राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-951/2014
(जिला उपभोक्ता आयोग, औरैया द्वारा परिवाद सं0-100/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 07-04-2014 के विरूद्ध)
सेण्ट्रल बैंक आफ इण्डिया, शाखा अजीतमल द्वारा शाख प्रबन्धक।
...........अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम
शिवराम दुबे पुत्र गजराज दुबे निवासी ग्राम तड़वा बिकू, पोस्ट बिलावा, परगना व जिला औरैया।
............ प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
1. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
2. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित: श्री जफर अजीज विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री बी0के0 उपाध्याय विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- 24-03-2023.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला उपभोक्ता आयोग, औरैया द्वारा परिवाद सं0-100/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 07-04-2014 के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि प्रश्नगत निर्णय विधि विरूद्ध एवं तथ्यों के विपरीत पारित किया गया है। एग्रीमेण्ट की छायाप्रति में 09 प्रतिशत वार्षिक ब्याज अंकित है और बैंक एकाउण्ट स्टेटमेण्ट में भी 09 प्रतिशत ब्याज अंकित है। विद्वान जिला आयोग को आर0सी0 निरस्त करने का अधिकार नहीं है। लोन शिवराम दुबे तथा नरेन्द्र कुमार दुबे के नाम लिया गया था जबकि वाद केवल शिवराम दुबे ने दाखिल किया है।
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अत: पक्षकारों के कुसंयोजन का दोष है। अत: माननीय राज्य आयोग से निवेदन है कि विद्वान जिला आयोग का प्रश्नगत निर्णय अपास्त करते हुए अपील स्वीकार की जाए।
अपीलार्थी के कथनानुसार शिवराम दुबे तथा नरेन्द्र कुमार दुबे ने संयुक्त रूप से एक ऋण ट्रैक्टर हेतु अपीलार्थी से लिया था। इस ऋण हेतु पक्षों के बीच में दिनांक 03-07-2008 को हस्ताक्षर हुए थे तथा 9 प्रतिशत ब्याज की दर से ब्याज देना तय हुआ था। अपीलार्थी का कथन है कि ब्याज की दर रिजर्व बैंक द्वारा तय की जाती है। अपीलार्थी की बैंक राष्ट्रीयकृत बैंक है। वह अपने ब्याज की दर अपनी मर्जी से घटा बढ़ा नहीं सकती।
लोन अदा करने में विपक्षी द्वारा समय-समय पर चूक की गई जैसा कि उसने स्वयं स्वीकारा है। बैंक अपने ग्राहक से ऋण में चूक होने पर 2 प्रतिशत पैनल इण्ट्रेस्ट वसूल करने का अधिकार रखता है। बैंक ने जब अपने उपरोक्त ऋण की वसूली के लिए आर0सी0 जारी की तो विपक्षी शिवराम दुबे ने बैंक के विरूद्ध एक वाद उपभोक्ता अधिनियम के अन्तर्गत दाखिल कर दिया जिसमें विद्वान जिला आयोग ने निम्न आदेश पारित किया :-
‘’ परिवाद विपक्षीगण के विरूद्ध स्वीकार किया जाता है। विपक्षीगण को आदेशित कि वह परिवादी के हस्तगत मामले के ऋण खाते के बाबत् कोई धनराशि कभी परिवादी से न तो वसूल करें और न कराएं तथा जारी की गयी आर0सी0 तत्काल वापस लें और इसके साथ ही साथ 30,000/- रूपया बतौर मानसिक कष्ट और खर्चा मुकदमा तथा अधिवक्ता की फीस भी निर्णय के एक माह में अदा करें और इस धनराशि पर वादयोजन की तिथि 23-11-2012 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 7 प्रतिशत वार्षिक
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साधारण ब्याज भी परिवादी को विपक्षी बैंक से प्राप्त होगा। विपक्षीगण को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादी की बल्दियत सही करें। ‘’
हमारे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्वय की बहस विस्तार से सुनी गई तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया गया।
विद्वान जिला आयोग ने अपने निर्णय में स्पष्ट रूप से लिखा है कि ऋण लेना और देना दोनों पक्षों को स्वीकार है। परिवादी का कहना है कि 7 प्रतिशत ब्याज तय हुयी थी जबकि विपक्षी 9 प्रतिशत बताता है। ऋण खाते के विवरण में भी विपक्षी ने 9 प्रतिशत ब्याज लिखी है। विपक्षी की ओर से करार मूल रूप से पेश किया गया है जिस पर पहले ब्याज पृष्ठ 3 के कॉलम 13 पर 7 प्रतिशत ही लिखी गयी थी बाद में उसे ओवर राइटिंग करके 9 प्रतिशत किया गया। यह दस्तावेज एक छपा हुआ फार्म है जिस पर पेन से खाली स्थान को भरा गया है और इतने बारीक अक्षरों में है कि इसको पढ़ना, समझना और समझाना दुरूह कार्य लगता है। विपक्षी ने जो ऋण खाते का विवरण सूची 25 क द्वारा दाखिल किया है, उसमें दिनांक 30-09-2013 को इस ऋण खाते में 43,239/- रूपया शेष दिखाया गया है और बैंक ने जो आर0सी0 दिनांक 15-01-204 को जारी की है, उसमें बकाया 1,26,091/- रूपया प्रदर्शित किया गया है। जब बैंक अपने विवरणमें 43,239/- रूपया अवशेष मानता है तो फिर बैंक द्वारा 1,26,091/- रूपया की आर0सी0 जारी करना अत्यन्त गम्भीर मामला है और आपत्तिजनक भी है। किसी सम्भ्रान्त व्यक्ति के घर अकारण तहसील से अमीन और पुलिस कर्मचारी जाएं तो इस घटना को सुनकर पीडि़त व्यक्ति को जो कष्ट होगा, उसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बैंक के विवरण के अनुसार दिनांक 29-06-2013 को 85,000/- रूपया और
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उसी दिन 15,000/- रूपया परिवादी ने कुल मिलाकर 1,00,000/- रूपया जमा कर दिए हैं। अब यदि बैंक का ही ब्याज दर मान लिया जाए तो भी इस ऋण खाते में जो खर्चा मुकदमा और जुर्माना 14,098/- रूपया लगाया गया है, वह देय नहीं है तथा विभिन्न अवसरों पर दण्ड ब्याज लगाया गया है, वह भी देय नहीं है। यदि हम इस बात पर विचार करें कि दण्ड ब्याज देय नहीं है और खर्चा मुकदमा 14,094/- रूपया देय नहीं है तो यह पाया जाता है कि वर्तमान समय में परिवादी की ओर बैंक का कुछ भी नहीं निकलता है, इसके बाबजूद बैंक ने 1,26,091/- रूपया की आर0सी0 जारी की, जो बैंक के कर्मचारियों और शाखा प्रबन्धक की घोर लापरवाही और सेवा में त्रुटि का ज्वलन्त प्रमाण है।
उपरोक्त तथ्यों एवं परिस्थितियों को दृष्टिगत रखते हुए यह स्पष्ट होता है कि विद्वान जिला आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि सम्मत है और उसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। तदनुसार वर्तमान अपील निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
वर्तमान अपील निरस्त की जाती है। जिला उपभोक्ता आयोग, औरैया द्वारा परिवाद सं0-100/2012 में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक 07-04-2014 की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को
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आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-1,
कोर्ट नं.-2.