जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, नागौर
परिवाद सं. 88/2015
सुरेष पुत्र श्री बाबूलाल, जाति-विष्नोई, निवासी-मकराना, तहसील-मकराना, जिला-नागौर (राज.)। -परिवादी
बनाम
1. प्रबन्धक/अधिकृत प्रतिनिधि- श्री विनायक टेलीकाॅम, सैनी काॅम्पलेक्स, रेल्वे स्टेषन, मकराना (नागौर)-341505
2. मैसर्स विजय लक्ष्मी कामीनीकेषन, बस स्टेण्ड के पास, कुचामन षहर, तहसील-कुचामन, जिला-नागौर।
3. प्रबन्धक/मैनेजर, एस ग्लोबल नाॅलेज केयर एक्जीटीवसी/ ओ स्पाईस रिटेल लिमिटेड, एस ग्लोबल नाॅलेज पार्क, 19 ए एण्ड 19 बी सेक्टर 125, नोयडा- 201301 यू.पी. (भारत)।
-अप्रार्थीगण
समक्षः
1. श्री ईष्वर जयपाल, अध्यक्ष।
2. श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य, सदस्या।
3. श्री बलवीर खुडखुडिया, सदस्य।
उपस्थितः
1. श्री रमेष कुमार ढाका, अधिवक्ता, वास्ते प्रार्थी।
2. श्री मोहम्मद षाहिद सिलावट, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 1 एवं श्री विमलेष प्रकाष जोषी, अधिवक्ता, वास्ते अप्रार्थी संख्या 3।
अंतर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ,1986
आ दे ष दिनांक 04.05.2016
1. यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 संक्षिप्ततः इन सुसंगत तथ्यों के साथ प्रस्तुत किया गया कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से, अप्रार्थी संख्या 3 स्पाईस कम्पनी द्वारा निर्मित एक टच स्क्रीन मोबाइल माॅडल एम 518 (एमआईएमईआई नम्बर 911412100030241) दिनांक 01.01.2015 को जरिये बिल संख्या 1791, दिनांक 01.01.2015 को 8,000/- रूपये देकर खरीद किया। इस मोबाइल पर अप्रार्थीगण की ओर से एक साल की वारंटी दी गई तथा कहा गया कि उक्त अवधि में मोबाइल में किसी भी प्रकार की खराबी या त्रुटि आने पर सर्विस सेंटर से रिपेयरिंग करवाई जाएगी तथा ठीक नहीं होने पर बदलकर नया मोबाइल दिया जाएगा। परिवादी द्वारा खरीद किये गये इस मोबाइल में कुछ दिनों बाद ही खराबी आ गई। मोबाइल के टच स्क्रीन ने काम करना बंद कर दिया तथा मोबाइल कभी अपने आप ही बंद हो जाता तथा वापस चालू हो जाता। इस पर परिवादी दिनांक 29.01.2015 को अप्रार्थी संख्या 1 के पास गया तथा अप्रार्थी संख्या 1 को मोबाइल में उत्पन दोश की षिकायत की तो उसने मोबाइल अपने पास रख लिया तथा कहा कि इसे अप्रार्थी संख्या 2 से ठीक करवाकर वापस दे दिया जाएगा। इसके बाद परिवादी कई दिनों तक अप्रार्थी संख्या 1 के यहां चक्कर काटता रहा। आखिरकार दिनांक 26.02.2015 को उसे मोबाइल रिपेयर कर दिया गया। इसके बाद दिनांक 10.03.2015 को फिर से मोबाइल के टच स्क्रीन ने काम करना बंद कर दिया तथा अन्य भी खराबियां आ गई। जिस पर परिवादी पुनः अप्रार्थी संख्या 1 के पास गया तो उसने मोबाइल ले लिया तथा कहा कि अप्रार्थी संख्या 2 से ठीक करवाकर वापस दे दूंगा, दुबारा खराब नहीं होगा। दो-तीन दिन बाद उसने अप्रार्थी संख्या 1 से मोबाइल के बारे में पूछा तो उसने बताया कि मोबाइल अप्रार्थी संख्या 2 के पास भेजा हुआ है, चाहों तो वहां स्वयं जाकर ले लो। इस पर परिवादी अप्रार्थी संख्या 2 के पास गया तो उसने बताया कि मोबाइल अभी तैयार नहीं हुआ है। ठीक होने पर अप्रार्थी संख्या 1 को ही भिजवा दिया जाएगा, वहीं से ले लेना। इसके बाद कई दिनों तक परिवादी अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के यहां चक्कर लगाता रहा। बाद में दिनांक 02.04.2015 को अप्रार्थी संख्या 