(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0 लखनऊ।
अपील संख्या :338/2021
(जिला उपभोक्ता आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-134/2016 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-03-2021 के विरूद्ध)
पंजाब नेशनल बैंक, ए बाडी कार्पोरेट कान्स्टीट्यूटेड अन्डर द बैकिंग कम्पनी, (एक्वीजीशन एण्ड ट्रासंफर आफ अन्डरटेकिंग्स)एक्ट नम्बर-वी आफ 1970, हैविंग इट्स हैड आफिस एैट प्लाट नम्बर-4, सेक्टर-10, द्धारका,नई दिल्ली-110075 एण्ड ए ब्रांच आफिस एमंग्स्ट अदर्स एैट जनसथ ब्रांच, मुजफ्फरनगर द्वारा सीनियर मैनेजर श्री राजेन्दर सिंह।
.....अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम्
श्री यशपाल सिंह पुत्र इच्छाराम, निवासी ग्राम धनशरी, तहसील जनसथ, जिला मुजफ्फरनगर।
समक्ष :-
- मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य ।
उपस्थिति :
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित- श्री साकेत कुमार श्रीवास्तव।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित- श्री आर0 डी0 क्रांति ।
दिनांक : 16-11-2021
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित निर्णय
प्रस्तुत अपील अन्तर्गत धारा-41 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम-2019 इस न्यायालय के समक्ष जिला आयोग, मुजफ्फरनगर द्वारा परिवाद संख्या-134/2016 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-03-2021 के विरूद्ध योजित की गयी है।
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संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपीलार्थी/विपक्षी बैंक से दिनांक 26-02-2008 को दो एफ0डी0आर0 खाता संख्या-पी0 आर0-892,शाखा क्रमांक 3721, ग्राहक आई0डी0 संख्या-654622691 व एफ0डी0आर0 संख्या-टी0एफ0क्यू0-751044 मु0 रू0 65000/- व दूसरी एफ0डी0आर0 खाता संख्या-पी0आर0-883, शाखा क्रमांक 372100 ग्राहक आई0डी0 संख्या-654622691 व एफ0डी0आर0 संख्या-टी0एफ0क्यू0-751045 मु0 रू0 1,00,000/- एक वर्ष की अवधि के लिए बनवायी थी। उक्त दोनों एफ0डी0आर0 बनवाने हेतु परिवादी ने विपक्षी बैंक को रू0 1,65,000/- का नकद भुगतान किया था। परिवादी सरकारी ठेके लेने का काम करता है व सरकारी विभाग में ठेके लेता है इसलिए परिवादी ने उक्त दोनों एफ0डी0आर0 जो विपक्षी बैंक से बनवाये थे को सिक्योरिटी के रूप में अधिशासी अभियन्ता, प्रान्तीय खण्ड लोक निर्माण विभाग, मुजफ्फरनगर के कार्यालय में जमा करा दिये। परिवादी का जब लोक निर्माण विभाग का कार्य पूर्ण हो गया तब उसने उक्त दोनों एफ0डी0आर0 में से एफ0डी0आर0 मु0 1,00,000/-रू0 का वापस ले लिया, जिसे लेकर वह विपक्षी बैंक में गया तथा एफ0डी0आर0 कैश करने के लिए कहा, जिस पर विपक्षी बैंक के कर्मचारियों ने उक्त एफ0डी0आर0 के पीछे उसके हस्ताक्षर करा लिये तथा कहा कि वह रूपया उसके खाते में ट्रान्सफर कर देंगे तथा उपरोक्त एफ0डी0आर0 के पीछे परिवादी
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ने हस्ताक्षर कर विपक्षी बैंक को दे दिया। परिवादी का कथन है कि विपक्षी बैंक ने उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि परिवादी के खाते में क्रेडिट नहीं की तथा इस संबंध में विपक्षी बैंक के कर्मचारियों से कहने पर उन्होंने कुछ समय तक इन्तजार करने के लिए कहा, लेकिन इसके बाद भी उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि उसके खाते में नहीं भेजी गयी। दिनांक 01-11-2008 को परिवादी ने विपक्षी बैंक को एक पत्र भी लिखा, लेकिन इसके बाद भी उक्त धनराशि उसके खाते में नहीं आयी जिस पर उसने एक विधिक नोटिस दिनांक 20-11-2009 को अपने अधिवक्ता के माध्यम से विपक्षी बैंक को दिया जो विपक्षी बैंक को प्राप्त हुई, लेकिन फिर भी विपक्षी बैंक ने परिवादी को उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि का भुगतान नहीं किया।
