राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-५०/२०१४
(जिला मंच बलिया द्वारा परिवाद सं0-१२४/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०५/०५/२०११ के विरूद्ध)
मै0 दुर्गा कोल्ड स्टोरेज चेतन किशोर सिकन्दरपुर द्वारा प्रबन्धक शेख अहमद अली पुत्र स्व0 शेख वासीत अली मुहल्ला गांधी पट्टी गली थाना व पोस्ट एवं तहसील सिकन्दरपुर जिला बलिया ।
.............. अपीलार्थी।
बनाम्
- शिवनाथ सिंह पुत्र स्व0 दधिबल सिंह निवासी मानिकपुर तहसील बॉंसडीह जिला बलिया उ0प्र0।
- नन्दू पुत्र रघुनाथ निवासी परसिया चोगड़ा पट्टी तहसील बांसडीह जिला बलिया।
- विश्वनाथ पुत्र ठाकुर साकिन रूद्रपुर गायघाट तहसील व जिला बलिया उ0प्र0।
............... प्रत्यर्थी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री सच्चिदानंद विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थीगण की ओर से उपस्थित :- श्री अमृत प्रीत सिंह विद्वान अधिवक्ता ।
दिनांक : 04/08/2017
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
आदेश
प्रस्तुत अपील, जिला मंच बलिया द्वारा परिवाद सं0-१२४/२००९ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ०५/०५/२०११ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने ४४६ बोरा आलू अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-1 के कोल्ड स्टोरेज में भण्डारण हेतु रखा था । उसने किराए की अग्रिम धनराशि आंशिक रूप से रू0 २९००/- विपक्षी के यहां जमा करके रसीद ली थी। परिवादी के अनुसार परिवादी ने दिनांक १८/०४/२००८ को २४९ बोरे, दिनांक २४/०४/२००८ को १२५ बोरे, दिनांक २७/०४/२००८ को ७२ बोरे कोल्ड स्टोरेज में रखे और प्रत्येक बोरे का वजन ५० किलो था। दिनांक १२/११/२००८ को जब वह आलू लेने कोल्ड स्टोर पर गया तो उसे विदित हुआ कि कोल्ड स्टोरेज में रखा हुआ आलू सड़ गया है। परिवादी ने विपक्षी से अपना आलू वापस प्राप्त करने के लिए बार-बार संपर्क किया तो कोल्ड स्टोरेज स्वामी द्वारा उससे कहा गया कि वह कुछ आलू बुआई के समय दे देंगे और शेष आलू की कीमत का बाद में भुगतान कर देंगे किन्तु विपक्षी द्वारा न तो उसका आलू वापस किया गया और न ही क्षतिग्रस्त आलू की कीमत ही भुगतान की गयी। परिवादी के अनुसार आलू की कीमत माह अक्टूबर २००८ में रू0 ५००/- प्रति कुंतल थी। आलू वापस प्राप्त न होने पर प्रत्यर्थी/परिवादी ने विपक्षी/अपीलकर्ता पर सेवा में कमी का आरोप लगाते हुए परिवाद जिला मंच बलिया के समक्ष दायर किया और परिवाद पत्र में कुल रू0 १,९५,२८५/- की क्षतिपूर्ति दिलाए जाने की मांग की।
विद्वान जिला मंच द्वारा सभी विपक्षीगण को पंजीकृत डाक से नोटिस भेजी गयी। विपक्षी सं0-4 द्वारा नोटिस लेने से इनकार कर दिया गया। विपक्षी सं0-1 ता 3 पर अखबार में प्रकाशन के माध्यम से तामीला पर्याप्त मानी गयी। परिवादी द्वारा प्रस्तुत किए गए साक्ष्यों का अवलोकन करने के बाद विद्वान जिला मंच ने निम्नलिखित आदेश पारित किया-
‘’ परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध अंशत: स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण १,३, ४ को आदेश दिया जाता है कि वे संयुक्त अथवा प्रथकत: परिवादी को आज से ६० दिन के अन्दर क्षतिपूर्ति के रूप में १,२४,१३०/-( एक लाख चौबीस हजार एक सौ तीस रूपये) व परिवाद व्यय १५००/- ( पन्द्रह सौ रूपया) परिवाद दाखिल तिथि ०७/०५/२००९ से ता भुगतान १० प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज के साथ ब्याज जोड़कर अदा कर देवे। अन्यथा समय सीमा के बाद की तिथि से संपूर्ण राशि पर ता भुगतान १४ प्रतिशत वार्षिक चक्रवृद्धि ब्याज देय होगा। परिवादी विपक्षी सं0-१,३, ४ को निर्णय की प्रति यथाशीघ्र प्रेषित करेगा। ‘’
इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील योजित की गयी है।
अपीलकर्ता ने अपनी अपील में जो आधार लिए हैं उसमें कहा गया है कि अपीलकर्ता को उक्त परिवाद की जानकारी दिनांक २१/१२/२०१३ को हुई जब कि उपरोक्त उल्लिखित परिवाद में प्रश्गनत आदेश दिनांक ०५/०५/२०११ को पारित हुआ था। जानकारी होने के बाद दिनांक २८/१२/२०१३ को प्रश्नगत आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि प्राप्त की गयी और दिनांक ०८/०१/२०१४ को अपील दायर कर दी गयी है। अपीलकर्ता ने अपनी अपील में यह भी कहा है कि आदेश की जानकारी के दिनांक के अनुसार अपील समयावधि के अन्दर योजित की गयी है। अपील में अपीलकर्ता ने यह भी कहा है कि विद्वान जिला मंच ने आलू के भाव को कृषि मण्डी समिति के साक्ष्य लिए बिना ही आलू की दर रू0 ५००/- प्रति कुंतल मानते हुए एकपक्षीय आदेश पारित किया है। अपीलकर्ता के अनुसार अक्टूबर २००८ के महीने में आलू की बहुत अच्छी पैदावार हुई थी जिसके कारण बाजार भाव निचले स्तर पर रू0 ३००/- प्रति कुंतल तक रहा। अपीलकर्ता ने अपील के साथ अपने आलू के भाव के समर्थन में कृषि उत्पादन मण्डी समिति से प्राप्त मेमो पत्र दिनांक १९/०७/२०१३ की छायाप्रति दाखिल की है जिसमें कहा गया है कि मण्डी समिति के अभिलेखों के अनुसार माह अक्टूबर २००८ में आलू रू0 ३००/- प्रति कुंतल था। अपीलकर्ता ने अपनी अपील में यह भी कहा है कि आलू की निकासी के संबंध में उक्त आलू की लागत कीमत रू0 ३१०/- प्रति कुंतल हो जाती है जिसमें रू0 १२०/- प्रति बोरा आलू रखने का किराया, रू0 २०/- प्रति बोरा कीमत, रू0 ०५/- भराई, ढुलाई, और कांटा करायी, रू0 १०/- मानिकपुर से चेतन किशोर तक ढुलाई पर व्यय होता है। प्रत्येक बोरा ५० किलो का होता है। इस प्रकार एक कुंतल बोरे पर कुल लागत रू0 ३१०/- अक्टूबर २००८ में आती थी जबकि मण्डी लागत के अनुसार आलू बेचने के अनुसार कुल ३००/- प्राप्त होता है, जो घाटे का सौदा था, इसीलिए प्रत्यर्थी/परिवादी ने माह अक्टूबर में अपना आलू लेने नहीं आया। इसके अतिरिक्त अपील के आधार में यह भी कहा है कि आलू रखने की शर्त के अनुसार जोकि उसे निर्गत रसीद में अंकित की गयी थी प्रत्यर्थी/परिवादी को ३१ अक्टूबर २००८ तक आलू का भाड़ा जमा करना था और यदि वह १० नवम्बर तक अपना आलू लेने नहीं आता है तो कोल्ड स्टोरेज के प्रबन्धन को अपना भाड़ा आलू बेचकर वसूल करने का अधिकार था और इसी नियमों एवं शर्तों को स्वीकार करते हुए किसान अपना आलू कोल्ड स्टोरेज में भण्डारित करते हैं । अपील में यह भी कहा गया है कि वास्तव में ४४६ बोरा ही आलू था और उसके स्थान पर विद्वान जिला मंच ४४९ बोरा दिए जाने का आदेश पारित किया है जोकि त्रुटिपूर्ण है। अपील में यह भी कहा गया है कि अपीलकर्ता ने मात्र रू0 २९००/-किराए के जमा किए थे। रू0 १२०/- प्रत्येक बोरी के हिसाब से ४४६ बोरी आलू का किराया रू0 ५३५२०/- होता है। इस प्रकार रू0 २९००/- उसके जमा किए गए किराए की धनराशि समायोजित करते हुए अपीलकर्ता पर शेष किराया ५०६२०/- किराया अवशेष रहा। इस तथ्य को नजरअंदाज करके विद्वान जिला मंच ने त्रुटि की है और मात्र शपथ पत्र के आधार पर आलू की दर रू0 ५००/- प्रति कुंतल के हिसाब से परिवादी को क्षतिपूर्ति दिलाकर त्रुटि की है। अपीलकर्ता ने उपरोक्त आदेश निरस्त किए जाने की प्रार्थना की है।
