राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२०५१/१९९८
(जिला फोरम/आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0-१७०/१९९७ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०७-१९९८ के विरूद्ध)
मै0 मॉं निस्तारनी कोल्ड स्टोरेज (प्रा.) लिमिटेड, ग्राम व पोस्ट उतरॉंव, जिला गाजीपुर द्वारा प्रौपराइटर/मैनेजर।
........... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
सीताराम मौर्या पुत्र श्री शम्भू निवासी ग्राम उतरॉंव परगना डेहमा, जिला गाजीपुर।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मोहन अग्रवाल विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक :- १५-०७-२०२१.
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
१. यह अपील, जिला फोरम/आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0-१७०/१९९७, सीता राम मौर्या बनाम श्री गंगा विशुन प्रसाद डायरेक्टर एवं सत्सवाधिकारी मॉं निस्तारनी कोल्ड स्टोरेज प्रा0लि0, में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक १०-०७-१९९८ के विरूद्ध योजित की गयी है।
२. जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद स्वीकार करते हुए आदेशित किया गया है कि परिवादी को अंकन ४१,६५०/- रू० १२ प्रतिशत प्रतिवर्ष साधारण ब्याज सहित अदा किए जाऐं।
३. परिवाद के तथ्यों के अनुसार परिवादी ने कुल ४२० आलू के बोरे विभिन्न तिथियों पर विपक्षी के शीतगृह में भण्डारित किए थे। तत्समय आलू का रेट १७५/- रू० प्रति बोरा था। भण्डारण करने में अंकन ८६,१००/- रू० का खर्चा हुआ था। किसानों तथा अन्य व्यापारियों को
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पता चला कि विपक्षी की लापरवाही के कारण आलू सड़ गया जिसकी शिकायत दिनांक २०-०७-१९९७ को जिला उद्यान अधिकारी से की गई।
४. उत्तरदाई प्रतिवादी की ओर से लिखित कथन प्रस्तुत नहीं किया गया। जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा साक्ष्य पर विचार करने के पश्चात् यह निष्कर्ष दिया गया कि परिवादी ९०/- रू० प्रति बोरा की दर से क्षतिपूर्ति प्राप्त करने के लिए अधिकृत है। साथ ही अग्रिम जमा राशि अंकन ३,८५०/- रू० वापस प्राप्त करने के लिए अधिकृत है और तद्नुसार उपरोक्त वर्णित आदेश पारित किया गया।
५. इस निर्णय एवं आदेश को इन आधारों पर चुनौती दी गई है कि लाइसेंसिंग अथारिटी द्वारा प्रकरण में विचार किया गया है इसलिए जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा दिया गया निष्कर्ष विधि विरूद्ध है कि क्षतिपूर्ति का कोई आदेश सम्बन्धित प्राधिकारी द्वारा नहीं दिया गया है।
६. अधिवक्ता अपीलार्थी को सुना तथा प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया।
७. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के इस तर्क में कोई बल प्रतीत नहीं होता कि लाइसेंसिंग अथारिटी द्वारा प्रकरण में विचार किया गया है इसलिए जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग को सुनवाई का क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है। निर्णय के अन्य किसी भाग को अपील के ज्ञापन में चुनौती नहीं दी गई है। लाइसेंसिंग प्राधिकारी द्वारा किसानों को क्षतिपूर्ति दी गई हो, इस सम्बन्ध में कोई साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की गई है।
८. उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत होने वाली कार्यवाही किसी विधि के अन्तर्गत की गई कार्यवाही पर जयेष्ठ प्रकृति की कार्यवाही है इसलिए इस अधिनियम के अन्तर्गत यदि उपभोक्ता के प्रति सेवा में कमी की गई है तब परिवाद प्रस्तुत करने में कोई वैधानिक आपत्ति नहीं है। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-३ में स्पष्ट उल्लेख किया गया है- ‘’ इस अधिनियम के उपबन्ध तत्समय पृवृत्त किसी अन्य विधि के उपबन्धों के अतिरिक्त होंगे, न कि उसके अल्पीकरण में। ‘’
९. उपरोक्त विवेचना का निष्कर्ष यह है कि जिला उपभोक्ता फोरम/आयोग द्वारा पारित
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प्रश्नगत निर्णय में किसी प्रकार की अवैधानिकता नहीं है। अपील खारिज होने योग्य है।
आदेश
१०. अपील खारिज की जाती है।
११. अपील व्यय उभय पक्ष अपना-अपना वहन करेंगे।
१२. उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
१३. वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
१४. निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-३.