जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम, जांजगीर-चाॅपा (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांक:- CC/25/2011
प्रस्तुति दिनांक:- 14/10/2011
सजन कुमार अग्रवाल पिता सीताराम अग्रवाल,
निवासी नेताजी चैक जांजगीर,
थाना व तहसील जांजगीर,
जिला जांजगीर-चाम्पा छ.ग. ..................आवेदक/परिवादी
( विरूद्ध )
हाजी अब्दुल रज्जाक खां
पिता स्वर्गीय हाजी अ वाहब खान
निवासी तालापारा बिलासपुर,
जिला बिलासपुर छ.ग. .........अनावेदक/विरोधी पक्षकार
///आदेश///
( आज दिनांक 14/10/2015 को पारित)
1. परिवादी/आवेदक ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 12 के अंतर्गत यह परिवाद अनावेदक के विरूद्ध अनावेदक द्वारा सेवा प्रदान करने के प्रतिफल के रूप में प्राप्त एडवांस राषि 5,03,000/-रू. मे से 3,03,000/-रू., अनावेदक द्वारा कार्य न कर प्रस्तावित कार्य में विलंब के परिणाम स्वरूप हुए आर्थिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति तथा वादव्यय दिलाए जाने के लिए दिनांक 14.10.2014 को प्रस्तुत किया है ।
2. प्रकरण में यह अविवादित तथ्य है कि परिवादी एवं अनावेदक के मध्य अनुबंध (इकरारनामा) हुआ था कि 60/-रू. मिट्टी का एवं 70/-रू. मुरूम का प्रति घन मीटर के हिसाब से अनावेदक मिट्टी एवं मुरूम 1 से 6 किलोमीटर तक सामग्री डालेगा तथा कार्य का माप रेलवे द्वारा किया जावेगा तथा अन्य षर्तों के साथ अनुबंध (इकरारनामा) हुआ था । यह तथ्य भी अविवादित है कि अनुबंध (इकरारनामा) अनुसार परिवादी द्वारा अनावेदक को एडवांस 51,000/-रू. दिया गया था। यह भी अविवादित तथ्य है कि परिवादी ने रेलवे विभाग से अनावेदक द्वारा कराए गए कार्य इकरारनामा का मूल्यांकन कराया था तथा कराए कार्य का मूल्यांकन 2,00,000/-रू. आंका गया था।
3. परिवाद के निराकरण के लिए आवष्यक तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि चाॅपा बाई पास रेलवे लाईन चाॅपा बाराद्वार सक्सन में 5 से 6 किलो मीटर लग्बाई का कार्य बी.पी. अग्रवाल अग्रसेन मार्ग कोरबा के नाम से विभाग द्वारा अनुबंधित है । बी.पी. अग्रवाल से परिवादी ने अपने आजीविका चलाने हेतु मिट्टी एवं मुरूम डालने का कार्य करने का ठेका 70,000/-रू. एवं 1,00,000/-रू. घन मीटर का लिया था । अनावेदक के पास मिट्टी खुदाई व ढुलाई हेतु हाईवा ट्रक है, जिसके माध्यम से वह प्रतिफल लेकर सेवा प्रदान करता है । परिवादी एवं अनावेदक के मध्य 60/-रू. मिट्टी का एवं 70/-रू. मुरूम का प्रति घन मीटर के हिसाब से अनावेदक मिट्टी एवं मुरूम 1 से 6 किलोमीटर तक सामग्री डालेगा तथा कार्य का माप रेलवे द्वारा किया जावेगा तथा अन्य षर्तों के साथ अनुबंध (इकरारनामा) हुआ था । अनावेदक द्वारा कार्य प्रारंभ किया गया तथा अनुबंध (इकरारनामा) के षर्तानुसार कार्य करने के प्रतिफल का एडवांस रकम 5,03,000/-रू. परिवादी द्वारा अनावेदक को प्रदान किया गया । अनावेदक द्वारा कुछ दिन कार्य करने के बाद कार्यस्थल से काम बन्द कर दिया गया, जिससे कार्य अवरूद्ध हो गया, जिसी सूचना अनावेदक को दी गई, किंतु अनावेदक द्वारा कार्य प्रारंभ नहीं किया गया