वर्ष 2011 में परिवादी विपक्षी बैंक में गया तथा बैंक अधिकारियों से कहा कि उसे उपरोक्त रूपये की जरूरत है इसलिए बैंक उसको उसकी एफ0डी0आर0 की जमा धनराशि दे दें तब विपक्षी बैंक द्वारा यह कहा गया कि परिवादी/प्रत्यर्थी अपनी सी0सी0 लिमिट बनवा ले, क्यों कि एफ0डी0आर0 के रूपये आने में अभी समय लगेगा तब परिवादी ने विपक्षी बैंक को सूचित किया कि उसकी सी0सी0 लिमिट पहले से ही बनी हुई है तथा उसे अपनी जमा एफ0डी0आर0 की धनराशि ही वापस चाहिए। वर्ष 2012 में परिवादी बीमार हो गया तथा उसके मस्तिष्क का ईलाज लगभग 02
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वर्ष तक चला। परिवादी जब बीमारी से ठीक होकर वर्ष 2014 में विपक्षी बैंक में पुन: गया तो उसे पता चला कि उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि रू0 1,00,000/- उसके खाते में अभी तक नहीं आयी है, जिस पर उसने पुन: बैंक अधिकारियों से पूछताछ की तो उन्होने बताया कि अभी 06 माह का समय और लगेगा क्योंकि उसकी एफ0डी0आर0 का रूपया बैंक के हैड आफिस में फंसा हुआ है, जैसे ही रूपया आ जायेगा तो एक लाख रूपया उसके खाते में जमा कर दिया जायेगा। 06 माह बाद जब परिवादी ने पुन: वर्ष 2015 में विपक्षी बैंक में उक्त धनराशि के संबंध में पता किया एवं अपना खाता चेक किया तो उसे पता चला कि उसकी एफ0डी0आर0 का 1,00,000/-रू0 तब तक भी उसके खाते में नहीं आया है। बहुत समय तक इन्तजार करने के बाद भी जब उसका रूपया उसे नहीं मिला तो उसने दूसरा नोटिस दिनांक 11-06-2015 को अपने अधिवक्ता द्वारा विपक्षी बैंक को भिजवाया, जो विपक्षी बैंक को प्राप्त हुई, लेकिन उसके बाद भी विपक्षी बैंक ने परिवादी की एफ0डी0आर0 की रकम का भुगतान उसे नहीं किया अत: परिवादी को विपक्षी बैंक से रू0 1,08,775/-रू0 एफ0डी0आर0 की धनराशि व उस पर सात वर्ष दो माह का ब्याज 02 प्रतिशत मासिक की दर से कुल 1,87,000/-रू0 दिलाया जाना आवश्यक है तथा विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी की एफ0डी0आर0 की धनराशि उसके खाते में न डालकर सेवा में कमी की गयी है। विपक्षी बैंक द्वारा उक्त धनराशि
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अदा न किये जाने पर उक्त परिवाद जिला आयोग के समक्ष योजित किया गया है।
विद्धान जिला आयोग के सम्मुख अपीलार्थी बैंक की ओर से न तो कोई अधिकृत प्रतिनिधि न ही विद्धान अधिवक्ता उपस्थित हुए। यद्धपि अपीलार्थी बैंक को समुचित अवसर प्रदान किया गया था कि वह मौखिक एवं दस्तावेजीय साक्ष्य प्रस्तुत करें। चूंकि अपीलार्थी बैंक की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ अतएव विद्धान जिला आयोग द्वारा उपरोक्त वाद को लगभग चार वर्ष 06 माह की अवधि के उपरान्त एक पक्षीय रूप से निर्णीत किया गया जिसमें फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से प्रस्तुत शपथ पत्र-11ग जिसके द्वारा परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र के अभिकथनों का समर्थन करते हुए बताया है कि परिवादी सरकारी ठेके लेने का काम करता है तथा सरकारी विभाग में ठेके लेता रहता है। इसलिए उसने दिनांक 26-02-2008 को विपक्षी बैंक से एक वर्ष की अवधि के लिए दो एफ0डी0आर0 संख्या-751044 मु0 65,000/-रू0 व एफ0डी0आर0 संख्या-751045 मु0 1,00,000/-रू0 बनवाये तथा उन्हें सिक्योरिटी के रूप में अधिशासी अभियन्ता, प्रान्तीय खण्ड, लोक निर्माण विभाग, मुजफ्फरनगर के कार्यालय में जमा कराया। परिवादी ने अपने शपथ पत्र में कहा है कि लोक निर्माण विभाग का कार्य पूरा होने के बाद उसने एफ0डी0आर0 मु0 एक लाख रूपया 1,00,000/-
