Uttar Pradesh

Kanpur Dehat

CC/12/2019

Girish Narayan Dubey - Complainant(s)

Versus

Shri Sheshsheet Grah Pvt. Ltd. - Opp.Party(s)

26 Jul 2023

ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, कानपुर देहात ।

                                                          अध्यासीन:-    श्री मुशीर अहमद अब्बासी..........................अध्यक्ष

             श्री हरिश चन्द्र गौतम ...............................सदस्य

              सुश्री कुमकुम सिंह .........................महिला सदस्य

परिवाद संख्या :- 226/2016 औरैया

परिवाद संख्या :- 12/2019 कानपुर देहात

परिवाद दाखिला तिथि :- 03.08.2016 जिला उपभोक्ता फोरम, औरैया । तत्पश्चात विविध वाद संख्या-262/2017 में मान0 राज्य आयोग द्वारा पारित आदेश दिनांकित 23.11.2017 के क्रम में प्रत्यावर्तित होकर जिला उपभोक्ता फोरम, कानपुर देहात में दिनांक 22.02.2019 को प्राप्त हुयी एवं दिनांक 25.02.2019 को पंजीकृत हुयी ।

निर्णय दिनांक:- 26.07.2023

(निर्णय श्री मुशीर अहमद अब्बासी, अध्यक्ष द्वारा उद्घोषित)

 

गिरीश नरायन दुबे उम्र 59 वर्ष पुत्र रामादीन दुबे निवासी ग्राम व पोस्ट हैदरपुर परगना व जिला औरैया ।                                                                                                                                                                                                                                ...........................परिवादी

बनाम

 

श्री शेष शीत गृह प्रा0 लि0 स्थित ग्राम सौनासी अनन्तराम, एन0एच0-2 परगना अजीतमल, जिला औरैया द्वारा प्रोप्राइटर/ प्रभारी अधिकारी ।

                                                                                                                                                         ..........................प्रतिवादी

निर्णय

 

     प्रस्तुत परिवाद परिवादी गिरीश नरायन दुबे की ओर से सशपथ पत्र, विपक्षी से परिवादी को उसके भंडारित आलू की कीमत मु0 2,50,280/- (दो लाख पचास हज़ार दो सौ अस्सी) रुपये को मय ब्याज 18 प्रतिशत वार्षिक विपक्षी के यहाँ आलू भंडारित करने की दिनांक से अद्यतन दिनांक तक आगणित करके दिलाये जाने तथा परिवादी को हुये मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 1,00,000/- रुपये व शारीरिक कष्ट की क्षतिपूर्ति हेतु 1,00,000/- रुपये एवं वाद व्यय के एवज में 21,500/- रुपये विपक्षी से दिलाये जाने हेतु दिनांक 03.08.2016 को जिला उपभोक्ता फोरम औरैया में एवं माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग लखनऊ के आदेश दिनांकित 23.11.2017 के क्रम में, जिला उपभोक्ता आयोग कानपुर देहात में दिनांक 25.02.2019 को योजित किया गया ।

     प्रस्तुत परिवाद में दिनांक 04.11.2016 को जिला फोरम औरैया द्वारा परिवादी का परिवाद स्वीकार करते हुये विपक्षी के विरुद्ध 2,65,280/- रुपये की वसूली हेतु स्वीकार किया गया । इस धनराशि पर वाद योजन की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दिये जाने हेतु विपक्षी को एक माह के अन्दर परिवादी को अदा किये जाने हेतु आदेशित किया गया ।

     जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम औरैया द्वारा पारित उपरोक्त निर्णय दिनांकित 04.11.2016 के विरुद्ध प्रतिवादी श्री शेष शीत गृह की ओर से अपील संख्या- 1074/2017 माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग लखनऊ में योजित की गयी। उक्त अपील में दिनांक 11.07.2017 को विपक्षी शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दाखिल अपील को स्वीकार करते हुये जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम औरैया द्वारा परिवाद संख्या-226/2016 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 04.11.2016 को निरस्त करते हुये पत्रावली जिला मंच को इस आदेश के साथ प्रत्यावर्तित की गयी कि, वह प्रतिवादी अपीलकर्ता को प्रतिवाद पत्र पेश करने तथा उभयपक्ष को साक्ष्य व सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुये परिवाद का निस्तारण यथाशीघ्र गुण-दोष के आधार पर सुनिश्चित करे । उभयपक्षों को जिला मंच के समक्ष दिनांक 27.07.2017 को उपस्थित होने हेतु निर्देशित किया गया ।

     माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग लखनऊ के आदेश दिनांक 23.11.2017 के अनुपालन में यह पत्रावली अध्यक्ष, जिला फोरम औरैया की ओर से पत्र संख्या-26 दिनांकित 14.02.2019 के द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम कानपुर देहात को निस्तारण हेतु प्रेषित की गयी विपक्षी श्री शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड की ओर से दिनांक 27.07.2017 को जवाबदेही दो पृष्ठों में दाखिल किया गया तथा विपक्षी श्री सदन भदौरिया पुत्र स्व0 शिशुपाल सिंह का साक्ष्य शपथपत्र पत्रावली पर दाखिल किया गया ।

     संक्षेप में परिवादी का अभिकथन है कि परिवादी एक साधारण पढ़ा लिखा कृषक है और कानून में विश्वास रखने वाला व्यक्ति है । परिवादी ने विपक्षी के यहाँ विभिन्न  तिथियों पर 2,50,280/- रुपये का आलू भंडारित किया था और जिसका विधिवत भंडारण शुल्क विपक्षी को अदा किया था । परिवादी ने यह भंडारण दिनांक 04.07.2015 से दिनांक 14.12.2015 तक की अवधि के लिये किया था । परिवादी के आलू को सुरक्षित रखने व उनको सुरक्षित वापस करने का उत्तरदायित्व विपक्षी का था और परिवादी की लिखित अनुमति एवं स्वीकृति के बगैर आलू को खुर्द-बुर्द करने का कोई भी अधिकार विपक्षी को नहीं था । विपक्षी राजनीतिक रूप से ऊंची पहुँच वाला व्यक्ति है और जब परिवादी, विपक्षी के यहाँ अपनी उपरोक्त मालियत का आलू उठाने गया तो परिवादी से बहुत ही अभद्र और अशोभनीय दुर्व्यवहार किया गया । बमुश्किल तमाम परिवादी ने विपक्षी से हिसाब-किताब करने के लिये कहा तो विपक्षी ने परिवादी का आलू खुले बाज़ार में बेंच देने के बाद भी परिवादी पर अतिरिक्त 20,966/- रु0 की बाकी धनराशि निकाली, जो गलत एवं गैरकानूनी है । परिवादी से विपक्षी द्वारा उपरोक्त 20,966/- रु0 धनराशि का वसूली का तगादा परिवादी का 2,50,280/- रुपये का आलू बेंच लेने के बावजूद परिवादी के दरवाजे के चक्कर विपक्षी व उसके एजेंट काटने लगे । परिवादी ने तब विपक्षी से लिखित रूप से हिसाब-किताब देने को कहा जिस पर विपक्षी तैयार नहीं हुआ और लड़ाई-झगड़े पर आमादा हो गया । चूंकि विपक्षी एक सेवा प्रदाता है और परिवादी ने विपक्षी की सेवाओं को शुल्क अदा करके प्राप्त किया है । विपक्षी का यह नैतिक एवं कानूनी उत्तरदायित्व था कि वह परिवादी का आलू सुरक्षित रखे, परंतु विपक्षी अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने में विफल रहा है, जो कि परिवादी के प्रति सेवाओं की कमी की श्रेणी का कार्य है । परिवादी ने विपक्षी से कई बार कहा कि वह परिवादी के द्वारा भंडारित आलू को परिवादी की अनुमति एवं स्वीकृति के बिना बैंचने/ हटाने / खुर्द-बुर्द करने की क्षतिपूर्ति विपक्षी के यहाँ भंडारित आलू की मालियत मु0 रु0 2,50,280/- को मय ब्याज 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से परिवादी को भुगतान कर दे, परन्तु विपक्षी परिवादी को क्षतिपूर्ति करने के लिये कतई तैयार नहीं है, लिहाजा मजबूरी में यह परिवाद विपक्षी के विरुद्ध परिवादी द्वारा माननीय न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया गया, परिवादी का परिवाद सव्यय स्वीकार किया जाये ।

