Uttar Pradesh

StateCommission

A/2010/1714

Kotak Mahindra Bank - Complainant(s)

Versus

Shiv Charan Singh - Opp.Party(s)

Vinayjeet Lal Verma

31 Jan 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2010/1714
( Date of Filing : 04 Oct 2010 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Kotak Mahindra Bank
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Shiv Charan Singh
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Rajendra Singh PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 31 Jan 2022
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

मौखिक   

अपील सं0-१७१४/२०१०

 

(जिला उपभोक्‍ता मंच/आयोग(प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२०९/२००८ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०८-२०१० के विरूद्ध)

 

कोटक महिन्‍द्रा बैंक लि0, रजिस्‍टर्ड कार्यालय ३६ – ३८ ए, नरीमन भवन, नरीमन प्‍वाइंट, मुम्‍बई एवं इसका रीजनल आफिस, प्रथम तल, ६, वैशाली, एडज्‍वाइनिंग गुलाब स्‍वीट्स, पीतमपुरा, नई दिल्‍ली एवं इसकी एक अन्‍य शाखा स्थित ८ – ९, रघुनाथ नगर, एम0जी0 मार्ग, थाना हरीपर्वत, आगरा द्वारा एक्‍जक्‍यूटिव लीगल/अधिकृत अधिकारी श्री राघवेन्‍द्र सिंह।                                           ................. अपीलार्थी/विपक्षी। 

बनाम्

शिव चरन सिंह पुत्र श्री कंचन सिंह निवासी बिजेन्‍द्र नगर कालोनी, दीनदयालपुरम, जसला रोड, शिकोहाबाद जिला फिरोजाबाद (यू.पी.)।           ...............    प्रत्‍यर्थी/परिवादी।

 

समक्ष:-

१.  मा0 श्री राजेन्‍द्र सिंह, सदस्‍य।

२-  मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

 

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित    :- श्री विनयजीत लाल वर्मा विद्वान अधिवक्‍ता के  

                               सहयोगी विद्वान अधिवक्‍ता श्री अवनीश पाल।  

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      :- श्री अनिल कुमार मिश्रा विद्वान अधिवक्‍ता।

 

दिनांक : ३१-०१-२०२२.

 

मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

१.    जिला उपभोक्‍ता मंच/आयोग(प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२०९/२००८,  शिव चरन सिंह बनाम कोटक महिन्‍द्रा बैंक लि0 व अन्‍य में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०८-२०१० के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। इस निर्णय के अन्‍तर्गत परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण को आदेशित किया गया है कि वे परिवादी को अंकन ३,८०,९९०/- रू० ३० दिन के अन्‍दर अदा करें। अंकन ०१.०० लाख रू० मानसिक प्रताड़ना तथा अंकन ३,०००/- रू० परिवाद व्‍यय के रूप में अदा करने के लिए भी आदेशित किया गया है। नियत तिथि के पश्‍चात् धनराशि अदा करने पर ०९ प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से उस पर ब्‍याज अदा करने के लिए भी आदेशित किया गया है।  

 

 

 

-२-

२.    परिवाद के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं‍ कि परिवादी ने विपक्षीगण से अंकन ११,०४,४६६/- रू० ऋण लेकर ट्रक सं0 यू0पी0 ८३ के-९३३६ का चैसिस लिया था जिसकी प्रतिमाह अंकन २९,४९९/- रू० की किश्‍तें अदा करनी थीं किन्‍तु मासिक किश्‍तें ४६ थीं। परिवादी ने दिनांक ३०-१२-२००६ को ही अंकन ७५,०००/- रू० का ऋण ट्रक की बॉडी बनवाने के लिए लिया था, जिसकी मासिक २३ किश्‍तें, प्रति किश्‍त अंकन ३,६६५/- रू० तय हुई थी। परिवादी ने समय से किश्‍तों का भुगतान किया किन्‍तु इसके बाबजूद विपक्षीगण ने दिनांक १२-०५-२००८ को परिवादी का ट्रक वगड़ा देवपुरी, सिटी कोतवाली शिवपुरी, मध्‍य प्रदेश से जबरन कब्‍जे में ले लिया। विपक्षी ने ट्रक कब्‍जे में लेने से पूर्व परिवादी को कोई नोटिस नहीं दिया। परिवादी ने जब इस बात की शिकायत विपक्षी से की तो बताया गया कि उस पर किश्‍तें बकाया हैं। परिवादी ने दिनांक १३-०५-२००८ को अंकन २३,१६५/- रू० की दो किश्‍तें, कुल अंकन ६२,६६०/- रू० की विपक्षीगण को भुगतान कीं किन्‍तु इसके बाबजूद ट्रक नहीं छोड़ा। परिवादी का कथन है कि विपक्षीगण ने बिना सूचना के परिवादी का ट्रक बेच दिया और अब भी परिवादी से अंकन ९५,२४७/- रू० व अंकन ३०,६५३/- रू० की मांग कर रहे हैं। परिवादी ने अनुतोष चाहा कि विपक्षीगण की मांग को अवैध घोषित किया जाए।    