औन न ही कार्य का मूल्यांकन कराया गया । कार्य आगे बढ़ाने के लिए परिवादी ने रेल विभाग से अनावेदक द्वारा कराये गये कार्य का मूल्यांकन कराया जो 2,00,000/-रू. का आंका गया । परिवादी द्वारा अनावेदक को अधिवक्ता नोटिस दिनांक 26.04.2010 भी प्रेशित किया गया, जिसका अनावेदक द्वारा कोई जवाब भी नहीं दिया गया। परिवादी प्रतिफल देकर सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति है, जो कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत धारा 2 डी के तहत उपभोक्ता है। इस प्रकार सेवा में कमी करने से परिवादी को उक्त कार्य पुनः अधिक रेट में कराने से आर्थिक व मानसिक क्षति हुई, अतः परिवादी ने अनावेदक से प्रतिफल के रूप में प्राप्त एडवांस राषि 5,03,000/-रू. मे से 3,03,000/-रू., अनावेदक द्वारा कार्य न कर प्रस्तावित कार्य में विलंब के परिणाम स्वरूप हुए आर्थिक एवं मानसिक क्षतिपूर्ति तथा वादव्यय दिलाए जाने का निवेदन किया है।
4. अनावेदक ने जवाबदावा प्रस्तुत कर स्वीकृत तथ्य को छोड़ शेष तथ्यों से इंकार करते हुए कथन किया है कि अनावेदक ने परिवादी से हुये अनुबंध (इकरारनामा) के मुताबिक स्थल पर 2,00,000/-रू. मूल्यांकन का कार्य कर चुका है तथा परिवादी ने अनावेदक को अनुबंध (इकरारनामा) के अनुसार 51,000/-रू. मात्र एडवांस दिया है। परिवाद द्वारा स्वयं अनुबंध (इकरारनामा) के शर्तों का उल्लंघन कर अनावेदक द्वारा किए गए कार्य का शेष राषि 1,49,000/-रू. नहीं दिया है, जिसे अनावेदक परिवादी से प्राप्त करने का अधिकारी है। परिवादी, अनावेदक से 3,03,000/-रू. या अन्य कोई भी राषि प्राप्त करने का अधिकारी नहीं है। अतः परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद सव्यय निरस्त किए जाने का निवेदन किया गया है ।
5. परिवाद पर उभय पक्ष के अधिवक्ता को विस्तार से सुना गया। अभिलेखगत सामग्री का परिषीलन किया गया है ।
6. विचारणीय प्रष्न यह है कि:-
1. क्या परिवाद अंतर्गत परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता है ?
2. क्या अनावेदक/विरोधी पक्षकार द्वारा परिवादी के साथ सेवा में कमी की गई है ?
3. क्या परिवाद का सुनवाई क्षेत्राधिका इस फोरम को है ।
निष्कर्ष के आधार
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 1 का सकारण निष्कर्ष:-
7. परिवादी/आवेदक की ओर से तर्क किया गया है कि परिवाद की कंडिका 1 से 4 के तथ्यों को अनावेदक ने अपने जवाब में स्वीकार किया है। पक्षकार या उसके अभिकर्ता द्वारा की गई स्वीकृति सर्वोत्तम साक्ष्य है और पक्षकार के विरूद्ध आबद्धकर है, समर्थन में न्यू इंडिया इंष्योरेंस कंपनी लिमिटेड विरूद्ध मनीश उद्योग दाउदपुरा बुरहानपुर 2001 उपभोक्ता संरक्षण केसेस 586 राज्य आयोग मध्य प्रदेष का अवलंब लिया है । परिवादी की ओर से यह तर्क भी किया गया है कि वह अपने तथा अपने परिवार की आजीविका चलाने के लिए मिट्टी व मुरूम डालने का कार्य ठेका में लिया था, जिसका खण्डन नहीं हुआ अतः परिवादी छोटा उद्यमी होकर उपभोक्ता है, समर्थन में सुपर इंजीनियर कार्पोरेषन विरूद्ध संजय विनायक पंत 1992 (1) ब्च्त् 218 ;छब्द्ध का अवलंब लिया है । परिवादी की ओर से यह तर्क भी किया गया है कि अनावेदक ने परिवादी उपभोक्ता नहीं है का विवाद नहीं है अतः परिवादी के लिए यह दर्षित करना आवष्यक नहीं है कि वह उपभोक्ता है, समर्थन में युनियन ट्रस्ट आॅफ इंडिया विरूद्ध एच.