राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-१८७६/२०११
(जिला उपभोक्ता फोरम, महोबा द्वारा परिवाद संख्या—१४२/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-०८-२०११ के विरूद्ध)
इफको टोकिया जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, कारपोरेट आफिस, चतुर्थ एवं पंचम तल, इफको टावर, प्लाट नं0-३, सैक्टर २९, गुड़गॉंव, हरियाणा द्वारा मैनेजर।
................. अपीलार्थी/विपक्षी।
बनाम्
शशिकान्त द्विवेदी पुत्र श्री जुगल किशोर द्विवेदी निवासी द्वारा विचित्र सिंह, डी0आई0ओ0एस0 आफिस के सामने, गली नं0-९, स्वराज कालोनी, जिला बॉंदा।
...............प्रत्यर्थी/परिवादी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अशोक मेहरोत्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री संजय कुमार वर्मा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक : ०३-११-२०२०.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
अपीलार्थी द्वारा यह अपील, जिला उपभोक्ता फोरम, महोबा द्वारा परिवाद संख्या-१४२/२००९, शशिकान्त द्विवेदी बनाम क्षेत्रीय प्रबन्धक, इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0 लि0 व अन्य में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-०८-२०११ के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है, जिसमें विद्वान जिला उपभोक्ता फोरम ने चोरी गई बोलेरो गाड़ी पंजीकरण सं0-यू.पी. ९५ ए ८१९९ के सम्बन्ध में ४,११,०००/- रू० की धनराशि बीमा कम्पनी से दिलाए जाने हेतु आदेश दिया है। साथ ही साथ उस पर दिनांक २५-११-२००९ से भुगतान की तिथि तक ०९ प्रतिशत वार्षिक ब्याज अदा करने और यदि इस दौरान् बीमा कम्पनी भुगतान करने में असफल रहती है तब १८ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज की दर से ब्याज अदा करने का आदेश दिया है। इस निर्णय/आदेश से व्यथित होकर वर्तमान अपील उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-१५ के अन्तर्गत प्रस्तुत की गई है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि बीमित महिन्द्रा बोलेरा डीएलएक्स एसी नं0-यूपी ९५ ए ८१९९ पालिसी सं0-३७०१४९३१ द्वारा ४.४२ लाख रू० के लिए दिनांक०३-०५-२००७ से ०२-०५-२००८ तक बीमित थी। यह बीमा प्राईवेट प्रयोग के लिए लागू था लेकिन इस
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वाहन को दिनांक ३०-११-२००७ को दिन में ०२.०० बजे वाहन स्वामी की अनुपस्थिति में उसके चालक हरिओम साहू द्वारा ले जाया गया और अगले ही दिन वाहन चोरी हो गया। चोरी की सूचना मिलने पर प्रत्यर्थी/वाहन स्वामी ने दिनांक ०१-१२-२००७ से ०६-१२-२००७ तक वाहन को पता करने की कोशिश की लेकिन न तो उसने बीमा कम्पनी को सूचित किया और न ही कोई प्रथम सूचना रिपोर्ट लिखाई। यह वाहन व्यक्तिगत कार्य के लिए बीमित था और फाइनेंसर द्वारा यह वाहन बन्धक था। यह पूर्णतया स्पष्ट है कि चालक हरिओम साहू बिना वाहन स्वामी को सूचना के इस वाहन को ले जाकर टैक्सी के रूप में चला रहा था। प्रत्यर्थी/वाहन स्वामी ने अपने दावे के लिए कभी भी बीमा कम्पनी को सूचित नहीं किया और इस कारण भौतिक सत्यापन और अन्वेषण नहीं कराया जा सका। स्पष्ट है कि चालक और प्रत्यर्थी/वाहन