३.    जिला उपभोक्‍ता मंच के समक्ष विपक्षीगण की ओर से अपने जबाव में कथन किया गया कि परिवादी को ट्रक व बॉडी के लिए ऋण देना स्‍वीकार है किन्‍तु आगे यह कथन किया कि परिवादी ने समय से किश्‍तें जमा नहीं कीं, लोन एग्रीमेण्‍ट शर्त का उल्‍लेख किया, अत: परिवादी एवं समस्‍त विभागों को सूचना देने के बाद ही प्रश्‍नगत ट्रक को अपने कब्‍जे में लिया, जो पूर्णत: वैध था। यह कि परिवादी द्वारा किश्‍तों की अदायगी में डिफाल्‍ट करने पर दिनांक २६-०२-२००८ को परिवादी को नोटिस दिया गया कि वह सम्‍पूर्ण ऋण की धनराशि जमा करे। यह कि परिवादी ने दिनांक १३-०५-२००८ को कोई धनराशि लोन एग्रीमेण्‍ट तथा लोन रिकाल नोटिस के अनुसार नहीं दी। यह कि विपक्षी ने दिनांक ०५-०२-२००८ को परिवादी को नोटिस दिया कि यदि उसने ऋण की उक्‍त धनराशि अदा नहीं की तो ट्रक बेचने की प्रक्रिया प्रारम्‍भ कर दी जावेगी। परिवादी ने नोटिस का

 

 

-३-

-३-

जबाव नहीं दिया। अत: ट्रक बेच दिया गया। यह कि विपक्षी ने कोई सेवा में कमी नहीं की। यह भी कथन किया कि परिवादी उपभोक्‍ता की श्रेणी में नहीं आता है।  

४.    दोनों पक्षों के साक्ष्‍य पर विचार करने के उपरान्‍त जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा यह निष्‍कर्ष दिया गया कि परिवादी ने दिनांक ३१-०१-२००७ से १३-०५-२००८ तक १६ किश्‍तों में अंकन ३,८०,९९०/- रू० विपक्षीगण को अदा किया है। विपक्षीगण द्वारा अंकन ७,२५,०००/- रू० में यह गाड़ी विक्रय कर दी गई और कीमत का सही आंकलन नहीं किया गया। तद्नुसार परिवादी द्वारा जमा की गई राशि को वापस करने का आदेश पारित किया गया।  

५.    इस निर्णय एवं आदेश के विरूद्ध यह अपील इन आधारों पर प्रस्‍तुत की गई है कि पक्षकारों के मध्‍य निष्‍पादित करार के अनुसार प्रकरण मध्‍यस्‍थ को सुपुर्द किया जाना चाहिए। परिवादी ने व्‍यापारिक उद्देश्‍य के लिए ऋण प्राप्‍त किया था इसलिए परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है। जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश विधि विरूद्ध है। परिवादी ने नियमित रूप से किश्‍तों का भुगतान नहीं किया है। इसलिए पक्षकारों के मध्‍य निष्‍पादित करार के अनुसार वाहन को जब्‍त कर विक्रय कर दिया गया और विक्रय राशि ऋण राशि में समायोजित कर दी गई है।    

६.    हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍तागण को सुना। प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश तथा पत्रावली का अवलोकन किया।

७.    अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का तर्क है कि प्रकरण मध्‍यस्‍थ को सुपुर्द किया जाना चाहिए न कि उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के अन्‍तर्गत परिवाद प्रस्‍तुत किया जाना चाहिए। उल्‍लेखनीय है कि पक्षकारों के मध्‍य प्रकरण मध्‍यस्‍थ को सुपुर्द किए जाने का करार होने के बाबजूद भी उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम के प्राविधान प्रभावी होते हैं। अत: इस तर्क में कोई बल नहीं है कि प्रकरण मध्‍यस्‍थ को सुपुर्द किया जाना चाहिए।

८.    अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का द्वितीय तर्क यह है कि व्‍यापार करने के उद्देश्‍य से वाहन क्रय किया गया इसलिए परिवादी उपभोक्‍ता नहीं है। यह तर्क भी इस आधार पर ग्राह्य नहीं है कि परिवाद पत्र में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि जीविकोपार्जन हेतु

 

 

-४-

 

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वाहन क्रय किया गया और ऋण प्राप्‍त किया गया। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम की धारा-२(१)(घ) के अनुसार जीविकोपार्जन के लिए क्रय किया गया वाहन व्‍यापारिक उद्देश्‍य के लिए क्रय किया गया वाहन नहीं कहा जा सकता।