     विपक्षी को नोटिस जरिये रजिस्ट्री भेजी गयी, रजिस्ट्री लौटकर वापस नहीं आयी, जिसके आधार पर तामीला पर्याप्त मानते हुये विपक्षी के विरुद्ध एकपक्षीय कार्यवाही की गयी । तदुपरान्त श्री शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड की ओर से अपील माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग लखनऊ में दाखिल की गयी, जिसमें निर्णय एवं आदेश दिनांक 04.11.2016 को पारित किया गया तथा पत्रावली जिला मंच को इस आदेश के साथ प्रत्यावर्तित की गयी कि, प्रतिवादी/ अपीलकर्ता को प्रतिवाद पत्र पेश करने तथा उभयपक्ष को साक्ष्य और सुनवाई का समुचित अवसर प्रदान करते हुये परिवाद का निस्तारण यथाशीघ्र गुण-दोष के आधार पर किया जाना सुनिश्चित करें । उभयपक्ष जिला मंच के समक्ष दिनांक 27.07.2017 को उपस्थित हों ।

     तत्पश्चात प्रतिवादी श्री शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड की ओर से जवाबदेही कागज संख्या-17क/1 व 17क/2 दिनांक 27.07.2017 को दाखिल की गयी, जिसमें परिवाद पत्र की धारा-1 लगायत 9 को अस्वीकार किया गया है तथा अतिरिक्त कथन में विपक्षी का अभिकथन है कि परिवादी द्वारा प्रार्थी के शीत गृह में कभी भी कोई आलू नहीं रखा गया है, न ही उक्त के सम्बन्ध में कोई पावती परिवादी को प्रार्थी द्वारा दी गयी है । यदि परिवादी द्वारा अपना आलू प्रार्थी के शीत गृह में रखा जाता तो निश्चित तौर पर परिवादी को प्रार्थी द्वारा पावती रसीद दी जाती तथा कोल्ड स्टोर की मुद्रा लगी होती । परिवादी द्वारा मात्र न्यायालय को गुमराह करने के उद्देश्य से परिवाद प्रस्तुत किया गया है । परिवादी ने बिना किसी उद्देश्य के धन उगाही हेतु परिवाद प्रस्तुत किया है । परिवादी द्वारा प्रार्थी के कोल्ड स्टोर पर कभी भी आलू सुरक्षित रखने हेतु नहीं रखा गया है । परिवादी द्वारा गलत तथ्यों के आधार पर परिवाद प्रस्तुत किया गया है ।

     विपक्षी ने अपनी जवाबदेही के अभिकथनों को श्री सदन भदौरिया के शपथपत्र (DW-1) से समर्थित किया है ।

     पत्रावली के परिशीलन से विदित है कि विपक्षी ने इस मुकदमे में प्रारम्भ से ही मुकदमे को विलंबित करने के उद्देश्य से येन-केन प्रकारेण तमाम प्रयास किये । प्रारम्भ में विपक्षी को इस मुकदमे में जवाबदेही दाखिल करने के तमाम अवसर दिये गये । माननीय राज्य आयोग के निर्देश पर पत्रावली पुनः सुनवाई किये जाने हेतु प्रत्यावर्तित किये जाने पर विपक्षी की जवाबदेही प्राप्त कर पत्रावली में शामिल की गयी ।

     इसके पश्चात विपक्षी श्री शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड की ओर से मुकदमे को विलंबित किये जाने के आशय से एक प्रार्थना पत्र धारा-340 सपठित धारा-195 दण्ड प्रक्रिया संहिता दिनांक 25.07.2022 को प्रस्तुत किया गया जिसमें उभयपक्षों को सुनवाई का अवसर देते हुये दिनांक 15.02.2023 को विपक्षी का प्रार्थना पत्र अन्तर्गत धारा-340 दण्ड प्रक्रिया संहिता खारिज किया गया । इसके पश्चात पुनः विपक्षी की ओर से प्रार्थना पत्र वास्ते हस्तलिपि विशेषज्ञ आख्या दाखिल किये जाने हेतु आवेदन किया गया ।

