Uttar Pradesh

Hamirpur

CC/88/2015

ASHOK KUMAR - Complainant(s)

Versus

SHRI RAM CITY UNION FINANCE AND OTHER - Opp.Party(s)

UPDESH DWIVEDI

17 Aug 2016

ORDER

FINAL ORDER
DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM
HAMIRPUR
UP
COURT 1
 
Complaint Case No. CC/88/2015
 
1. ASHOK KUMAR
MANJHUPUR, PRESENT ADD- GANDHI NAGER GAURA DEVI
HAMIRPUR
UTTAR PRADESH
...........Complainant(s)
Versus
1. SHRI RAM CITY UNION FINANCE AND OTHER
CHUNGI GANJ KANPUR
KANPUR
UTTAR PRADESH
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. SHRI RAM KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. SHRI BRAJESH KUMAR MISHRA MEMBER
 HON'BLE MRS. HUMERA FATMA MEMBER
 
For the Complainant:
For the Opp. Party:
Dated : 17 Aug 2016
Final Order / Judgement

                                        दायरा तिथि- 21-08-2015

                                              निर्णय तिथि- 17-08-2016

  समक्ष- जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष, फोरम हमीरपुर (उ0प्र0)

   उपस्थिति-   श्री राम कुमार                   अध्यक्ष

              श्रीमती हुमैरा फात्मा              सदस्या

                         

  परिवाद सं0- 88/2015 अंतर्गत धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986

अशोक कुमार पुत्र श्री बिहारीलाल 168 मु0 मंझूपुर हमीरपुर हाल मुकाम गांधी नगर  बार्ड न0 8 गौरा देवी, जिला हमीरपुर।                                             

                                                                              .....परिवादी।

                        बनाम

1-श्रीराम सिटी यूनियन फाइनेन्स लि0 चुन्नीगंज कानपुर जिला कानपुर नगर।

2-ब्राइट आटो सेल डीलर/एजेण्ट आथर्टी डीलर हीरो होण्डा किंग रोड़ हमीरपुर।

3-विशाल एजेण्ट ब्राइट एजेन्सी किंग रोड़ हमीरपुर जिला हमीरपुर।                                     

                                                        ........विपक्षीगण।

                       निर्णय

द्वारा- श्री, राम कुमार, पीठासीन अध्यक्ष,

       परिवादी ने यह परिवाद विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा समय से चेकों का रूपया न निकालने तथा विपक्षी द्वारा नाजायज वसूली को रोकने तथा वाद व्यय मु0 10000/- रू0 दिलाये जाने हेतु विपक्षीगण के विरूद्ध उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत प्रस्तुत किया है।

       परिवाद पत्र में परिवादी का कथन संक्षेप में यह है कि उसने विपक्षी सं0 1 व 2 द्वारा नियुक्त एजेन्ट विपक्षी सं0 3 से एक हीरो होण्डा पैशन प्रो गाड़ी न0 यू0पी0 91 जे0 1561 और चेचिस न0 MP4HA10A6EHH06060 व इंजन न0 HA10EMEHH36337 मु0 57400/- रू0 में खरीदा था। उसने एच0पी0ए0 चार्ज 300/- रू0 व 36770/- रू0 एकमुश्त जमा किया था तथा शेष रकम का फाइनेन्स कराया था, जिसकी प्रतिमाह किश्त 3270/- देना था। विपक्षी द्वारा परिवादी से उसके स्टेट बैंक खाता सं0 11050752664 में जारी 11 चेकें हस्ताक्षर करवा ली गयी। परिवादी माह जनवरी 15 से लगातार किश्त का पैसा बैंक में जमा करता आ रहा है। विपक्षी द्वारा चेक वापस आने की सूचना पर परिवादी ने विपक्षीगण को उक्त चेक की राशि नकद विपक्षीगण को प्राप्त कराई जिसमें 130 रू0 लेट पेमेंट चार्ज गलत वसूला गया। परिवादी ने चेक सं0 672962 का  3270/- रू0 खाते में डाला और उसके खाते में कुल जमा 4178.07/- रू0 जमा था। विपक्षीगण द्वारा 257/- रू अवैधानिक तरीके से टैक्स काट  लिया और  नकद  किश्त जमा  करने की  मांग की। विपक्षीगण  द्वारा चेक सं0-

                                                                            (2)

672962 व चेक सं0- 672959 को अनादृत कहने की बात सरासर गलत है। विपक्षीगण द्वारा चेक सं0 672959 का पैसा निकालकर वापस बैंक खाते में भेज दिया। इसी प्रकार चेक सं0 672962 का भी पैसा विपक्षीगण द्वारा समय से नहीं निकाला गया और गलत सरचार्ज व  ब्याज लगा दिया जो गैर कानूनी और अनुबंध पत्र का उल्लंघन है। इस कारण परिवादी को मजबूर होकर फोरम में यह वाद दायर करना पड़ा।

