Uttar Pradesh

StateCommission

A/2007/2471

Pragya Clinic - Complainant(s)

Versus

Smt Anita Singh - Opp.Party(s)

Vikas Agarwal

23 May 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2007/2471
( Date of Filing : 12 Nov 2007 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Pragya Clinic
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Smt Anita Singh
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 23 May 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

                                                      (सुरक्षित)

अपील सं0- 2471/2007  

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0- 267/2004 में   पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28/09/2007 के विरूद्ध)

               

Pragya Clinic, 33 kasya Road, Civil Lines, Gorakhpur Through its Proprietor Dr. Anju Mishra.

 

  1.                                                                            Appellant

 

  •  

 

  1. Smt Anita Singh, W/O Shri Manoj Kumar Singh, R/O Ganna Vikas Vidyalay, Khalilabad, District Sant Kabir Nagar.
  2. The New India Assurance Co. Ltd. City Branch, Cinema Road, Gorakhpur, Through its Branch Manager.

 

  • Respondents  

समक्ष

  1. मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य
  2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य
  3. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य

उपस्थिति:

अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री विकास अग्रवाल  

प्रत्‍यर्थी सं0 1 की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता:-श्री अम्‍बरीश कौशल श्रीवास्‍तव

दिनांक:-08.07.2022

माननीय श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

  1.            यह अपील विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0 267/2004 श्रीमती अनीता सिंह बनाम डा0 श्रीमती       अन्‍जू मिश्रा व अन्‍य में पारित निर्णय व आदेश दिनांकित 28.09.2007 के विरूद्ध योजित की गयी है। निर्णय के माध्‍यम से परिवादिनी का परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण को चिकित्‍सीय उपेक्षा एवं असावधानी के फलस्‍वरूप क्षतिपूर्ति के रूप में रूपये 3,00,000/- एवं वाद व्‍यय मय ब्‍याज दिलाये जाने के आदेश पारित किये हैं।
  2.           प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी ने परिवाद इन अभिकथनों के साथ योजित किया था कि परिवादिनी का विवाह फरवरी 2002 में हुआ था। परिवादिनी गर्भधारण की अवधि में प्रतिवादी चिकित्‍सक से परामर्श लेती रही। गर्भधारण के अंतिम चरण में प्रसव पीड़ा दिनांक 09.10.2003 को हुई। प्रसव कुशलतापूर्वक सम्‍पन्‍न होने की आशा में परिवादिनी को प्रतिवादी के नर्सिंग होम प्रज्ञा क्‍लीनिक में दिनांक 10.10.2003 को भर्ती कराया गया। क्‍लीनिक पर रूपये 35,172/- व्‍यय हुए। परिवादिनी के अनुसार विपक्षी ने अधिक से अधिक  धन वसूल करने के लिए सामान्‍य प्रसव के स्‍थान पर ऑपरेशन के द्वारा प्रसव प्रक्रिया पूरी की। दिनांक 20.10.2003 को परिवादिनी को डिस्‍चार्ज किया गया किन्‍तु विपक्षी के चिकित्‍सा में कमी उपेक्षा व लापरवाही का कारण प्रार्थिनी को अनेक तकलीफें बनी रही। परिवादिनी का टांका दिनांक 23.10.2003 को खुल