राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
परिवाद संख्या-92/2024
(सुरक्षित)
डॉ0 मनीषा श्रीवास्तव बोरकर पत्नी डॉक्टर विशाल श्रीवास्तव निवासिनी साकेत नगर पूर्व चकिया सुकन्या गैस एजेंसी के पास, थाना कोतवाली जनपद देवरिया।
........................परिवादिनी
बनाम
शुभम मिश्रा पुत्र अविनाश चंद्र मिश्रा निवासी वार्ड नंबर 4 मंडी समिति सहजनवा बाजार गोरखपुर उत्तर प्रदेश।
.......................विपक्षी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
परिवादिनी की ओर से उपस्थित : श्री अनिल कुमार,
विद्वान अधिवक्ता।
विपक्षी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक: 28.08.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत परिवाद इस न्यायालय के सम्मुख परिवादिनी डॉ0 मनीषा श्रीवास्तव बोरकर द्वारा विपक्षी शुभम मिश्रा के विरूद्ध योजित किया गया है।
संक्षेप में परिवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादिनी पेशे से डाक्टर है तथा स्वरोजगार के अन्तर्गत स्टार मेटरनिटी सेंटर, तारा कृष्णा डायग्नोस्टिक सेंटर तथा तारा फार्मेसी आईवीएफ स्थापित किया। उक्त स्वरोजगार के सम्पादन हेतु परिवादिनी को तकनीकी एवं व्यवसायिक सुविधा के लिए वेबसाइट, साफ्टवेयर, डोमेन, डिजिटल मार्केटिंग, ट्रेडिंग, इनर ब्राण्डिग तथा प्रिन्टिंग इत्यादि कार्य कराने थे, जिसके लिए परिवादिनी ने विपक्षी शुभम मिश्रा, जो परिवादिनी के बहुत खास परिचित के जानने वाले थे, से माह अक्ट्रबर 2020 में सम्पर्क किया। विपक्षी शुभम मिश्रा ने स्वयं
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को साफ्टवेयर डेवलपर्स/इंजीनियर बताया तथा उपरोक्त सभी फर्मों पर सभी सुविधायें देने के लिए 60,00,000/-रू0 में मसौदा तय किया, जिसके अन्तर्गत सभी फर्मों पर 10 वर्ष तक तकनीकी सुविधायें एवं मेन्टेनेन्स देनी थी, जिसके लिए शुरूआत में लगभग 21,00,500/-रू0 परिवादिनी द्वारा नगद भुगतान किया गया तथा 21 मार्च 2022 तक परिवादिनी के बैंक खाते से 12,45,541/-रू0 का भुगतान किया गया। तदोपरान्त परिवादिनी के पति डा0 विशाल श्रीवास्तव के बैंक खाते से 11,75,339/-रू0, तारा फार्मेसी के बैंक खाते से 2,85,000/-रू0 तथा हास्पिटल प्रबंधक के बैंक खाते से 37,000/-रू0 का भुगतान किया गया।
विपक्षी शुभम मिश्रा ने उपरोक्त भुगतान अपने खाते, अपने रिश्तेदार/परिचित के खाते में करा लिया तथा यह आश्वासन दिया गया कि परिवादिनी का पूरा काम सस्ते व बढि़या क्वालिटी में किया जावेगा तथा विपक्षी द्वारा किस्तों में अपने खाते में 6,40,880/-रू0 का भुगतान कराया गया। उक्त भुगतान विपिन त्रिपाठी व अनिल त्रिपाठी के खाते में कराया गया तथा जो साफ्टवेयर के नाम पर पैसा लिया गया, वह विपक्षी द्वारा अपनी बहन व अपनी पत्नी के खाते में भुगतान कराया गया।
मार्च 2022 के बाद परिवादिनी ने कोई भुगतान नहीं किया तथा बिल, बाण्ड पेपर की मांग करने पर विपक्षी द्वारा टालमटोल की गयी और कहा गया कि जैसे ही सारे काम हो जायेंगे सारे बिल्स और बाण्ड पेपर दे देंगे। मार्च 2022 में परिवादिनी ने आर्इ0टी0आर0 दाखिल करने हेतु विपक्षी से बिल की मांग की, तो विपक्षी द्वारा न तो फोन उठाया गया तथा न ही सम्पर्क किया गया। विपक्षी के उक्त कृत्य से परिवादिनी को काफी मानसिक व आर्थिक नुकसान पहुँचा तथा विपक्षी द्वारा परिवादिनी से छल कपट पूर्वक एवं अनुचित तरीके से धन कमाने हेतु परिवादिनी को धोखा दिया गया।
