Uttar Pradesh

StateCommission

A/2006/3273

U I I Co - Complainant(s)

Versus

Singh Medical Store - Opp.Party(s)

T K Mishra

03 Aug 2016

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2006/3273
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District )
 
1. U I I Co
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Singh Medical Store
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta MEMBER
 
For the Appellant:
For the Respondent:
Dated : 03 Aug 2016
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

              अपील संख्‍या– 3273/2006           सुरक्षित

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, फतेहपुर द्वारा परिवाद सं0 332/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 15-11-2006 के विरूद्ध)           

यूनाइटेड इंडिया इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 द्वारा डिप्‍टी मैनेजर, रीजनल आफिस, आरिफ चैम्‍बर्स काम्‍पलेक्‍स, अलीगंज, लखनऊ।

                                                        ..अपीलार्थी/विपक्षी

                                बनाम

मेसर्स सिंह मेडिकल स्‍टोर, स्थित ग्राम- भैंसोली जिला-फतेहपुर द्वारा प्रोपराइटर मंगल सिंह तोमर पुत्र शंकर सिंह तोमर निवासी- ग्राम- केसरीपुर, पो0 भैंसोली, जिला- फतेहपुर।                                     

                                                         ...प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                  

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य।

माननीय श्री राज कमल गुप्‍ता, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थिति  : श्री तरूण कुमार मिश्रा, विद्वान अधिवकता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थिति    : श्री राजेश कुमार सिंह, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक-31-08-2016

माननीय श्री आर0सी0 चौधरी, पीठासीन सदस्‍य, द्वारा उद्घोषित

       निर्णय

      प्रस्‍तुत अपील जिला उपभोक्‍ता फोरम, फतेहपुर द्वारा परिवाद सं0 332/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 15-11-2006 के विरूद्ध प्रस्‍तुत की गई है, जिसमें जिला उपभोक्‍ता फोरम के द्वारा निम्‍न आदेश पारित किया गया है:-

      “परिवादी का परिवाद विरूद्ध विपक्षी डिग्री किया जाता है तथा विपक्षी बीमा कम्‍पनी को आदेश दिया जाता है कि परिवादी को निर्णय की तिथि से 2 माह के अन्‍दर एक लाख रूपये क्षतिपूर्ति के रूप में अदा करें। दावा 30-10-2002 को दाखिल हुआ था उसके बाद ही फोरम क्रियाशील रहा, इसलिए समस्‍त तथ्‍यों को दृष्टिगत रखते हुए परिवादी उक्‍त सम्‍पूर्ण धनराशि पर जुलाई 2005 से अन्तिम अदायगी की तिथि तक छ: प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्‍याज एवं रूपया 500-00 वाद व्‍यय के रूप में भी पाने का अधिकारी होगा। पत्रावली दाखिल दफ्तर की जाय।”

      संक्षेप में केस के तथ्‍य इस प्रकार से है कि परिवादी मेसर्स सिंह मेडिकल स्‍टोर का प्रोपराइटर है और उसने मेडिकल स्‍टोर का बीमा दो लाख रूपये का कराया था जो 03 दिसम्‍बर 2002 की तिथि तक प्रभावी था। प्रस्‍तर-2 में उल्लिखित किया है कि 29/30 मार्च 2002 की रात करीब 12 बजे किसी अज्ञात व्‍यक्ति ने उसकी दुकान में आग लगा दिया, जिससे समस्‍त दवायें जल गया, जिसकी सूचना विपक्षी के शाखा प्रबन्‍धक को भेजी गयी थी और विपक्षी द्वारा

(2)

सर्वेयर नियुक्‍त किया गया, जिसने स्‍टोर का मुआयना किया। प्रस्‍तर-3 में उल्लिखित किया है कि दुकान में आग लगने से बिल, स्‍टाक रजिस्‍टर, स्‍टाक स्‍टेटमेंट तथा कैश बुक आदि जल गये और जो बच गये थे, उनको परिवादी ने सर्वेयर को उपलब्‍ध कराया था। परिवादी ने विपक्षी के यहॉ रूपया 1,56,533-20 पैसे का क्‍लेम दाखिल किया था, जिसमें रूपया 10,000-00 फर्नीचर भी शामिल था। परिवादी का कहना है कि सर्वेयर ने गलत आख्‍या दी थी। अत: परिवादी को रूपया1,56,533-20 पैसे क्षति के रूप में 12 प्रतिशत ब्‍याज सहित विपक्षी से दिलाया जाय।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम के समक्ष प्रतिवादी द्वारा अपना प्रतिवाद पत्र दाखिल किया गया, जिसमें कहा गया है कि जो प्रार्थना पत्र पंचायत द्वारा आग लगने के समबन्‍ध में दिया गया था, उसमें कहीं भी दुकान में आग लगने की बात नहीं कही गई है। स्‍टोर पर आग लगने की बात कही  गई है। यह भी कहा गया है कि आग लगने के बावत कोई एफ0आई0आर0 नही करायी गई, जिससे आग लगना संदेहास्‍पद है और कोई जॉच नहीं करायी गई। यह भी उल्लिखित किया गया है कि परिवादी ने ऋण से बचने के कारण फर्जी प्रपत्र तैयार करवाकर दाखिल किये है और दावा गलत दाखिल हुआ है। यह भी उल्लिखित किया है कि परिवादी ने पॉलिसी की शर्तो का उल्‍लंघन किया है। दावा निरस्‍त किया जाय।