गया, जिसको ठीक करने के लिए विपक्षी ने रूपये 5,000/- वसूल किये, इसकी कोई रसीद नहीं दी गयी। परिवादिनी की तकलीफें बरकरार रही, जिस कारण दिनांक 28.10.2003 को पुन: प्रतिवादी को दिखाया जिन्‍होंने कहा कि ऑपरेशन पुन: करना पडे़गा। ऑपरेशन में पुन: 64,844/- रू0 व्‍यय हुये, जिसकी कोई रसीद प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी को प्रदान नहीं की गयी। परिवादिनी के अनुसार पुन: प्रतिवादी ने चिकित्‍सा सेवा में कमी उपेक्षा व लापरवाही का परिचय देते हुए दुबारा ऑपरेशन में एक प्‍लास्टिक पाइप पेट के कोने मे लगा दिया और कहा कि स्थिति सामान्‍य होने पर उसे निकाल दिया जायेगा। ऑपरेशन के कारण प्रार्थिनी की स्थिति और चिन्‍ताजनक हो गयी। यूटेरस से गंदगी भारी मात्रा में बाहर आने लगी। खाना बिल्‍कुल हजम नहीं हो रहा था। अत: प्रार्थिनी के परिवार के सदस्‍य घबरा गये तथा गंभीर हालत में दिनांक 26.12.2003 को जगरानी हॉस्पिटल, लखनऊ ले गये, जहां उसे पुन: भर्ती किया गया तथा हॉस्पिटल के चिकित्‍सक डॉक्‍टर संजय श्रीवास्‍तव ने प्रार्थिनी का ऑपरेशन किया तथा लापरवाही के साथ प्‍लास्टिक का लगाया हुआ पाइप पेट के अंदर पाया गया, जिसे ऑपरेट करके निकाला गया तथा प्रार्थिनी की यूटेरस को भी ऑपरेट करके निकालना पड़ा, जिस कारण प्रार्थिनी भविष्‍य में सन्‍तान उत्‍पत्ति से वंचित हो गयी है, जिससे व्‍यथित होकर यह परिवाद प्रस्‍तुत किया गया और प्रार्थिनी ने प्रतिवादी से रू0 1.5 लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में एवं अन्‍य अनुतोष की प्रार्थना की।
  3.           विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्‍तुत किया गया, जिसमें परिवाद को गलत एवं आधारहीन दर्शाया गया एवं कहा गया कि प्रसव में अवरोध होने के कारण परिवादिनी का LSCS किया गया था। परिवादिनी को उचित चिकित्‍सीय सेवा दी गयी थी और परिवादिनी द्वारा यह स्‍पष्‍ट नहीं किया गया है कि चिकित्‍सीय सेवा में क्‍या विशिष्‍ट लापरवाही की गयी एवं किस प्रकार प्रतिवादी चिकित्‍सीय उपेक्षा के दोषी हैं। परिवादिनी ने केवल अपने कष्‍टों के आधार पर आधारहीन आरोप लगा दिये हैं इसलिए परिवाद निरस्‍त किये जाने योग्‍य है डॉक्‍टर अन्‍जू मिश्रा द्वारा LSCS अवरोधित प्रसव में अपंजीकृत मरीज का किया गया था, जिसके यूटेरस के फट जाने का अनदेशा था। परिवादिनी प्रज्ञा क्‍लीनिक में पंजीकृत मरीज नहीं थी और उसका आकस्मिक रूप से अपंजीकृत मरीज के रूप में चिकित्‍सा की गयी थी। दिनांक 09.10.2003 को प्रसव पीड़ा होने के कारण अपंजीकृत मरीज के रूप में दिनांक 10.10.2004 को परिवादिनी को प्रज्ञा क्‍लीनिक लाया गया, जहां डॉक्‍टर अन्‍जू मिश्रा द्वारा यह स्‍पष्‍ट किया गया कि सीजेरियन ऑपरेशन इसलिए जरूरी है और परिवादिनी एवं उसके परिवार वालों को संतुष्‍ट करके LSCS ऑपरेशन किया गया यह एक अत्‍यंत जोखिम भरा ऑपरेशन था क्‍योंकि अवरूद्ध प्रसव के कारण यूटेरस के फट जाने का अनदेशा था।  परिवाद में बताये गये प्रसव कालीन जटिलताओ को स्‍पष्‍ट करते हुए प्रतिवाद पत्र में कहा गया है कि:-

        She got admitted with signs of intestinal obstruction and for which exploratory laparotomy done and risk of the operation explained. Patient came with signs of sub cults intestinal obstruction and collection of fluid and secretion from infected uterus so laparotomy done to drain the fluid. She was discharged on 28.10.03

