ORDER | द्वारा- श्री पवन कुमार जैन - अध्यक्ष - इस परिवाद के माध्यम से परिवादी ने यह उपशम मांगा है कि विपक्षीगण द्वारा परिवादी के पिता के इलाज में की गई लापरवाही एवं अनुचित व्यापार प्रथा अपनाऐ जाने के कारण क्षतिपूर्ति की मद में परिवादी को विपक्षीगण से 20,00,000/- रूपया दिलाऐ जायं।
- संक्षेप में परिवाद कथन इस प्रकार हैं कि परिवादी के पिता मजाहिर हुसैन को सांस फूलने की बीमारी थी। दिनांक 25/09/2007 को उन्हें विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में इलाज हेतु भर्ती कराया गया जहां वे दिनांक 27/09/2007 तक भर्ती रहे। भर्ती होने के बाद से परिवादी के पिता की तबीयत अत्यन्त खराब होती चली गई, उन्हें वेन्टी लेटर पर रखा गया । भर्ती रहने के दौरान उसके पिता की सही देखभाल और चिकित्सा नहीं की गई। गम्भीर अवस्था होने के बावजूद 2 दिन में उन्हें केवल एक बार विशेषज्ञ चिकित्सक को दिखाया गया उन्हें निरन्तर चिकित्सक की निगरानी में नहीं रखा गया। न्यूरो सर्जिकल विशेषज्ञ से भी उनका परीक्षण नहीं कराया गया और इस तरह उनके इलाज में घोर लापरवाही बरती गई। लगातार लापरवाही की बजह से परिवादी अपने पिता को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली लेकर गया जहां दिनांक 29/09/2007 को उनकी मृत्यु हो गई। परिवादी के अनुसार उसके पिता घर के मुखिया थे परिवार के भरण-पोषण की जिम्मेदारी उन्हीं पर थी। चॅूंकि विपक्षी सं0-1 ने उनके इलाज में घोर लापरवाही बरती और अनुचित व्यापार प्रथा अपनाई, अत: उसे परिवाद में अनुरोधित अनुतोष विपक्षीगण से उसे दिलाया जायं।
- परिवाद के समर्थन में परिवादी ने अपना शपथ पत्र कागज सं0-3/4 लगायत 3/7 दाखिल किया और सूची कागज सं0-3/8 के माध्यम से सांई अस्पताल की डिसचार्ज समरी तथा सांई अस्पताल के चिकित्सीय पर्चे, पैथेलोजी और ई0सी0जी0 की रिपोर्ट, भुगतान की रसीदों एवं आर0टी0आई0 के माध्यम से अखिल भारतीय आयुर्विजान संस्थान, नई दिल्ली से प्राप्त सूचना दिनांक 23/04/2008 की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-3/10 लगायत 3/43 हैं।
- विपक्षी सं0-1 की ओर से प्रतिवाद पत्र कागज सं0-6/1 लगायत 6/7 दाखिल हुआ जिसके साथ बतौर संलग्नक 12 प्रपत्र क्रमश: कागज सं0-6/8 लगायत 6/19 भी दाखिल किऐ गऐ। विपक्षी सं0-1 ने प्रतिवाद पत्र में यह तो स्वीकार किया कि परिवादी के पिता मजाहिर हुसैन उत्तरदाता विपक्षी के अस्पताल में दिनांक 25/9/2007 को इलाज हेतु भर्ती हुऐ थे और दिनांक 27/9/2007 को उन्हें अस्पताल से छुट्टी दी गई थी, किन्तु परिवाद में उल्लिखित शेष अभिकथनों एवं आरोपों से इन्कार किया गया। विशेष कथनों में कहा गया कि परिवादी के पिता को एक महीने पहले से सांस लेने में तकलीफ थी उनके दायें अंगों में अत्याधिक कमजोरी थी। मजाहिर हुसैन को डा0 अमित रस्तौगी की सलाह पर दिनांक 25/9/2007 की रात्रि 7 बजकर 45 मिनट पर उत्तरदाता विपक्षी के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा मजाहिर हुसैन का स्वास्थ्य परीक्षण करने के उपरान्त उन्हें सी0सी0यू0 में भर्ती किया गया। डा0 अमित रस्तौगी द्वारा बताई गई दवाइयों के अतिरिक्त उन्हें वेन्टी लेटर और आक्सीजन पर रखा गया। भर्ती होने के समय मरीज की श्वांस उखड़-उखड़ कर आ रही थी और उसकी हालत बेदह खराब थी। भर्ती के समय मरीज के तीमारदारों और मरीज के भाई