      विपक्षीगण ने परिवाद पत्र के विरूद्ध अपना जवाबदावा पेश करके परिवादी को अपनी स्वेच्छा से मोटर साइकिल खरीदने के लिए 36000/- रू0 का फाइनेन्स कराया था जिसकी प्रतिमाह किश्त 3270/- देय थी जोकि जनवरी 2015 से नवम्बर 2015 तक 12 किश्तों में  ब्याज सहित अदा करनी थी। परिवादी की चेक सं0 682959 व 682962 परिवादी के खाते में अपर्याप्त धनराशि होने के कारण अनादृत होकर बैंक से वापस आ गई थी। जिसके कारण विपक्षी को उक्त चेक की धनराशि प्राप्त नहीं हो सकी। इस कारण परिवादी पर सरचार्ज लगाया गया है। परिवादी तथा विपक्षी सं0 1 द्वारा स्वेच्छा से अनुबंध किया गया था किसी जोर या दबाव में नहीं। परिवादी द्वारा अनुबंध का उल्लंघन किया गया है।परिवादी ने रजिस्ट्री दि0 06-08-15 विपक्षी को भेजा जिसका उल्लेख परिवाद पत्र में नहीं किया गया। विपक्षीगण द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई है। परिवादी का परिवाद खारिज किये जाने योग्य है।

            परिवादी ने अभिलेखीय साक्ष्य में सूची कागज सं0 5 से 06 अभिलेख, सूची कागज सं0 31 से 02 अभिलेख स्वयं का शपथपत्र कागज सं0 21 दाखिल किया है।

      विपक्षीगण ने अभिलेखीय साक्ष्य में सूची कागज सं0 24 से 7 अभिलेख तथा अजय कुमार गुप्ता श्रीराम सिटी फाइनेन्स  का शपथपत्र कागज सं- 23 दाखिल किया है।

      परिवादी तथा विपक्षीगण के विद्वान अधिवक्तागण की बहस को विस्तार से सुना तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखीय साक्ष्य का भलीभॉति परिशीलन किया।

       उपरोक्त के विवेचन से स्पष्ट है कि परिवादी श्री अशोक कुमार ने विपक्षी सं0 1 व 2 के एजेन्ट विपक्षी सं0 3 से मोटर साइकिल रजिस्ट्रेशन न0 यू0पी0 91 जेड-1561 रू0 57400/- में क्रय किया था। जिसमे से रू0 36770/- में एच0पी0ए0 चार्ज 300/- रू0 सहित एकमुश्त  जमा कर दिया था। शेष धनराशि 36000/- रू0 विपक्षी सं0 1 से परिवादी ने फाइनेन्स कराया था। उक्त मूलधन तथा उस पर देय ब्याज को सम्मिलित करते हुए उक्त ऋण की धनराशि 12 किश्तों में  7 जनवरी 2015 से 7 नवम्बर 2015 प्रति किश्त 3270/- का भुगतान परिवादी को करना था। विपक्षी को परिवादी ने अपने बैंक खाता सं0 11050752664 भारतीय स्टेट बैंक हमीरपुर से भुगतान प्राप्त करने के लिए 11 चेक पर हस्ताक्षर करके उन्हें  हस्तगत कर दिया था,

                                    (3)

जिसे विपक्षी सं0 1 समय समय पर उक्त  चेकों को बैंक में  जमा करके  धनराशि  प्राप्त कर  लेते थे। परिवादी द्वारा निर्गत चेक सं0 672956 ता 672963 से अधिकृत की गई धनराशि को विपक्षी ने बैंक के माध्यम से प्राप्त करने के लिए जब चेक सं0 672959 रू0 3270/- दि0 07-04-15 को बैंक में पेश किया तो उक्त चेक अपर्याप्त धनराशि के कारण अनादृत हो गई। इसी प्रकार चेक सं0 672962 का भुगतान बैंक द्वारा पर्याप्त धनराशि न होने के कारण मना कर दिया गया था। जबकि  परिवादी  का कथन  है कि  बैंक द्वारा  चेक सं0 672959 व चेक सं0 672962 में दर्शायी गई धनराशि 3270/- से ज्यादा धनराशि उसके खाता में उपलब्ध थी। इसे साबित करने के लिए परिवादी ने अपने बैंक खाता सं0 11050652664 का बैंक द्वारा जारी स्टेटमेंट पेश किया है। उक्त स्टेटमेंट के अवलोकन से विदित है कि परिवादी  द्वारा निर्गत चेक को बैंक ने अनादृत कर दिया है। विपक्षी ने उक्त दोनों चेक अनादृत होने की दशा में परिवादी द्वारा हस्ताक्षरित एग्रीमेंट कागज सं0 26 दि0 03-12-14 की शर्त न0 4.4 के अनुसार परिवादी से 500 रू0 तथा ब्याज की मांग किया है जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी ने वांछित अनुतोष हेतु परिवाद फोरम में पेश किया है।