आर.गुप्ता 1999 उपभोक्ता संरक्षण केसेस 59 नई दिल्ली का अवलंब लिया है । परिवादी की ओर से यह तर्क भी किया गया है कि उसने अनावेदक को प्रतिफल देकर उससे सेवा किराया पर लिया था अतः अनावेदक का वह उपभोक्ता है चाहे सेवा वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए लिया गया हो समर्थन में इंटरनेषनल एयर पोर्ट अथाॅरिटी आॅफ इंडिया विरूद्ध मेसर्स षालीडेयर इंडिया लिमिटेड 1999 उपभोक्ता संरक्षण केसेस 16 का अवलंब लिया है । व्यवसायिक उद्देष्य के लिए क्रय की गई वस्तु बाबत् सेवा में कमी के आधार पर परिवाद में परिवादी उपभोक्ता है । तुकाराम न्यूरो डायग्नोसिस सेंटर विरूद्ध निक्को कार्पोरेषन लिमिटेड 1994 (1) ब्च्श्र 47 राज्य आयोग कर्नाटक का अवलंब लिया है ।
8. अनावेदक ने प्रस्तुत जवाब उसके समर्थन में अनावेदक का षपथ पत्र को अवलंबित करते हुए तर्क किया है कि परिवाद कण्डिका 7 का अनावेदक ने जवाब इंकार करने में दिया है । इस प्रकार परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 डी के अंतर्गत उपभोक्ता है को प्रमाणित करने का भार परिवादी पर है । परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता है उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 डी के अनुसार प्रमाणित नहीं हुआ है, समर्थन में दिल्ली डवलपमेंट अथार्टी विरूद्ध संदीप खत्री प्ट (2014) ब्च्श्र 407 (छब्), श्रीमती विनोदिनी वाजपेयी विरूद्ध राज्य कृशि उत्पादन मंडी परिसद लखनऊ प्प् 1991 ब्च्त् 137 का अवलंब लिया है।
9. अनावेदक की ओर से यह तर्क भी किया गया है कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(डी)(पप) अनुसार उपभोक्ता में वह व्यक्ति सम्मिलित नहीं है, जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन से सेवा करता है। परिवाद पत्र के कथनों से अनावेदक की ओर से तर्क किया गया है कि चाॅपा बाई पास रेलवे लाईन चाॅपा बाराद्वार सक्सन में 5 से 6 किलो मीटर लग्बाई का कार्य बी.पी. अग्रवाल द्वारा रेलवे से अग्रसेन मार्ग कोरबा के नाम से विभाग द्वारा अनुबंधित है । कार्य को बी.पी. अग्रवाल द्वारा ठेका पर लिया गया है तथा बी.पी. अग्रवाल से सजन कुमार अग्रवाल द्वारा कार्य को संपादित कराने के लिए उक्त ठेका पर प्राप्त किया है तथा परिवादी द्वारा उक्त कार्य को 60/-रू. मिट्टी का एवं 70/-रू. मुरूम डुलाई कार्य हेतु अनावेदक को अनुबंध के तहत दिया गया यह कार्य भी ठेका के अधीन है । इस प्रकार परिवादी द्वारा परिवार चलाने हेतु प्रष्नाधीन कार्य को अनावेदक को नहीं दिया है अपितु उक्त ठेका पर कार्य को दिया है तर्क के समर्थन में मेसर्स दास एण्ड कंपनी विरूद्ध पारादीप पोर्ट ट्रस्ट पारादीप एवं अन्य 1991(2)ब्च्त् 228 स्टेट कमीषन कटक के न्याय दृश्टांत का अवलंब लिया है ।
