राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उत्तर प्रदेश, लखनऊ।
मौखिक
अपील सं0-७३४/२०००
(जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-७११/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-०१-२००० के विरूद्ध)
१. यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया, गुलाब भवन, रीयर ब्लाक, द्वितीय तल, ६, बी एस जैड मार्ग, नई दिल्ली – ११० ००२.
२. एमसीएस लिमिटेड, श्री वैंकटेश भवन, २१२-ए, शाहपुर जाट, नई दिल्ली – ११० ०४९.
३. यूनिट ट्रस्ट आफ इण्डिया, १६/७९-ई, सिविल लाइन्स, कानपुर – २०८ ००१.
........... अपीलार्थीगण/विपक्षीगण।
बनाम
राजा राम शुक्ला, २७२-ए, नौबस्ता, जमीरपुर रोड, कानपुर। …….. प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक :- २३-११-२०२२.
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, इस आयोग के सम्मुख अपीलार्थी यू0टी0आई0 द्वारा जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-७११/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-०१-२००० के विरूद्ध योजित की गई है, जिसके द्वारा निम्न आदेश पारित किया गया है :-
‘’ फोरम आदेश करता है कि विपक्षी आदेश प्राप्ति के ३० दिन के अन्दर परिवादी को ११०२५/- (ग्यारह हजार पच्चीस रू०) दिनांक ४.१२-९६ से भुगतान की तिथि तक १८ प्रतिशत ब्याज सहित परिवादी को अदा करे। क्षतिपूर्ति स्वरूप ५०००/- (पॉंच हजार रू०) एवं वाद व्यय के २०००/- (दो हजार रू०) अदा करे।
विपक्षी सम्पूर्ण धनराशि का परिवादी के नाम बैंक ड्राफ्ट/चेक बनवाकर फोरम में जमा करे जहॉं से परिवादी उसे प्राप्त कर सकेंगे। ‘’
-२-
वाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी यू0टी0आई0 से एम.आई.पी. १९९३ नं0 ७५५९२६६ से ७२ सर्टिफिकेट ७०००/- रू० में वर्ष १९९३ में खरीदा। परिपक्वता तिथि ०४-१२-१९९६ को विपक्षी कम्पनी द्वारा परिपक्व धनराशि परिवादी को भुगतान नहीं की गई। विपक्षी के अनुसार ११०२५/- रू० का चेक परिवादी को भेजा गया जो परिवादी को प्राप्त नहीं हुआ। परिवादी द्वारा सम्पर्क करने पर भी विपक्षी कम्पनी द्वारा कोई भुगतान नहीं किया गया। दिनांक २८-०८-१९९८ को डुप्लीकेट चेक के लिए सभी औपचारिकताऐं पूर्ण की गईं। परिवादी ने विपक्षी को खाता सं0-सी.९६ भारतीय स्टेट बैंक नौबस्ता कानपुर में भुगतान किए जाने के लिए निर्देशित किया लेकिन विपक्षी कम्पनी द्वारा निर्देश का पालन न किया जाना सेवा में घोर त्रुटि को दर्शाता है। विवश होकर परिवादी द्वारा परिवाद दाखिल किया गया।
विपक्षी ने अपने प्रतिवाद पत्र में कथन किया कि पुन: खरीद चेक नं0-५०४१८१ धनराशि ११०२५/- रू० दिनांक ०७-०५-१९९६ को रजिस्टर्ड डाक द्वारा दिनांक २४-१२-१९९६ को भेज दिया गया जो कम्पनी में वापस नहीं आया।
विद्वान जिला फोरम ने उभय पक्ष के कथनों/साक्ष्यों पर विस्तार से विचार करते हुए उक्त चेक परिवादी के पास न पहुँचना साबित पाते हुए उपरोक्त निर्णय पारित किया। इस निर्णय से क्षुब्ध होकर वर्तमान अपील प्रस्तुत की गई है।
मेरे द्वारा अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता श्री उमेश कुमार श्रीवास्तव को सुना गया तथा पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों का परिशीलन किया गया। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा कथन किया गया कि परिवादी को परिपक्व धनराशि ११०२५/- रू० का चेक भेज दिया गया था। अपीलार्थीगण के विद्वान अधिवक्ता ने विद्वान जिला फोरम/आयोग द्वारा आदेशित ब्याज, क्षतिपूर्ति व वाद व्यय की धनराशि को निरस्त करने की प्रार्थना की।
दौरान् बहस अधिवक्ता अपीलार्थीगण द्वारा मेरे सम्मुख ऐसा कोई प्रलेखीय साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका कि अपीलार्थी कम्पनी द्वारा प्रेषित कथित चेक का भुगतान परिवादी को प्राप्त हो चुका है। ऐसी स्थिति में विद्वान जिला फोरम का यह निष्कर्ष कि
-३-
यह नैसर्गिक न्याय का सिद्धान्त है कि सिर्फ प्रेषित कर दिए जाने तक ही प्रेषक की जिम्मेदारी पूर्ण नहीं होती बल्कि प्रेषिती तक प्रेषित वस्तु सुरक्षित पहुँच जाने तक प्रेषक की पूर्णरूप से जिम्मेदारी होती है। तदनुसार विद्वान जिला फोरम ने अभिलेख पर उपलब्ध दिनांक २३-०३-१९९७ के पत्र के अन्तर्गत परिवादी को डुप्लीकेट चेक निर्गत नहीं किया जाना सेवा में त्रुटि माना।
उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए मेरे द्वारा अपीलीय स्तर पर अपीलीय निहित शक्तियों का प्रयोग करते हुए यह न्यायोचित प्रतीत होता है कि चूँकि परिवादी को परिपक्वता धनराशि प्राप्त होना साबित नहीं है अत्एव परिपक्वता धनराशि के अतिरिक्त विद्वान जिला फोरम द्वारा आदेशित १८ प्रतिशत ब्याज के स्थान पर ०८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज, क्षतिपूर्ति स्वरूप आदेशित ५,०००/- रू० के स्थान पर २,०००/- रू० एवं वाद व्यय के रूप में २,०००/- रू० के स्थान पर १,०००/- रू० परिवादी को दिलाया जाना उचित होगा। तदनुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, कानपुर नगर द्धारा परिवाद सं0-७११/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक २९-०१-२००० इस प्रकार परिवर्तित किया जाता है कि विपक्षी आदेश प्राप्ति के ३० दिन के अन्दर परिवादी को ११०२५/- (ग्यारह हजार पच्चीस रू०) दिनांक ०४-१२-१९९६ से भुगतान की तिथि तक ०८ प्रतिशत ब्याज सहित परिवादी को अदा करे। क्षतिपूर्ति स्वरूप २०००/- रू० एवं वाद व्यय के रूप में १,०००/- रू० अदा करे। शेष निर्णय की पुष्टि की जाती है।
आशुलिपिक/वैयक्तिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
प्रमोद कुमार,
वैयक्तिक सहायक ग्रेड-१, कोर्ट नं0-१.