(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 166/2021
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा परिवाद सं0- 471/2018 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 25.01.2021 के विरुद्ध)
Eldeco Housing and Industries Ltd., IInd Floor, Eldeco Corporate Chamber-1 (Opposite Mandi Parishad), Vibhuti Khand, Gomti Nagar, Lucknow-226010 through its General Manager Ruchi Sachdeva.
…Appellant
Versus
Smt. Ambara Srivastava aged about 35 years wife of Vikas kumar srivastava Resident of K-27, Ashiyana, Lucknow.
……Respondent
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
2. माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री विवेक मधोक, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से : श्री कामेश गुप्ता, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक:- 24.12.2021
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 471/2018 श्रीमती अम्बारा श्रीवास्तव बनाम एल्डिको हाऊसिंग एण्ड इंडस्ट्रीज लि0 में जिला उपभोक्ता आयोग द्वितीय, लखनऊ द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 25.01.2021 के विरुद्ध परिवाद के विपक्षी की ओर से यह अपील धारा- 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. इस मामले में उपरोक्त परिवाद इन अभिकथनों के साथ योजित किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी एल्डिको सौभाग्यम योजना के अंतर्गत रायबरेली रोड, लखनऊ में अपीलार्थी/विपक्षी से एक फ्लैट बुक कराया था जिसकी सम्पूर्ण धनराशि 28,04,801/-रू0 उसने वर्ष 2014 में जमा कर दी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के अनुसार उक्त फ्लैट का कब्जा अपीलार्थी/विपक्षी को 03 माह में देना है, किन्तु फ्लैट का कब्जा मई 2018 में दिया गया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने इस संदर्भ में अपीलार्थी/विपक्षी को कई अनुस्मारक प्रेषित किए, लेकिन परिणाम शून्य रहा। प्रत्यर्थी/परिवादिनी का कथन है कि अपीलार्थी/विपक्षी ने ऐसा करके सेवा में कमी की है। उक्त अभिकथनों के साथ प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
3. अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें उसका कथन आया कि अपीलार्थी/विपक्षी ने सेवा में कोई कमी नहीं की है। परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार जिला उपभोक्ता आयोग को नहीं है, क्योंकि प्रकरण अधिक धनराशि का है। इन आधारों पर परिवाद निरस्त किए जाने की प्रार्थना की गई है।
4. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने क्षेत्राधिकार के प्रश्न को इन आधारों पर निस्तारित किया कि तत्समय लागू उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 11 के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग को माल या सेवा का मूल्य द्वारा दावा प्रतिकर जिसका मूल्य 20,00,000/-रू0 से अधिक नहीं है का क्षेत्राधिकार है, किन्तु इस मामले में वादी द्वारा प्रश्नगत फ्लैट का मूल्य जमा कर दिया गया है और निर्धारित 03 वर्ष के उपरांत उसे फ्लैट का कब्जा प्राप्त हुआ है। निर्धारित अवधि में फ्लैट न मिलने के कारण उसे हुई मानसिक एवं आर्थिक कठिनाइयों के फलस्वरूप अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रदान की गई सेवा में कमी की गई है। उक्त मानसिक व आर्थिक क्षति का आंकलन करते हुए दावा किया गया है जो 20,00,000/-रू0 से कम है। इन आधारों पर विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रश्नगत फ्लैट हेतु जमा की गई राशि पर दिसम्बर 2014 से फ्लैट का कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से अदायगी, शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु रू0 15,000/- तथा वाद व्यय हेतु 5,000/-रू0 आज्ञप्त किए, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
5. अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिए गए हैं कि दोनों पक्षों के मध्य निष्पादित करार के अनुसार प्रश्नगत फ्लैट का बेसिक मूल्य 24,25,250/-रू0 अंकित किया गया था। डाउन पेमेंट के उपरांत 36 माह तक किश्तों की अदायगी के उपरांत उक्त यूनिट का कब्जा दिया जाना था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा प्रश्नगत यूनिट की भौतिक कब्जा लिए जाने के समय सभी व्यय एवं लेखा सेटेल कर दिए गए हैं तथा इसके उपरांत दि0 23.05.2018 को विक्रय पत्र निष्पादित करते हुए प्रश्नगत यूनिट का कब्जा दिया गया। दोनों पक्षों के मध्य हुए करार क्लाज E के अनुसार जो परिस्थितियां अपलार्थी/विपक्षी के कब्जे में न हों उनके बारे में कोई दावेदारी नहीं की जायेगी। यह शर्त प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने स्वीकार की थी।
6. उभयपक्ष के मध्य हुई शर्तों में यह भी अंकित था कि दिए गए समय के उपरांत 06 माह ग्रेस पीरियड दिया जायेगा।