10. परिवादी की ओर से अवलंबित न्याय दृश्टांत 1999 उपभोक्ता संरक्षण केसेस 16 दिनांक 27.11.1998 को तथा 1999 उपभोक्ता संरक्षण केसेस 59 दिनांक 17.08.1996 को निर्णित हुआ है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2(1)(डी)(पप) में वर्श 2002 में अधिनियम संख्या 62 की धारा 2 (ग)(प) द्वारा अंतः स्थापित ’’किंतु इसमें ऐसा व्यक्ति सम्मिलित नहीं है, जो किसी वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए ऐसी सेवा को प्राप्त करता है । ’’ किया गया है से वर्श 2002 में हुए संषोधन पष्चात सेवा का वाणिज्यिक प्रयोजन हेतु प्राप्तकर्ता उपभोक्ता नहीं है ।
11. परिवादी द्वारा धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत प्रस्तुत परिवाद की कंडिका 1 से 4 के परिषीलन से तथा परिवादी द्वारा प्रस्तुत अनुबंध (इकरारनामा) दिनांक 21.03.2010, परिवादी द्वारा अनावेदक को लिखा गया पत्र दिनांक 26.04.2010 एवं परिवादी की ओर से अनावेदक को भेजा गया रजिस्टर्ड नोटिस दिनांक 08.09.2010 के दस्तावेजी प्रमाण से निम्नलिखित तथ्य स्पश्ट है कि:-
1. चाॅपा बाई पास रेलवे लाईन चाॅपा-बाराद्वार सक्सन में 5 से 6 किलो मीटर लग्बाई का कार्य बी.पी. अग्रवाल द्वारा रेलवे से अग्रसेन मार्ग कोरबा के नाम से विभाग द्वारा अनुबंधित है ।
2. बी.पी. अग्रवाल से परिवादी ने मिट्टी एवं मुरूम डालने का कार्य करने का ठेका 70,000/-रू. एवं 1,00,000/-रू. घन मीटर का लिया था ।
3. परिवादी एवं अनावेदक के मध्य 60/-रू. मिट्टी का एवं 70/-रू. मुरूम का प्रति घन मीटर के हिसाब से अनावेदक मिट्टी एवं मुरूम 1 से 6 किलोमीटर तक सामग्री डालेगा तथा कार्य का माप रेलवे द्वारा किया जावेगा तथा अन्य षर्तों के साथ अनुबंध (इकरारनामा) दिनांक 21.03.2010 को हुआ था ।
12. उपरोक्तानुसार स्पश्ट है कि रेलवे विभाग से बी.पी.अग्रवाल अग्रसेन मार्ग कोरबा में अनुबंध के द्वारा कार्य लिया है, जिसमें से मिट्टी एवं मुरूम डालने के कार्य का ठेका बी.पी. अग्रवाल से परिवादी ने प्राप्त किया तथा उस कार्य को कराने के लिए परिवादी ने अनावेदक से दिनांक 21.03.2010 को अनुबंध (इकरारनामा) किया। इस प्रकार परिवादी सजन कुमार अग्रवाल ने बी.पी.अग्रवाल से कार्य ठेके पर लिया या उक्त ठेके पर लिया तथा उस कार्य को कराने के लिए अनावेदक से अनुबंध (इकरारनामा) द्वारा उक्त ठेके पर दिया। इस प्रकार अनुबंध के तहत लाभ अर्जन करने के उद्देष्य से परिवादी ने अनावेदक को बी.पी. अग्रवाल से लिया गया कार्य को उक्त ठेके पर दिया, जिससे उक्त कार्य वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए किया गया अर्थात परिवादी ने लाभ अर्जन करने के प्रयोजन के लिए अनावेदक से अनुबंध (इकरारनामा) द्वारा मिट्टी एवं मुरूम का काम कराया तथा उक्त कार्य से होने वाले लाभ से वह अपने परिवार के आजीविका के लिए उपयोग किया । परिवादी ने बी.पी. अग्रवाल से लिए गए कार्य का स्वयं मिट्टी और मुरूम खुदाई, ढुलाई का कार्य नहीं किया है ।
