(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-113/2013
(जिला आयोग, II गाजियाबाद द्वारा परिवाद संख्या-428/2012 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 7.11.2012 के विरूद्ध)
यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0लि0, द्वारा डिप्टी मैनेजर, रिजनल आफिस, आरिफ चैम्बर्स, कपूरथला काम्पलेक्स, अलीगंज, लखनऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम
1. श्रीमती सीता देवी पत्नी स्व0 श्री किशन चंद उर्फ कृष्ण कुमार उर्फ कल्लू, निवासिनी ग्राम कुमहेड़ा, पोस्ट निवारी, तहसील मोदी नगर, जिला गाजियाबाद।
2. श्री बालाजी इण्टरप्राइजेज जी-12,13, शिप्रा बिल्डिंग, अम्बेडकर रोड, गाजियाबाद, जिला गाजियाबाद द्वारा प्रोपराइटर।
प्रत्यर्थीगण/परिवादिनी/विपक्षी सं0-2
समक्ष:-
1. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. माननीय श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री टी.के. मिश्रा।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 12.09.2024
माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या-428/2012, श्रीमती सीता देवी बनाम यूनाइटेड इंडिया इं0कं0लि0 तथा एक अन्य में विद्वान जिला आयोग, II गाजियाबाद द्वारा पारित निर्णय/आदेश दिनांक 7.11.2012 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय/पत्रावली का अवलोकन किया गया। प्रत्यर्थीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
2. प्रश्नगत निर्णय/आदेश द्वारा विद्वान जिला आयोग ने परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए विपक्षी सं0-1, बीमा कंपनी को आदेशित किया है कि वह परिवादिनी को सर्वो सुरक्षा व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा अंकन 1,00,000/-रू0 8 प्रतिशत ब्याज के साथ अदा करने के लिए आदेशित किया है।
3. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादिनी के पति द्वारा सर्वो सुरक्षा व्यक्तिगत दुर्घटना पालिसी सर्वो क्रेता के नाते ली गई थी, जिसमें यह शर्त थी कि एक वर्ष के अन्दर यदि तेल क्रेता के साथ कोई दुर्घटना घटित हो जाती है और दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है तब सर्वो तेल क्रेता बीमाधारक के आश्रित को एक लाख रूपये की राशि देय होगी।
4. दिनांक 17.7.2003 को सड़क दुर्घटना में परिवादिनी के पति की मृत्यु हो गई, जिसकी रिपोर्ट गाड़ी मालिक ने दिनांक 22.7.2003 को कोतवाली सीतापुर में दर्ज कराई। एक लाख रूपये के लिए बीमा क्लेम प्रस्तुत किया गया, लेकिन विपक्षी द्वारा इंकार कर दिया गया।
5. विपक्षी बीमा कंपनी का कथन है कि पालिसी दिनांक 9.5.2003 से प्रभावी थी, जबकि विपक्षी सं0-2 ने मृतक श्री किशन चंद का बीमा पालिसी प्रमाण पत्र दिनांक 2.5.2003 को ही जारी कर दिया, इसलिए विपक्षी सं0-1, बीमा कंपनी क्षतिपूर्ति के लिए उत्तरदायी नहीं है। इंडियन ऑयल को पक्षकार नहीं बनाया गया है।
6. पक्षकारों की साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात विद्वान जिला आयोग द्वारा यह निष्कर्ष दिया गया कि बीमा पालिसी प्रमाण पत्र बीमा कंपनी के प्राधिकृत हस्ताक्षरकर्ता के हस्ताक्षर होने के बाद ही जारी हुए हैं, इसलिए बीमा क्लेम देय है। तदनुसार बीमा क्लेम अदा करने का आदेश पारित किया गया।
7. इस निर्णय/आदेश के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील के ज्ञापन एवं मौखिक तर्कों का सार यह है कि परिवादिनी के पति किशन चंद के नाम पालिसी दिनांक 2.5.2003 को जारी हुई है, जिनकी दिनांक 17.7.2003 को मृत्यु हुई है, जबकि दिनांक 2.5.2003 को पालिसी अस्तित्व में नहीं थी, इसलिए बीमा कंपनी का कोई उत्तरदायित्व नहीं बनता है।
8. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्त की बहस तथा पत्रावली के अवलोकन के पश्चात इस अपील के विनिश्चय के लिए एक मात्र विनिश्चायक बिन्दु यह उत्पन्न होता है कि क्या बीमा पालिसी बीमा कंपनी तथा इंडियन ऑयल कंपनी के मध्य हुए समझौते से पूर्व ही जारी कर दी गई। बीमा कंपनी की ओर से दस्तावेज सं0-23 पर ध्यान आकृष्ट कराया है, जिस पर बीमा पालिसी जारी होने की तिथि दिनांक 9.5.2003 वर्णित है। बीमा क्लेम इस आधार पर नकारा गया है कि दिनांक 2.5.2003 को बीमा प्रमाण पत्र जारी करना अनुचित है, क्योंकि बीमा पालिसी इस तिथि के बाद से प्रभावी है। दस्तावेज सं0-25, बीमा कंपनी की ओर से एक बीमा प्रमाण पत्र है, जो परिवादिनी के पति किशन चंद के नाम है और इस फार्म पर प्रभावी तिथि दिनांक 2.5.2003 है तथा बीमा प्रमाण पत्र संख्या-004742 है। चूंकि यह प्रमाण पत्र स्वंय बीमा कंपनी द्वारा जारी किया गया है, इसलिए परिवादिनी के पति की मृत्यु होने पर बीमा क्लेम की राशि देय बनती है। फिर यह भी कि बीमाधारक की मृत्यु दिनांक 17.7.2003 को हुई है, जो बीमा पालिसी की अवधि के दौरान है, इसलिए बीमा क्लेम देय है। तदनुसार प्रस्तुत अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
9. प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित विद्वान जिला आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(सुधा उपाध्याय) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-2