नायाव अख्तर को स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि मरीज की हालत बेहद गम्मीर, उसकी नब्ज और रक्तचाप भी बहुत कम है तथा मरीज की धड़कन और श्वांस कभी भी बन्द हो सकती है। उन लोगों की लिखित सहमति के उपरान्त ही मजाहिर हुसैन को उत्तरदाता विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में भर्ती कराया गया था। परिवादी का यह कथन मिथ्या है कि मजाहिर हुसैन की हालत उत्तरदाता के अस्पताल में भर्ती होने के उपरान्त बिगड़ी और उत्तरदाता के अस्पताल में उसके इलाज में लापरवाही बरती गई बल्कि सही बात यह है कि मरीज को सी0सी0यू0 में विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा बताई गई जीवन रक्षक दवाइयां और वे दवाइयां जो डा0 अमित रस्तौगी ने बताई थी, दी गई तथा मरीज का जीवन बचाने के लिए उसे आक्सीजन और वेन्टी लेटर पर रखा गया था। परिवादी का यह कथन मिथ्या है कि मरीज के इलाज में कोई उपेक्षा अथवा लापरवाही की गई। सी0सी0यू0 में मरीज के स्वास्थ्य की निरन्तर 24 घण्टे मानीटिरिंग की गई और सी0सी0यू0 में विशेषज्ञ डाक्टरों द्वारा मजाहिर हुसैन का स्वास्थ्य परीक्षण करके दवाईयां दी गई थी। दिनांक 27/9/2007 को प्रात: मजाहिर हुसैन के पुत्र नसीम के अनुरोध और लिखित सहमति के आधार पर समस्त खतरों से अवगत कराते हुऐ मजाहिर हुसैन को ले जाने की अनुमति दी गई। उत्तरदाता विपक्षी की ओर से यह भी कहा गया कि मरीज के पुत्र की सहमति के उपरान्त जिस एम्बुलेंस से मरीज को दिल्ली भेजा गया उसमें वेन्टी लेटर आदि की समस्त सुविधाएं थी। मरीज को कोई हैड इंजरी नहीं थी अत: न्यूरो सर्जन से उसका परीक्षण कराने की कोई आवश्यकता नहीं थी। परिवादी का यह कथन भी असत्य है कि विशेषज्ञ चिकित्सक से मरीज के परीक्षण नहीं कराऐ गऐ हों बल्कि सभी आवश्यक परीक्षण कराऐ गऐ। परिवादी द्वारा लगाऐ गऐ सभी आरोप मिथ्या हैं जो नाजायज रूप से रूपया ऐंठने के उद्देश्य से झूठे और आधारहीन लगाऐ गऐ हैं। उत्तरदाता विपक्षी के अस्पताल में मजाहिर हुसैन के इलाज में कोई लापरवाही नहीं बरती गई और न ही कोई अनुचित व्यापार प्रथा अपनाई गई। अतिरिक्त यह भी कहा गया कि उत्तरदाता विपक्षी सं0-1 विपक्षी सं0-2 से बीमित है अत: यदि कोई उत्तरदायित्व विपक्षी सं0-1 का बनता है जो विपक्षी सं0-1 को स्वीकार नहीं है, तो उसकी जिम्मेदारी विपक्षी सं0-2 की होगी। उपरोक्त कथनों के आधार पर परिवाद को सव्यय खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की गई।
- उत्तरदाता विपक्षी सं0-1 के प्रतिवाद पत्र के साथ बतौर संलग्नक मजाहिर हुसैन के चिकित्सीय परर्चे, उसे विपक्षी सं0-1 के अस्पताल में भर्ती कराऐ जाने हेतु उसके पुत्र नायाव अख्तर द्वारा दी गई सहमति, दिनांक 27/9/2007 को उत्तरदाता विपक्षी के अस्पताल से डिस्चार्ज कराने हेतु परिवादी द्वारा दी गई लिखित सहमति, सी0सी0यू0 में की गई मानीटिरिंग सम्बन्धी अभिलेख एवं विपक्षी सं0-2 से कराऐ गऐ वीमे के बीमा सर्टिफिकेट की फोटो प्रतियों को दाखिल किया गया है जैसा ऊपर कहा गया है, यह प्रपत्र पत्रावली के कागज सं0-6/8 लगायत 6/19 हैं।
- विपक्षी सं0-2 ने प्रतिवाद पत्र कागज सं0-11/1 लगायत 11/2 दाखिल किया। विपक्षी सं0-2 ने प्रतिवाद पत्र में विपक्षी सं0-1 का बीमा होने से तो इन्कार नहीं किया, किन्तु साथ ही साथ यह भी कहा कि विपक्षी सं0-1 के चिकित्सक द्वारा परिवादी के पिता के इलाज में जानबूझकर की गई लापरवाही के फलस्वरूप किसी क्षतिपूर्ति की अदायगी का उत्तरदाता विपक्षी सं0-2 का उत्तरदायित्व नहीं बनता। परिवाद को विपक्षी सं0-2 ने खारिज किऐ जाने की प्रार्थना की।
