( मौखिक )
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या : 1023/2019
राजेन्द्र प्रसाद पुत्र गंगा प्रसाद
बनाम्
श्रीराम ट्रान्सपोर्ट फाईनेंस कम्पनी लि0, जौनपुर व अन्य
समक्ष :-
1-मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
दिनांक : 19-07-2024
मा0 न्यायमूर्ति श्रीअशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
परिवाद संख्या-12/2017 राजेन्द्र प्रसाद बनाम श्रीराम ट्रान्सपोर्ट फाईनेंस प्राईवेट लि0 व दो अन्य में जिला आयोग, जौनपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांकित 27-07-20219 के विरूद्ध प्रस्तुत अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत इस न्यायालय के सम्मुख योजित की गयी है।
आक्षेपित निर्णय एवं आदेश के द्वारा विद्धान जिला आयोग द्वारा परिवाद निरस्त कर दिया गया है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी/परिवादी की विद्धान अधिवक्ता सुश्री पूजा त्रिपाठी उपस्थित आईं जब कि प्रत्यर्थी फाइनेंस कम्पनी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अदील अहमद उपस्थित आए।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार है कि परिवादी ने दिनांक 22-06-2016 को प्रश्नगत आटो थ्री व्हीलर विक्रम कोणार्क कम्पनी से मु0 2,50,000/- में क्रिया किया जिसमें से 1,00,000/-रू0 नकद जमा कर दिया और डीलर के बताने के निर्देशानुसार समझौते के आधार पर विपक्षी संख्या-1 फाइनेंस कम्पनी से मु0 1,50,000/-रू0 ऋण प्राप्त करके पूर्ण भुगतान कर दिया एवं फाइनेंस कम्पनी को अनुमन्य किश्तें अदा करता रहा। समझौते के अनुसार 08 प्रतिशत ब्याज अदा करना था। जब परिवादी फाईनेंस कम्पनी को मु0 5200/-रू0 किस्त जमा करने गया तो उससे 6029/-रू0 लिया जाता रहा और संविदा का उल्लंघन किया जाता रहा। प्रश्नगत गाड़ी फाईनेंसर व
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दुकानदार की मिलीभगत से बिक्री की गयी थी जो काफी पुरानी एवं काफी चली हुई थी। इस बात की जानकारी परिवादी को तब हुई जब परिवादी ने गाड़ी को रोड पर चलाना शुरू किया तो गाड़ी का निकील उड़ने लगा और उसका बुस, साकर, प्लेट, क्लच, तेल की दो पाईप, ताला टूटी हालत में मिले और इंजन के कई पार्ट खराब मिले जिससे गाड़ी खराब हालत में हो गयी और एजेन्सी पर खड़ी है, जो कि विपक्षीगण के स्तर से सेवा में कमी है अत: विवश होकर परिवादी ने परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया है।
विपक्षी की ओर से प्रतिवाद पत्र योजित करते हुए अधिकांश तथ्यों से इंकार किया गया और कथन किया गया कि परिवादी ने दिनांक 22-06-2016 को 1,50,000/-रू0 13.83 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से 03 वर्ष के लिए लोन कम हाईपोथिकेशन एग्रीमेंट के अनुसार कामर्शियल उद्देश्य से थ्री व्हीलर क्रय करने के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त की थी जिसकी कुल 35 किस्ते अदा करनी थी जिसकी प्रथम किस्त 7259/-रू0 थी तथा शेष अन्य किस्ते 6029/-रू0 की थी जिसे परिवादी दिनांक 05-01-2017 तक नियमित रूप से जमा करता रहा लेकिन उसके बाद से एग्रीमेंट के अनुसार तय शर्तों के अनुसार अदायगी न करके संविदा भंग का दोषी है। परिवादी ने प्रश्नगत ऋण व्यवसायिक उद्देश्य हेतु लिया है इसलिए वह उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है।
विपक्षी की ओर से यह थी कथन किया गया कि परिवादी को परिवाद प्रस्तुत करने का अधिकार नहीं है और न ही कोई वाद का कारण ही पैदा हुआ है। ग्राहकों को वाहन आटो रिक्शा का विक्रय करते समय गारण्टी बुकलेट दी जाती है जिसमें दिये गये निर्देशों, नियमों व शर्तों के अधीन ही वारण्टी का लाभ दिया जाता है, और दिये गये निर्देशों के विपरीत वाहन का संचालन होने पर उसमें उत्पन्न किसी खराबी के लिए विपक्षी उत्तरदायी नहीं है और न ही उनकी ओर से सेवा में किसी प्रकार की कोई त्रुटि की गयी है।
विद्धान जिला आयोग द्वारा उभयपक्ष को सुनने के पश्चात विपक्षीगण के स्तर पर सेवा में किसी प्रकार की कोई कमी न पाते हुए परिवाद निरस्त कर दिया गया है।
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अपीलार्थी की विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश साक्ष्य एवं विधि के विरूद्ध है और विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का गहनतापूर्वक विचार न करते हुए नियमों के विपरीत जाकर निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है अत: अपील स्वीकार करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश को अपास्त किया जावे।
प्रत्यर्थी फाइनेंस कम्पनी के विद्धान अधिवक्ता का तर्क है कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है। अत:अपील निरस्त करते हुए जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जावे।
मेरे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को विस्तारपूर्वक सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलनएवं परीक्षण किया गया।
उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को सुनने तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों एवं जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण करने के उपरान्त मैं इस मत का हूँ कि विद्धान जिला आयोग द्वारा समस्त तथ्यों पर गहनतापूर्वक विचार करने के उपरान्त विधि अनुसार निर्णय एवं आदेश पारित किया गया है जिसमें हस्तक्षेप हेतु उचित आधार नहीं है। तदनुसार अपील निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है और विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील योजित करते समय अपीलार्थी द्वारा अपील में जमा धनराशि (यदि कोई हो) तो नियमानुसार अर्जित ब्याज सहित जिला आयोग को विधि अनुसार निस्तारण हेतु यथाशीघ्र प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट नं0-1