गया। प्रश्नगत निर्णय में विद्वान जिला मंच ने ४४,९११.५५ रू० पर दिनांक २६-०३-१९९९ से भुगतान की तिथि तक १८ प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान हेतु आदेश पारित किया है। हमारे विचार ४४,९११.५५ रू० पर दिनांक ०५-०४-१९९९ से विक्रय पत्र निष्पादित किए जाने की तिथि दिनांक १२-०१-२००१ तक ही ब्याज दिलाया जाना न्यायसंगत होगा। सामान्यत: बिल्डर क्रेताओं द्वारा किश्तों की अदायगी में विलम्ब पर १८ प्रतिशत ब्याज क्रेताओं से बसूल करते हैं, अत: १८ प्रतिशत ब्याज की दर अनुचित नहीं मानी जा सकती। प्रश्नगत निर्णय में ५,०००/- रू० मानसिक क्षति भी दिलाए जाने हेतु आदेशित किया गया है। क्योंकि प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अदा गई धनराशि की अदायगी मय ब्याज करायी जा रही है, अत: अलग से क्षतिपूर्ति हेतु निर्देशित किये जाने का कोई औचित्य नहीं होगा। अपील तद्नुसार आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-७२४/२००० में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक १२-०६-२००६ निरस्त किया जाता है।
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परिवादिनी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि ४४,९११.५५ रू० पर दिनांक ०५-०४-१९९९ से १२-०१-२००१ तक १८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज निर्णय की तिथि से ०१ माह के अन्दर प्रत्यर्थी/परिवादिनी को अदा करे। इसके अतिरिक्त ११००/- रू० बतौर वाद व्यय भी प्रत्यर्थी/परिवादिनी को निर्धारित अवधि में अदा करे। निर्धारित अवधि में यह धनराशि अदा न किए जाने की स्थिति में देय धनराशि पर भुगतान की तिथि तक अपीलार्थी १८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज परिवादिनी को अदा करने का उत्तरदायी होगा।
इस अपील का व्यय-भार उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
पक्षकारों को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
(गोबर्धन यादव)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-३.