स्वामी के बीच दुरभि संधि है। बिना पालिसी की शर्तों का पालन किए, बिना बीमा कम्पनी को सूचित किए प्रत्यर्थी ने एक परिवाद जिला फोरम में दायर कर दिया। बीमा पालिसी की शर्त सं0-५ के अनुसार बीमित को सभी तरह के उचित कदम उठाने थे अपने वाहन की सुरक्षा के लिए और उसे चलने योग्य रखने के लिए। किसी भी दुर्घटना या ब्रेकडाउन में वाहन को बिना किसी के देखभाल छोड़ना नहीं था। बीमाधारक ने इस तरह पालिसी की शर्तों का उल्लंघन किया।
स्पष्ट है कि जीप का उपयोग टैक्सी के रूप में किया जा रहा था जो बीमा शर्तों का खुला उल्लंघन है और व्यापारिक प्रयोग के लिए उसका उपयोग बीमाधारक की सहमति से किया जा रहा था। बीमा शर्तों के उल्लंघन के कारण कथित हानि कारित हुई है फिर भी जिला उपभोक्ता फोरम ने प्रत्यर्थी/परिवादी का दावा स्वीकार कर दियाऔर उसने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि वाहन स्वामी ने बीमा कम्पनी को न तो सूचना दी और न उसके समक्ष कोई अपना दावा ही प्रस्तुत किया।
बीमा कम्पनी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई है और विद्वान जिला फोरम ने अवैधनिक और त्रुटिपूर्ण आदेश पारित किया है। कथित निर्णय/आदेश एक तरफा और विधि विरूद्ध है तथा बीमा शर्तों के उल्लंघन के तथ्य को ध्यान में नहीं रखा गया। बीमा कम्पनी की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई इसलिए बीमा कम्पनी से जबरदस्ती भुगतान के लिए नहीं कहा जा सकता है। जिला फोरम को बीमा शर्तों के
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विरूद्ध जाकर निर्णय देने का कोई अधिकार नहीं है। यह वाहन ऋणदाता द्वारा बन्धक था और बिना ऋणदाता को पक्षकार बनाए निर्णय करना गलत था। जिला फोरम का निर्णय गलत है, विधि विरूद्ध है और उसे अपास्त किया जाय।
हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री अशोक मेहरोत्रा तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री संजय कुमार वर्मा के तर्क सुने तथा पत्रावली का सम्यक अवलोकन किया।
प्रत्यर्थी ने अपनी लिखित बहस में कहा है कि यह अपील निर्णय दिनांक ११-०८-२०११ के विरूद्ध प्रस्तुत की गई है। यह निर्णय सभी तथ्यों और परिस्थितियों पर विचार करते हुए तथा उपलब्ध साक्ष्यों पर मनन करते हुए निर्गत किया गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने एक बोलेरो वाहन यू.पी. ९५ ए ८१९९ व्यक्तिगत उपयोग के लिए खरीदी जिसका ड्राइवर हरिओम साहू था। वाहन को चालक प्रत्यर्थी/परिवादी के पुत्र अनुराग की अनुमति से ले गया था और वाहन चालक ने दिनांक ०१-१२-२००७ को सूचना दी कि उसके घर से यह वाहन चोरी हो गया है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने दिनांक ०६-१२-२००७ तक इस वाहन की खोज की और जब वाहन नहीं मिला तब उसने एफ0आई0आर0 लिखाई। वाहन चोरी की सूचना अपीलार्थी को दी गई और साथ ही सभी प्रासंगिक दस्तावेज भी दिए गये। इसके पश्चात् अपीलार्थी ने चोरी की घटना के सत्यापन के लिए अपना अन्वेषक भेजा। पुलिस ने भी इस मामले में अन्तिम आख्या प्रेषित की है। अपीलार्थी इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0 ने दावा धनराशि का भुगतान नहीं किया और मनमाने तरीके से बीमा दावे को अस्वीकार कर दिया। तब प्रत्यर्थी/परिवादी ने जिला फोरम में परिवाद प्रस्तुत किया। जिला फोरम, महोबा ने सभी तथ्यों एवं परिस्थितियों को देखने के बाद उसके परिवाद को डिक्री किया और इस निर्णय/आदेश में किसी प्रकार की कोई अवैधनिकता नहीं है। जिला फोरम ने यह उचित कहा है कि अपीलार्थी बीमा कम्पनी कोई भी ऐसा साक्ष्य प्रस्तुत करने में असफल रही है जिससे यह सिद्ध हो सके कि वाहन के चालक और वाहन स्वामी के बीच कोई दुरभि संधि थी।
