Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :- 355/2015 (जिला उपभोक्ता आयोग, सोनभद्र द्वारा परिवाद सं0- 01/2014 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 06/12/2014 के विरूद्ध) United India Insurance Limited Branch Dankinganj, District-Mirjapur through Manager, Regional Office kapoorthala, Arif Chamber Lucknow. - Appellant
Shyam Sunder Pandey, Son of Dev Kumar pandey, Resident of Silvar, Post & Police Station-Ghorawal, District-Sonbhadra. समक्ष - मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
- मा0 डा0 आभा गुप्ता, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री शिशिर प्रधान प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री बृजेन्द्र चौधरी दिनांक:-24.05.2022 माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत उपभोक्ता परिवाद सं0-01/2014 श्याम सुंदर पाण्डेय बनाम यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी व अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दिनाक 06.12.2014 के विरूद्ध प्रस्तुत की गयी है। प्रश्नगत निर्णय के माध्यम से परिवादी का परिवाद बीमाकर्ता के विरूद्ध आंशिक रूप से स्वीकार करतेहुए परिवादी को रूपये 2,94,000/- मय 06 प्रतिशत ब्याज शारीरिक व मानसिक क्षतिग्रस्त के लिए रूपये 5,000/- एवं वाद व्यय रूपये 1,000/-आज्ञप्त की गयी है।
- प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से परिवाद पत्र इन अभिकथनों के साथ योजित किया गया है कि प्रश्नगत वाहन यूपी 64 आर/3729 इंडिका कार को प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी के साथ बीमित कराया था, जो दिनाक 21.06.2013 से दिनांक 21.06.2014 तक वैध था। प्रश्नगत वाहन दिनांक 10.12.2013 को रात्रि लभगभ 1.00 बजे ब्रेक फेल हो जाने के कारण दुर्घटनाग्रस्त हो गया, जो बरकक्षा पहाड़ी की खाई में गिर गया और क्षतिग्रस्त हो गया। उक्त घटना की सूचना उसी दिन दिनांक 10.12.2013 को पुलिस चौकी बरकक्षा में दी गयी। अपीलकर्ता को भी सूचना दी गयी। परिवादी के अनुसार प्रत्यर्थी/परिवादी का वाहन शिव कुमार पुत्र गोविन्द प्रसाद द्वारा घटना के समय चलाया जा रहा था, जो एक कुशल चालक है। विपक्षी/अपीलकर्ता की ओर से सर्वे कराया गया। विपक्षी के कहने पर परिवादी ने वाहन को खाई से निकलवाकर विजय आटो इलेक्ट्रिक वर्क मिरजापुर में खड़ी कर दी, किन्तु बार बार कहने पर बीमे का क्लेम नहीं दिया गया। उक्त वाहन गैराज में सड़ रहा है। प्रत्यर्थी/परिवादी को गैराज का किराया भी देना पड़ रहा है। इन आधारों पर बीमे की धनराशि रूपये 4,21,000/- व अन्य व्यय के लिए परिवाद प्रस्तुत किया गया।
- अपीलार्थी/विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें परिवाद के कथनों को असत्य दर्शाया गया एवं दिनांक 10.12.2013 को हुई दुर्घटना को असत्य व फर्जी बताया है। विपक्षी के अनुसार परिवादी के वाहन की दुर्घटना दिनांक 19.06.2013 को सुबह 7.00 बजे हुई थी, जिसे एक ट्रक ने पीछे से मार दिया था। उक्त घटना की सूचना थाना पीपरी में दी गयी थी। प्रश्नगत वाहन इंडिका कार का बीमा उक्त दुर्घटना के समय नहीं था क्योंकि उक्त वाहन का बीमा दिनांक 13.02.2013 तक ही था, जो उस समय समाप्त हो गया था। दिनांक 19.06.2013 को दुर्घटना होने के उपरान्त परिवादी ने दिनांक 21.06.2013 को विपक्षी के यहां बीमा कराया। बीमा दिनांक 22.06.2006 से दिनांक 21.06.2014 तक था। परिवादी ने पूर्व में हुई दुर्घटना को पुन: एक नयी दुर्घटना का जामा पहनाते