राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-871/2015
(मौखिक)
(जिला उपभोक्ता फोरम, औरैया द्वारा परिवाद संख्या 55/2014 में पारित आदेश दिनांक 29.01.2015 के विरूद्ध)
सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया शाखा मिहौली, परगना, तहसील व जिला औरैया द्वारा शाखा प्रबन्धक ...................अपीलार्थी/विपक्षी
बनाम
शिव नारायण .................प्रत्यर्थी/परिवादी
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष।
माननीय श्री राम चरन चौधरी, सदस्य।
माननीय श्री संजय कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री जफर अजीज,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री शिव प्रकाश गुप्त,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 07-10-2017
मा0 न्यायमूर्ति श्री अख्तर हुसैन खान, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-55/2014 शिव नारायण बनाम सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया व एक अन्य में जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष फोरम, औरैया द्वारा पारित निर्णय और आदेश दिनांक 29.01.2015 के विरूद्ध यह अपील धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गयी है।
आक्षेपित निर्णय और आदेश के द्वारा जिला फोरम ने परिवाद स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद विपक्षीगण के विरुद्ध 28,949/-रुपया की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। इस धनराशि पर वादयोजन की तिथि 06.03.2014 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक
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साधारण ब्याज भी देना होगा। विपक्षीगण को आदेशित किया जाता है कि उपरोक्तानुसार धनराशि निर्णय के एक माह में परिवादी को अदा करे।''
जिला फोरम के आक्षेपित निर्णय और आदेश से क्षुब्ध होकर परिवाद के विपक्षीगण सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया ने यह अपील प्रस्तुत की है।
अपील की सुनवाई के समय अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री जफर अजीज और प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री शिव प्रकाश गुप्त उपस्थित आए हैं।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण के तर्क को सुना है और आक्षेपित निर्णय और आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया है।
अपील के निर्णय हेतु संक्षिप्त सुसंगत तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने उपरोक्त परिवाद जिला फोरम के समक्ष इस कथन के साथ प्रस्तुत किया है कि विपक्षी सेन्ट्रल बैंक आफ इण्डिया की शाखा मिहौली में उसका बचत खाता सं0 15 रहा है। समाचार पत्रों से ज्ञात हुआ कि शाखा में गबन हो गया है। तब दिनांक 01.06.2012 को वह बैंक की सम्बन्धित शाखा में गया और मुआयना कराया तो पता चला कि 23,949/-रू0 उसके खाते में कम चढ़े हैं। उसने बैंक से अपनी इस धनराशि की मांग की, परन्तु बैंक ने इन्कार कर दिया। अत: उसने परिवाद जिला फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया।
अपीलार्थी बैंक की ओर से विपक्षीगण ने जिला फोरम के समक्ष लिखित कथन प्रस्तुत किया है, जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादी का खाता बैंक में होना स्वीकार किया गया है, परन्तु यह कथन किया गया है कि प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में 23,949/-रू0 जमा नहीं है। इसके साथ ही यह
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कहा गया है कि शाखा में गंगा प्रसाद नाम के कर्मचारी ने गबन किया है, जिसके विरूद्ध मुकदमा विचाराधीन है।
जिला फोरम ने उभय पक्ष के अभिकथन एवं साक्ष्य पर विचार कर आक्षेपित निर्णय व आदेश उपरोक्त प्रकार से पारित किया है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के विपरीत है। प्रत्यर्थी/परिवादी के खाते में प्रश्नगत धनराशि जमा नहीं है।
प्रत्यर्थी/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि जिला फोरम द्वारा पारित आक्षेपित निर्णय और आदेश साक्ष्य और विधि के अनुकूल है।
हमने उभय पक्ष के तर्क पर विचार किया है।
प्रत्यर्थी/परिवादी ने पासबुक प्रस्तुत कर यह दर्शित किया है कि उसके खाते में प्रश्नगत धनराशि जमा करने की प्रविष्टि अंकित है और उसने जमा रसीदें भी प्रस्तुत की है। अपीलार्थी बैंक यह साबित नहीं कर सका है कि इन रसीदों पर उसके कर्मचारी के हस्ताक्षर नहीं हैं। अत: जिला फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी की पासबुक में अंकित धनराशि बैंक में जमा होना माना है और तदनुसार जमा धनराशि का भुगतान प्रत्यर्थी/परिवादी को किए जाने हेतु आदेशित किया है। जिला फोरम का यह निर्णय अनुचित नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम ने जो 1000/-रू0 वाद व्यय दिलाया है वह भी उचित है, परन्तु जिला फोरम ने जो 2000/-रू0 की धनराशि मानसिक कष्ट हेतु प्रत्यर्थी/परिवादी को प्रदान की है वह उचित नहीं प्रतीत होती है क्योंकि स्वीकृत रूप से बैंक के कर्मचारी गंगा प्रसाद पर गबन का आरोप है। अत: ऐसी स्थिति में कर्मचारी द्वारा गबन की गयी धनराशि को अदा करने हेतु बैंक की Vicarious Liability बनती है। अत: हम
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इस मत के हैं कि जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक कष्ट हेतु प्रदान की गयी 2000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि को अपास्त किया जाना उचित है।
इसके साथ ही उचित प्रतीत होता है कि प्रत्यर्थी/परिवादी को उसकी प्रश्नगत धनराशि पर ब्याज उसी दर पर दिया जाए जिस दर पर उसके खाते में जमा धनराशि पर ब्याज देय है।
उपरोक्त निष्कर्ष के आधार पर अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है और जिला फोरम द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी को मानसिक कष्ट हेतु प्रदान की गयी 2000/-रू0 क्षतिपूर्ति की धनराशि अपास्त की जाती है तथा जिला फोरम का आक्षेपित निर्णय और आदेश संशोधित करते हुए अपीलार्थी बैंक को आदेशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी की जमा धनराशि 23,949/-रू0 उसके खाते में जमा धनराशि पर देय ब्याज की दर से परिवाद की तिथि से अदायगी की तिथि तक ब्याज सहित प्रत्यर्थी/परिवादी को अदा करे। इसके साथ ही अपीलार्थी बैंक प्रत्यर्थी/परिवादी को जिला फोरम द्वारा प्रदान की गयी 1000/-रू0 वाद व्यय की धनराशि भी अदा करेगा।
अपील में उभय पक्ष अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अन्तर्गत अपील में जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला फोरम को इस निर्णय के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
(न्यायमूर्ति अख्तर हुसैन खान) (राम चरन चौधरी) (संजय कुमार)
अध्यक्ष सदस्य सदस्य
जितेन्द्र आशु0