1 ने उसे मोबाइल दिया। इसके बाद एक दो दिन मोबाइल ठीक चला तथा दिनांक 07.04.2015 को मोबाइल वापस खराब हो गया। इस पर परिवादी फिर से दिनांक 08.04.2015 को अप्रार्थी संख्या 1 के पास मोबाइल लेकर गया तथा षिकायत की तो उसने मोबाइल ले लिया तथा आज दिनांक तक उसे मोबाइल ठीक करके नहीं दिया। इस दौरान अप्रार्थी संख्या 1 के व्यवहार से संतुश्ट नहीं होने पर तथा उसके द्वारा मोबाइल अप्रार्थी संख्या 2 के यहां होना बताने पर परिवादी अप्रार्थी संख्या 2 के पास भी गया मगर अप्रार्थी संख्या 2 ने परिवादी को मोबाइल ठीक करके देना तो दूर उसे दुकान से ही निकाल दिया तथा अभद्र व्यवहार किया। अप्रार्थीगण का उक्त कृत्य सेवा में कमी एवं अनफेयर ट्रेड प्रेक्टिस की परिभाशा में आता है। परिवादी का मोबाइल तीन माह में तीन बार रिपेयर होने होने के बावजूद आज भी अप्रार्थीगण के पास खराब हालत में पडा, जिसके कारण उसके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है। अतः परिवादी को उक्त मोबाइल के स्थान पर नया मोबाइल दिलाया जाये अन्यथा मोबाइल की कीमत 8,000/- रूपये मय 18 प्रतिषत वार्शिक ब्याज के दिलाये जावे।। परिवादी को वाद पत्र में अंकित अन्य अनुतोश भी दिलाये जावे।
2. अप्रार्थी संख्या 1 को पर्याप्त अवसर दिये जाने के बावजूद उसकी ओर से निर्धारित समयावधि में कोई जवाब पेष नहीं किया गया बल्कि बहस के दौरान आज एक षपथ-पत्र पेष किया गया है। अप्रार्थी संख्या 2 बावजूद तामिल उपस्थित नहीं आया तथा न ही कोई जवाब पेष किया है। अप्रार्थी संख्या 3 की ओर से जवाब पेष कर बताया गया है कि परिवादी आधारहीन तथ्यों का परिवाद लेकर आया है जो खारिज किये जाने योग्य है। अप्रार्थी संख्या 2 ने विवादित मोबाइल हेण्डसेट पर विनिर्माण सम्बन्धी दोश होने पर एक वर्श की वारंटी होना बताया है तथा यह कथन किया है कि परिवाद के साथ कोई जाॅब षीट पेष नहीं की गई है जबकि परिवाद में यह बताया गया है कि मोबाइल हेण्डसेट सर्विस सेंटर पर दिया गया है। अप्रार्थी संख्या 3 द्वारा यह भी बताया गया है कि अप्रार्थी का कोई सेवा दोश नहीं रहा है। ऐसी स्थिति में परिवाद मय खर्चा खारिज किया जावे।
3. बहस अंतिम योग्य अधिवक्ता पक्षकारान सुनी गई। अभिलेख का ध्यानपूर्वक अवलोकन किया गया।
4. परिवादी द्वारा प्रस्तुत षपथ-पत्र एव ंक्रय बिल की प्रति से यह स्पश्ट है कि परिवादी ने अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 01.01.2015 को जरिये बिल संख्या 1791 द्वारा 8,000/- रूपये देकर विवादित मोबाइल खरीद किया। अप्रार्थी संख्या 3 इस मोबाइल के निर्माता है एवं अप्रार्थी संख्या 2, अप्रार्थी संख्या 3 का सेवा केन्द्र है। इस प्रकार परिवादी तीनों अप्रार्थीगण का उपभोक्ता होना पाया जाता जाता है।
5. पक्षकारान में यह स्वीकृत स्थिति है कि परिवादी द्वारा विवादित मोबाइल हेंडसेट अप्रार्थी संख्या 1 से दिनांक 01.01.2015 को 8,000/- रूपये नकद अदा कर क्रय किया गया था तथा इस मोबाइल हेण्डसेट पर विनिर्माण सम्बन्धी त्रुटि बाबत् एक वर्श की वारंटी अवधि थी। परिवादी के कथनानुसार मोबाइल खरीद करने के बीस दिन बाद से ही यह खराब होने लग गया। जिसे बार-बार सर्विस सेंटर पर ठीक करने के लिए दिया गया लेकिन आज तक मोबाइल हेण्डसेट ठीक नहीं हुआ। परिवादी द्वारा यह भी बताया गया है कि मोबाइल खरीदने के बाद से ही अधिकांष समय यह मोबाइल अप्रार्थी संख्या 1 व 2 के पास रिपेयरिंग के लिए ही पडा रहा तथा बार-बार