Final Order / Judgement | (सुरक्षित) राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ। अपील सं0 :-1000/2011 (जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्वारा परिवाद सं0-120/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 05/10/2010 के विरूद्ध) - Ajmani Leasing & Finance Ltd, having its office at Greater Kailash, 80 Feet Road, Kanpur.
- Ajmani Leasing & Finance Ltd, having its registered office at Bus Station Road, Lakhimpur Kheri.
- Appellants
-
Shyam Bihari, Son of Shobh Nath resident of Gram Partappur Kamecha, Thana Chanda, District Sultanpur. समक्ष - मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्रीमती सुधा उपाध्याय, सदस्य
उपस्थिति: अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्ता:-श्री विकास अग्रवाल प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता:- श्री अभिषेक सिंह दिनांक:- 06.08.2024 माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित निर्णय - जिला उपभोक्ता आयोग, सुलतानपुर द्वारा परिवाद सं0-120/2005 श्याम बिहारी बनाम अजमानी लीजिंग एवं फाइनेंस व अन्य में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 05/10/2010 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गयी है।
- जिला उपभोक्ता आयोग ने परिवाद स्वीकार करते हुए परिवादी द्वारा क्रय किये गये ट्रक की कीमत एवं उस पर लदे हुए गेहूं की कीमत के कुल योग अंकन 4,90,000/-रू0 की क्षतिपूर्ति का आदेश 09 प्रतिशत ब्याज के साथ पारित किया है, साथ ही 15,000/-रू0 मानसिक प्रताड़ना एवं 1,000/-रू0 परिवाद व्यय के रूप में अदा करने के लिए भी आदेशित किया गया है।
- परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी द्वारा विपक्षी सं0 1 से 1,80,000/-रू0 का ऋण वर्ष 2004 में प्राप्त किया था। इस ऋण को प्राप्त करने के बाद अंकन 3,95,000/-रू0 मे एक ट्रक यूपी 70 एस 9949 क्रय किया गया था। ऋण की अदायगी 24 किश्तों में होनी थी। परिवादी नियमित रूप से भुगतान करता रहा, परंतु ट्रक खराब होने के कारण आर्थिक तंगी उत्पन्न हो गयी और किश्त समय पर अदा नहीं की जा सकी। विपक्षी द्वारा दिनांक 05.08.2005 को परिवादी का ट्रक अपने कब्जे में ले लिया, जिसमें गेहूं लदा हुआ था, जिसकी कीमत 1,45,800/-रू0 थी। परिवादी द्वारा इस ट्रक को वापस मांगा गया, पंरतु ट्रक को अवमुक्त करने से इंकार कर दिया गया।
- विपक्षीगण का कथन है कि जनपद सुलतानपुर में वाद कारण उत्पन्न नहीं हुआ। परिवादी ने किश्तों का भुगतान नहीं किया, इसलिए ट्रक को कब्जे में लिया गया है।
- पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात यह निष्कर्ष दिया है कि विपक्षी सं0 1 के प्रबंधक तथा परिवादी के मध्य सुलतानपुर में करार हुआ था, इसलिए वाद कारण सुलतानपुर में उत्पन्न हुआ है और अवैध रूप से ट्रक को अपने कब्जे में लिया गया है, जिसके कारण परिवादी ट्रक की कीमत एवं उस पर लदे हुए गेहूं की कीमत प्राप्त करने के लिए अधिकृत है।
- अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि परिवादी ने किश्तों का भुगतान नहीं किया। मध्यस्थ अधिनियम की धारा 8 के अंतर्गत मध्यस्थता कार्यवाही प्रारंभ हो चुकी है तथा मध्यस्थ द्वारा 29.06.2007 को अपना अपना अवार्ड पारित किया जा चुका है, इसलिए इस आयोग के समक्ष उपभोक्ता कार्यवाही संधारणीय नहीं थी, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश अपास्त होने योग्य है। यह भी बहस की गयी है कि मध्यस्थता अधिनियम उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम पर अभिभूत प्रभाव रखता है, इसलिए इस अधिनियम के अंतर्गत पारित किये गये अवार्ड के बाद उपभोक्ता परिवाद संधारणीय नहीं है। यह भी बहस की गयी है कि जिला उपभोक्ता आयोग सुलतानपुर को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