- परिवादी ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-14/1 लगायत 14/2 दाखिल किया।
- विपक्षी सं0-1 की ओर से विपक्षी सं0-1 के प्रबन्ध निदेशक डा0 वी0के0 गोयल ने अपना साक्ष्य शपथ पत्र कागज सं0-15/1 लगायत 15/4 दाखिल किया। विपक्षी सं0-2 की ओर से कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया गया।
- परिवादी ने लिखित बहस कागज सं0-23/1 लगायत 23/4 दाखिल की। विपक्षीगण की ओर से लिखित बहस दाखिल नहीं हुई।
- हमने पक्षकारों के विद्वान अधिवक्तागण के तर्कों को सुना और पत्रावली का अवलोकन किया।
- इस बिन्दु पर कोई विवाद नहीं है कि परिवादी के पिता मजाहिर हुसैन को इलाज हेतु दिनांक 25/9/2007 को सायंकाल 7 बजकर 35 मिनट पर सांई अस्पताल-विपक्षी सं0-1 में लाया गया था जहां से उन्हें दिनांक 27/9/2007 की प्रात:काल 7 बजकर 50 मिनट पर डिस्चार्ज किया गया। इस प्रकार सांई अस्पताल, मुरादाबाद में परिवादी के पिता इलाज के सिलसिले में लगभग 36 घण्टे भर्ती रहे। सांई अस्पताल से परिवादी के पिता को परिवादी और उसके परिजन बेहतर इलाज के लिए आल इण्डिया इन्स्टीट्यूट आफ मेडिकल सांइसेज, नई दिल्ली ले गऐ जहां दिनांक 27/9/2007 को ही मजाहिर हुसैन परिवादी के पिता को भर्ती कराया गया। दिनांक 29/9/2007 को अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली में परिवादी के पिता की मृत्यु हो गई।
- परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि सांई अस्पताल में उसके पिता के इलाज में घोर लापरवाही बरती गई, डा0 अमित रस्तौगी के अतिरिक्त किसी अन्य चिकित्सक विशेषज्ञ को परिवादी पिता को नहीं दिखाया गया और सांई अस्पताल में केवल जूनियर डाक्टर्स ने ही परिवादी के पिता को देखा और वे उनके जीवन से खिलवाड़ करते रहे। परिवादी का यह भी आरोप है कि उसे अथवा अन्य किसी तीमारदार को सांई अस्पताल में परिवादी के पिता के दाखिले के समय उन्हें गम्भीर हालत के बारे में नहीं बताया गया। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी कहा कि परिवादी के पिता को किसी न्यूरो सर्जन को भी नहीं दिखाया गया और वेन्टी लेटर पर रखने के बावजूद परिवादी के पिता को दवाई की गोलियां लिखीं गई जो उस अवस्था में परिवादी के पिता खा ही नहीं सकते थे। परिवादी के विद्वान अधिवक्ता ने यह भी कहा कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान परिवादी के पिता की हालत बिगड़ती चली गई मजबूरन दिनांक 27/9/2007 को उन्हें वहॉं से डिसचार्ज कराकर अखिल भारतीय आयर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली ले जाया गया जहां दिनांक 29/9/2007 को उनकी मृत्यु हो गई। परिवादी के विद्वान अधिवकता के अनुसार विपक्षी सं0-1 के चिकित्सकों ने परिवादी के पिता के इलाज में घोर लापरवाही और उदासीनता बरती जिस कारण परिवादी के पिता की हालत बिगड़ी और मृत्यु हुई।
- विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता ने परिवादी पक्ष द्वारा लगाऐ गऐ समस्त आरोपों से इन्कार किया और कहा कि परिवादी के पिता का सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान सर्वोत्तम इलाज किया गया, उन्हें निरन्तर चिकित्सकों की निगरानी में रखा गया, उनकी आवश्यक जाचें भी कराई गईं। यह भी कहा गया कि भर्ती के समय मरीज के पुत्र और अन्य तीमारदारों को मरीज की गम्भीर स्थिति के बारे में बता दिया गया था और उनकी लिखित सहमति के उपरान्त ही मरीज को भर्ती किया गया। यह भी कहा गया कि जब परिवादी और अन्य तीमारदारों ने मरीज मजाहिर हुसैन को दिल्ली ले जाने हेतु डिसचार्ज करने को कहा तो मरीज की गम्भीर हालत के बारे में उन्हें बता दिया गया था। इसके बावजूद उन्होंने मजाहिर हुसैन को डिसचार्ज कराया। पत्रावली में अवस्थिज इलाज एवं चिकित्सीय जांच सम्बन्धी प्रपत्रों की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करते हुऐ विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता ने जोर देकर कहा कि मजाहिर हुसैन के इलाज और उनकी देखभाल में किसी प्रकार की कोई लापरवही अथवा उदासीनता नहीं बरती गई। उन्हें आवश्यकतानुसार विशेषज्ञ चिकित्सकों को दिखाया गया। न्यूरो सर्जन से जांचें और इलाज न कराऐ जाने सम्बन्धी आरोपों के विषय में विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कहा गया कि परिवादी के पिता को न्यूरोलोजीकल प्रोब्लम नहीं थी बल्कि उन्हें सांस की गम्भीर समस्या थी अत: न्यूरो सर्जन को दिखाने अथवा उनसे इलाज कराऐ जाने का कोई औचित्य नहीं था। विपक्षी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता ने यह कहते हुऐ कि अवैध रूप से रूपया ऐंठने की गरज से असत्य कथनों के आधार पर परिवादी ने यह परिवाद योजित किया है जिसे विशेष व्यय सहित खारिज किया जाना चाहिए।
- पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री एवं चिकत्सीय प्रपत्रों के अवलोकन से स्पष्ट है कि सांई अस्पताल, मुरादाबाद में भर्ती होने से लेकर डिसचार्ज किऐ जाने के समय तक परिवादी के पिता का यथोचित इलाज हुआ और उनके इलाज और चिकित्सीय देखभाल में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई। परिवादी द्वारा लगाऐ गऐ आरोप आधारहीन एवं मिथ्या हैं।
- पत्रावली में अवस्थित चिकित्सीय पर्चे कागज सं0-6/8 के अवलोकन से प्रकट है कि दिनांक 25/9/2007 को सायंकाल 7 बजकर 35 मिनट पर जब परिवादी के पिता को सांई अस्पताल लाया गया तो उनकी हालत बेहद खराब थी। उनकी जनरल कंडीशन Low थी, सांस उखड़ रही थी। मरीज को जब सांई अस्पताल में भर्ती कराया गया था तो तीमारदारों ने यह बताया था कि मरीज की ऐसी हालत लगभग एक माह से है। तत्काल मरीज को सी0सी0यू0 में भर्ती कराया गया। चिकित्सीय प्रपत्र कागज सं0-6/10 से प्रकट है कि सांई अस्पताल में लाऐ जाने के मात्र 35 मिनट के भीतर परिवादी के पिता को सी0सी0यू0 में भर्ती करा दिया गया था। उस समय परिवादी के पिता होश में नहीं थे और पूछने पर कुछ बोल भी नहीं रहे थे। उन्हें तत्काल वेन्टी लेटर पर रख दिया गया। दिनांक 25/9/2007 की रात्रि में एवं 26/9/2007 को डाक्टर अमित रस्तौगी को बुलाया गया और परिवादी के पिता का चेकअप कराया गया जैसा कि चिकित्सीय पर्चे कागज सं0-6/13 के अवलोकन से प्रकट है। पत्रावली में अवस्थित चिकित्सीय पर्चे कागज सं0-6/9 के अवलोकन से प्रकट है कि डाक्टर अमित रस्तौगी एम0डी0 (मेडिसिन) हैं और ह्दय रोग, डायवटीज और फेफड़ों के विशेषज्ञ चिकित्सक है अत: परिवादी का यह आरोप निराधार है कि सांई