९.    अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्‍ता का यह भी तर्क है कि परिवादी ने नियमित रूप से किश्‍तों का भुगतान नहीं किया इसलिए पुलिस को सूचित करते हुए वाहन जब्‍त किया गया और विक्रय कर दिया गया। पत्रावली के अवलोकन से ज्ञात होता है कि परिवादी द्वारा समस्‍त किश्‍तों, जो उस समय तक देय थीं, का भुगतान किया गया, केवल एक किश्‍त का भुगतान देरी से किया गया। एक किश्‍त का भुगतान देरी से करने मात्र से विपक्षीगण को यह अधिकार प्राप्‍त नहीं होता कि वे बलपूर्वक वाहन को जब्‍त कर लें और विक्रय की सूचना दिए बगैर वाहन विक्रय कर दें। अपीलार्थी का यह कृत्‍य मनमाना कृत्‍य की श्रेणी में आता है। नजीर मैगमा लीजिंग लि0 बनाम प्रशान्‍त महोपात्रा, III (2011) CPJ 88 (NC) में व्‍यवस्‍था दी गई है कि लीजिंग कम्‍पनी द्वारा मनमाने तरीके से किया गया कार्य सेवा में कमी की श्रेणी में आता है। प्रस्‍तुत केस में भी अपीलार्थी द्वारा मनमाने तरीके से वाहन जब्‍त किया गया और नोटिस दिए बिना विक्रय कर दिया गया।

१०.   एक अन्‍य नजीर कैपीटल ट्रस्‍ट लि0 बनाम संजय दत्‍त व अन्‍य, III (2009) CPJ 79 (NC) में व्‍यवस्‍था दी गई है कि जब वाहन को दो किश्‍तों का भुगतान न करने के कारण बलपूर्वक कब्‍जे में लिया गया तब उपभोक्‍ता परिवाद को स्‍वीकार करना विधि सम्‍मत है। प्रस्‍तुत केस में किश्‍तों के भुगतान में यथार्थ में कोई बाधा कारित नहीं हुई केवल एक किश्‍त देरी से अदा की गई। प्रस्‍तुत केस में वाहन को दूसरे प्रदेश के शहर  शिव पुरी (मध्‍य प्रदेश) में जब्‍त कर लिया गया जबकि वाहन परिवादी के कार्य के लिए प्रयुक्‍त हो रहा था। अत: जिला उपभोक्‍ता मंच द्वारा परिवाद स्‍वीकार करते हुए विपक्षीगण के विरूद्ध जो आदेश पारित किया गया है वह विधि सम्‍मत है।

११.   नजीर मैनेजर, आईसीआईसीआई बैंक लि0 बनाम प्रकाश कौर व अन्‍य, 2007 (2) JCLR 112 (SC) में व्‍यवस्‍था दी गई है कि किश्‍तों के भुगतान में देरी के कारण बैंक के एजेण्‍ट द्वारा वाहन को बलपूर्वक जब्‍त कर लेना विधि सम्‍मत कृत्‍य नहीं है। वाहन को

 

-५-

-५-

लौटाने का आदेश बैंक को दिया गया। प्रस्‍तुत केस में चूँकि वाहन विक्रय किया जा चुका है इसलिए वाहन परिवादी को लौटाना सम्‍भव नहीं है। इसीलिए जिला उपभोक्‍ता मंच ने परिवादी द्वारा जमा की गई राशि को वापस लौटाने का आदेश दिया है जो पूर्णतया विधि सम्‍मत है।

१२.   इस प्रकार चूँकि अपीलार्थी द्वारा वाहन को बलपूर्वक जब्‍त कर अवैधानिक कृत्‍य किया गया इसलिए मानसिक प्रताड़ना और परिवाद व्‍यय के रूप में धनराशि अदा करने का जिला उपभोक्‍ता मंच का आदेश भी विधि सम्‍मत है। अपील तद्नुसार सव्‍यय खारिज किए जाने योग्‍य है।

आदेश

१३.   अपील स्‍व्‍यय खारिज की जाती है। जिला उपभोक्‍ता मंच/आयोग(प्रथम), आगरा द्वारा परिवाद सं0-२०९/२००८ में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ३१-०८-२०१० की पुष्टि की जाती है।  

१४.   उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्‍ध करायी जाय।

१५.   वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।

 

     

                      (राजेन्‍द्र सिंह)              (सुशील कुमार)

                         सदस्‍य                    सदस्‍य

१६.   निर्णय आज खुले न्‍यायालय में हस्‍ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।

 

                      (राजेन्‍द्र सिंह)              (सुशील कुमार)

                         सदस्‍य                    सदस्‍य

प्रमोद कुमार,

वैय0सहा0ग्रेड-१,

कोर्ट-२. 

 

 

 

 

 
 
[HON'BLE MR. Rajendra Singh]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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