     इस मंच द्वारा विपक्षी के प्रार्थना पत्र अंतर्गत धारा-340 सी.आर.पी.सी. को खारिज किये जाने के आदेश दिनांकित 15.02.2023 से क्षुब्ध होकर निगरानी न्यायालय/ माननीय राज्य आयोग के समक्ष कोई निगरानी याचिका दाखिल कर मान0 निगरानी न्यायालय का कोई आदेश दाखिल नहीं किया गया ।

     विपक्षी की ओर से दिनांक 28.06.2023 को प्रार्थना पत्र बहस के स्तर पर हस्तलिपि विशेषज्ञ आख्या दिनांक 24.06.2023 एवं 26.06.2023 को दाखिल किये जाने का निवेदन किया गया । विपक्षी का कथन है कि परिवादी द्वारा श्री शेष शीत गृह प्राइवेट लिमिटेड का एक लैटर पैड दिनांकित 15.12.2015 दाखिल किया गया है जिसे श्री शेष शीत गृह के मालिक एवं मैनेजर द्वारा लिखित होना बताया गया है जबकि श्री शेष शीत गृह के मालिक सदन भदौरिया एवं तत्कालीन मैनेजर श्री सन्तोष कुमार दुबे ने शपथपत्र के माध्यम से परिवादी द्वारा दाखिल श्री शेष शीत गृह के लैटर पैड दिनांकित 15.12.2015 को विपक्षी ने फ़र्जी होना बताया है । हस्तलिपि विशेषज्ञ द्वारा दिनांक 15.12.2015 के लैटर पैड एवं हस्तलिपि लेखा दिनांक 04.04.2016 का वैज्ञानिक परीक्षण करने के पश्चात अपनी आख्या दिनांकित 24.06.2023 एवं 26.06.2023 प्रदान की है जिसे विपक्षी द्वारा परिवाद के निस्तारण हेतु पत्रावली में शामिल कर उचित निर्णय लिये जाने का अनुरोध किया गया है, जबकि विपक्षी की ओर से यह प्रार्थना पत्र दिनांक 28.06.2023 को, पत्रावली के बहस के स्तर पर नियत रहने पर दिया गया है और यह विशेषज्ञ आख्या जिसे विपक्षी ने पत्रावली में शामिल किये जाने का अनुरोध किया है, विपक्षी द्वारा स्वतः विशेषज्ञ से जाँच कराकर पत्रावली में शामिल किये जाने का निवेदन किया गया है जबकि इस सम्बन्ध में न्यायालय का कोई आदेश नहीं है । अतः विपक्षी के प्रार्थना पत्र दिनांकित 28.06.2023 को बहस एवं निर्णय के इस स्तर पर स्वीकार किये जाने का कोई औचित्य नहीं है, मात्र मुकदमे की कार्यवाही को विलम्बित करने के उद्देश्य से दिया गया है ।

     इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि विपक्षी ने माननीय राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के निर्देश पर पहली बार दिनांक 27.07.2017 को उपस्थित आकर इस मामले में अपनी जवाबदेही दाखिल की, जिसमें परिवाद पत्र के कथनों को अस्वीकार करते हुये अपने अतिरिक्त कथन में केवल यह कहा है कि उनके शीत गृह में कभी कोई आलू नहीं रखा गया है और न ही इस सम्बन्ध में कोई पावती परिवादी को दी गयी है । यदि परिवादी द्वारा शीत गृह में आलू रखा जाता तो पावती रसीद दी जाती और कोल्ड स्टोर की मोहर लगी होती । “इसके अतिरिक्त विपक्षी ने अपनी जवाबदेही में और कोई कथन नहीं किया है और इसी बात का शपथपत्र भी श्री सदन भदौरिया (DW-1) ने दिनांक 27.07.2017 को दिया”