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वापस ले लिया तथा विपक्षी बैंक में उसे कैश कराने गया तथा विपक्षी बैंक के कर्मचारियों से उक्त एफ0डी0आर0 को कैश करने को कहा तो उन्होंने कहा कि वह एफ0डी0आर0 के पीछे अपने हस्ताक्षर करके उन्हें दे दें तथा वे उक्त एफ0डी0आर0 का रूपया उसके खाते में डाल देंगे, जिस पर उसने उक्त एफ0डी0आर0 पर अपने हस्ताक्षर करके विपक्षी बैंक के कर्मचारियों को दे दिये, लेकिन इसके बाद परिवादी ने अनेकों बार विपक्षी बैंक के कर्मचारियों से निवेदन किया एवं दिनांक 01-11-2008 को पत्र लिखे व दिनांक 20-11-2009 व 11-06-2015 को नोटिस भेजी कि उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि रू0 एक लाख विपक्षी बैंक द्वारा उसके खाते में क्रेडिट की जावे लेकिन बैंक द्वारा धनराशि परिवादी के खाते में क्रेडिट नहीं की गयी। जिला आयोग द्वारा परिवाद पत्र के अभिकथनों एवं शपथ पत्र में वर्णित तथ्यों का पारस्परिक तुलनात्मक अवलोकन भी किया गया। लेकिन आयोग के विचार से परिवाद पत्र के अभिकथनों एवं शपथ पत्र में वर्णित तथ्यों के बीच ऐसा कोई गंभीर विरोधाभास एवं भिन्नता होना प्रतीत नहीं होता, जिससे कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य द्वारा शपथ पत्र पर कोई अविश्वास किया जा सके।
यह भी उल्लेखनीय है कि विपक्षी बैंक की ओर से कई अवसर दिये जाने के पश्चात भी न तो अपना प्रतिवाद पत्र ही जिला आयोग के समक्ष प्रस्तुत किया गया और न ही परिवादी द्वारा प्रस्तुत उक्त
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साक्ष्य के खण्डन में कोई साक्ष्य ही प्रस्तुत किया गया और न ही विपक्षी बैंक नोटिस की पर्याप्त तामीला होने के पश्चात जिला आयोग के समक्ष उपस्थित ही हुआ। अत: ऐसी परिस्थिति में जिला आयोग के समक्ष परिवादी द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य द्वारा शपथ पत्र पर अविश्वास करने का कोई न्यायोचित आधार नहीं है। परिवादी की ओर से शपथ पत्र 11ग का अनुसंलग्नक-1 प्रश्नगत एफ0डी0आर0 मु0 रूपया एक लाख संख्या-टी0एफ0क्यू0-751045, पत्र दिनांकित 01-11-2008 अनुसलंग्नक-3, नोटिस दिनांकित 20-11-2009 अनुसंलग्नक-4 व नोटिस दिनांकित 11-06-2015 अनुसंलग्नक-5 प्रस्तुत किये गये हैं जिनके अवलोकन से परिवाद पत्र में वर्णित अभिकथनों व शपथ पत्र में वर्णित तथ्यों की पुष्टि होती है।
विद्धान जिला आयोग के सम्मुख परिवादी द्वारा सूची 6ग के माध्यम से भी उपरोक्त वर्णित दस्तावेजीय प्रपत्र प्रस्तुत किये गये, तदोपरान्त विद्धान जिला आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत समस्त साक्ष्यों एवं प्रपत्रों का सम्यक अवलोकन एवं परिशीलन करने के उपरान्त यह पाया गया कि प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा दिनांक 26-02-2008 को विपक्षी बैंक से प्रश्नगत एफ0डी0आर0 मु0 रूपया एक लाख संख्या-टी0एफ0क्यू0-751045 एक वर्ष के लिए बनवाया गया था लेकिन परिवादी द्वारा बार-बार तलब व तकाजा करने के बावजूद विपक्षी बैंक द्वारा उक्त एफ0डी0आर0 की धनराशि उसके खाते में क्रेडिट नहीं की गयी तथा इस संबंध में परिवादी द्वारा
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नोटिस दिनांकित 20-11-2009 व 11-06-2015 जिनकी तामीला परिवादी के अनुसार विपक्षी बैंक पर हुई, दिये गये। लेकिन इसके वावजूद भी उक्त धनराशि विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को अदा नहीं की गयी। अत: ऐसी स्थिति में परिवादी जो कि विपक्षी बैंक का एक उपभोक्ता है तथा परिवादी एवं विपक्षी के मध्य उपभोक्ता एवं सेवा प्रदाता का संबंध युक्तियुक्त रूप से साबित होता है, विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को उसकी वाजिब धनराशि अदा न करके सेवा में कमी की गयी है।