      इस सम्‍बन्‍ध में जिला उपभोक्‍ता फोरम के निर्णय/आदेश दिनांकित 15-11-2006 का अवलोकन किया गया तथा अपील आधार का अवलोकन किया गया व अपीलकर्ता के तरफ से दाखिल लिखित बहस का अवलोकन किया गया तथा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री तरूण कुमार मिश्रा को सुना गया।

      अपीलकर्ता के तरफ से निम्‍न रूलिंग दाखिल किया गया है:-

(1)iv(2011)CPJ 458(NC) खिमिजी भाई एण्‍ड संस बनाम न्‍यू इंडिया इंश्‍योरेंस कम्‍पनी लि0 में कहा गया है कि-

      Consumer Protection Act, 1986-Sections 2(1)(g), 21(b)- Insurance- Accident- Surveyor report- Claim repudiated- Forum partly allowed complaint- State Commission allowed appeal- Hence revision- Contention, Forum has not given any cogent reasons to discard report of licensed surveyor and simply accepted version of complainant in respect of loss admissible as per rules-

 

(3)

accepted- Mere productionof bills or estimates cannot be the basis for discarding report of surveyor- order of state Commission upheld.

(2)1 (2013) CPJ 440 (NC) ANKUR SURANA Versus UNITED INDIA INSURANCE CO. LTD& ORS. में कहा गया है कि-

      Report of Surveyor appointed by Insurance Company is an Important document and same should not be rejected by Consumer For a unless cogent reasons are recorded for doing so.

      लिखित बहस में यह भी कहा गया है कि सर्वेयर की रिपोर्ट को अनदेखी नहीं किया जा सकता है।

      जिला उपभोक्‍ता फोरम ने अपने निर्णय में यह लिखा है कि परिवादी ने प्रलेखीय साक्ष्‍य में फेहरिस्‍त में संलग्‍न असल कैस मेमों 55 अदद दाखिल किये है जो 02-05-2000 से 09-03-2002 की तिथि में विभिन्‍न मेडिकल स्‍टोर से क्रय की गई दवाइयों से सम्‍बन्धित है। उपरोक्‍त कैसममों से परिलक्षित होता है कि मई 2000 से वर्ष 2001 एवं 09 मार्च 2002तक विभिन्‍न तिथियों में विभिन्‍न दवाइयॉ मैं0 सिंह मेडिकल स्‍टोर द्वारा क्रय की गई और उपरोक्‍त सभी दवाइयों का मूल्‍य गणना करने पर करीब 65-66 हजार पहुंचता है। परिवादी के मेडिकल स्‍टोर का बीमा 04-12-2001 को दो लाख रूपये का किया गया था, जिसमें से रूपया 10,000-00 का फर्नीचर शामिल था। बीमा स्‍टाक को देखकर ही नियमत: किया जाता है। जिस अधिकारी ने बीमा किया होगा निश्चित रूप से स्‍टॉक का मूल्‍यॉकन करके ही बीमा किय होगा। चूंकि बीमा रूपया 1,90,000-00 की दवाओं का ि‍कया गया था। ऐसी स्थिति में माना यही जायेगा कि बीमा की तिथि पर रूपया 1,90,000-00 रूपये की दवायें स्‍टाक में थी। मेडिकल स्‍टोर में आग बीमा होने के करीब 3/1/2 माह बाद ही 29/30-03-02 को लगी थी और आग बुझाने अग्निशमन दल पहुंचा। वैसे साढे तीन माह में ज्‍यादा अधिक दवाओं की बिक्री होना संभव नहीं है, क्‍योंकि स्‍टोर देहाती क्षेत्र में था फिर भी यदि आधे मूल्‍य की दवाओं का बिक्री इस अवधि में मान ली जावे उस स्थित में भी आग लगने के समय एक लाख रूप्‍ये का स्‍टाक अवश्‍य रहा होगा। आग बुझाने अग्निशमनदल तुरन्‍त मौके पर पहुंचा था उसने अपनी आख्‍या में जोखिम में अनुमानित सम्‍पत्ति एक लाख दिखाई है तथा क्षति सम्‍पत्ति रूपया 40,000-00 व बचत सम्‍पत्ति रूपया 60,000-00 दर्शित की है। रिपोर्ट में लिखा है कि स्‍टोर के अन्‍दर का सामान