     इसके विपरीत परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र कागज संख्या-21क/1 लगायत 21क/4 दिनांकित 09 अगस्त 2017 में परिवादी ने कथन किया है कि परिवादी ने विपक्षी के यहाँ आलू के पैकेट का भंडारण अच्छे एवं लाभप्रद दामों पर विक्रय करने के वास्ते किया था, जिसकी विपक्षी द्वारा विधिवत रसीद परिवादी के नाम जारी की गयी थी जो कि पीले रंग के कागज पर काली रंग की स्याही से छपी थीपरिवादी ने उक्त रसीद विपक्षी के मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे को आलू निकलवाने के वास्ते दिया था, जिस पर विपक्षी के मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे ने कार्य अधिक होने एवं भीड़ अधिक होने के परिणामस्वरूप अगले दिन आने को कहा गया था । इसके अतिरिक्त विपक्षी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र में यह भी अभिकथन किया है कि परिवादी जब अगले दिन विपक्षी के यहाँ गया तो परिवादी को ज्ञात हुआ कि परिवादी का आलू बिना परिवादी की अनुमति प्राप्त किये खुले बाज़ार में बेंच दिया गया है और जब परिवादी ने बिना अनुमति प्राप्त किये आलू विक्रय किये जाने पर आपत्ति की और अपनी रसीद वापस माँगी तो विपक्षी के मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे ने रसीद विपक्षी के स्वामी के पास होने का कथन किया था । परिवादी के बार-बार जाने व समाज के चंद भले लोगों को साथ लेकर कहने व कहलवाने के पश्चात विपक्षी ने अपने लैटर पैड पर स्वयं आलू जमा होने की बात लिखकर दी थी और मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे से हिसाब-किताब छँटवाकर भुगतान करवाने की बात कही थी एवं अपने लैटर पैड पर लिखकर दिया था । इस प्रकार विपक्षी ने परिवादी का आलू बिना परिवादी की अनुमति एवं स्वीकृति प्राप्त किये अपरोक्ष रूप से लाभ प्राप्त करके विक्रय कर दिया तथा हिसाब-किताब छँटने पर परिवादी पर ही अवशेष धनराशि निकाल दी । विपक्षी के मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे द्वारा स्वयं अपने हस्तलेख में दिया गया हिसाब-किताब का पर्चा शपथपत्र के साथ दाखिल किया गया है, जो शपथपत्र का भाग है व संलग्नक है । परिवादी ने जब विधिवत हिसाब-किताब करवाकर भुगतान करवाने को कहा तो विपक्षी ने स्वयं अपने लैटर पैड पर अपना उत्तरदायित्व स्वीकार किया और परिवादी को भुगतान करने की बात स्वीकार की, जो लैटर पैड इस शपथपत्र के साथ संलग्नक के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है, जो कि संलग्नक संख्या-2 है तथा विपक्षी ने स्वयं परिवादी द्वारा आलू का भंडारण किया जाना स्वीकार किया है और बिना स्वीकृति व अनुमति प्राप्त किये खुले बाज़ार में औने-पौने दामों में आलू विक्रय से प्राप्त धनराशि एवं आलू के वास्तविक दर से प्राप्त होने वाली धनराशि के अन्तर राशि से खर्चों की आपूर्ति करते हुये परिवादी को संलग्नक संख्या-1 में छाँटी (मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे के हिसाब-किताब वाली पर्चे की राशि) से अधिक राशि से पूरा करके विक्रय राशि का परिवादी को भुगतान करने का कथन किया है एवं लिखकर दिया है । इस प्रकार परिवादी ने विपक्षी से 2,50,280/- (दो लाख पचास हज़ार दो सौ अस्सी) रुपये धनराशि प्राप्त करने का अधिकारी बताते हुये प्रश्नगत अवधि की ब्याज धनराशि को प्राप्त कराने तथा मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति एवं वाद व्यय की माँग की है ।

     परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र के साथ मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे द्वारा तैयार की गयी रसीद (हिसाब-किताब की पर्ची) एवं श्री शेष शीत गृह के लैटर पैड पर “लिखा पढ़ी याददाश्त” दिनांकित 15.12.2015 को संलग्नक के रूप में दाखिल किया है ।

     परिवादी की ओर से विपक्षी के मुनीम/ मैनेजर सन्तोष कुमार दुबे द्वारा तैयार किये गये हिसाब-किताब की पर्ची जिसमें जमा धनराशि बायीं तरफ पूरा हिसाब जोड़कर 2,50,280/- रुपये जमा होना प्रदर्शित है तथा श्री शेष शीत गृह के लैटर पैड पर “लिखा पढ़ी याददाश्त” दिनांकित 15.12.2015 को मूल रूप से दाखिल किया गया है ।

     विपक्षी ने अपनी लिखित बहस दिनांकित 20.06.2022 में जो अभिकथन किये हैं, उसका कोई उल्लेख विपक्षी की ओर से दाखिल अपनी जवाबदेही दिनांकित 27.07.2017 कागज संख्या-17क/1 व 17क/2 में नहीं किया गया है क्योंकि विपक्षी ने अपनी जवाबदेही में यह कहीं नहीं कहा है कि परिवादी द्वारा, दिनांक 15.12.2015 को विपक्षी के मैनेजर द्वारा विपक्षी के लैटर पैड पर जमा आलू के सम्बन्ध में जो तहरीर लिखकर दी गयी है, वह एक कूटरचित एवं फर्जी प्रलेख है । इस बात का कोई उल्लेख विपक्षी ने अपनी जवाबदेही जवाबदेही दिनांकित 27.07.2017 कागज संख्या-17क/1 व 17क/2 में नहीं किया है । विपक्षी की ओर से अपनी लिखित बहस के साथ दाखिल विधि व्यवस्था लोधी कोल्ड स्टोरेज व अन्य बनाम महिपाल सिंह एवं विपिन गर्ग बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया में माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग द्वारा पारित विधि व्यवस्था इस मामले के तथ्यों से भिन्न होने के कारण लागू नहीं होती है । इस प्रकार विपक्षी के बहस स्तर पर किये गये अभिकथन वाद में जवाबदेही दाखिल किये जाने के बाद सोच विचार कर (After Thought) गढ़े गये हैं ।

     इसके अतिरिक्त विपक्षी की ओर से यह तर्क भी प्रस्तुत किया गया कि परिवादी द्वारा अपने परिवाद पत्र में कहीं भी यह नहीं बताया गया कि उनके द्वारा कितने पैकेट (कट्टे) बोरे आलू, किस-किस तारीख को विपक्षी के कोल्ड स्टोरेज में संग्रहीत कराया गया और किस वाहन से विपक्षी के शीत गृह पहुंचाये गये एवं न ही कोई वाहन की बिल्टी या बिल प्रस्तुत किये गये । विपक्षी ने यह तर्क भी प्रस्तुत किया कि शीत गृह मे आलू भंडारण का समय माह फ़रवरी से मार्च तक होता है और निकासी माह नवम्बर तक होती है जबकि परिवादी के कथनानुसार जुलाई 2015 से दिसम्बर 2015 तक आलू भंडारण करना बताया गया है ।

     विपक्षी ने यह स्पष्ट नहीं किया है कि हस्तलेख विशेषज्ञ द्वारा श्री शेष शीत गृह का लैटर पैड दिनांकित 15.12.2015 एवं हस्तलिखित लेखा 04.04.2016 का वैज्ञानिक परीक्षण कब एवं किसके आदेश से कराया गयाविपक्षी द्वारा बहस के स्तर पर, परिवादी द्वारा साक्ष्य में दाखिल विपक्षी श्री शेष शीत गृह के लैटर पैड दिनांकित 15.12.2015 को, पत्रावली माननीय राज्य आयोग से प्रत्यावर्तित होकर जिला उपभोक्ता आयोग को प्राप्त होने के पश्चात, विपक्षी द्वारा दाखिल जवाबदेही दिनांकित 27.07.2017 में विपक्षी ने लैटर पैड दिनांकित 15.12.2015 को फर्जी एवं कूटरचित होना नहीं कहा है