हुए झूठे आधारों पर क्लेम पाने के लिए उक्त घटना की कूटरचना की। प्रत्यर्थी/परिवादी को जब यह मालूम हो गया कि बीमा कम्पनी को कूटरचना का ज्ञान हो गया है जो परिवादी ने विपक्षी के यहां दिनांक 21.07.2013 को 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर यह लिखके दिया कि वह उक्त क्लेम को वापस लेना चाहता है। परिवादी ने पुन: एक नई घटना दिखाकर उक्त दावे को प्रस्तुत किया है जिसके लिए जिला फोरम सोनभद्र में परिवाद प्रस्तुत किया गया है, जिसमें घटना दिनांक 10.12.2013 को रात्रि 1.00 बजे का होना दर्शाया गया है, जिसमें उक्त तिथि को बरकक्षा पहाड़ी से वाहन का गिरना बताया है, जबकि पूर्व की घटना दिनांक 19.06.2013 को गाड़ी क्षतिग्रस्त हुई थी। विपक्षी के अनुसार परिवादी के आचरण एवं व्यवहार से स्पष्ट होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा बताये गये दिनांक, समय व स्थान पर प्रश्नगत वाहन से कोई दुर्घटना नहीं हुई थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का कथन असत्य एवं झूठा हैं। अत: परिवादी का क्लेम और परिवाद निरस्त होने योग्य है। विद्धान जिला उपभोक्ता ने आंशिक रूप से परिवाद स्वीकार करते हुए उपरोक्त निर्णय पारित किया है, जिससे व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपील में मुख्य रूप से यह आधार लिये गये हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी श्याम सुंदर पाण्डेय आदतन अपराधी एवं बदनाम व्यक्ति है वह बीमा की पालिसी के झूठे क्लेमों के माध्यम से धन उपार्जन करता है। परिवादी द्वारा दर्शाया गयी दुर्घटना दिनांकित 10.12.2013 झूठी व फर्जी हैं। परिवादी ने दुर्घटना दिनांकित 30.06.2013 की दुर्घटना को बताते हुए क्लेम किया था। सर्वे करने पर पता लगा कि वास्तविक दुर्घटना दिनांक 19.06.2013 को हुई थी किन्तु यह वाहन उस समय बीमित नहीं था। अत: इसका बीमा समाप्त हो चुका था। परिवादी ने बाद में दिनांक 21.06.2013 को बीमा लेकर एक नयी दुर्घटना दिनांक 30.06.2013 को दर्शाते हुए झूठा क्लेम किया है। अपीलार्थी द्वारा नियुक्त सर्वेक्षक विजयानंद चौबे की रिपोर्ट दिनांकित 15.07.2013 के अनुसार दिनांक 30.06.2013 की दुर्घटना को परिवादी ने झूठा बनाया है। इस आधार पर परिवादी का क्लेम निरस्त किया गया है। परिवादी ने दिनांक 10.12.2013 की जो दुर्घटना दर्शायी है वह भी झूठी है। यह दुर्घटना की कहानी परिवादी द्वारा बतायी गयी दुर्घटना दिनांकित 19.06.2013 के समान है इसलिए दूसरी दुर्घटना दिनांक 10.12.2013 प्रथम दृष्टया झूठी व असत्य प्रतीत होती है। दिनांक 10.12.2013 की दुर्घटना के संबंध में कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति या दुर्घटना रिपोर्ट की प्रति प्रस्तुत नहीं की गयी है। अपीलकर्ता की ओर से विशिष्ट रूप से यह तर्क लिया गया है कि परिवादी ने पत्र दिनांकित 26.12.2013 तथा 27/30.01.2014 लिखा गया है, जिसमें परिवादी से क्षति का विवरण तथा सुसंगत दस्तावेज मांगे गये थे। विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम ने आवश्यक तथ्यों पर अपना निर्णय नहीं दिया है। अत: निर्णय खारिज होने योग्य है एवं इन आधारों पर अपील प्रस्तुत की गयी है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री शिशिर प्रधान तथा प्रत्यर्थी के विद्धान अधिवक्ता श्री बृजेन्द्र चौधरी को विस्तृत रूप से सुना गया। पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख का अवलोकन किया गया तत्पश्चात पीठ के निष्कर्ष निम्न प्रकार से हैं:-