  1.            विपक्षी द्वारा कथन किया गया कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी को जटिलताओं के कारण उक्‍त डॉक्‍टर आनन्‍द वर्धन पाठक के पास परामर्श हेतु जाना था, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी अपने घर पर ही रही और हालत बिगड़ने पर जगरानी हॉस्पिटल, लखनऊ में लगभग 01 महीने बाद गयी। विपक्षी के अनुसार परिवादिनी को Uteroileal Fistula ऑंतों में अवरोध के कारण था, जिसका इलाज यूटेरस निकालने से ही संभव था। परिवादिनी को एक स्‍वस्‍थ पुत्र शिशु उत्‍पन्‍न हुआ था, जिसके उपरान्‍त आंतों का अवरोध के कारण Uteroileal Fistula हो गया, डॉक्‍टर आनन्‍द वर्धन को संदर्भित किया गया, किन्‍तु प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी वहां नहीं गयी और एक महीने के उपरान्‍त उसके द्वारा अन्‍य स्‍थान पर उपचार का विकल्‍प दिया गया। अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से कोई भी चिकित्‍सीय लापरवाही नहीं की गयी। परिवाद अपास्‍त किये जाने योग्‍य है।
  2.                    विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर देकर एक विस्‍तृत निर्णय व आदेश पारित करते हुए प्रत्‍यर्थी सं0 1 /परिवादिनी का परिवाद रूपये 3,00,000/- क्षतिपूर्ति हेतु आज्ञप्‍त किया है, जिससे व्‍यथित होकर यह अपील प्रज्ञा क्‍लीनिक की ओर से प्रस्‍तुत की गयी है।
  3.             अपील में मुख्‍य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी ने अपने वादोत्‍तर में उल्‍लेख किया है कि उसके द्वारा अपनी चिकित्‍सीय सेवायें कुशलता एवं तत्‍परता से की गयी तथा कोई असावधानी उनके द्वारा नहीं की गयी है। दिनांक 10.10.2003 को प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी का ऑपरेशन करके प्रसव किया गया था तथा एक पुत्र शिशु उत्‍पन्‍न हुआ था। दिनांक 20.10.2003 को 11 दिन के उपरान्‍त सफलतापूर्वक नर्सिंग होम से प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी को डिस्‍चार्ज किया गया। यह नर्सिंग होम न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कम्‍पनी विपक्षी से बीमित है। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी के प्रसव के उपरान्‍त आकस्मिक LSCS ऑपरेशन अवरोधित प्रसव के कारण किया गया, जिसमें यूटेरस के फट जाने का अनदेशा भी था। अपीलकर्ता की ओर से किया गया LSCS ऑपरेशन परिवादिनी के Uteroileal Fistula होने का कारण नहीं बना था, अपितु वैस्‍क्‍यूलस यूटेरस तथा वैस्‍क्‍यूलस नेक्रोसिस बनने के कारण थे। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया है कि प्रश्‍नगत निर्णय एकपक्षीय रूप से परिवादिनी के कथन को स्‍वीकार करते हुए दिया गया है परिवादिनी का कथन चिकित्‍सीय साक्ष्‍य से समर्थित नहीं है न ही किसी विशेषज्ञ की आख्‍या इस संबंध में ली गयी है। परिवादिनी का कथन गलत है कि उसके पेट का दर्द दूर नहीं हुआ था बल्कि दिनांक 23.10.2003 को वह आंत के अवरोध के कारण भर्ती हुई थी एवं यूटेरस के संक्रमण के कारण Exploratory laptrotomy के द्वारा प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी के पति की सहमति लेते हुए यूटेरस से फ्लयूड निकाला गया था और इस प्रकार प्रत्‍यर्थी सं0 1/ परिवादिनी का उचित इलाज किया गया था इसके उपरान्‍त प्रत्‍यर्थी सं0 1/ परिवादिनी को डॉक्‍टर आनन्‍द वर्धन पाठक जनरल सर्जन को संदर्भित किया गया था किन्‍तु परिवादिनी ने इस संदर्भ का कोई लाभ नहीं उठाया परिवादिनी को ऑपरेशन के उपरान्‍त अनेकों हिदायतें दी गयी थी,      किन्‍तु प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी ने उन हिदायतों का पालन नहीं किया जिस कारण उसे यह अवस्‍था हुई। स्‍वयं प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी की ओर से कोई उपेक्षा या लापरवाही नहीं की गयी है। अत: परिवाद गलत प्रकार से निर्णीत किया गया है। प्रश्‍नगत निर्णय अपास्‍त होने योग्‍य एवं परिवाद खारिज किये जाने योग्‍य है।