प्रत्यर्थी द्वारा अपील का विरोध किया गया।
अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्ता श्री सच्चिदानन्द प्रसाद एवं प्रत्यर्थीके विद्वान अधिवक्ता श्री अमृत प्रीत सिंह उपस्थित हैं। उभय पक्षों की बहस सुनी गयी। पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का परिशीलन किया गया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता के कोल्ड स्टोरेज में अप्रैल २००८ में ४४६ बोरे भण्डारित किए थे। यह भी निर्विवाद है कि प्रत्यर्थी ने अपीलकर्ता को किराए के मद में अग्रिम रूप से रू0 २९००/- का भुगतान किया था। यह भी निर्विवाद है कि परिवादी अपना आलू माह नवम्बर २००८ में वापस लेने गया तो उसका आलू उसे नहीं मिला और उसका आलू कदाचित सड़ गया। अपीलकर्ता का कथन है कि आलू समय पर परिवादी/प्रत्यर्थी लेने नहीं आया । इसमें उसका दोष नहीं है। यहां विचारणीय प्रश्न यह है कि यदि प्रत्यर्थी/परिवादी अपना आलू समय पर वापिस नहीं लेता है तो उसे सूचित करना था कि वह अपना आलू निकासी प्राप्त कर ले और उसके किराए का भुगतान करे। अपीलकर्ता ने जिन शर्तों का उल्लेख किराए की रसीद में होने का कथन किया है। ऐसी कोई शर्तें परिवादी/प्रत्यर्थी को नहीं बतायी गयी थी। पत्रावली पर अपील के साथ जो रसीद दाखिल की गयी है वह बिल्कुल रिक्त ( बिना भरी हुई) है, जिस पर किराया दाता के हस्ताक्षर नहीं है और जिसके किसी भी कालम में कुछ भी अंकित नहीं है। उसे उस रसीद की छायाप्रति उपलब्ध करानी चाहिए थी जो रू0 २९००/- की रसीद उसने प्रत्यर्थी/परिवादी को निर्गत की थी। यदि अपीलकर्ता को आलू भण्डारण के किराए की अवशेष धनराशि रू0 ५०६२०/-मान भी ली जाए तो भी आलू की कुल कीमत जो जिला फोरम द्वारा अनुमानित की गयी उसमें से घटाकर अवशेष धनराशि परिवादी/प्रत्यर्थी को भुगतान करनी चाहिए थी। जिला फोरम ने आलू का जो मूल्य अवधारित किया है वह न्यायोचित है। यदि भण्डारण किए गए आलू के बोरों की संख्या-४४६ मानी जाए। ( प्रत्येक बोरा ५० किलो) तो कुल ४४६ बोरा आलू की कीमत रू0 ५००/- प्रति कुंतल की दर से रू0 १,११,५००/- आकलित होती है। जिसमें अपीलकर्ता के अनुसार रू0 ५०६२०/-किराए की धनराशि समायोजित करने के बाद रू0 ६०८८०/-की धनराशि कोल्ड स्टोरेज द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को देय होती है। अपीलकर्ता ने आलू के भण्डारण में सेवा में कमी की है जिसके कारण प्रत्यर्थी का आलू क्षतिग्रस्त हो गया और इसके अतिरिक्त उसे समय पर सूचित नहीं किया गया कि उसने क्षतिग्रस्त आलू का विक्रय कर अपना किराया वसूल कर लिया है। अपीलकर्ता द्वारा प्रत्यर्थी को वांछित सूचना समय से उपलब्ध न कराने के कारण उसने अनुचित व्यापार प्रथा भी अपनाई है। प्रत्यर्थी भी आलू भण्डारण के लिए किराए की धनराशि का भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। इस प्रकार अपीलकर्ता की अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। प्रश्नगत आदेश निरस्त किया जाता है । अपीलकर्ता को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी को रू0 ६०८८०/- का भुगतान एक माह की अवधि में करे तथा परिवाद दायर करने की तिथि से भुगतान होने की तिथि तक उक्त धनराशि पर ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज का भी भुगतान करे।
उभयपक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
उभयपक्ष को इस आदेश की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार निर्गत की जाए।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, कोर्ट-5