राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-344/2000
(जिला उपभोक्ता फोरम, फिरोजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-117/1997 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.01.2000 के विरूद्ध)
पोस्ट मास्टर हेड पोस्ट आफिस, फिरोजाबाद द्वारा सुप्रीटेण्डेंट आफ पोस्ट आफिसेस, मैनपुरी।
............................अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
श्री परवेज फैय्याज पुत्र श्री एफ0एम0 खान, निवासी 96/4, घालिब नगर, फिरोजाबाद।
..............................प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. माननीय श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री एस0पी0 सिंह, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 01.10.2014
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला फोरम, फिरोजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-117/1997 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.01.2000 के विरूद्ध दिनांक 04.02.2000 को योजित की गयी है। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है, जबकि प्रत्यर्थी को पिछले 12 वर्ष से कई बार नोटिस भेजी गयी, परन्तु उनकी ओर से आपत्ति योजित करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: उन पर तामिला पर्याप्त मानते हुए पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को एक पक्षीय रूप से विस्तार से सुना गया एवं पत्रावली का परिशीलन किया गया।
संक्षेप में इस प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने दिनांक 01.05.1997 को एक रजिस्ट्री संख्या-0567 अध्यक्ष रेलवे भर्ती बोर्ड ए-84 खेरा वेला नगर भुवनेश्वर 751001 को डाक द्वारा भेजी थी, जिसमें उसने टी0सी0 के पद हेतु
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आवेदन पत्र भेजा था, जिसकी अन्तिम तिथि 07.05.1997 थी। उक्त रजिस्ट्री विपक्षी/अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा समय से न पहुँचा कर प्राप्ति के ठीक एक माह बाद वापस फिरोजाबाद भेज दी। परिवादी/प्रत्यर्थी को रजिस्ट्री वापस मिलने के बाद दिनांक 03.06.1997, 01.07.1997 व दिनांक 16.07.1997 को विपक्षी/अपीलार्थी डाक विभाग को पत्र प्रेषित किया और मांग की कि उक्त रजिस्ट्री डाकघर भुवनेश्वर को किस तारिख को पहुँची, लेकिन विपक्षी ने कोई जवाब नहीं दिया। इस प्रकार विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा सेवा में कमी की गयी है, जिससे क्षुब्ध होकर परिवादी/प्रत्यर्थी द्वारा जिला फोरम के समक्ष प्रश्नगत परिवाद योजित किया गया।
विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा प्रश्नगत परिवाद का जवाबदावा जिला फोरम में दाखिल करते हुए कथन किया गया कि विपक्षी/अपीलार्थी को यह ज्ञात नहीं था कि उक्त रजिस्ट्री में परिवादी/प्रत्यर्थी ने टी0सी0 के पद हेतु आवेदन पत्र भेजा था। उक्त रजिस्ट्री दिनांक 01.05.1997 को ही आरएमएस शिकोहाबाद के माध्यम से नियत जगह के लिए भेज दिया गया था। विपक्षी/अपीलार्थी डाक विभाग समय सीमा से अनुबंधित नहीं है और न विभाग को एक सप्ताह के अन्दर उक्त रजिस्ट्री को भुवनेश्वर भेजने की जिम्मेदारी थी। विपक्षी द्वारा यह भी कहा गया कि फिरोजाबाद से भुवनेश्वर की दूरी काफी थी और एक सप्ताह के अन्दर रजिस्ट्री की डिलीवरी करना संभव नहीं था। उक्त पत्र भुवनेश्वर पोस्ट आफिस में दिनांक 19.05.1997 को प्राप्त हुआ तथा वापस दिनांक 21.05.1997 को किया गया। इस प्रकार विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है।
जिला फोरम द्वारा पक्षकारों की बहस सुनने तथा पत्रावली का अवलोकन करने के पश्चात पाया कि विपक्षी/अपीलार्थी की सेवा में कमी पाते हुए विपक्षी को आदेशित किया गया कि वह क्षतिपूर्ति के रूप में रू0 2,500/- परिवादी को अदा करें और यह भी आदेश दिया गया कि यदि डाक विभाग उक्त राशि को 30 दिन के भीतर अदा नहीं करता है तो वह उक्त राशि पर 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी निर्णय की तिथि से भुगतान करेगा।