  4.           अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्‍ता श्री विकास अग्रवाल तथा प्रत्‍यर्थी सं0 1 के विद्धान अधिवक्‍ता श्री अम्‍बरीश कौशल श्रीवास्‍तव को विस्‍तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्‍ध समस्‍त अभिलेख का अवलोकन किया गया। तत्‍पश्‍चात पीठ के निष्‍कर्ष निम्‍नलिखित प्रकार से हैं:-        
  5.          प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी ने चिकित्‍सीय लापरवाही हेतु क्षतिपूर्ति की प्रार्थना की है तथा विपक्षी की ओर से चिकित्‍सीय लापरवाही इस आधार पर मानी है कि दिनांक 20.10.2003 को प्रसव के       उपरान्‍त डिस्‍चार्ज करने के बाद भी उसकी तकलीफें बनी रही। प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी का टांका खुल गया था, जिसको बाद में ठीक किया गया तथा अतिरिक्‍त धनराशि चिकित्‍सक महोदय द्वारा ली गयी। मात्र टांका खुलना अनेक कारणों से हो सकता है, केवल यह मान  लेना कि टांके ठीक प्रकार से नहीं लगाये गये थे, इसलिए टांके खुल गये। यह उचित नहीं है जबकि स्‍पष्‍ट रूप से साक्ष्‍य द्वारा यह दर्शा न दिया जाये कि टांके लगाने मे कोई लापरवाही हुई है और इसी कारण टांके खुल गये थे। चिकित्‍सक को दोषी मानते हुए चिकित्‍सीय उपेक्षा की उपधारणा कर लेना उचित नहीं है।
  6.         प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी की चिकित्‍सीय उपेक्षा को सिद्ध करने के लिए अभिकथित प्रकार आया है कि प्रसव के उपरान्‍त उसकी तकलीफें बरकरार रही और दिनांक 28.10.2003 को विपक्षी को दिखाने पर उसे बताया गया कि पुन: ऑपरेशन कराना पड़ेगा। उक्‍त ऑपरेशन में 64,844/- रू0 व्‍यय हुये। परिवादिनी को पुन: ऑपरेशन का स्‍पष्‍ट करते हुए विपक्षी द्वारा यह कथन किया गया है कि परिवादिनी का आकस्मिक LSCS (अर्थात Lower Segment Caesarean Section) उसके अवरोधित प्रसव के कारण किया गया था क्‍योंकि यूटेरस के फट जाने का अनदेशा भी था। चिकित्‍सका महोदय का उपरोक्‍त कथन चिकित्‍सीय आकस्मिकता को स्‍पष्‍ट करता है और जबकि इस आकस्मिकता को चिकितसा महोदय द्वारा स्‍पष्‍ट किया गया है ऐसी दशा में प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी का यह कथन मान लेना ठीक नहीं है कि किसी चिकित्‍सीय उपेक्षा के कारण अथवा मात्र धन अर्जन के उद्देश्‍य से चिकित्‍सका महोदय ने LSCS का ऑपरेशन किया था। यह ऐसा प्रश्‍न है कि जो चिकित्‍सीय विशेषज्ञता से संबंध रखता है और जब तक कि इस संबंध में विशेषज्ञ की राय न आये कि यह ऑपरेशन अनावश्‍यक रूप से मात्र धन अर्जन के उद्देश्‍य से किया गया था, केवल ऑपरेशन किये जाने के कारण ही चिकित्‍सीय लापरवाही या उपेक्षा मान लेना उचित नहीं है क्‍योंकि परिवाद पत्र एवं मेमो ऑफ अपील में अपीलकर्ता/विपक्षी ने यह कथन किया है कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी की बच्‍चेदानी चुटहिल थी तथा बच्‍चेदानी की सतह पर सड़न परिलक्षित हो रही थी। ऐसी परिस्थितियों में अपीलार्थी ने LSCS (अर्थात्‍ Lower Segment Caesarean section) प्रक्रिया के द्वारा ऑपरेशन किया था। यह शल्‍य क्रिया परिवादिनी के Uteroileal Fistula होने का कारण नहीं था अपितु वैस्‍क्‍यूलर यूटेरस तथा वैस्‍क्‍यूलर नेक्रोसिस के कारण Fistula  बन गया था। डॉक्‍टर अंजू मिश्रा के शपथ पत्र के प्रस्‍तर 21 में यह अंकित है कि मरीज आंतों के अवरोध के साथ आयी थी एवं संक्रमित यूटेरस से डिस्‍चार्ज व श्रवण होने के कारण Uteroileal Fistula का संदेह करते हुए उसे सर्जन से परामर्श लेने की सलाह दी गयी थी। वेबसाइट  में Vaginal Fistula को स्‍पष्‍ट किया गया है, जिसमे निम्‍नलिखित प्रकार से अंकित है:-