(4)

जलकर राख हो गया था। आर0सी0 बाजपेई सर्वेयर ने भी अपनी आख्‍या में लिखा है कि दुकान में सामान मलवा में बदल गया था। यद्धपि अग्निशमन दल ने रूपया 60,000-00 मूल्‍य की सम्‍पत्ति का बचना दिखाया है पर यह नहीं लिखा है कि उसमें कितनी दवायें प्रयोग लायक थी। आग लगने से दवाओं के रैपर जले होगें, पानी पड़ने से डिब्‍बे व रैपर भी भीग गये होगें। इस प्रकार की अधजली व भीगी दवायें कोई व्‍यक्ति खरीदने को कदापि तैयार नहीं होता है।

      अपीलार्थी की तरफ से दौरान बहस में यह कहा गया है कि सर्वेयर ने 38,045-55 का  नुकसान दिखाया है। पत्रावली में कागज सं0-29 श्री आर0सी0 बाजपेई का सर्वे रिपोर्ट लगा है, जिसमें बीमा 1,90,000-00 दिखाया गया है और मेडीसिन जो आग से प्रभावित हुआ 55,322-00 दिखाया है और साल्‍वेज की कटौती किया गया है और 49,928-00 रूपये बैलेंस दिखाया गया है।

      पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य, सर्वेयर की रिपोर्ट से यह स्‍पष्‍ट है कि  परिवादी के दुकान/मेडिकल स्‍टोर में दिनांक 29/30-03-2002 को आग लग गई, जिससे दुकान में रखी हुइ दवाईयॉ व फर्नीचर आदि जल गई। परिवादी की दुकान अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी से बीमित थी। यह बीमा दिनांक 04-12-2001 से 03-12-2002 तक वैध थी। अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्‍पनी द्वारा सर्वेयर की नियुक्ति की गई तथा सर्वेयर ने भी अपनी रिपोर्ट में आग के लगने को सही बताया है और अपनी रिपोर्ट में यह भी अंकित किया है कि दुकान में रखी हुई 55,322-38 पैसे की दवाईयॉ इस आग से प्रभावित हुई और साल्‍वेज तथा डेड स्‍टॉक को कम करते हुए  हानि को 49,028-45 पैसे दर्शाया है, परन्‍तु बाद में विभिन्‍न कटौती करके हानि को 38,045-55 पैसे दर्शाया है, जिसका कोई औचित्‍य नहीं है। अत: हम यह पाते हैं कि सर्वेयर ने समस्‍त कटौती करते हुए जो 49,928-00 की हानि दर्शाया है, वह उचित है और यह धनराशि परिवादी को दिलाया जाना न्‍यायोचित होगा।

      अत: उपरोक्‍त विवेचना के दृष्टिगत अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार करते हुए इस रूप में जिला मंच का निर्णय संशोधन होने योग्‍य है कि परिवादी एक लाख रूपये के स्‍थान पर 49,928-00 रूपये अपीलार्थी अदा करेगा। शेष आदेश की पुष्टि किये जाने योग्‍य है।

आदेश

      अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्‍वीकार की जाती है तथा जिला उपभोक्‍ता फोरम, फतेहपुर द्वारा परिवाद सं0 332/2002 में पारित निर्णय/आदेश दिनांकित 15-11-2006 में परिवादी को दिलाये गये एक लाख रूपये के स्‍थान पर 49,928-00 रूपये दिलाया जाता है तथा उक्‍त रकम पर जुलाई 2005 से 06 प्रतिशत का वार्षिक ब्‍याज भी दिलाया जाता है। शेष आदेश की पुष्टि की जाती है।

      उभय पक्ष अपना-अपना व्‍यय भार स्‍वयं वहन करेंगे।

 

   (आर0सी0 चौधरी)                                    ( राज कमल गुप्‍ता)

    पीठासीन सदस्‍य                                          सदस्‍य,

आर.सी.वर्मा, आशु.

 कोर्ट नं0-3

 

 

 

 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Ram Charan Chaudhary]
PRESIDING MEMBER
 
[HON'BLE MR. Raj Kamal Gupta]
MEMBER

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