7. अपील में प्रश्नगत निर्णय को खण्डित करने के ये आधार लिए गए हैं कि प्रश्नगत यूनिट का मूल्य 24,25,250/-रू0 है जो जिला उपभोक्ता आयोग के धनीय क्षेत्राधिकार से बाहर है। यह परिवाद वर्ष 2019 के पूर्व योजित किया गया है। अत: इस पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के प्राविधान ही लागू होंगे। दि0 22.05.2018 को दोनों पक्षों के मध्य हुई संविदा में प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने विशिष्ट रूप से इस शर्त को स्वीकार किया था कि वह पूर्ण एवं अन्तिम रूप से अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रस्तुत की गई लेखा को स्वीकार कर रही है और वह इस पर कोई विवाद नहीं करेगी। प्रत्यर्थी/परिवादिनी उक्त शर्तों से बाध्य है। इन आधारों पर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
8. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री विवेक मधोक और प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री कामेश गुप्ता उपस्थित हैं। उभयपक्ष के विद्वान अधिवक्तागण को सुना गया। प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया। अपील के निर्णय हेतु निष्कर्ष निम्न प्रकार से हैं:-
9. प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने यह परिवाद इन अभिकथनों के साथ प्रस्तुत किया है कि प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा उसे मई 2018 में दिया गया था जब कि उभयपक्ष के मध्य हुए करार की शर्तों के अनुसार यह कब्जा वर्ष 2014 में दिया जाना था जिसके लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने अपीलार्थी/विपक्षी से रू0 7,00,000/- हानि की भरपाई तथा रू0 11,50,000/- मानसिक व शारीरिक कष्ट के लिए अनुतोष की मांग की।
10. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उक्त अभिकथनों पर प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा जमा किए गए धनराशि पर 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज धनराशि जमा करने की तिथि से फ्लैट पर कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक प्रदान किया। इसके अतिरिक्त रू0 15,000/- शारीरिक व मानसिक कष्ट हेतु एवं वाद 5,000/-रू0 वाद व्यय की धनराशि आज्ञप्त की है।
11. प्रत्यर्थी/परिवादिनी के द्वारा मांगे गए उपरोक्त अनुतोष के सम्बन्ध में इस अपील में अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा पहली आपत्ति यह की गई है कि प्रश्नगत फ्लैट का मूल्य रू0 20,00,000/- से अधिक है जब कि परिवाद की तिथि पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 11 के अनुसार जिला उपभोक्ता आयोग को 20,00,000/-रू0 तक के धनीय क्षेत्राधिकार था। अत: विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने अपने क्षेत्राधिकार से बाहर जाकर यह परिवाद निर्णीत किया है, क्योंकि प्रश्नगत फ्लैट का दाम स्वीकार्य रूप से रू0 24,25,250/- था जो 20,00,000/-रू0 से अधिक है।
12. इस सम्बन्ध में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि वाद योजन की तिथि से पूर्व ही प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा धनराशि प्रदान की गई थी और प्रश्नगत फ्लैट का कब्जा भी उसे प्राप्त हो गया था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने फ्लैट का कब्जा देर से दिए जाने को सेवा में त्रुटि मानते हुए अपनी जमा धनराशि पर ब्याज हेतु यह वाद योजित की थी जो रू0 11,50,000/-रू0 था जो न्यायालय की क्षेत्राधिकारिता के भीतर है और इस कारण परिवाद क्षेत्राधिकार से बाहर नहीं माना जा सकता है।
13. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा दिया गया उपरोक्त निष्कर्ष तार्किक एवं उचित प्रतीत होता है। प्रस्तुत परिवाद में प्रश्नगत फ्लैट के कब्जा अथवा फ्लैट के मूल्य को लेकर कोई विवाद नहीं था, क्योंकि स्वीकार्य रूप से फ्लैट का कब्जा पूर्व में ही दिया जा चुका है सेवा में की गई कमी के मूल्य को आंकते हुए यह परिवाद योजित किया गया है जिसको उचित रूप से विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत मानते हुए परिवाद का निर्णय किया है। यह निष्कर्ष उचित प्रतीत होता है एवं इसमें हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं प्रतीत होती है।