     What causes vaginal fistulas

A lack of blood supply to vaginal tissue causes the tissue to die. A hole or fistula forms in the tissue where this happened. These openings can develop in a few days or over several years. Rarely a person is born with a congenital vaginal fistula.

Causes of vaginal fistulas include:

  1. Prolonged during childbirth.
  2. an episiotomy (a surgical cut made at the opening of the vagina during childbirth, to aid a difficult delivery and to prevent rupture of tissues).
  3. Abdominal or pelvic surgery, including  (a surgical operation to remove all or part of the uterus).
  4. Cancer in the pelvic area, such as  or 
  5.  (IBD) like
  6. Colon infections 
  7.  to the pelvic region.

 

  1.        उपरोक्‍त चिकित्‍सीय साहित्‍य में यह अंकित है कि Fistula होने के कारण प्रसव के दौरान लम्बित प्रसव पीड़ा या सर्जरी के कटान के कारण हो सकती है या अन्‍य कारणों से दबाव के कारण भी यह Fistula उत्‍पन्‍न हो सकती है। इसके अतिरिक्‍त पेट की बीमारी अथवा पेट के संक्रमण में भी यह Fistula उत्‍पन्‍न हो सकता है साथ ही Colitis आंतों के संक्रमण के कारण भी Fistula हो सकता है। उभय पक्ष के अभिकथनों से यह स्‍पष्‍ट है कि प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी को प्रसव हुआ था। अत: प्रसव के दौरान Fistula होने के अनेक कारण उत्‍पन्‍न हो सकते हैं, जिसमें केवल एक कारण अपीलार्थी/डॉक्‍टर द्वारा सर्जरी के दौरान असावधानी होना ही मान लेना उचित नहीं है। अपीलार्थी डॉ0 अंजू मिश्रा द्वारा यह स्‍पष्‍ट किया गया है कि परिवादिनी की आंतें अवरूद्ध थी और उसके बच्‍चेदानी चुटहिल प्रतीत हो रही थी। इस कारण भी Fistula का हो जाना स्‍वाभाविक है, जैसा कि उपरोक्‍त चिकित्‍सीय साहित्‍य से यह भी स्‍पष्‍ट किया है तथा डॉ0 ने यह भी स्‍पष्‍ट किया है कि Vaginal Fistulas होने के कई लक्षण होते हैं। उपरोक्‍त वेबसाइट में यह लक्षण निम्‍नलिखित प्रकार से दिये गये हैं:-

What are vaginal fistula symptoms?

Genitourinary vaginal fistulas that form between the vagina and urinary system organs may cause:

  1. Constant urine leakage .
  2. Chronic urine odor.
  3. Skin irritation in your vagina, vulva (vaginal entrance) or perineum (area between your vagina and anus).
  4.  (dyspareunia).
  5. Recurrent  (UTIs)   (pyelonephritis) or vaginal infections 

Fistulas that form between the vagina and organs in digestive system may cause:

  1.  
  2. Foul-smelling .
  3. , pus or stool  leaking from the vagina.
  4.  
  5. Painful intercourse.
  6. Recurrent UTIs or kidney infections.
  7.  
  8.  