       प्रस्तुत प्रकरण में विचारणीय प्रश्न यह है कि इस फोरम को प्रस्तुत परिवाद को सुनने का क्षेत्राधिकार प्राप्त है या नहीं। इस   सम्बन्ध में उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 के अनुसार यह देखना है कि परिवादी उपभोक्ता है या नहीं तथा विपक्षीगण सेवा प्रदाता है अथवा नहीं। यदि सेवा प्रदाता है तो उनके द्वारा सेवा में क्या कमी की गई।

   उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(घ) में उपभोक्ता की परिभाषा दी गई है-

(घ) ‘‘ उपभोक्ता’’ से ऐसा कोई व्यक्ति अभिप्रेत है जो-

    (i) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या  भागतः संदाय किया गया है, और भागतः वचन दिया गया है या  किसी आस्थागित संदाय की पद्धति के अधीन किसी माल का क्रय करता है, और इसके अन्तर्गत ऐसे किसी व्यक्ति से भिन्न, जो ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या भागतः संदाय किया गया है या भागतः वचन दिया गया है या आस्थागित संदाय की पद्धति के अधीन माल का क्रय करता है ऐसे माल की कोई प्रयोगकर्ता भी है, जब ऐसा प्रयोग ऐसे व्यक्ति के अनुमोदन से किया जाता है किन्तु इसके अन्तर्गत ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो  ऐसे माल को पुनः विक्रय या किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए अभिप्राप्त करता है ; और

    (ii) किसी ऐसे प्रतिफल के लिए जिसका संदाय किया गया है या वचन दिया गया है या  भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या किसी आस्थागित संदाय की पद्धित के अधीन सेवाओं को भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है और इसके  अन्तर्गत ऐसे  किसी व्यक्ति  से भिन्न जो ऐसे  किसी  प्रतिफल के लिए

 

 

                                    (4)

जिसका संदाय किया गया है और वचन दिया गया है और भागतः संदाय किया गया है और भागतः वचन दिया गया है, या  किसी  आस्थागित  संदाय की  पद्धति  के अधीन

सेवाओं को [भाड़े पर लेता है या उपयोग करता है] ऐसी सेवाओं का कोई हिताधिकारी भी है जब ऐसे सेवाओं का उपयोग प्रथम वर्णित व्यक्ति के अनुमोदन  से किया जाता है, [किन्तु इसमें वह व्यक्ति सम्मिलित नही है, जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन से ऐसी सेवाओं का उपयोग करता है।]

      उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(ण) में सेवा की परिभाषा दी गई है-

    (ण) “सेवा” से किसी भी प्रकार की कोई सेवा अभिप्रेत है जो उसे संभावित प्रयोगकर्ताओं को उपलब्ध कराई जाती है और इसके अन्तर्गत, किन्तु उस तक सीमित नहीं, बैंकिक,वित्तपोषण, बीमा, परिवहन, प्रसंस्करण, विद्युत या अन्य ऊर्जा के प्रदाय बोर्ड या निवास अथवा दोनों [ग्रह निर्माण] मनोरंजन, आमोद-प्रमोद या समाचार या अन्य जानकारी पहँचाने के सम्बन्ध में सुविधाओं का प्रबंध भी है किन्तु इसके अंतर्गत निःशुल्क या व्यक्तिगत सेवा संविदा के अधीन सेवा का किया जाना नहीं है;

      पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखीय साक्ष्य से विदित है कि मुख्य विवाद बैंक से परिवादी द्वारा जारी चेक को अनादृत होने का है। परिवादी अथवा विपक्षी धारा 138 निगोशियेबुल स्ट्रूमेन्ट एक्ट 1882 की धारा 138 के अन्तर्गत सक्षम न्यायालय मे दावा करने के लिए स्वतन्त्र है। परिवादी उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता न ही विपक्षीगण उसके सेवा प्रदाता है। मुख्य विवाद ऋण की धनराशि के लेन देन का है। परिवादी का परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 2(1),(डी),(ओ),(जी) से आच्छादित नहीं है। परिवादी ने बिना क्षेत्राधिकार वाले फोरम में परिवाद पेश किया है। जो निरस्त किये जाने योग्य है। परिवादी वांछित अनुतोष के लिए सक्षम न्यायालय में दावा करने के लिए स्वतन्त्र है। तद्नुसार परिवाद निरस्त किये जाने योग्य है।

                              -आदेश-

        परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जाता है। उभयपक्ष खर्चा मुकदमा  अपना अपना वहन करेंगे। पत्रावली बाद आवश्यक कार्यवाही दाखिल दफ्तर हो।

 

 

         (हुमैरा फात्मा)                                     (रामकुमार)   

           सदस्या                                          अध्यक्ष 

       यह निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित व दिनांकित करके उद्घोषित किया गया।

 

         (हुमैरा फात्मा)                                     (रामकुमार)                             

          सदस्या                                            अध्यक्ष 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. SHRI RAM KUMAR]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MR. SHRI BRAJESH KUMAR MISHRA]
MEMBER
 
[HON'BLE MRS. HUMERA FATMA]
MEMBER

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