(मौखिक)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील संख्या-2108/2008
लाईफ इंश्योरेंस कारपोरेशन आफ इण्डिया
बनाम
श्रीमती शशि जायसवाल पत्नी राजन जायसवाल
समक्ष :-
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री वी0एस0 बिसारिया
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री एच0के0 श्रीवास्तव
दिनांक :- 05.4.2024
मा0 न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील अपीलार्थी/बीमा कम्पनी द्वारा इस आयोग के सम्मुख धारा-15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, गाजीपुर द्वारा परिवाद सं0-90/2005 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 25.9.2008 के विरूद्ध योजित की गई है।
मेरे द्वारा अपीलार्थी की ओर से उपस्थित विद्वान अधिवक्ता श्री वी0एस0 बिसारिया तथा प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री एच0के0 श्रीवास्तव को सुना गया तथा जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित निर्णय/आदेश का सम्यक परिशीलन एवं परीक्षण किया गया।
संक्षेप में वाद के तथ्य इस प्रकार है कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी की मॉ श्रीमती सावित्री जायसवाल द्वारा रू0 2,00,000.00 बीमाधन हेतु एक बीमा पालिसी अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की शाखा महुआबाग गाजीपुर से वार्षिक प्रीमियम रू0 18,356.00 अदा कर प्राप्त की गई थी, जिसमें प्रत्यर्थी/परिवादिनी श्रीमती शशि जायसवाल नामिनी थी एवं दिनांक 03.5.2004 को प्रत्यर्थी/परिवादिनी की मॉ की अचानक तबियत खराब होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई अत्एव मृतक की पालिसी में नामिनी होने के नाते प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी से बीमित धनराशि को दिलाये जाने
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हेतु आग्रह किया, परन्तु अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादिनी को बीमित धनराशि का भुगतान नहीं किया गया अत्एव क्षुब्ध होकर परिवाद जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रस्तुत किया गया।
अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख प्रतिवाद पत्र प्रस्तुत कर परिवाद पत्र के कथनों को अस्वीकार करते हुए यह कथन किया गया कि बीमाधारक बीमा पालिसी प्राप्त करने से पूर्व डायबिटीज, अपच एवं एनिमिया रोग से ग्रसित थी एवं बीमाधारक ने उक्त बीमारियों को प्रस्ताव भरते समय जानबूझकर छिपाया था, इसलिए दावा निरस्त किया गया है अत्एव परिवाद भी निरस्त होने योग्य है।
विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा उभय पक्ष के अभिकथन एवं उपलब्ध साक्ष्य पर विस्तार से विचार करने के उपरांत परिवाद को स्वीकार करते हुए निम्न आदेश पारित किया है:-
''परिवाद स्वीकार किया जाता है। विपक्षी एल0आई0सी0 को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादिनी की मॉ सावित्री जायसवाल के बीमा पालिसी सं0-283797268 की बीमित धनराशि रू0 2,00,000.00 का भुगतान करे। उक्त धनराशि रू0 2,00,000.00 (दो लाख रूपये मात्र) पर दिनांक 01.3.2005 से वास्तविक भुगतान की तिथि तक 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से सूद भी अदा करे। विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि परिवादिनी को वाद-व्यय के मद में रू0 1,000.00 का भी भुगतान करे।"
जिला उपभोक्ता आयोग के प्रश्नगत निर्णय/आदेश से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी की ओर से प्रस्तुत अपील योजित की गई है।
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मेरे द्वारा उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्ता द्व्य के कथनों को सुनने के पश्चात तथा विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली पर उपलब्ध समस्त अभिलेखों के परिशीलनोंपरांत यह पाया गया विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा समस्त तथ्यों का परिशीलन करने के उपरांत जो निष्कर्ष अपने निर्णय में अंकित किया गया है वह मेरे विचार से विधि सम्मत है, परन्तु विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने प्रश्नगत आदेश में जो अपीलार्थी/विपक्षी बीमा कम्पनी के विरूद्ध ब्याज की देयता 12 प्रतिशत वार्षिक निर्धारित की गई है, उसे वाद के सम्पूर्ण तथ्यों एवं परिस्थितियों तथा अपीलार्थी के अधिवक्ता के कथन को दृष्टिगत रखते हुए 12 प्रतिशत वार्षिक के स्थान पर 06 प्रतिशत वार्षिक ब्याज में परिवर्तित किया जाना उचित पाया जाता है। तद्नुसार प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। निर्णय/आदेश का शेष भाग यथावत कायम रहेगा।
अपीलार्थी बीमा कम्पनी को आदेशित किया जाता है कि वह उपरोक्त आदेश का अनुपालन 45 दिन की अवधि़ में किया जाना सुनिश्चित करें। अंतरिम आदेश यदि कोई पारित हो, तो उसे समाप्त किया जाता है।
प्रस्तुत अपील को योजित करते समय यदि कोई धनराशि अपीलार्थी द्वारा जमा की गयी हो, तो उक्त जमा धनराशि मय अर्जित ब्याज सहित सम्बन्धित जिला उपभोक्ता आयोग को यथाशीघ्र विधि के अनुसार निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक/वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
हरीश आशु.,
कोर्ट नं0-1