इस मामले में अपीलार्थी की ओर से यह कहा गया कि ड्राइवर और परिवादी के बीच दुरभि संधि है और कभी भी वाहन चोरी के सम्बन्ध में बीमा कम्पनी को सूचना
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नहीं दी जबकि प्रत्यर्थी की ओर से कहा गया कि उसने इसकी सूचना दी थी। अपीलार्थी ने यह भी कहा कि मामले की प्रथम सूचना रिपोर्ट अंकित नहीं कराई गई और ०६ दिन तक परिवादी ने अपने वाहन चोरी के सम्बन्ध में कहीं कोई लिखापढ़ी नहीं की। प्रत्यर्थी/परिवादी की ओर से स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जब उसे वाहन चोरी की सूचना मिली तब वह अपने वाहन की खोजबीन में लगा रहा। दिनांक ३०-११-२००७ को ०२.०० बजे दिन में उसकी अनुपस्थिति में उसके पुत्र अनुराग से वाहन चालक वाहन मांग कर ले गया था और उसने दिनांक ०१-१२-२००७ को सुबह ०५.३० बजे बताया कि उसका वाहन चोरी हो गया है। उसने यह बताया कि वह गाड़ी की तलाश कर रहा है और जैसे ही उसे मिलेगी वह ले आयेगा। इसी खोजबीन में ०५ दिन बीत गये और फिर दिनांक ०६-१२-२००७ को परिवादी ने थाने पर लिखित तहरीर दे कर एफ0आई0आर0 अंकित कराई। एफ0आई0आर0 अंकित होने के बाद घटना की विवेचना पुलिस ने की और वाहन न मिलने पर अन्तत: अन्तिम रिपोर्ट दिनांक २६-०८-२००८ को न्यायालय में प्रेषित की जो दिनांक ०१-०४-२०११ को न्यायालय सिविल जज (जूनियर डिवीजन) महोबा द्वारा स्वीकार कर ली गई।
दुरभि संधि के बारे में अपीलार्थी ऐसा कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर सका है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जाए कि वाहन स्वामी ने वाहन चालक के साथ मिलकर वाहन चोरी करवा दिया। जब किसी की कोई कीमती वस्तु चोरी होती है तो वह उसकी कुछ दिन खोजबीन करता है। थाने पर भी वाहन चोरी या गुमशुदगी के मामले में पहले शिकायतकर्ता से कहा जाता है कि आप अपने स्तर से खोजबीन कर लें और तत्पश्चात् थाने आयें। यहॉं पर वाहन बीमित है और यह कोई गम्भीर आपराधिक मामला नहीं है कि विलम्बित एफ0आई0आर0 के प्रतिकूल प्रभाव को देखा जाए। यह सामान्य व्यवहार है और इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव परिवादी के दावे पर नहीं पड़ता है।
अपीलार्थी की ओर से एक अन्य बिन्दु यह उठाया गया कि वाहन ऋणदाता कम्पनी के यहॉं बन्धक था और उसे पक्षकार नहीं बनाया गया। पत्रावली पर उपलब्ध महिन्द्रा फाइनेंस कम्पनी का पत्र दिनांक ०५-०५-२००८ को देखने से स्पष्ट होता है कि शशिकान्त द्विवेदी के सम्बन्ध में महिन्द्रा फाइनेंस कम्पनी ने यह लिखा है कि उसे