14. जहां तक अपीलार्थी/विपक्षी के विरुद्ध की गई आज्ञप्ति का प्रश्न है, विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने दिसम्बर 2014 तक फ्लैट की समस्त धनराशि जमा किए जाने की तिथि से फ्लैट का कब्जा दिए जाने की तिथि तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की आज्ञप्ति की है। इस सम्बन्ध में उल्लेखनीय है कि उभयपक्ष के मध्य हुए करार जो स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी ने अपनी मेमो आफ अपील के साथ संलग्नक 01 के रूप में संलग्न किया है उक्त करार की प्रतिलिपि के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि उक्त करार के टर्म्स एण्ड कंडीशन वाले भाग में जो शर्तें दी गई हैं उसमें पोजेशन सर्विसिंग से 8वीं शर्त यह है कि धनराशि की अदायगी के 36 माह में 06 महीने के ग्रेस पीरियड में भवन निर्माण पूरा हो जायेगा, किन्तु धनराशि जमा होने के 04 वर्ष तक यह भवन पूरा नहीं किया जा सका और न ही उक्त भवन का कब्जा ही दिया गया। इस प्रकार स्वयं अपीलार्थी/विपक्षी के पक्ष पर ही प्रश्नगत भवन के हस्तांतरण में देरी हुई है जिसके लिए अपीलार्थी ही उत्तरदायी है और इस देरी के लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति प्रदान किया जाना उचित प्रतीत होता है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने प्रत्यर्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति करने हेतु 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज दिया है जो उचित प्रतीत होता है।
15. इस सम्बन्ध में मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय गोपाल दास मुंधरा बनाम ओजोन प्रोजेक्ट प्रा0लि0 प्रकाशित IV (2021) CPJ पेज 13 (NC) का उल्लेख करना उचित होगा। इस निर्णय में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने यह निर्णीत किया कि फ्लैट के निर्माण में हुई देरी के लिए निर्माणकर्ता उत्तरदायी है। यदि भवन स्वामी/आवेदक ने सम्पूर्ण धनराशि जमा कर दी है और भवन का कब्जा 43 महीने बाद दिया गया तो ऐसी दशा में आवेदक को जमा धनराशि पर रू0 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाया जाना उचित है।
16. उपरोक्त तथ्यों से मिलते-जुलते तथ्यों पर मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय मनीष प्रकाश बनाम सी0एच0डी0 डेवलपर्स लि0 प्रकाशित IV (2021) CPJ पेज 54 में मा0 राष्ट्रीय आयोग ने प्रश्नगत अपार्टमेंट के कब्जा के हस्तांतरण में हुई देरी को सेवा में कमी मानते हुए आवेदक की जमा धनराशि पर कब्जा की तिथि से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलाया जाना उचित माना है।
17. मा0 राष्ट्रीय आयोग के उपरोक्त निर्णयों के दिशा-निर्देशन लेते हुए यह पीठ इस मत की है कि इस मामले में भी प्रश्नगत फ्लैट की सम्पूर्ण धनराशि जमा हो जाने के उपरांत एक लम्बे समय तक इसका कब्जा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान नहीं किया गया। भवन निर्माण में यदि कोई देरी हुई तो इसका उत्तरदायित्व अपीलार्थी/विपक्षी पर ही जाता है और इस देरी के लिए प्रत्यर्थी/परिवादिनी को क्षतिपूर्ति दिलाया जाना उचित प्रतीत होता है जो विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इस मामले में उचित प्रकार से 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज जमा की गई धनराशि पर दिलवाया है जिसे अनुचित नहीं कहा जा सकता है।
18. सम्पूर्ण तथ्यों व परिस्थितियों को देखते हुए मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु रू0 15,000/- तथा वाद व्यय रू0 5,000/- जो आज्ञप्त किए गए हैं वह उचित प्रतीत होते हैं। इसके अतिरिक्त 30 दिन के भीतर भुगतान न किए जाने पर अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा प्रश्नगत निर्णय की तिथि से भुगतान की तिथि तक प्रत्यर्थी/परिवादिनी को 100/-रू0 प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किए जाने का निर्देश दिया गया है जिसे संशोधित करके यह पीठ उचित पाती है कि प्रश्नगत निर्णय के स्थान पर इस अपील के निर्णय की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 06 प्रतिशत के स्थान पर 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अपीलार्थी/विपक्षी, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को प्रदान करें। तदनुसार प्रश्नगत निर्णय संशोधित करते हुए शेष निर्णय व आदेश पुष्ट किए जाने एवं अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
19. प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश इस सीमा तक संशोधित किया जाता है कि अपील के निर्णय की तिथि से 30 दिन के अन्दर अपीलार्थी/विपक्षी, प्रत्यर्थी/परिवादिनी को फ्लैट की जमा धनराशि पर दिसम्बर 2014 से फ्लैट के कब्जा प्राप्त करने की तिथि तक 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज की दर से अदा करे। इसके अतिरिक्त अपीलार्थी/विपक्षी, प्रत्यर्थी/परिवादी को रू0 15,000/- मानसिक व शारीरिक कष्ट हेतु तथा 5,000/-रू0 वाद व्यय के रूप में अदा करें। 30 दिन के अन्दर अदायगी न होने पर 06 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज के स्थान पर 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज अदा करने के लिए अपीलार्थी/विपक्षी उत्तरदायी होगा।
अपील में धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित इस निर्णय व आदेश के अनुसार निस्तारण हेतु जिला उपभोक्ता आयोग को प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-1