     विपक्षी ने अपनी लिखित बहस दिनांकित 22.02.2021 में यह अभिकथन किया है कि जुलाई के महीने में उत्तर प्रदेश में आलू की फसल का उत्पादन नहीं होता है परन्तु यह नहीं कहा जा सकता कि जुलाई के महीने में कोल्ड स्टोर में आलू रखने की कोई व्यवस्था व नियम नहीं है, विपक्षी ने ऐसी कोई नियमावली प्रस्तुत नहीं की है । विपक्षी ने अपनी लिखित बहस में कहा है कि कोल्ड स्टोर में आलू जमा करते समय शासनादेश के नियमानुसार किसानों को दिये जाने वाले प्रपत्र में प्रथम पर्ची फार्म संख्या-7 कोल्ड स्टोर की रसीद विनियम अधिनियम 1976 के अधीन जारी की जाती है । कोल्ड स्टोरेज द्वारा रिसीविंग वाउचर तथा भाड़ा जमा करने के बाद डिलीवरी ऑर्डर दिया जाता है ।

     परिवादी की ओर से दाखिल अपनी लिखित बहस में यह कहा गया है कि जब परिवादी ने अपना आलू विपक्षी के यहाँ सुरक्षित रखने के लिये भंडारित किया था तब परिवादी को जमा रसीदें पीले रंग के कागज पर काली स्याही से छपी हुयी, प्रदान की गयी थी, जिसको परिवादी ने अपने साक्ष्य शपथपत्र कागज संख्या-21क/2 पर साबित किया है। विपक्षी द्वारा इस तथ्य का कोई खण्डन प्रतिवाद पत्र अथवा साक्ष्य शपथपत्र में विपक्षी ने अथवा उसके मुनीम सन्तोष कुमार द्वारा नहीं किया गया है जिसको विपक्षी ने भी कागज संख्या-21क/7 के आखिरी भाग में स्वीकार किया है । कागज संख्या-21क/7 लैटर पैड परिवादी के पास कैसे पहुँचा, इस बावत विपक्षी ने स्पष्ट रूप से एवं विशिष्ट रूप से किसी प्रकार का कोई खण्डन नहीं किया है । परिवादी जब अपना आलू उठाने गया तो निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार विपक्षी के मुनीम द्वारा असल रसीदें जमा करा ली गयीं, जो जमा रसीदें उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज ऑर्डर 1972 के प्रारूप-D पर छपी होती हैं । प्रारूप-D के क्रमांक-3 पर स्टोरेज चार्ज शुल्क को लिखा जाता है, चूँकि परिवादी की आलू की लाट बड़ी थी, 2484 पैकेट (प्रति पैकेट लगभग 50 किलो) आलू की निकासी होनी थी, परिणामस्वरूप परिवादी से अगले दिन आने को कहा गया । चूंकि परिवादी से वरवक्त निकासी प्रक्रिया के दौरान आलू जमा रसीदें एक दिन पहले से ही जमा करायी जा चुकी थी और अगले दिन आलू की निकासी करवाने/ प्राप्त करने हेतु विपक्षी के यहाँ जाने पर आलू के न मिलने पर विवाद उत्पन्न हुआ और जब परिवादी अगले दिन पहुँचा तब भंडारित आलू को विपक्षी के द्वारा खुले बाज़ार में विक्रय कर देने की जानकारी परिवादी को हुयी

     विपक्षी के मुनीम द्वारा तृतीय मीटिंग में हिसाब-किताब पुनः छाँटा गया, हिसाब-किताब का पर्चा दिनांक 04.04.2016 कागज संख्या-21क/6 पुनः हिसाब-किताब बनाकर अपने हस्तलेख में मुनीम ने परिवादी को दिया । प्रथम मीटिंग में हिसाब-किताब छंटवाकर लैटर पैड दिनांक 15.12.2015 जो अम्बिका हस्तलेख में है, कागज संख्या-21क/7 प्रस्तुत किया है । विपक्षी ने स्थानीय स्तर से प्रथम मीटिंग में लैटर पैड पर बिक्री धन वापस करने का आश्वासन दिया और तृतीय मीटिंग में पुनः हिसाब-किताब छंटवाकर पर्चा दिनांक 01.04.2016 को दिया, जिसे परिवादी ने दाखिल किया है । इस प्रकार परिवादी द्वारा विपक्षी के यहाँ आलू भंडारित किया जाना साबित होता है ।

