राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-2275/2011
यूनियन आफ इंडिया द्वारा सेक्रेटरी डिपार्टमेन्ट आफ पोस्ट एंण्ड
टेलीग्राफ न्यू दिल्ली व दो अन्य। ......अपीलार्थीगण@विपक्षीगण
बनाम्
कु0 शुमायला जावेद पुत्री श्री जावेद इकबाल निवासी मुन्सिफ मंजिल
मोहल्ला पीरजादा डा0खास अमरोहा, जिला जे0पी0 नगर।
.......प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री श्रीकृष्ण पाठक, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आर0के0 मिश्रा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 22.02.2021
मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या 77/2009 कु0 शुमायला जावेद बनाम यूनियन आफ इंडिया व दो अन्य में पारित निर्णय एवं आदेश दि. 07.10.2011 के विरूद्ध यह अपील प्रस्तुत की गई है। परिवाद को आंशिक रूप से स्वीकार करते हुए परिवादिनी के पक्ष में अंकन रू. 5000/- की क्षतिपूर्ति तथा रू. 1000/- वाद शुल्क अदा करने का आदेश दिया गया है।
परिवादिनी का परिवाद पत्र में कथन है कि उसने उ0प्र0 शासन द्वारा राज्य के विभिन्न जनपदों में बी0टी0सी0 प्रशिक्षण सेवा 2008 में आवेदन भेजे, जिनके पहुंचने की अंतिम तिथि 20.02.2009 नियत थी। परिवादिनी ने विपक्षी संख्या 1 ता 3 के माध्यम से दिनांक 16.02.2009 को 11 जनपदों में आवेदन पत्र दिनांक 17.02.2009 को 04 जनपदों में आवेदन पत्र तथा दि. 18.02.2009 को 01 जनपद में आवेदन पत्र स्पीड पोस्ट द्वारा भेजे। परिवादिनी द्वारा भेजे गये सभी आवेदन पत्र नियत तिथि 20.02.2009 को गन्तव्य स्थान पर नहीं पहुंचे, बल्कि सभी आवेदन पत्रों
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को संबंधित जनपदों द्वारा इस आधार पर परिवादिनी को वापस लौटा दिया गया, क्योंकि सभी आवेदन पत्र दिनांक 21.02.2009 को गन्तव्य स्थान पर पहुंचे थे। इस प्रकार परिवादिनी बी0टी0सी0 की परीक्षा में सम्मिलित नहीं हो सकी और उसका भविष्य अंधकारमय हो गया।
विपक्षीगण की ओर से जवाबदावा 52क/1-3 दाखिल किया गया है। विपक्षीगण का कथन है कि उनके द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है और विपक्षीगण सेवा प्रदाता नहीं है, बल्कि सरकारी विभाग है, जो कि अपने सरकारी कार्य के निर्वहन में कार्य करते हैं। विपक्षीगण का कथन है कि धारा-6 डाकघर अधिनियम के तहत डाक एवं पोस्ट के अधिकारी एवं कर्मचारियों को उन्मुक्ति प्राप्त है। यदि उनके द्वारा कोई डाक खो जाती है या विलम्ब से पहुंची है तो वह किसी भी प्रकार की क्षतिपूर्ति देने के जिम्मेदार नहीं हैं।
दोनों पक्षकारों के साक्ष्य पर विचार करने के उपरांत उपरोक्त निर्णय व आदेश पारित किया गया है, जिसे पोस्ट आफिस ने इन आधारों पर चुनौती दी है कि देरी से डाक पहुंचने के कारण अपीलार्थी उत्तरदायी नहीं है, जिला उपभोक्ता मंच द्वारा अवैध रूप से अपीलार्थी को उत्तरदायी ठहराया गया है।
दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं की बहस को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय व आदेश का अवलोकन किया गया।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि टेलीग्राम एक्ट की धारा 6 की विधि व्यवस्था के अनुसार डाक का गुम हो जाना या अदा न किया जाना या देरी या क्षति के कारण सरकार उत्तरदायी नहीं है, जब तक कि धोखा, आशापूर्वक कृत्य या डिफाल्ट मौजूद न हो। अपीलार्थी के विद्वान
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अधिवक्ता ने तर्क के समर्थन में नजीर महानगर स्पीड पोस्ट बनाम भंवर लाल गोरा 2017 सीजे (एन.सी.डी.आर.सी.) 452 प्रस्तुत की गई है। उपरोक्त नजीर के तथ्य इस प्रकार थे कि दि. 03.04.2008 को डाक प्रेषित की गई थी, जो 2 दिन के अंदर मुख्य अधिशासी अधिकारी पाल के कार्यालय में प्राप्त हो जानी थी, परन्तु यह डाक दि. 07.04.2008 को प्राप्त हुई। डाक प्राप्त होने के अंदर तिथि 05.04.2008 थी, इसलिए परिवादी का आवेदन विचार में नहीं लिया गया। मा0 राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग की इस नजीर में यह व्यवस्था दी गई थी कि केवल स्पीड पोस्ट का शुल्क वापस प्राप्त कराया जा सकता है। देरी से डाक प्राप्त होने में सेवा में कमी होना नहीं माना जा सकता है। प्रस्तुत केस में पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादिया द्वारा जनपद अमरोहा से 13 स्थानों के लिए आवेदन प्रस्तुत किया गया था और सभी आवेदन जिला शिक्षा अधिकारी के कार्यालय में प्राप्त कराए जाने थे, परन्तु किसी भी कार्यालय में यह आवेदन प्राप्त नहीं हुआ, इसलिए धारा 6 में वर्णित शब्द डिफाल्ट(Default) प्रस्तुत केस में पूर्णत: दृष्टिगोचर होता है, अत: चूंकि स्वयं इंडियन पोस्ट आफिस एक्ट की धारा 6 में यह व्यस्था दी गई है कि धोखा, आशापूर्वक कृत्य या डिफाल्ट के मौजूद होने की स्थिति में सरकार को भी उत्तरदायी ठहराया जा सकता है। चूंकि परिवादिनी द्वारा 13 स्थलों के लिए जिनमें से कुछ स्थल अमरोहा से अत्यधिक नजदीकी दूरी पर थे, इसके बावजूद एक भी डाक संबंधित कार्यालय पर समय से नहीं पहुंच सके, अत: पोस्ट आफिस का डिफाल्ट प्रत्यक्ष रूप से जाहिर होता है, इसके लिए अतिरिक्त साक्ष्य की विवेचना करने की आवश्यकता नहीं है, अत: उपरोक्त नजीर की व्यवस्था में दिया गया लाभ अपीलार्थी को प्राप्त नहीं होता है। जिला मंच द्वारा पारित निर्णय
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में हस्तक्षेप करने की आवश्यकता अपेक्षित नहीं है। तदनुसार अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खारिज की जाती है।
उभय पक्ष अपना-अपना अपील-व्यय भार स्वंय वहन करेंगे।
इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाए।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-2