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रजिस्ट्रेशन/इंश्योरेंस पालिसी को लीज/बन्धक रखने सम्बन्धी विवरण को हटाने पर कोई आपत्ति नहीं है अर्थात् यह इस सम्बन्ध में ऋणदाता कम्पनी का अनापत्ति प्रमाण पत्र है। महिन्द्रा फाइनेन्सियल सेवा की ओर से एक फार्म-३५ की प्रति भी पत्रावली पर मौजूद है जिसमें पंजीयन अधिकारी को लिखा गया है कि इस वाहन के सम्बन्ध में बन्धकनामा समाप्त हो चुका है और इस सम्बन्ध में पंजीयन प्रमाण पत्र पर अंकित टिप्पणी को निरस्त किया जाए। इससे स्पष्ट होता है कि ऋणदाता कम्पनी का अब कोई अधिकार इस वाहन पर नहीं रह गया है और उसे पक्षकार न बनाने से कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि इस वाहन का उपयोग वाणिज्यिक कार्य के लिए हो रहा था जबकि यह व्यक्तिगत कार्य के लिए बीमित है। पत्रावली के अवलोकन से ऐसा कोई अभिलेख दिखाई नहीं देता जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि वाहन का वाणिज्यिक उपयोग हो रहा था। नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0 बनाम नितिन खण्डेलवाल, (२००८) ११ सुप्रीम कोर्ट केसेस २५९ के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि वाहन चोरी के सम्बन्ध में शर्तों का उल्लंघन महत्वपूर्ण नहीं है। बीमा कम्पनी वाहन स्वामी को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है और अगर यह स्थापित हो जाए कि बीमा शर्तों का उल्लंघन किया गया है तब भी बीमा कम्पनी को बीमित दावे का निस्तारण नॉन स्टेण्डर्ड आधार पर करना चाहिए न कि दावे को पूर्णत: निरस्त किया जाए। वर्तमान मामले में वाहन का टैक्सी के रूप में चलाने या उसका वाणिज्यिक उपयोग करने के सम्बन्ध में अपीलार्थी की ओर से कोई साक्ष्य नहीं दिया गया है। मात्र यह कहा गया कि उसका वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा था। अत: वाणिज्यिक उपयोग का कथन स्थापित करने में अपीलार्थी असफल रहा है।
अपीलार्थी की ओर से कहा गया कि उसे घटना की सूचना नहीं दी गई और उसने अपनी बहस में कहा कि उसे सूचना कभी भी नहीं दी गई। हमने पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया। परिवादी द्वारा एक पत्र क्षेत्रीय प्रबन्धक, इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, जबलपुर को भेजा गया है जो दिनांक ११-१२-२००७ को प्राप्त हुआ और इस पर कम्पनी की मोहर भी लगी हुई है। एक अन्य पत्र परिवादी द्वारा क्षेत्रीय प्रबन्धक, इफको टोकियो जनरल इंश्योरेंस कं0लि0, जबलपुर को भेजा गया, जो
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उनके द्वारा दिनांक ३१-०३-२००९ को प्राप्त किया गया और इस पर भी कम्पनी की मोहर लगी हुई है। इससे स्पष्ट होता है कि कम्पनी को सूचना दी गई है और यह सूचना विलम्ब से दी गई है। इस सम्बन्ध में ओम प्रकाश बनाम रिलायंज जनरल इंश्योरेंस व अन्य, IV (2017) CPJ 10 (SC) के मामले में मा0 सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि यह सामान्य ज्ञान की बात है कि जिस व्यक्ति का वाहन चोरी हो जाएगा वह सीधे बीमा कम्पनी के पास अपने दावे को लेकर नहीं जायेगा। पहले वह अपने वाहन को खोजने का प्रयास करेगा। यह सत्य है कि वाहन स्वामी को वाहन चोरी के तुरन्त बाद बीमा कम्पनी को सूचना देनी चाहिए लेकिन यह शर्त उचित बीमा दावे को स्थापित करने के लिए प्रतिबन्ध का काम नहीं करेगी। बीमा दावा निरस्त करना उचित आधार पर होना चाहिए और मात्र तकनीकी आधार पर दावे को निरस्त करने से आम जनता का विश्वास बीमा कम्पनी से उठ जायेगा। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से स्पष्ट होता है कि कम्पनी को तकनीकियों में भटकना नहीं चाहिए। बीमा व्यवसाय भारत में एक बीमित व्यक्ति को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से स्थापित निगम है। बीमा कम्पनी ने सूचना मिलने के बाद इस सम्बन्ध में क्या कार्यवाही की, इसका कोई उत्तर पत्रावली पर नहीं है क्योंकि बीमा कम्पनी का कथन है कि उसे कभी सूचना दी ही नहीं गई।
बीमा कम्पनी ने विलम्ब से एफ0आई0आर0 लिखाए जाने के बारे में III (2006) CPJ 240 (NC) का दृष्टान्त प्रस्तुत किया है किन्तु इस सम्बन्ध में ऊपर मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय से अवगत करा दिया गया है। विलम्ब से बीमा कम्पनी को सूचना देने सम्बन्धी मामलों के सम्बन्ध में बीमा कम्पनी की ओर से रंग लाल (मृतक) बनाम प्रबन्धक, यूनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कं0लि0 व अन्य (रिवीजन पिटीशन सं0-१३६२/२०११) निर्णय दिनांक ०१-०९-२०११ (एनसीडीआरसी) प्रस्तुत किया गया है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि विलम्ब घातक नहीं है।
इस प्रकार समस्त तथ्यों, परिस्थितियों से यह स्पष्ट होता है कि परिवादी ने घटना की एफ0आई0आर0 समय से अंकित करवाई। उसके द्वारा बीमा कम्पनी को सूचना भी दी गई लेकिन बीमा कम्पनी का कोई निर्णय सामने नहीं आया कि उसने दावे का क्या किया। विलम्ब से बीमा कम्पनी को सूचना दिया जाना घातक नहीं है। ड्राइवर
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और वाहन स्वामी के बीच कोई दुरभि संधि स्थापित नहीं होती है। लापरवाही का एक बिन्दु यह है कि वाहन स्वामी की अनुपस्थिति में उसके लड़के ने वाहन चालक को वाहन ले जाने दिया और वाहन, वाहन चालक के घर से चोरी हुआ। इस सम्बन्ध में जो सावधानी रखनी चाहिए थी उसको वाहन स्वामी ने नहीं लिखा। ऐसी परिस्थिति में यदि बीमा कम्पनी की शर्तों का उल्लंघन होता है तब पूरा दावा निरस्त नहीं होगा अपितु मा0 सर्वोच्च न्यायालय के उक्त निर्णय के परिप्रेक्ष्य में नॉन स्टेण्डर्ड आधार पर इसे तय किया जायेगा और बीमा कम्पनी बीमित वाहन के मूल्य का २५ प्रतिशत घटाते हुए शेष भुगतान करने के लिए उत्तरदायी है। तद्नुसार जिला फोरम का प्रश्नगत आदेश संशोधित करते हुए अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता फोरम, महोबा द्वारा परिवाद संख्या—१४२/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक ११-०८-२०११ इस प्रकार संशोधित किया जाता है कि जिला मंच द्वारा आदेशित धनराशि ४,११,०००/- रू० के स्थान पर विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रश्नगत चोरी गये बीमित वाहन के मूल्य की ७५ प्रतिशत धनराशि, परिवादी को इस निर्णय की प्रतिलिपि प्राप्त होने के ३० दिन के अन्दर परिवाद प्रस्तुत करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक ०९ प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित अदा की जाय। शेष आदेश की यथावत् पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(सुशील कुमार) (राजेन्द्र सिंह)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-२.