     उत्तर प्रदेश रेगुलेशन ऑफ कोल्ड स्टोरेज एक्ट 1976 एवं उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज ऑर्डर 1972 के अन्तर्गत रखे जाने वाले आवश्यक अभिलेख एवं रजिस्टर जो कि उस समय विपक्षी के मुनीम सन्तोष कुमार दुबे द्वारा शपथपत्र में वर्णित अवधि के दौरान लिखे गये थे और नियमानुसार जिला उद्यान अधिकारी एवं उसके कर्मचारियों द्वारा समय-समय पर निरीक्षण व परीक्षण कर प्रमाणित किये गये थे, उन अभिलेखों को विपक्षी ने जानबूझकर प्रस्तुत नहीं किया । इससे स्पष्ट होता है कि विपक्षी के मुनीम श्री सन्तोष कुमार दुबे ने अपने स्वामी (कोल्ड स्टोरेज के मालिक) के दबाव में आकर गलत शपथपत्र प्रस्तुत किया ।

     इसके अतिरिक्त विपक्षी को भंडारित उत्पादों के बीमा कराना, उत्तर प्रदेश रेगुलेशन ऑफ कोल्ड स्टोरेज एक्ट 1976 एवं उत्तर प्रदेश कोल्ड स्टोरेज ऑर्डर 1972 की धारा-19 के अन्तर्गत अनिवार्य है, जिसका विपक्षी ने पालन नहीं किया और उपरोक्त विधिक प्रावधानों का उल्लंघन किया है ।

     अतएव इन परिस्थितियों में विपक्षी श्री शेष शीत गृह प्रा0 लि0 द्वारा परिवादी की सेवा में कमी का मामला परिलक्षित होता है । परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरुद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किये जाने योग्य है ।

 

आदेश

     परिवादी का परिवाद विपक्षी के विरुद्ध आंशिक रूप से स्वीकार किया जाता है तथा विपक्षी श्री शेष शीत गृह प्रा0 लि0 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को उसके भंडारित आलू की कीमत मु0 2,50,280/- (दो लाख पचास हज़ार दो सौ अस्सी) रुपये मय 7 प्रतिशत ब्याज सहित आदेश के दिनांक से एक माह के अन्दर अदा करे । इसके साथ ही परिवादी को हुये मानसिक कष्ट की क्षति एवं वाद व्यय के एवज में 5,000/- (पाँच हज़ार) रुपया भी विपक्षी द्वारा परिवादी को अदा किया जायेगा ।

     ब्याज की गणना आदेश के दिनांक से वास्तविक भुगतान की तिथि तक सुनिश्चित की जायेगी ।

 

( सुश्री कुमकुम सिंह )        ( हरिश चन्द्र गौतम )       ( मुशीर अहमद अब्बासी )

     म0 सदस्य                             सदस्य                              अध्यक्ष

 जिला उपभोक्ता आयोग      जिला उपभोक्ता आयोग       जिला उपभोक्ता आयोग

    कानपुर देहात                   कानपुर देहात                    कानपुर देहात

प्रस्तुत निर्णय / आदेश हस्ताक्षरित एवं दिनांकित होकर खुले कक्ष में उद्घोषित किया गया ।

 

( सुश्री कुमकुम सिंह )        ( हरिश चन्द्र गौतम )       ( मुशीर अहमद अब्बासी )

     म0 सदस्य                            सदस्य                            अध्यक्ष

 जिला उपभोक्ता आयोग      जिला उपभोक्ता आयोग       जिला उपभोक्ता आयोग

    कानपुर देहात                          कानपुर देहात                कानपुर देहात

दिनांक:- 26.07.2023

 

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.