अस्पताल में उसके पिता को किसी विशेषज्ञ चिकित्सक को नहीं दिखाया गया। चिकित्सीय पर्चे कागज सं0-6/13 में काल पर बुलाऐ गऐ डाकटर अमित रस्तौगी ने इंजक्शनों के अतिरिक्त यधपि टेबलेट भी प्रिस्क्राइव की थीं किन्तु पत्रावली में ऐसा कोई साक्ष्य उपलब्ध नहीं है जिससे प्रकट हो कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान परिवादी के पिता को टेबलेट खिलाई गई थी। पत्रावली में अवस्थित चिकित्सीय पर्चे कागज सं0-6/14 लगायत 6/16 के अवलोकन से प्रकट है कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान परिवादी के पिता की निरन्तर 24 घण्टे मानीटिरिंग की गई थी। पत्रावली में अवस्थित प्रपत्रों से यह भी प्रकट है कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान परिवादी के पिता की ई0सी0जी0 भी हुई और उनकी पैथोलोजीकल जांचे भी कराई गई थी। किसी कोण से यह प्रकट नहीं है कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान परिवादी के पिता के इलाज में कोई लापरवाही अथवा उदासीनता बरती गई। पत्रावली में अवस्थित कागज सं0-6/11 एवं 6/12 के अवलोकन से प्रकट है कि जब परिवादी के पिता को सांई अस्पताल में लगाया गया था तो उनके पुत्र नायाव अख्तर एवं अन्य तीमारदारों को यह बता दिया गया था कि मरीज की नब्ज और रक्तचाप बहुत कम है और उसकी हालत बेहद गम्भीर है तथा मरीज की धड़कन और श्वांसे कभी भी बन्द हो सकती हैं। परिवादी के पिता को दिनांक 27/9/2007 को डिसचार्ज किऐे जाते समय परिवादी और अन्य तीमारदारों को यह बता दिया गया था कि मरीज की हालत बेहद गम्भीर है यह सलाह दिऐ जाने के बावजूद कि मरीज को सांस लेने वाली मशीन पर ले जाया जाना चाहिए, परिवादी ने मरीज को बिना सांस वाली मशीन पर दिल्ली ले जाने को कहा। परिवादी को यहॉं तक अवगत करा दिया गया था कि बिना सांस वाली मशीन पर ले जाने से रास्ते में मरीज की मृत्यु भी हो सकती है।
- इस प्रकार किसी भी दृष्टि से यह प्रमाणित नहीं है कि सांई अस्पताल में परिवादी के पिता के इलाज और उनकी देखभाल में चिकित्सकों ने किसी प्रकार की कोई लापरवाही बरती थी। परिवादी के पिता को चॅूंकि न्यूरोलोजीकल समस्या नहीं थी अत: न्यूरो सर्जन से उनकी जांच अथवा इलाज कराऐ जाने को कोई औचित्य नहीं था।
- पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्य सामग्री एवं चिकित्सीय प्रपत्रों से यह भलीभांति प्रकट है कि सांई अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान अस्पताल के चिकित्सकों द्वरा परिवादी के पिता के इलाज और उनकी देखभाल में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई। परिवादी द्वारा परिवाद में लगऐ गऐ समस्त आरोप आधारहीन एवं मिथ्या पाऐ गऐ हैं।
- उपरोक्त विवेचना के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि परिवादी खारिज होने योग्य है। परिवाद खारिज किया जाता है।
(श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
26.02.2016 26.02.2016 26.02.2016 हमारे द्वारा यह निर्णय एवं आदेश आज दिनांक 26.02.2016 को खुले फोरम में हस्ताक्षरित, दिनांकित एवं उद्घोषित किया गया। (श्रीमती मंजू श्रीवास्तव) (सुश्री अजरा खान) (पवन कुमार जैन) सामान्य सदस्य सदस्य अध्यक्ष - 0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद जि0उ0फो0-।। मुरादाबाद
26.02.2016 26.02.2016 26.02.2016 | |