SHAFEEQ AHAMAD filed a consumer case on 04 May 2024 against SHRI HINDUJA LEYLAND FINANACE in the Bareilly-II Consumer Court. The case no is CC/202/2023 and the judgment uploaded on 04 May 2024.
1. परिवादी द्वारा अधिवक्ता श्री सरदारअली।
2. विपक्षी क्रमांक 1 अधिवक्ता श्री नंदन सिंह।
3. विपक्षी क्रमांक 2 व 3 द्वारा अधिवक्ता श्री संजय अग्रवाल।
4. प्रकरण विपक्षी क्रमांक 2 व 3 द्वारा परिवाद समयावधि
बाह्य होने के संबंध में प्रस्तुत आपत्ति पर आदेश हेतु
नियत है।
5. विपक्षी क्रमांक 2 व 3 की ओर से प्रस्तुत प्रारम्भिक आपत्ति संक्षेप में इस प्रकार हे कि बीमित वाहन ट्रक सं. के.ए. 17ए 0383 का बीमा दिनांक 11.11.2012 से दिनांक 10.11.2013 तक के लिए वैध था। चोरी की घटना दिनांक 18.04.2013 को हुई है। उक्त घटना के पश्चात् से परिवादी ने कभी भी विपक्षी बीमा कम्पनी को बीमित वाहन चोरी होने की घटना की कोई सूचना नहीं दी। घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 22.09.2019 को न्यायालय द्वारा पारित धारा 156(3) दण्ड प्रक्रिया संहिता के आदेश पर दर्ज की गई हे। परिवादी के अनुसार परिवादी ने एस.एस.पी. को दिनांक 18.04.2013 को आवेदन दिया था किन्तु परिवादी ने कोई भी ऐसी साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि परिवादी द्वारा दिनांक 18.04.2013 को रिपोर्ट लिखाए जाने पर पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी। दिनांक 18.04.2013 के पश्चात् परिवादी ने वर्ष 2019 में न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 136(3) के अंतर्गत आवेदनपत्र प्रस्तुत किया है। पालिसी की आवश्यक शर्त क्रमांक 1 के अनुसार बीमित वाहन चोरी होने पर तत्काल सूचना पुलिस को एवं बीमा कम्पनी को देना आवश्यक है। परिवादी ने प्रश्नगत पुराना वाहन सन् 2004 में खरीदा था तथा परिवादी 9वर्ष तक वाहन का प्रयोग करने के पश्चात् दिनांक 17.04.2013 को वाहन चोरी होनी का मिथ्या आधार लेकर बीमा कम्पनी से अवैध रूप से लाभ प्राप्त करना चाहता हे। प्रकरण में वाद हेतुक कथित चोरी की घटना दिनांक 17.04.2013 में होना उत्पन्न हुआ जिसके 2वर्ष के भीतर दिनांक 17.04.2015 तक परिवाद उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत प्रस्तुत कर देना चाहिए था। किन्तु परिवादी ने दिनांक 07.10.2023 को प्रस्तुत किया है जो समयावधि बाह्य है। परिवादी ने धारा 69(2) उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत कोई आवेदनपत्र भी परिवाद के साथ प्रस्तुत नहीं किया। प्रस्तुत परिवाद समयावधि बाह्य हे। अतः परिवाद खारिज किया जावे।
6. परिवादी ने उक्त आवेदनपत्र पर रिप्लिका के रूप में आवेदनपत्र पर यह आपत्ति पेश की है कि उसने प्रश्नगत वाहन के चोरी के संबंध में विधिवत प्रथम सूचना रिपोर्ट दिनांक 17.04.2013 को दर्ज करायी थी तथा चोरी की सूचना बीमा कम्पनी व संबंधित थाना शेरगढ़ को सूचना चोरी की दी गई थी तथा एस.एस.पी. को प्रार्थनापत्र दिया गया। परिवादी को पता चला कि रपट लिख गई है किन्तु रपट न लिखने पर न्यायालय के आदेश पर रपट दर्ज हुई है जो विधि सम्मत है। न्यायालय के आदेश पर प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई है। प्रथम सूचना रिपोर्ट चोरी की तिथि से आज तक वाहन का पता नहीं चला है। विपक्षी क्रमांक 2 व 3 को चोरी की सूचना दी गई थी तथा थाने को भी दी गई थी जबकि वाहन चोरी हुआ था तभी उसकी सूचना थाने में उच्चाधिकारियों को दी गई थी, कोई भी देरी नहीं है जो भी देरी प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराने में हुई है वह जानबूझकर नहीं है, वह परिस्थितिवश है। चोरी की सूचना विधिवत थाने में दी गई हे तथा न्यायालय के आदेश पर रपट लिखी गई है तथा वाद का कारण लगातार जारी रहा है तथा अन्दर म्याद है। मामला उपभोक्ता प्राविधानों के विपरीत नहीं है। परिवादी बराबर दावे के लिए क्षतिपूर्ति की सूचना देता रहा है। किन्तु कोई क्षतिपूर्ति नहीं दी गई तब नोटिस किया गया परन्तु क्षतिपूर्ति अदा न होने पर फोरम में वाद योजित किया गया। विपक्षी क्रमांक 2 व 3 द्वारा प्रस्तुत आपत्ति निरस्त की जावे।
7. विपक्षी क्रमांक 2 व 3 ारा प्रस्तुत आपत्ति के निराकरण
हेतु निम्नलिखित विचारणीय प्रश्न उतपन्न हाते हैः-
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प्रथम क्या परिवाद समयावधि बाह्य है?
द्वितीय यदि हॉ तो क्या यह परिवाद खारिज किए जाने
योग्य है?
