(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
पुनरीक्षण संख्या-98/2023
यू.पी. बीज विकास निगम (एन अण्डरटेकिंग आफ गवर्नमेंट आफ यू.पी.) सी-973-74 बी फैजाबाद रोड, महा नगर लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर तथा एक अन्य
बनाम
भरत शरण यादव उर्फ भरत शरण सिंह यादव पुत्र श्री अक्षयबर, निवासी ग्राम मुस्तफाबस, परगना जल्हूपुर तहसील व जिला वाराणसी, वर्तमान निवास बी/8 आवास विकास कालोनी, दौलतपुर मार्ग, पाण्डेयपुर वाराणसी तथा एक अन्य
समक्ष:-
1. माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से उपस्थित : श्री वेद प्रकाश नाग।
विपक्षीगण की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक : 25.04.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका, पुनरीक्षणकर्तागण, यू.पी. बीज विकास निगम (एन अण्डरटेकिंग आफ गवर्नमेंट आफ यू.पी.) सी-973-74 बी फैजाबाद रोड, महा नगर लखनऊ द्वारा मैनेजिंग डायरेक्टर तथा बीज उत्पादन अधिकारी, यू.पी. बीज विकास निगम, वाराणसी द्वारा विद्वान जिला आयोग, वाराणसी द्वारा पारित आदेश दिनांक 02.06.2023 के निम्न आदेश –
'' आज पेश हुआ। डी.एच. एवं जे.डी. के अधिवक्ता उपस्थित आये।
जे.डी. अधिवक्ता द्वारा बताया गया कि उनकी पार्टी उनसे सम्पर्क में नहीं है।
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सुना गया जे.डी. सं0 (1) के विरूद्ध आर.सी. भेजकर प्रश्नगत राशि वसूल करना उचित है।
अत: निर्णीत ऋणी सं0 (1) के विरूद्ध आर.सी. जारी हो।
आर.सी. की पैरवी 10 दिनों के अन्दर हो।
दिनांक 26.7.2023 तक आर.सी. की अनुपालन आख्या आहूत हो। ''
तथा आदेश दिनांक 26.07.2023 के निम्न आदेश को चैलेन्ज किया गया है :-
'' आज पेश हुआ।
उभय पक्ष के अधिवक्ता उपस्थित आये।
जे.डी. की तरफ से एक प्रार्थना पत्र समर्थित शपथ पत्र को बिन्दुवार निष्पादन वाद निरस्त करते हुए विपक्षी सं. (1) के विरूद्ध पारित आदेश दिनांक 2/6/23 वास्ते जारी करने वसूली प्रमाण पत्र अपास्त करने की प्रार्थना की गयी है। आपत्ति की गयी है।
सुना गया एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।
प्रार्थना पत्र इसके विपरीत प्रस्तुत किया गया है। अत: प्रार्थना पत्र में बल नहीं है। खारिज किया जाता है। आर.सी. की अनुपालन आख्या नहीं आयी है। आख्या मंगायी जाये। वास्ते अंतिम आदेश दिनांक 26/9/23 को पेश हो। ''
प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका यद्यपि पुनरीक्षणकर्तागण के द्वारा शपथ पत्र श्री दाऊजी राम पुत्र स्व0 श्री राम सनेही, निवासी ग्राम मोहम्मद पुर, पोस्ट महुआ खेरा, जिला एटा द्वारा प्रस्तुत किया गया है, जिनका कोई अधिकार पत्र एवं याचिका प्रस्तुत किये जाने के संबंध में अधिकृत पत्र पत्रावली पर नहीं पाया गया। याचीगण मुख्य रूप से लखनऊ व वाराणसी में कार्यरत हैं, जबकि शपथकर्ता एटा निवासी है। विद्वान अधिवक्ता
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पुनरीक्षणकर्तागण द्वारा कथन किया गया कि पुनरीक्षणकर्तागण का कोई उत्तरदायित्व विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित निर्णय व आदेश का अनुपालन हेतु नहीं है, क्योंकि विद्वान जिला आयोग, वाराणसी द्वारा परिवाद संख्या 357/1998 में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 05.08.2000 में पुनरीक्षणकर्तागण पक्षकार नहीं थे, बल्कि तत्कालीन बीज उत्पादन अधिकारी, उ0प्र0 बीज एवं तराई विकास निगम लि0, कलेक्ट्री फार्म चांदपुर चौराहा, वाराणसी एवं सक्षम प्राधिकारी, उ0प्र0 बीज एवं तराई विकास निगम लि0, पंतनगर पोस्ट हल्दी, जिला उधम सिंह नगर पक्षकार के रूप में नामित थे। यहां यह तथ्य उल्लिखित किया जाना आवश्यक प्रतीत होता है कि परिवाद वर्ष 1998 में योजित हुआ था, जिसका निस्तारण दिनांक 05.08.2000 को किया गया। इस बीच वर्ष 2000 में उत्तर प्रदेश राज्य का विभाजन दो राज्यों के नाम से हुआ अर्थात् उत्तराखण्ड एवं उत्तर प्रदेश। विभाजनोपरांत परिवाद में उल्लिखित विपक्षीगण के स्थान पर संस्थान एवं अधिकारी का नाम परिवर्तित होकर वर्तमान पुनरीक्षण याचिका में उल्लिखित पुनरीक्षणकर्तागण के रूप में पदस्थापित किया गया।
विद्वान जिला आयोग के निर्णय व आदेश के विरूद्ध योजित अपील को राज्य आयोग द्वारा आंशिक संशोधन करते हुए निस्तारित किया गया है, जिसके कारण विद्वान जिला आयोग के निर्णय व आदेश का समर्थन राज्य आयोग द्वारा अपील संख्या-2541/2000 निर्णय दिनांक 15.11.2022 के द्वारा किया गया है। तदनुसार निर्णयों का अनुपालन न किये जाने को दृष्टिगत रखते हुए इजराय वाद विद्वान जिला आयोग, वाराणसी के समक्ष योजित किया गया, जिसमें पारित ऊपर उल्लिखित आदेशों को इस न्यायालय के सम्मुख मात्र इस कथन को कहते हुए कि पक्षकार (निगम का विवरण) पूर्व में भिन्न था, जबकि वर्तमान में भिन्न है, को दृष्टिगत रखते हुए इजराय वाद की पोषणीयता नहीं है।
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मेरे विचार से उपरोक्त कथन पूर्ण रूप से बलहीन एवं अविधिक हैं। विपक्षी/पुनरीक्षणकर्तागण के विवरण में राज्य के पुनर्गठन के पश्चात तराई का उल्लेख समाप्त किया गया एवं अन्य विवरण लगभग समान पाए गए। अत: समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त होने योग्य है।
तदनुसार प्रस्तुत पुनरीक्षण याचिका निरस्त की जाती है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
लक्ष्मन, आशु0,
कोर्ट-1