उपरोक्त एकपक्षीय निर्णय एवं आदेश के द्वारा जिला आयोग ने यह आदेशित किया कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद आंशिक रूप से आज्ञप्त किया जाता है तथा अपीलार्थी/विपक्षी बैंक को यह आदेशित किया जाता है कि वह जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश की तिथि से एक माह की अवधि में प्रत्यर्थी/परिवादी को समुचित प्रश्नगत एफ0डी0आर0 संख्या-टी0एफ0क्यू0-751045 की परिपक्वता धनराशि मु0 रू0 01,08,775/- व उक्त धनराशि पर दिनांक 27-02-2009 से भुगतान की अंतिम तिथि तक समय-समय पर विपक्षी बैंक द्वारा सावधि जमा योजना पर देय अधिकतम ब्याज प्रदान करें। साथ ही मानसिक कष्ट हेतु रू0 10,000/- तथा वाद व्यय हेतु रू0 5000/-अदा करने हेतु आदेशित किया।
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उपरोक्त निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-03-2021 के विरूद्ध अपीलार्थी बैंक द्वारा प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत की गयी है।
अपीलार्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री साकेत कुमार श्रीवास्तव तथा प्रत्यर्थी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आर0 डी0 क्रांति उपस्थित आए।
हमारे द्वारा उभयपक्ष के विद्धान अधिवक्तागण को सुनने के उपरान्त तथा प्रस्तुत अपील में इंगित तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरान्त तथा यह कि विद्धान जिला आयोग द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी द्वारा प्रस्तुत समस्त तथ्यों एवं साक्ष्यों का सम्यक अवलोकन व परिशीलन करने के उपरान्त जो निर्णय दिया गया है वह पूर्णतया उचित है। अपीलार्थी बैंक के विद्धान अधिवक्ता द्वारा उपरोक्त निर्णय में किसी प्रकार की कोई कमी अथवा गलती इंगित नहीं की जा सकी है।
अपीलार्थी के विद्धान अधिवक्ता द्वारा मात्र यह कथन किया गया कि विद्धान जिला आयोग द्वारा एकपक्षीय रूप से अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध निर्णय पारित किया गया जो अनुचित है।
पत्रावली पर उपलब्ध समस्त प्रपत्रों के परिशीलनोंपरान्त तथा विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय में व्यक्त किये गये निष्कर्षों को दृष्टिगत रखने के उपरान्त हम यह पाते हैं कि अपीलार्थी बैंक को उपरोक्त परिवाद में अपना पक्ष प्रस्तुत किये जाने
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हेतु न सिर्फ मौखिक एवं दस्तावेजीय साक्ष्य के लिए विद्धान जिला आयोग द्वारा समुचित अवसर प्रदान किया गया जो अन्तत: दिनांक 18-01-2019 द्वारा अपीलार्थी बैंक का साक्ष्य प्रस्तुत किये जाने का अवसर आदेश पारित करते हुए समाप्त किया गया ।
उक्त तथ्यों को दृष्टिगत रखने के उपरान्त हम प्रस्तुत अपील में किसी प्रकार का बल नहीं पाते हैं। अपील बलहीन है अतएव निरस्त किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। विद्धान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 16-03-2021 की पुष्टि की जाती है। जिला आयोग के द्वारा पारित आदेश का अनुपालन अपीलार्थी बैंक द्वारा 60 दिन की अवधि में किया जाना आवश्यक है अन्यथा की स्थिति में अपीलार्थी बैंक प्रत्यर्थी/परिवादी को हर्जाना के रूप में धनराशि रू0 25000/- और प्रदान करेगा।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार) (विकास सक्सेना)
अध्यक्ष सदस्य
प्रदीप मिश्रा, आशु0 कोर्ट न0-1