13. वाणिज्यिक प्रयोजन क्या है यह तथ्य का प्रष्न है तथा प्रत्येक प्रकरण के तथ्यों से विनिष्चय किए जाने योग्य है होता है जैसा कि कविता आहूजा विरूद्ध षीप्रा इस्टेट लिमिटेड एवं जय कृश्णा इस्टेट डवलपर्स लिमिटेड एवं अन्य 2015 (2)ब्च्त् 246 (छब्) में माननीय राश्ट्रीय कमीषन द्वारा अभिनिर्णित किया गया है । इसी प्रकार प्रतिफल देकर सेवा प्राप्त करने वाला व्यक्ति उपभोक्ता होना, किंतु वाणिज्यिक प्रयोजन के लिए सेवा प्राप्त करने वाला उपभोक्ता नहीं होना अष्वीनी खन्ना एवं अन्य विरूद्ध मेसर्स गोल्ड काॅज कस्ट्रक्षन प्रा.लि. 2015 (2)ब्च्त् 489 (छब्) में अभिनिर्णित किया गया है ।
14. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत लाभ वाणिज्यिक प्रयोजन के देने मामले में किया गया है, जो अपने रोजी राटी, आजीविका चलाने हेतु उपयोग में स्वयं अपने कुटुम्ब के उद्देष्य के संलग्न रखने, माल या मषीनरी स्वयं के लिए अपने व्यवसाय के लिए खरीदते हैं तो वे उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(डी) (पप) के स्पश्टीकरण जो 2000 के संषोधन द्वारा अतः स्थापित किया गया है से लाभ प्राप्त होगा।
15. परिवादी द्वारा अनावेदक के विरूद्ध परिवाद के तथ्यों से अनावेदक के साथ उसके दिनांक 21.03.2010 के इकरारनामा अनुसार परिवादी व्यवसायिक प्रयोजन के लिए अनावेदक से अनुबंध कर रेलवे का मुरूम तथा मिट्टी खुदाई, ढुलाई का काम करवाया जिससे उसका उद्देष्य लाभ अर्जन के लिए होने से व्यवसायिक प्रयोजन के लिए होना स्पश्ट हुआ है ।
16. उपरोक्त से उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(डी) यह सुस्थापित स्थिति है कि जहाॅं पक्षकारों के मध्य विवाद वाणिज्यिक प्रयोजन से संबंधित है, वहाॅं उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत मामला अपवर्जित होगा जैसा कि मेसर्स स्टील सीटी सिक्योरिटी लिमिटेड द्वारा उसके मैनेजर विरूद्ध श्री जी.पी. रमेष एवं अन्य 2014 (1) ब्च्त् 494 (छब्) में माननीय राश्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोशण आयोग नई दिल्ली द्वारा अभिनिर्णित किया गया है के अनुसार परिवादी उपभोक्ता नहीं है हम पाते हैं, तद्नुसार विचारणीय प्रष्न क्रमांक 1 का निश्कर्श ’’हाॅ’’ में देते हैं ।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2 का सकारण निष्कर्ष:-
17. परिवादी ने परिवाद अंतर्गत दिनांक 21.03.2010 के अनुबंध के तहत प्रतिफल का एडवांस रकम 5,03,000/-रू. परिवादी द्वारा अनावेदक को प्रदान किया गया था । अनावेदक द्वारा किए गए कार्य का रेलवे विभाग द्वारा मूल्यांकन 2,00,000/-रू. आंका गया से बचत 3,03,000/-रू. की हानि परिवादी को हुई तथा पुनः अधिक रेट में कार्य कराने से आर्थिक व मानसिक क्षति अनावेदक से भुगतान दिलाए जाने योग्य है जिसे दिलाए जाने का निवेदन किया गया है।
18. अनावेदक ने अनुबंध दिनांक 21.03.2010 अनुसार उसे परिवादी से कुल 51.000/-रू. प्राप्त हुआ है, उसके अतिरिक्त 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. की कोई राषि प्राप्त नहीं हुआ है । उसके कार्य का मूल्यांकन 2,00,000/-रू. रेलवे द्वारा आंका गया है । इस प्रकार अनुबंध अनुसार प्राप्त किए 51,000/-रू. की राषि से अधिक 1,49,000/-रू. का कार्य किया है, जिसे अनावेदक को परिवादी से लेना है बतलाया है । उपरोक्त अनुसार परिवाद अतर्गत की सामग्री से अनावेदक ने परिवादी से 51,000/-रू. अनुबंध दिनांक 21.03.2010 अनुसार उक्त तिथि प्राप्त करना स्वीकार किया है ।