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अन्त में विवश होकर परिवादिनी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध एक मुकदमा अपराध संख्या 470/2022 अन्तर्गत धारा 419, 420, 406, 506 आई0पी0सी0 थाना कोतवाली जिला देवरिया में दर्ज कराया गया, परन्तु विवेचना अधिकारी द्वारा जिनके समक्ष पैसा दिया गया था उनका बयान लिए बिना अंतिम रिपोर्ट भी दिनांक 28.11.2022 को सक्षम न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत कर दी गयी।
इस प्रकार विपक्षी के उपरोक्त कृत्य से क्षुब्ध होकर परिवादिनी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध इस न्यायालय के सम्मुख परिवाद योजित करते हुए निम्न अनुतोष प्रदान किए जाने की मांग की गयी:-
“I. यह कि विपक्षी को निर्देशित किया जाये कि विपक्षी द्वारा परिवादिनी से अस्पताल के काम के बावत् ली गयी धनराशि मु0 रू0 58,63,380/- मय 18 प्रतिशत की दर से देने के आदेश पारित करने की कृपा की जावे।
II. यह कि परिवादी को विपक्षी की वजह से हुयी असुविधा व आर्थिक क्षति व मानसिक कष्ट की भरपाई के लिए 5,00,000/-रू0 अदा करने हेतु विपक्षी को निर्देशित किया जाये।
III. यह कि परिवादी को वाद व्यय व अन्य लिखा-पढ़ी के लिए विपक्षी से परिवादी को रू0 50,000/- दिलाया जाये।
IV. यह कि अन्य कोई अनुतोष जो माननीय फोरम की राय में न्यायोचित हो वह भी परिवादी को विपक्षी से दिलाया जाये।”
परिवादिनी के विद्वान अधिवक्ता श्री अनिल कुमार को परिवाद के अंगीकरण के स्तर पर सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों का सम्यक परीक्षण व परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परीक्षण एवं परिशीलन से प्रथम दृष्ट्या यह विदित होता है कि परिवादिनी द्वारा अपने परिवाद को स्पष्ट रूप से
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इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत नहीं किया गया है क्योंकि परिवादिनी द्वारा अपनी उपरोक्त तीन फर्मों हेतु व्यवसायिक उद्देश्य से विपक्षी की सेवायें लिए जाने का कथन किया गया है तथा एक बड़ी धनराशि नगद तथा कुछ धनराशियॉं विपक्षी के इस्ट मित्र एवं रिश्तेदारों के खातों में हस्तांरित किया जाना उल्लिखित किया गया है। इसके अतिरिक्त यह भी कथन किया गया है उक्त 60,00,000/-रू0 में विपक्षी की सेवायें 10 वर्ष तक के लिए ली गयी थीं, जिसके संबंध में किसी प्रकार के अनुबंध की कोई प्रति पत्रावली पर उपलब्ध नहीं है। परिवादिनी द्वारा एक एफ0आई0आर0 की प्रति दाखिल की गयी है तथा अंतिम रिपोर्ट के विरूद्ध प्रस्तुत प्रार्थना पत्र के निस्तारण आदेश दिनांकित 01.09.2023 की प्रति दाखिल की गयी है। तत्पश्चात् उक्त प्रकरण में क्या हुआ, के संबंध में कोई उल्लेख नहीं किया गया।
अत: मेरे विचार से यह परिवाद इस न्यायालय के समक्ष पोषणीय नहीं है क्योंकि परिवादिनी द्वारा अपनी उक्त तीन फर्मों हेतु विपक्षी से 10 वर्ष के लिए संविदा की गयी थी, परन्तु किसी प्रकार की कोई संविदा तथा भुगतान की गयी धनराशि के संबंध में किसी प्रकार की कोई रसीद इत्यादि भी दाखिल नहीं की गयी।
सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए यह परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत ''उपभोक्ता'' परिवाद की श्रेणी में नहीं आता है तथा अंगीकरण के स्तर पर ही, परिवाद स्वच्छ हाथों से तथा अस्पष्ट तथ्यों के आधार पर प्रस्तुत किए जाने के कारण परिवाद मय हर्जा निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत परिवाद 1,00,000/-रू0 (एक लाख रूपये) हर्जे पर निरस्त किया जाता है।
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आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1