राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-४७/२००५
(जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२५०/२००२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२००४ के विरूद्ध)
सीनियर सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज, आगरा।
..................... अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
शिव नारायण सरीन पुत्र स्व0 आर0एन0एस0 सरीन निवासी १४७, सिविल लाइन, आगरा।
...................... प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१- मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य।
२- मा0 श्रीमती बाल कुमारी, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- डॉ0 उदयवीर सिंह विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : २७-०८-२०१५.
मा0 श्री आलोक कुमार बोस, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपील दिनांक २४-०७-२०१५ को सुनवाई हेतु ली गयी। अपीलार्थी डाक विभाग ने प्रस्तुत अपील विद्वान अधीनस्थ फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२५०/२००२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२००४ से क्षुब्ध होकर योजित की गयी है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह उपस्थित आये परन्तु नोटिस के बाबजूद प्रत्यर्थी/परिवादी न तो स्वयं और न ही उसके विद्वान अधिवक्ता उपस्थित आये। चूँकि यह अपील वर्ष २००५ से निस्तारण हेतु लम्बित चली आ रही है अत: उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ (अधिनियम संख्या ६८ सन् १९८६) की धारा-३० की उपधारा (२) के अन्तर्गत निर्मित उत्तर प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली १९८७ के नियम ८ के उप नियम (६) में दिये गये प्राविधान को दृष्टिगत रखते हुए पीठ द्वारा यह समीचीन पाया गया कि अभिलेख पर उपलब्ध प्रलेखीय साक्ष्यों एवं अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता के तर्कों के आधार पर इस अपील का निस्तारण किया जाना न्यायोचित होगा। तद्नुसार अपीलार्थी डाक विभाग के विद्वान अधिवक्ता डॉ0 उदयवीर सिंह को एकल रूप
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से सुना गया एवं उनके तर्क के परिप्रेक्ष्य में पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेख/साक्ष्य का गहनता से परिशीलन किया गया।
पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि परिवादी/प्रत्यर्थी शिव नारायण ने एक पंजीकृत पत्र सं0-०८५९ के माध्यम से अपनी अधिवक्ता सुश्री शालिनी कुमार, ए-३४३ सैक्टर १९, नोएडा को एक लिफाफे में बैंक ड्राफ्ट मु० ३३००/- रू० तथा अपने मुकदमे से सम्बन्धित महत्वपूर्ण कागजात रखकर, सिविल कोर्ट पोस्ट आफिस आगरा से दिनांक २६-०७-२००१ को भेजे परन्तु यह पंजीकृत पत्र गन्तव्य पर नहीं पहुँचा तो परिवादी ने इसकी शिकायत सब पोस्ट मास्टर सिविल कोर्ट आगरा से की। जब कोई कार्यवाही नहीं की गयी तब इसकी शिकायत पुन: डाक विभाग के उच्चाधिकारियों से की गयी। शिकायत के बाबजूद भी परिवादी की पंजीकृत डाक गन्तव्य तक न तो पहुँचायी गयी और न ही उसके सम्बन्ध में परिवादी को कोई सूचना दी गयी। अपीलार्थी डाक विभाग के इसी कृत्य को सेवा में कमी मानते हुए प्रत्यर्थी/परिवादी ने परिवाद संख्या- २५०/२००२ अधीनस्थ फोरम में योजित किया।
विद्वान फोरम के समक्ष अपीलार्थी/विपक्षी डाक विभाग द्वारा अपने बचाव में यह कहा गया कि परिवादी ने जिन कथनों के आधार पर वर्तमान परिवाद योजित किया है, उन कथनों के आधार पर परिवादी को परिवाद योजित करने का कोई विधिक अधिकार प्राप्त नहीं है। उनका यह भी कहना है कि रजिस्टर्ड पत्र के अन्दर क्या रखा था विपक्षी को इसकी कोई जानकारी नहीं थी। डाक विभाग के जन सम्पर्क निरीक्षक ने जब परिवादी से सम्पर्क किया और उनसे दावा फार्म भरने हेतु कहा गया तो उसने दावा पत्र भरने से इन्कार कर दिया। परिवादी को वर्तमान परिवाद योजित करने का कोई विधिक क्षेत्राधिकार प्राप्त नहीं है।
दोनों पक्षों को सुनने के उपरान्त अधीनस्थ फोरम द्वारा निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२००४ के अन्तर्गत परिवाद स्वीकार करते हुए आदेश की तिथि से ३० दिन के अन्दर परिवादी को पंजीकृत पत्र में रखकर भेजे गये ड्राफ्ट की राशि ३३००/- रू०, क्षतिपूर्ति स्वरूप २५००/- रू० एवं ५००/- रू० वाद व्यय स्वरूप अदा करने हेतु अपीलार्थी/विपक्षी डाक विभाग को आदेश दिया गया। यह भी आदेश दिया गया कि
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उपरोक्त अवधि में आदेश का अनुपालन न करने पर सम्पूर्ण निर्णीत धनराशि पर आदेश की तिथि से ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज भी देय होगा। अधीनस्थ फोरम के इसी आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी डाक विभाग द्वारा प्रस्तुत अपील योजित की गयी है।
अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का कहना है कि अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्यों एवं विधिक सिद्धान्तों के विपरीत होने के कारण अपास्त होने योग्य है एवं यदि इसे अपास्त नहीं किया जाता है तो अपीलार्थी डाक विभाग को अपूर्णनीय आर्थिक क्षति होगी। अपीलार्थी का कहना है कि प्रश्नगत पंजीकृत डाक दिये गये पते पर वितरण हेतु लम्बित रहने की दशा में परिवादी से जब दावा फार्म भरने के लिए कहा गया तो उसने इन्कार कर दिया। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने कथन के समर्थन में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द (२०००) एनसीजे १४२ तथा सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज व अन्य बनाम उपभोक्ता सुरक्षा परिषद III(1996) CPJ 105 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त की ओर पीठ का ध्यान आकृष्ट कराया जिनमें यह विधि व्यवस्था दी गयी है कि इस प्रकार के परिवाद भारतीय डाक अधिनियम १८९८ की धारा-६ से बाधित हैं। प्रस्तुत मामले में विभाग के किसी अधिकारी या कर्मचारी पर कोई व्यक्तिगत द्वेष अथवा भ्रष्टाचार का आरोप नहीं है। अत: इस मामले में धारा-६ भारतीय डाक अधिनियम १८९८ में दिये गये प्राविधान लागू होते हैं। उल्लेखनीय है कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-६ में निम्नवत् प्राविधान है कि -
Section 6 of the Indian Post Office Act. 1898 reads as under :
“6. Exemption from liability for loss, misdelivery, delay or damage - The Government shall not incur any liability by reason of the loss, misdelivery or delay of, or damage to, any postal article in course of transmission by post, except insofar as such liability may in express terms be undertaken by the Central Government as hereinafter provided and no officer of the Post Office shall incur any liability by reason of any such loss, misdelivery, delay or damage, unless he has caused the same fraudulently or
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by his willful act or default.”
इस प्रकरण में यह तथ्य निर्विवाद है कि परिवादी/प्रत्यर्थी ने पंजीकृत पत्र सं0-०८५९ सुश्री शालिनी कुमार, ए-३४३ सैक्टर १९, नोएडा को सिविल कोर्ट पोस्ट आफिस आगरा से दिनांक २६-०७-२००१ को भेजा था। यह रजिस्टर्ड पत्र प्राप्तकर्ता को न मिलने के सम्बन्ध में प्रेषक प्रत्यर्थी/परवादी की ओर से शिकायत भी की गयी। अपीलार्थी का यह भी कहना है कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने अपने पंजीकृत डाक के लिफाफे के अन्दर क्या भेजा था इसका कोई लेखा-जोखा डाक विभाग के पास उपलब्ध नहीं रहता है। किसी भी पंजीकृत डाक के लिफाफे में कोई धनराशि अथवा किसी भी प्रकार का ड्राफ्ट आदि भेजा जाना वर्जित है, जैसा कि भारतीय डाक अधिनियम १८९८ (अधिनियम सं० ६ सन् १८९८) की धारा-१७ में स्पष्ट प्राविधान दिया गया है। इसके अतिरिक्त यह तथ्य भी निर्विवाद है कि कथित पंजीकृत डाक के लिफाफे में भेजे गये बैंक ड्राफ्ट को भुनाया नहीं गया है। इस प्रकार प्रत्यर्थी/परिवादी अथवा प्रेषक श्री शिव नारायण सरीन को कोई धनीय क्षति नहीं हुई है।
उपरोक्त प्राविधान तथा मा0 राष्ट्रीय आयोग द्वारा टीकाराम बनाम इण्डियन पोस्टल डिपार्टमेण्ट IV (2007) CPJ 123 (NC) के अतिरिक्त माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा यूनियन आफ इण्डिया व अन्य बनाम एम0एल0 बोरा २०११(२) सीपीसी १७९ एवं (२०००) एनसीजे १४२ पोस्ट मास्टर इम्फाल बनाम जामिनी देवी सगोलबन्द तथा सुपरिण्टेण्डेण्ट आफ पोस्ट आफिसेज व अन्य बनाम उपभोक्ता सुरक्षा परिषद III(1996) CPJ 105 (NC) में दिये गये विधिक सिद्धान्त को दृष्टिगत रखते हुए हमारे विचार से अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश विधि अनुरूप नहीं है। विद्वान फोरम द्वारा तथ्यों एवं विधि के विरूद्ध आदेश पारित किया गया है जो किसी भी दृष्टिकोण से पोषणीय नहीं है। वर्णित परिस्थिति में अधीनस्थ फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश तथ्य एवं विधि के विपरीत होने के कारण अपास्त होने तथा
अपील स्वीकार होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील स्वीकार की जाती है। जिला फोरम (प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद
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सं0-२५०/२००२ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक २०-१२-२००४ अपास्त किया जाता है। पक्षकार अपीलीय व्यय-भार अपना-अपना स्वयं वहन करेंगे। उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(आलोक कुमार बोस)
पीठासीन सदस्य
(बाल कुमारी)
सदस्य
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.