19. परिवादी ने अनावेदक को अनुबंध (इकरारनामा) दिनांक 21.03.2010 के पष्चात 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिए जाने का कोई दस्तावेजी प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है । इस प्रकार दस्तावेजी प्रमाण यथा कोई लिखित, रसीद, अभिस्वीकृति पत्र द्वारा उक्त तथ्य को प्रमाणित नहीं किया है ।
20. परिवादी सजन कुमार अग्रवाल ने षपथ पत्र में दिए साक्ष्य कथन में कार्य करने की संविदा अनुसार प्रतिफल राषि 5,03,000/-रू. अनुबंध (इकरारनामा) अनुसार भुगतान भी दे दिया गया है कंडिका 1 में बताया है । नंद कुमार पाण्डेय (परिवादी साक्षी 2) ने उसके समक्ष किया था इकरारनामा लिखा गया था उसके समक्ष 51,000/-रू., 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिया जाना षपथ पत्र के साक्ष्य कथन में बताया है तथा सौरभ अग्रवाल (परिवादी साक्षी 3) ने उससे कुछ राषि लेकर परिवादी ने अनावेदक को अनुबंध अनुसार भुगतान किया था का तथ्य बतलाया है, किंतु अनुबंध दिनांक 21.03.2010 में नंद कुमार पाण्डेय तथा सौरभ अग्रवाल साक्षी के रूप में नामित, हस्ताक्षरित नहीं हैं । उक्त अनुबंध में पक्षकारों के हस्ताक्षर हैं, गवाह के नाम हस्ताक्षर नहीं है । इस प्रकार प्रथम दृश्टया 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. परिवादी द्वारा अनावेदक को दिए जाने की पुश्टि प्रस्तुत दस्तावेजी प्रमाण से नहीं हुआ है।
21. परिवाद पत्र में किस दिनांक को किसके समक्ष 51,000/-रू. के अलावा षेश 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिया गया का कोई अभिवचन नहीं है । परिवादी सनत कुमार अग्रवाल द्वारा प्रस्तुत षपथ पत्र में उसने किसके समक्ष संविदा अनुसार प्रतिफल राषि दिया गया का दिनांक का उल्लेख नहीं किया गया है । स्पश्ट रूप से नंद कुमार पाण्डेय तथा सौरभ के समक्ष अनावेदक को 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिए जाने का तर्क मय षपथ पत्र प्रकट नहीं किया है । इस प्रकार परिवादी की ओर से प्रस्तुत दस्तावेज दिनांक 26.04.2010 तथा रजिस्टर्ड नोटिस दिनांक 08.09.2010 में 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. किनके समक्ष किसे दिया गया का कोई उल्लेख नहीं किया गया है । इस प्रकार अनावेदक को 51,000/-रू. के अलावा षेश 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिए जाना युक्तियुक्त रूप से प्रमाणित नहीं है ।
22. परिवाद पत्र में अनावेदक को एडवांस राषि 5,03,000/-रू. दिया जाना उल्लेखित किया गया है, जिसका आधार अनुबंध (इकरारनामा) दिनांक 21,03,2010 को 51,000/-रू. देकर अनुबंध (इकरारनामा) तय हुआ तथा अनावेदक (पक्षकार क्रमांक 1) द्वारा हाइवा एवं पोकलेन मषीन साइड में आने पर 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिया जाएगा उल्लेखित है, जिससे दिनांक 21.03.2010 को कुल 51,000/-रू. ही दिया गया स्पश्ट होता है । षेश 4,50,000/-रू. को 51,000/-रू. 5,01,000/-रू. होता है, किंतु 5,03,000/-रू. दिया जाना परिवाद अंतर्गत की सामग्री में बताया गया है, 2,000/-रू. अधिक दिए जाने का आधार किसी प्रकार से प्रकट नहीं किया गया है । इस प्रकार प्रकरण अंतर्गत परिवादी 51,000/-रू. देने के अलावा अन्य राषि 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिया जाना युक्तियुक्त रूप से प्रकट नहीं किया है ।