प्रथम विचारणीय प्रश्न पर विवेचना एवं निष्कर्ष
8. परिवादपत्र में उल्लिखित अभिवचन के अनुसार दिनांक 17.04.2013 को बीमित वाहन की चोरी/लूट कारित की गई थी। परिवादपत्र में उल्लिखित अभिवचन के अनुसार दिनांक 17.04.2013 को थाने में चोरी/लूट की घटना की रिपोर्ट दर्ज करायी गई थी किन्तु परिवादी द्वारा प्रस्तुत पृष्ठ क्रमांक 4 में संलग्न थाना शेरगढ़ को दी गई लिखित सूचना दिनांक 17.04.2013 को थाने की कोई पावती नहीं हे। इसी प्रकार परिवादी के अनुसार पुलिस थाने द्वारा प्रथम सूचना रिपोर्ट लेख न किए जाने पर परिवादी ने वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को दिनांक 18.04.2013 को आवेदन दिया था किन्तु परिवादी द्वारा प्रस्तुत पृष्ठ क्रमांक 5 में संलग्न वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक को दिए गए उक्त आवेदन दिनांक 18.04.2013 में भी वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक के कार्यालय अथवा अन्य किसी की कोई
पावती अंकित नहीं पायी जाती है। इसी प्रकार परिवादी के अनुसार चोरी की घटना की सूचना बीमा कम्पनी को दिनांक 18.03.2013 को दी गई थी। घटना पृष्ठ क्रमांक 6 में संलग्न उक्त सूचना में न तो तारीख अंकित हे और न ही बीमा कम्पनी की कोई पावती है।
9. परिवादपत्र में उल्लिखित अभिवचन के अनुसार बीमा कम्पनी में चोरी की सूचना देने पर बीमा कम्पनी ने प्रथम सूचना दर्ज करवाने के पश्चात् क्लेम पर विचार करने को कहा था किन्तु परिवादी ने बीमा कम्पनी के ऐसे किसी पत्र की प्रतिलिपि प्रस्तुत नहीं की गई जिसमें यह दर्शित हो कि बीमा कम्पनी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराए जाने के पश्चात् क्लेम पर विचार करने को कहा था।
10. वर्तमान प्रकरण में सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथ्य यह हे कि दिनांक 17.04.2013 की चोरी की घटना की रिपोर्ट पुलिस द्वारा न लिखने के कारण परिवादी ने 6वर्ष पश्चात् वर्ष 2019 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में दण्ड प्रक्रिया संहिता की धारा 156(3) के अंतर्गत आवेदन प्रस्तुत किया है जबकि चोरी की घटना की प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस द्वारा दर्ज न किए जाने पर सर्वप्रथम तत्काल वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को शिकायत की जाती हे तथा वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों द्वारा भी कोई कार्यवाही न किए जाने पर दण्ड प्रक्रिया की धारा 156(3) के अंतर्गत न्यायालय की शरण में जाना होता है। किन्तु चोरी की घटना दिनांक 17.04.2013 से 6वर्ष तक परिवादी चूप बैठा रहा तथा उसके 6वर्ष पश्चात् सन् 2019 में न्यायिक मजिस्ट्रेट के न्यायालय में परिवादी ने आवेदनपत्र प्रस्तुत किया जिसकी पुष्टि पृष्ठ क्रमांक 10/1 लगायत पृष्ठ क्रमांक 10/3 में संलग्न प्रथम सूचना रिपोर्ट की प्रति से पायी जाती है।
11. प्रकरण में चोरी की घटना दिनांक 17.04.2013 को वादहेतुक उत्पन्न हुआ हे तथा परिवादी ने ऐसा कोई दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किया है जिससे यह प्रकट हो कि बीमा कम्पनी ने प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के पश्चात् क्लेम पर विचार करने हेतु कहा था। अतः वाद हेतुक चोरी की घटना होने से दिनांक 07.10.2023 को परिवाद प्रस्तुत किया गया हे। जोकि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 69(1) के अंतर्गत 2वर्ष की समयावधि में प्रस्तुत न होने के कारण समयावधि बाह्य है।
12. उपरोक्त विश्लेषण के आधार पर यह स्पष्ट है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 की धारा 69(1) क अंतर्गत वादहेतुक उत्पन्न होने के 2वर्ष के भीतर उपभोक्ता परिवाद प्रस्तुत न किए जाने के कारण परिवाद समयावधि बाह्य है। इस प्रकार से प्रथम विचारणीय प्रश्न पर सकारातमक निष्कर्ष प्राप्त होता है।
द्वितीय विचारणीय प्रश्न पर विवेचना एवं निष्कर्ष
13. प्रथम विचारणीय प्रश्न पर प्राप्त निष्कर्ष के अनुसार चूॅंकि परिवाद समयावधि के बाह्य है तथा परिवादी ने परिवाद के साथ उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम की धारा 69(2) के अंतर्गत
समयावधि में छूट दिए जाने के संबंध में कोई आवेदनपत्र भी प्रस्तुत नहीं किया है। अतः परिवाद खारिज किए जाने योग्य है। इस प्रकार से द्वितीय विचारणीय प्रश्न पर भी सकारात्मक निष्कर्ष प्राप्त होता है।
14. उपरोक्त दोनो ही विचारणीय प्रश्नों पर प्राप्त सकारात्मक निष्कर्षो के परिणामस्वरूप परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद समयावधि बाह्य होने के कारण खारिज किया जाता है। पक्षकार अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
15. परिवाद प्रकरण पंजी. से निरस्त किया जाकर आवश्यक पूर्ति के पश्चात् निर्धारित समयावधि में अभिलेखागार भेजा जावे।
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