- अभिलेख के अवलोकन से स्पष्ट होता है कि अपीलकर्ता यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कम्पनी द्वारा बीमे के क्लेम को इस आधार पर अस्वीकार किया गया है कि परिवादी ने पूर्व में एक बीमे का अन्य क्लेम किया था, जिसमें दिनांक 19.06.2013 को प्रश्नगत वाहन का दुर्घटना होना दर्शाया था किन्तु इस क्लेम को परिवादी ने स्वयं दिनांक 21.07.2013 को 10 रूपये के स्टाम्प पेपर पर क्लेम को वापस लाने का कथन करते हुए इस क्लेम को निरस्त करने की प्रार्थना की। अपीलकर्ता बीमा कम्पनी ने उक्त निरस्तीकरण को सर्वे रिपोर्ट द्वारा श्री विजयानंद चौबे पर आधारित करते हुए दिया है। सर्वेयर रिपोर्ट के अनुसार उक्त बीमा के दावे से संबंधित दुर्घटना दिनांकित 19.06.2013 को प्रश्नगत कार बीमित नहीं थी। अत: उक्त दावा वापस लिया गया एवं परिवादी पर यह आक्षेप लगाया गया है कि पुन: बीमा कराके जो दिनांक 21.06.2013 से दिनांक 20.06.2014 तक वैध था। संबंधित अभिकर्ता श्री विनोद कुमार दुबे को धोखे में रखकर कराया गया एक झूठी दुर्घटना दिनांकित 30.06.2013 को दर्शाकर यह झूठा क्लेम प्रस्तुत किया है।
- अपीलकर्ता के उक्त तर्क में बल प्रतीत नहीं होता है क्योंकि स्वयं अपीलकर्ता के अनुसार प्रश्नगत वाहन का बीमा दिनांक 13.02.2013 को समाप्त हो गया था, जिसके उपरान्त दिनांक 21.06.2013 अर्थात लगभग 4 माह के उपरान्त उक्त बीमा कराया गया इस बीच प्रश्नगत वाहन का बीमा लैप्स हो चुका था और इस लैप्स पालिसी का पुनर्जीवन वाहन का भौतिक सत्यापन किये बिना कर दिया गया, यह विश्वास योग्य प्रतीत नहीं होता है। वाहन की लैप्स पॉलिसी के संबंध में बीमा कम्पनी का यह कर्तव्य है कि यह बीमा बिना सुनिश्चित किये हुए कि इस बीच वाहन दुर्घटनाग्रस्त तो नहीं है, लैप्स पॉलिसी को पुनर्जीवित न की जाये। दिनांक 21.06.2013 को प्रश्नगत वाहन का बीमा पुनर्जीवित करने पर यह उपधारणा ली जा सकती है कि इस तथ्य को सत्यापित करते हुए यह बीमा पुनर्जीवित किया गया कि प्रश्नगत वाहन दुरूस्त है और वह दुर्घटनाग्रस्त आदि नहीं है। अत: मात्र उपधारणा के आधार पर कि परिवादी बीमित व्यक्ति ने बीमा के अभिकर्ता श्री विनोद कुमार दुबे को धोखा देते हुए दुर्घटनाग्रस्त वाहन का बीमा करा लिया, विश्वास योग्य प्रतीत नहीं है और इस आधार पर बीमा के क्लेम को अस्वीकार किया जाना पर्याप्त नहीं है इन परिस्थितियों को देखते हुए विद्धान जिला उपभोक्ता फोरम द्वारा परिवादी का परिवाद आंशिक रूप से स्वीकार किया गया है। उसमें क्षति की धनराशि रूपये 2,94,400/- रूपये मय 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिलवाये गये हैं, वह उचित प्रतीत होते हैं। परिवादी को शारीरिक, मानसिक व क्षति के लिए रूपये 5,000/- एवं वाद व्यय रूपये 1,000/- दिलवाये गये हैं। वे इस मामले में दिलवाया जाना उचित प्रतीत नहीं होता है। अत: इन धनराशियों के संबंध में आदेश को अपास्त करते हुए शेष निर्णय व आदेश अपील के स्तर पर पुष्ट किये जाने योग्य है।
आदेश अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है प्रश्नगत निर्णय व आदेश के इस भाग की पुष्टि की जाती है कि अपीलार्थी/बीमा कर्ता प्रत्यर्थी/परिवादी को बीमा से संबंधित क्षतिपूर्ति रू0 2,94,400/- परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक वसूली तक 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज सहित अदा करे। शेष निर्णय अपास्त किया जाता है। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (विकास सक्सेना) (डा0 आभा गुप्ता) सदस्य सदस्य संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-3 | |