23. परिवादी की ओर से तर्क किया गया है कि अनावेदक के कथन अनुसार अधिक किए गए कार्य का मूल्य 1,49,000/-रू. परिवादी से पाने के लिए कभी कोई दावा नहीं किया गया है । परिवादी द्वारा दिए नोटिस का जवाब नहीं दिया, से भी अनावेदक के आचरण से परिवादी के कथनों को बल मिलता है, जबकि अनावेदक की ओर से तर्क किया गया है कि परिवाद के तथ्यों को अनावेदक के विरूद्ध प्रमाणित करने का भार परिवादी पर है । अनावेदक द्वारा 1,49,000/-रू. की मांग परिवादी से नहीं किए जाने पर परिवादी का परिवाद अंतर्गत दावा प्रमाणित नहीं हो जाता ।
24. सामान्यतः उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत परिवाद को सिद्ध करने का भार परिवादी पर है । परिवाद अभिवचनों से परे नहीं किया जा सकता । अभिलेखगत सामग्री अंतर्गत प्रस्तुत साक्ष्य से परिवादी द्वारा अनावेदक को दिनांक 21.03.2010 के पष्चात 2,50,000/-रू. तथा 2,00,000/-रू. दिया जाना प्रमाणित नहीं हुआ है। परिवादी द्वारा अपने पक्ष समर्थन में प्रस्तुत मौखिक साक्ष्य उसके द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजी साक्ष्य से पुश्टि नहीं हो रहा है । इस प्रकार हम पाते हैं कि परिवादी अनावेदक के विरूद्ध 4,50,000/-रू. दिया जाना प्रमाणित नहीं कर पाया है ।
25. पक्षकारों के मध्य इकरारनामा दिनांक 21.03.2010 अनुसार परिवादी ने 51,000/-रू. अनावेदक को दिया था । अनावेदक द्वारा कुल 2,00,000/-रू. मूल्य का कार्य किया गया है, जो 51,000/-रू. की राषि से अधिक है, फलस्वरूप अनावेदक द्वारा परिवादी के विरूद्ध कोई सेवा में कमी की गई है उपरोक्तनुसार तथ्यों से स्थापित प्रमाणित नहीं होता, तद्नुसार हम विचारणीय प्रष्न क्रमांक 2 का निश्कर्श प्रमाणित नहीं होना में पाते हुए देते हैं ।
विचारणीय प्रष्न क्रमांक 3 का सकारण निष्कर्ष:-
26. अनावेदक की ओर से तर्क किया गया है कि प्रस्तुत परिवाद का आधार अनुबंध (इकरारनामा) दिनांक 21.03.2010 है, जो पक्षकारों के मध्य संविदा से उत्पन्न विवाद है, जिसका सुनवाई क्षेत्राधिकार व्यवहार न्यायालय को है । अनावेदक की ओर से की गई इकरारनामा दिनांक 21.03.2010 के अंत में लिखित नोट का ध्यान आकर्शित करते हुए व्यवहार न्यायालय का क्षेत्राधिकार होना बताया है । पक्ष व तर्क के समर्थन में मेसर्स ललीत विरूद्ध डाॅ. सुनील जाधव व अन्य (प्प्) 2013 ब्च्श्र 407 (छब्), भण्डारी कंस्ट्रक्सन कंपनी विरूद्ध नारायण गोपाल उपाध्याय 2007 (2) डच्स्श्र 407 के न्याय दृश्टांत का अवलंब लिया है।