 

  1.            प्रत्‍यर्थी सं0 1/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी डाक्‍टर पर यह आक्षेप लगाया गया है कि डाक्‍टर ने एक वार्म बॉडी अर्थात शरीर के बाहर का अवयव ऑपरेशन के दौरान छोड़ दिया गया था जो जगरानी हॉस्पिटल में निकाला गया। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने अपने निष्‍कर्ष में भी इसे चिकित्‍सीय उपेक्षा मानते हुए क्षतिपूर्ति के आदेश दिये हैं। परिवादिनी द्वारा जगरानी हॉस्पिटल के केस सिद्ध दिनांक 29.12.2003 पर आधारित किया गया है, जिसमें अंकित है कि Procedure EXPLAP + Removal of FB उपरोक्‍त FB को परिवादिनी की ओर से Foreign बॉडी मानते हुए यह तर्क दिया गया है कि उपरोक्‍त शरीर के बाहरी अवयव अर्थात Foreign बॉडी डॉक्‍टर ने छोड़ दी गयी किन्‍तु दूसरी ओर चिकित्‍सका की ओर से यह तर्क दिया गया है कि यूटेरस के संक्रमण के कारण Explolatory leptrotomy द्वारा परिवादिनी के पति की सहमति लेते हुए यूटेरस से फ्ल्‍यूड निकाला गया था। उपरोक्‍त चिकित्‍सीय से स्‍पष्‍ट है कि परिवादिनी के उपरोक्‍त दशा में बदबूदार डिस्‍चार्ज निकलता है ऐसे में यूटेरस फ्ल्‍यूड डाक्‍टर द्वारा निकाला गया था। उपरोक्‍त में यह प्रदान किया गया है कि  Vaginal Fistula का क्‍या इलाज होगा जो निम्‍नलिखित प्रकार से है:-  

What are vaginal fistula treatments?

Treatment depends on the fistula type. Some small fistulas heal on their own with treatments like

  1. antibodies for infections or medications for inflammatory bowel disorders.
  2. Temporary  self cathetharian (clean intermittent catheterization) to drain the bladder while a vesicovaginal fistula heals.
  3. Ureteral stents (kidney stents) to keep the ureters open while a ureterovaginal fistula heals.

     Most people with vaginal fistulas need surgery. To repair a vaginal fistula, a surgeon may use own tissue of the patient lab-made tissue or surgical mesh to close the opening. As many as 9 in 10 women have a complete recovery after vaginal fistula repair surgery.

    After surgery for a genitourinary vaginal fistula, the patient may need help draining urine while the fistula heals. The Patient healthcare provider can teach the patient to use a catheter (thin hollow tube inserted into bladder of the patient).

           If the patient provider repairs a large fistula between the vagina and a digestive system organ, the patient may need a temporary ostomy (an artificial opening in an organ of the body, created during an operation such as a colostomy, ileostomy or gastrostomy a stoma).