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उपरोक्त निर्णय एवं आदेश से क्षुब्ध होकर विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा अपील योजित की गयी। पीठ द्वारा पत्रावली का अवलोकन किया गया, जिससे यह प्रकाश में आया कि प्रस्तुत अपील वर्ष 2000 से लम्बित है। प्रत्यर्थी को पिछले 12 वर्ष से कई बार नोटिस भेजी गयी, परन्तु उनकी ओर से आपत्ति योजित करने हेतु कोई उपस्थित नहीं हुआ, अत: उन पर तामिला पर्याप्त मानते हुए पीठ द्वारा अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता को एक पक्षीय रूप से विस्तार से सुना गया।
पत्रावली पर उपलब्ध अपील के ज्ञापन और समस्त अभिलेखों/साक्ष्यों का हमारे द्वारा गम्भीरता से अनुशीलन किया गया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 सिंह को विस्तार से सुना गया। अपीलार्थी द्वारा इस अपील के आधारों में प्राय: उन्हीं तथ्यों एवं तर्कों की पुनरावृत्ति की गयी है, जो उसके द्वारा जिला फोरम के समक्ष परिवाद के सम्बन्ध में की जा चुकी है।
अपीलार्थी द्वारा योजित इस अपील के आधारों में मुख्य रूप से अंकित तथ्यों/तर्कों का विश्लेषण हमारे द्वारा निम्नवत् किया जा रहा है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि डाकघर द्वारा दी गयी सेवायें मात्र Statutory and there is no contractual liability है। उनका यह भी तर्क है कि सामान्यतया पंजीकृत डाक को एक स्थान से उसके गंतव्य स्थान तक एक सप्ताह का समय लगता है। चूंकि प्रश्नगत रजिस्टर्ड डाक नियत समय पर न पहुँचकर उसे प्रेषकर्ता को वापस कर दी गयी। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी की ओर से कोई सेवा में कमी नहीं की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का यह भी तर्क है कि प्रश्नगत प्रकरण इण्डियन पोस्ट आफिस एक्ट की धारा-06 से बाधित है, जो निम्नवत् अंकित है :-
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1989 reads as under :-
“6, Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage – The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provide and no officer of the Post Office shall incur
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any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or change, unless he has caused the same fraudulently or by his willful act or default.”
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने तर्क के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा 2009 (1) सीपीसी 360 (एनसी) रंजीत सिंह बनाम् सेक्रेटरी, डिपार्टमेंट आफ पोस्ट्स गवर्नमेंट आफ इण्डिया, नई दिल्ली व अन्य, Revision Petition No. 2751 of 2008 Decided on 17-09-2008 में पारित विधि व्यवस्था का सन्दर्भित किया, जिसके अन्तर्गत निम्नवत् अवधारित किया गया है, का भी आलम्बन किया गया।
“Section 6 – Postal service – A registered letter containing demand draft was sent by the complainant which was not delivered to addressee – Complaint filed – District Forum accepting the complaint directed OP to pay amount of bank draft with interest at the rate of 18 % p.a. and cost of Rs. 5,000/- - State Commission set aside the order giving rise to present revision – Held, in view of the Post Office Act, postal employees cannot be held liable for mis-delivery of the registered letter in the absence of any willful act on their part – Order of State Commission upheld.”
उपर्युक्त विधि व्यवस्था के अन्तर्गत प्रतिपादित सिद्धान्त के आधार पर हम स्पष्ट मत को हैं कि अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्क में बल है और जिला फोरम का प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश सारहीन व विधि असंगत होने के कारण अपास्त होने योग्य है। तदनुसार प्रस्तुत अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम, फिरोजाबाद द्वारा परिवाद संख्या-117/1997 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 11.01.2000 अपास्त करते हुए परिवाद निरस्त किया जाता है।
इस निर्णय एवं आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि उभय पक्ष को नियमानुसार उपलब्ध करा दी जाये। पत्रावली दाखिल अभिलेखागार हो।
(आलोक कुमार बोस) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0-2
कोर्ट-5