27. परिवादी की ओर से तर्क किया गया है कि अनुबंध (इकरारनामा) अनुसार 5,03,000/-रू. प्राप्त करने के बाद भी अनावेदक द्वारा इकरारनामा अनुसार कार्य नहीं किया गया है, से सेवा में कमी किए जाने के आधार पर उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत परिवाद प्रस्तुत किया गया है । चाॅपा बाई पास रेलवे लाईन चाॅपा-बाराद्वार सक्सन का होने से जिला फोरम जांजगीर के सुनवाई क्षेत्राधिकार अंतर्गत है । परिवाद में दिनंाक 26.04.2010 को वादकारण उत्पन्न हुआ स्पश्ट रूप से बताया गया है ।
28. यह अविवादित तथ्य है कि परिवादी ने इकरारनामा दिनांक 21.03.2010 के आधार पर अनावेदक द्वारा सेवा में कमी किया जाना बताते हुए धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम अंतर्गत यह परिवाद प्रस्तुत किया है। परिवाद का आधार इकरारनामा दिनांक 21.03.2010 होना प्रकट किया गया है । पक्षकारों के मध्य इकरारनामा से उत्पन्न विवाद का निराकरण व्यवहार न्यायालय द्वारा किए जाने योग्य होता है ।
29. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 3 निम्नानुसार उपबंधित है -
’’इस अधिनियम के उपबंध पर समय प्रवृत्त किसी अन्य विधि के उपबंधों के अतिरिक्त होंगे न कि उसके अल्पीकरण में,’’ से स्पश्ट है कि प्रावधान पूरक प्रकृति के हैं जैसा कि आर.पी. आचार्य विरूद्ध दषरथी पाणीग्रही एवं अन्य 1993 (।) ब्च्त् 357 राज्य आयोग असम में अभिनिर्णित किया गया है । चूॅंकि इस अधिनियम के प्रावधान अतिरिक्त है न कि प्रवृत्त किसी अन्य विधि के अल्पीकरण में । इसलिए परिवादी को दो विकल्प प्राप्त है, वह या तो सिविल वाद प्रस्तुत कर सकता है अथवा उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 अंतर्गत कार्यवाही कर सकता है । यू. राजेंद्रन विरूद्ध तमिलनाडू मर्केन्टाइल बैंक लिमिटेड 1992 (1) ब्च्श्र 220 (छब्) में उक्त अनुसार अभिनिर्णित है ।
30. परिवाद अंतर्गत परिवादी के उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 की धारा 2 (1)(डी) अनुसार उपभोक्ता होने के आधार पर उक्त अधिनियम की धारा 3 के उपबंधों के अनुसार इस जिला फोरम में परिवाद करने का विकल्प प्राप्त है, जिसके तहत उपभोक्ता होने पर परिवाद का सुनवाई क्षेत्राधिकार इस फोरम को प्राप्त होते हुए परिवाद पोशणीय होता है, किंतु परिवाद अंतर्गत अनावेदक के विरूद्ध प्रस्तुत परिवाद में परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता होना प्रमाणित नहीं हुआ है । यद्यपि परिवाद का सुनवाई क्षेत्राधिकार धारा 3 उपबंधों के अनुसार इस फोरम को प्राप्त है, तद्नुसार पाते हुए हम विचारणीय प्रष्न क्रमांक 3 का निश्कर्श ’’हाॅं’’ में देते हैं ।
31. परिवाद अंतर्गत की सामग्री, उभय पक्ष द्वारा किए तर्क, अवलंबित न्याय दृश्टांत में प्रतिपादित के प्रकाष में विवेचन से लिए निश्कर्श के अनुसार परिवाद अंतर्गत परिवादी अनावेदक का उपभोक्ता होना प्रमाणित नहीं हुआ है । इसी प्रकार अनावेदक द्वारा परिवादी के साथ सेवा में कमी किया जाना भी प्रमाणित नहीं हुआ है, परिणामस्वरूप अनावेदक के विरूद्ध प्रस्तुत यह परिवाद स्वीकार करने योग्य हम नहीं पाते है, फलस्वरूप परिवाद निरस्त करते हैं ।
32. प्रकरण की परिस्थिति में उभय पक्ष अपना-अपना वाद-व्यय स्वयं वहन करेंगे।
( श्रीमती शशि राठौर) (मणिशंकर गौरहा) (बी.पी. पाण्डेय)
सदस्य सदस्य अध्यक्ष