रिपेयर करने के बावजूद आज भी अप्रार्थीगण के पास ही खराब हालत में पडा है। अप्रार्थी संख्या 1 व 2 की ओर से उक्त तथ्यों के खण्डन में किसी प्रकार का कोई जवाब पेष नहीं किया गया है। अप्रार्थी संख्या 1 की ओर से आज जो षपथ-पत्र प्रस्तुत किया गया है उसमें अंकित तथ्यों से भी स्पश्ट है कि मोबाइल हेण्डसेट खराब होने पर सर्विस सेंटर पर दिया गया था। यद्यपि अप्रार्थी संख्या 3 का यह तर्क रहा है कि परिवादी ने मोबाइल रिपेयरिंग बाबत् जाॅब षीट प्रस्तुत नहीं की है। लेकिन इस सम्बन्ध में परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने बहस के दौरान स्पश्ट किया है कि अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा परिवादी को कोई जाॅब षीट की प्रति नहीं दी गई थी। परिवादी ने अपने परिवाद में भी बताया है कि अप्रार्थी संख्या 2 के पास बार-बार जाने पर उसके द्वारा परिवादी से दुव्र्यवहार किया गया एवं मोबाइल सही करके नहीं दिया गया। यह पूर्व में स्पश्ट किया जा चुका है कि अप्रार्थी संख्या 2 द्वारा उपर्युक्त तथ्यों के खण्डन में कोई जवाब पेष नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में परिवादी के कथनों पर अविष्वास करने का कोई कारण नहीं है।
6. पत्रावली के अवलोकन पर स्पश्ट है कि परिवादी द्वारा बार-बार चक्कर काटने के बावजूद विवादित मोबाइल हेण्डसेट पूर्णरूप से ठीक नहीं किया गया तथा आज भी मोबाइल खराब हालत में अप्रार्थीगण के यहां पडा है। परिवाद में अंकित तथ्यों को देखते हुए स्पश्ट है कि सर्विस सेंटर से मोबाइल ठीक करवाने के बाद कुछ समय सही रहने के पष्चात् पुनः खराब होता रहा तथा परिवादी द्वारा सर्विस सेंटर के बार-बार चक्कर काटने के बावजूद आज तक ठीक नहीं हुआ। ऐसी स्थिति में यही प्रतीत होता है कि मोबाइल हेण्डसेट में कोई विनिर्माण सम्बन्धी त्रुटि रही है जिसके कारण मोबाइल बार-बार खराब होता रहा है। परिवादी ने बताया है कि मोबाइल क्रय करने के बाद तीन माह में तीन बार रिपेयर होने के बावजूद मोबाइल आज भी खराब हालत में पडा है जिसके कोई ठीक होने की संभावना नहीं है। ऐसी स्थिति में अप्रार्थीगण के सेवा दोश को देखते हुए परिवादी के विवादित मोबाइल हेण्डसेट के स्थान पर इसी कम्पनी के इसी माॅडल/कीमत का नया मोबाइल दिलाया जाना न्यायोचित होगा। साथ ही परिवादी को हुई मानसिक परेषानी हेतु 1,000/- रूपये दिलाये जाने के साथ ही परिवाद व्यय भी दिलाया जाना उचित होगा।
आदेश
7. परिणामतः परिवादी सुरेष द्वारा प्रस्तुत यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 खिलाफ अप्रार्थीगण स्वीकार किया जाकर आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण, परिवादी को विवादित मोबाइल हेण्डसेट के स्थान पर इसी कम्पनी के इसी माॅडल/कीमत का नया मोबाइल हेण्डसेट प्रदान करें। साथ ही यह भी आदेष दिया जाता है कि अप्रार्थीगण परिवादी को हुई मानसिक परेषानी हेतु 1,000/- रूपये एवं परिवाद व्यय के भी 1,000/- रूपये अदा करें। आदेष की पालना एक माह में की जावे।
8. निर्णय व आदेष आज दिनांक 04.05.2016 को लिखाया जाकर खुले मंच में सुनाया गया।
नोटः- आदेष की पालना नहीं किया जाना उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 की धारा 27 के तहत तीन वर्श तक के कारावास या 10,000/- रूपये तक के जुर्माने से दण्डनीय अपराध है।
।बलवीर खुडखुडिया। ।ईष्वर जयपाल। ।श्रीमती राजलक्ष्मी आचार्य। सदस्य अध्यक्ष सदस्या