  1.        उपरोक्‍त चिकित्‍सीय विवेचन में यह दिया गया है कि Fistula के इलाज में शरीर के विसर्जन अंगो को स्‍त्री के जन्‍मदाता अंगो से पृथक किया जाता है तथा एक अप्राकृतिक Stoma लगाया जाता है, जिससे शरीर के विसर्जन को अस्‍थायी रूप से पृथक कर दिया जाये एवं Fistula से संबंधित अंगो के घावों को स्‍वस्‍थ होने और भरने का समय मिल जाये एवं      उक्‍त अंगों के स्‍वस्‍थ होने के उपरान्‍त अर्थात घाव भरने के उपरान्‍त इस अप्राकृतिक भाग को पुन: ऑपरेशन के दौरान निकाला जायेगा।
  2.       उपरोक्‍त शल्‍य क्रिया के संबंध में वेबसाइट में दिया गया है कि Fistula के घाव भरने के उपरान्‍त पुन: आंत को जोड़ने के लिए उत्‍पन्‍न किये गये Stoma को पुन: सर्जरी के द्वारा हटाया जायेगा जो निम्‍नलिखित प्रकार से है:-
    1. A surgeon creates an opening (stoma) in belly (abdomen) of the Patient.
    2. A colostomy for large intestine or ileostomy for small intestine sends stool to the stoma.
    3. A bag outside body of the patient collects the stool. The provider will teach  the patient to change the bag and keep the stoma clean.
    4. When the fistula heals, the patient will need another surgery to reconnect intestine of the patient to rectum of the patient and close the stoma.
  3.         प्रस्‍तुत मामले में चिकित्‍सका द्वारा चिकित्‍सीय साहित्‍य के अनुसार यह स्‍पष्‍ट किया गया है कि परिवादिनी की आंतें अवरूद्ध होने के कारण उसे Fistula हुआ और एक बाहरी अवयव Cathetor डिस्‍चार्ज आदि संक्रमित पदार्थों को निकालने के लिए लगाया गया। स्‍पष्‍ट है कि जगरानी हॉस्पिटल में  उक्‍त बाहरी अवयव को हटाने के लिए जो ऑपरेशन किया गया था उसमें उक्‍त बाहरी अवयव अर्थात foreign बॉडी को निकाला गया, जैसा कि चिकित्‍सका महोदय ने वर्णित किया है अत: चिकित्‍सीय साहित्‍य के आधार पर यह मानना उचित है कि उक्‍त बाहरी अवयव अर्थात foreign बॉडी शरीर के विसर्जन अथवा परिवादिनी के शरीर में उत्‍पन्‍न संक्रमित पदार्थों को निकालने हेतु डाला गया था, जिसे निकाला गया एवं यह मान लेना उचित नहीं है कि ऑपरेशन के दौरान कोई बाहरी अवयव (foreign बॉडी) छोड़ दी गयी थी चिकित्‍सीय लापरवाही अथवा उपेक्षा अपीलार्थी चिकित्‍सका महोदय द्वारा की गयी।
  4.   इस संबंध में माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा अपने एक अन्‍य पूर्व के निर्णय जेकब मेथ्‍यू व अन्‍य बनाम स्‍टेट आफ पंजाब व अन्‍य, प्रकाशित (2005) 6 एस0सी0सी0 पृष्‍ठ 1 में अवधारित किया गया है।

In the law of negligence, professionals such as lawyers, doctors, architects and others are included in the category of persons professing some special skill or skilled persons generally. Any task which is required to be performed with a special skill would generally be admitted or undertaken to be performed only if the person possesses the requisite skill for performing that task. Any reasonable man entering into a profession which requires a particular level of learning to be called a professional of that branch, impliedly assures the person dealing with him that the skill which he professes to possess shall be exercised and exercised with reasonable degree of care and caution. He does not assure his client of the result. A lawyer does not tell his client that the client shall win the case in all circumstances. A physician would not assure the patient of full recovery in every case. A surgeon cannot and does not guarantee that the result of surgery would invariably be beneficial, much less to the extent of 100% for the person operated on. The only assurance which such a professional can give or can be understood to have given by implication is that he is possessed of the requisite skill in that branch of profession which he is practising and while undertaking the performance of the task entrusted to him he would be exercising his skill with reasonable competence. This is all what the person approaching the professional can expect. Judged by this standard, a professional may be held liable for negligence on one of two findings; either he was not possessed of the requisite skill which he professed to have possessed or he did not exercise, with reasonable competence in the given case, the skill which he did possess. The standard to be applied for judging, whether the person charged has been negligent or not, would be that of an ordinary competent person exercising ordinary skill in that profession. It is not necessary for every professional to possess the highest level of expertise in that branch which he practises. 