- परिवादी के विद्धान अधिवक्ता का यह तर्क है कि क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर पुनरीक्षण याचिका प्रस्तुत की गयी थी, जिसका निस्तारण दिनांक 19.12.2006 को हो चुका है और पुनरीक्षण आवेदन खारिज किया जा चुका है और जिला उपभोक्ता आयोग सुलातानपुर को क्षेत्राधिकार माना गया है, चूंकि पुनरीक्षण आवेदन के निस्तारण के पश्चात यह विवाद सुनिश्चित हो चुका है कि जिला उपभोक्ता आयोग सुलतानपुर को इस परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त है, इसलिए इस बिन्दु पर पुन: निष्कर्ष नहीं दिया जा सकता।
- अब इस बिन्दु पर विचार किया जाता है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के प्रावधान मध्यस्थता अधिनियम के प्रावधान के तहत आते हैं? इस प्रश्न का उत्तर नकारात्मक है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 3 में व्यवस्था दी गयी है कि इस अधिनियम के प्रावधान अन्य प्रावधानों पर अभिभावी प्रभाव रखते हैं, इसलिए मध्यस्थता की व्यवस्था होने के बावजूद उपभोक्ता परिवाद संधारणीय है। परिवाद पत्र में दिये गये विवरण के अनुसार परिवादी द्वारा कुल 1,00,287/-रू0 जमा किये गये हैं और विपक्षी सं0 1 से कुल 1,80,000/-रू0 का ऋण प्राप्त किया गया था। यह सही है कि परिवादी ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ट्रक के पूर्व किश्तें बकाया हो चुकी थी, परंतु दिनांक 09.08.2005 को परिवादी द्वारा रसीद सं0 1995 के माध्यम से 24,712/-रू0 तथा रसीद सं0 2001 के माध्यम से 18,240/-रू0 जमा किया है। यह दोनों रसीद पत्रावली पर उपलब्ध है। पत्रावली पर जिला उपभोक्ता आयोग के समक्ष उपलब्ध थी। अत: इस स्थिति में ट्रक को अवमुक्त किया जाना चाहिए था। परिवादी द्वारा अधिकांश रकम जमा की जा चुकी है। मामूली रकम के आधार पर ट्रक को नोटिस दिये जाने बिना जब्त करने की कार्यवाही अवैध है और परिवादीगण की ओर से इस तथ्य को स्थापित नहीं किया गया है कि ट्रक का अधिग्रहण करने से पूर्व परिवादी को नोटिस दिया गया था, इसलिए जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश में कोई हस्तक्षेप अपेक्षित नहीं है, सिवाय इसके कि निर्णय इस प्रकार आंशिक रूप से संशोधित किया जाए कि अंकन 4,90,000/-रू0 की राशि पर ब्याज केवल 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से देय होगा तथा परिवादी की जो राशि अवशेष बनती है, वह राशि समायोजित की जायेगी तथा अवशेष राशि पर भी ब्याज की गणना 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से की जायेगी।
आदेश अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश इस प्रकार संशोधित किया जाता है अंकन 4,90,000/-रू0 पर ब्याज की देयता 06 प्रतिशत की दर से देय होगी और परिवादी की जो राशि अवशेष बनती है, वह राशि समायोजित की जायेगी तथा अवशेष राशि में ब्याज की गणना 06 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से की जायेगी। शेष निर्णय/आदेश पुष्ट किया जाता है। प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा यदि कोई धनराशि जमा की गई हो तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित अपीलार्थी को यथाशीघ्र विधि के अनुसार वापस की जाए। उभय पक्ष अपीलीय वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे। आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें। (सुधा उपाध्याय)(सुशील कुमार) संदीप सिंह, आशु0 कोर्ट नं0 2 | |