    उपरोक्‍त निर्णय के निष्‍कर्ष को माननीय सर्वोच्‍च न्‍यायालय के अन्‍य निर्णयों वी0 किशन राव बनाम निखिल सुपर स्‍पेशियल्‍टी हास्पिटल, सिविल अपील संख्‍या-2641/2010 में दोहराया गया  है। उपरोक्‍त निर्णयों में प्रसिद्ध इंग्लिश केस बोलम बनाम फ्री अर्न हास्पिटल मैनेजमेन्‍ट कमेटी 1957 Vol. 2 आल इंग्‍लैण्‍ड रिपोर्ट पृष्‍ठ 118 पर अवधारित किया गया है, जिसमें प्रसिद्ध बोलम टेस्‍ट अवधारित किया गया है, जो निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

       A professional may be held liable for negligence on one of the two findings either he was not possessed of the requisite skill which he professed to have possessed or he did not exercise, with reasonable competence in the given case, the skill which he did possess. The standard to be applied for judging, whether the person charged has been negligent or not, would be that of an ordinary competent person exercising ordinary skill in that profession. It is not possible for every professional to possess the highest level of expertise or skills in that branch which he practises. A highly skilled professional may be possessed of better qualities, but that cannot be made the basis or the yardstick for judging the performance of the professional proceeded against on indictment of negligence.

1. चिकित्‍सक लापरवाही का दोषी तब माना जायेगा, जबकि उसने चिकित्‍सा में ऐसा कार्य किया है, जिसके लिए वह कुशलता एवं अर्हता नहीं रखता है एवं अपनी अर्हताओं के अनुसार वह उक्‍त चिकित्‍सीय कार्य करने में सक्षम नहीं है।

2. चिकित्‍सक द्वारा एक युक्तियुक्‍त स्‍तर की सावधानी नहीं बरती गयी है।

  1.          प्रस्‍तुत मामले में पहले बिन्‍दु के संबंध में चिकित्‍सा डॉक्‍टर अंजू मिश्रा की व्‍यवसायिक कुशलता के संबंध में परिवादिनी की ओर से कोई प्रश्‍नचिन्‍ह नहीं लगाया गया था। श्रीमती अन्‍जू मिश्रा द्वारा अपने शपथ पत्र में उसने कुशल प्रसूति रोग विशेषज्ञ दर्शाया है। अत: यह नहीं माना जा सकता कि डॉक्‍टर श्रीमती अन्‍जू मिश्रा LSCS ऑपरेशन करने के लिए कुशलता नहीं रखी थी। अत: उपरोक्‍त प्रथम बिन्‍दु अपीलार्थी के पक्ष में जाता है, जहां तक दूसरे बिन्‍दु का प्रश्‍न है यह स्‍पष्‍ट होता है कि चिकित्‍सा ने परिवादिनी के संक्रमित यूटेरस को देखते हुए उचित प्रकार से संक्रमित पदार्थ का नियमित पद्धति अनुसार बाहर निकालने के लिए Cathetor के साथ लगे हुए उसे डिस्‍चार्ज किया था एवं चिकित्‍सा के लिए जनरल सर्जन श्री डॉक्‍टर अनंत वर्धन पाठक को संदर्भित भी किया गया एवं उनके द्वारा उचित प्रकार से समस्‍त सावधानियां बरतते हुए परिवादिनी का इलाज किया गया एवं साक्ष्‍य से यह स्‍पष्‍ट नहीं होता है कि कोई चिकित्‍सीय उपेक्षा चिकित्सिका के द्वारा अथवा प्रज्ञा क्‍लीनिक में की गयी है जबकि परिवादिनी को इस तथ्‍य को अपने साक्ष्‍य से स्‍पष्‍ट करना था, जैसा परिवाद के स्‍तर पर साक्ष्‍य द्वारा पुष्‍ट नहीं किया गया है। विद्धान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने परिवादिनी के इलाज में असावधानी एवं उपेक्षा मानते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में 3,00,000/- रू0 एवं वाद व्‍यय अदा करने का आदेश दिया है। अत: निर्णय अपास्‍त किये जाने योग्‍य है तथा अपील स्‍वीकार किये जाने योग्‍य है।

 

  •  

अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला उपभोक्‍ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद सं0- 267/2004 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 28/09/2007 अपास्‍त किया जाता है।

अपील में उभय पक्ष वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

          आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

 

 

(विकास सक्‍सेना)(सुशील कुमार)(राजेन्‍द्र सिंह)

  •  

 

 

निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उदघोषित किया गया।

 

 

 

(विकास सक्‍सेना)(सुशील कुमार)(राजेन्‍द्र सिंह)

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     संदीप आशु0कोर्ट नं0 2

   

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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