राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील सं0-२९१९/२०१३
(जिला फोरम/आयोग, हमीरपुर द्वारा परिवाद सं0-११७/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१०-२०१३ के विरूद्ध)
इलाहाबाद बैंक, ब्रान्च हमीरपुर द्वारा ब्रान्च मैनेजर राम प्रकाश वर्मा।
...........अपीलार्थी/विपक्षी सं0-१.
बनाम
१. शशि बाला विधवा स्व0 शैलेन्द्र कुमार पाठक,
२. प्रभाकर पाठक पुत्र श्री बैज नाथ पाठक,
३. श्रीमती राम देवी पाठक पत्नी श्री प्रभाकर पाठक,
४. नीतू पाठक उर्फ आकांक्षा पाठक (माइनर) पुत्र स्व0 शैलेन्द्र कुमार पाठक।
समस्त निवासीगण ग्राम बिवनार, परगना मुतकारा, तहसील मौदहा, जिला हमीरपुर।
...........प्रत्यर्थीगण/परिवादीगण।
५. नेशनल इंश्योरेंस कं0लि0, इण्डिया एक्सचेन्ज रोड, कोलकाता।
...........प्रत्यर्थी/विपक्षी सं0-३.
समक्ष:-
१- मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य।
२- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री परमिन्दर वर्मा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-१ लगायत ४ की ओर से उपस्थित : श्री ए0के0 मिश्रा विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-५ की ओर से उपस्थित : श्री अशोक मेहरोत्रा विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक :- १७-०९-२०२१.
मा0 श्री राजेन्द्र सिंह, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ के अन्तर्गत जिला फोरम/आयोग, हमीरपुर द्वारा परिवाद सं0-११७/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१०-२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में अपीलार्थी का कथन है कि अपीलार्थी वर्तमान समय में बैंक में प्रबन्धक है और इलाहाबाद बैंक एक प्रतिष्ठित राष्ट्रीयकृत बैंक है। प्रत्यर्थी सं0-१ के पति श्री शैलेन्द्र कुमार पाठक (मृतक) ने अपीलार्थी बैंक में खाता सं0-२४७६ दिनांक ०४-०९-१९९० को ५,०००/- रू० जमा करके खुलवाया था। उस समय की प्रचलित योजना के अनुसार ऐसे खाताधारक जिनका औसत मासिक अवशेष ५,०००/- रू० है उन्हें प्रत्यर्थी सं0-५ बीमा कम्पनी की ओर से एक बीमा पालिसी जिसमें हित लाभ ०१.०० लाख रू० तक था,
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उपलब्ध कराई गई। मृतक की जीवन बीमा पालिसी दिनांक २६-१०-२००७ को कराई गई क्योंकि उसके खाते में ५,०००/- रू० शेष था। परिवादीगण के अनुसार मृतक की मृत्यु उसकी अपनी लाइसेंसी बन्दूक से दुर्घटनावश गोली चल जाने के कारण दिनांक २७-१०-२००७ को हुई और इस घटना की सूचना सम्बन्धित थाने में दी गई और मृतक का पोस्टमार्टम भी हुआ। परिवादिनी ने दिनांक १५-०२-२००८ को अपीलार्थी बैंक के सामने एक दावा प्रस्तुत किया कि उसके पति का ०१.०० लाख रू० का बीमा था और उनकी मृत्यु हो गई तथा उसके साथ उसने वांछित अभिलेख भी प्रस्तुत किए।
प्रचलित दिशा निर्देशों के अन्तर्गत प्रश्नगत बीमा पालिसी के सम्बन्ध में परिवादिनी को अपना दावा डिवीजनल कार्यालय एन0आई0सी0 कोलकाता भेजना था जबकि उसने अपना प्रार्थना पत्र बैंक को भेजा। दावे के सम्बन्ध में व्यवस्था थी कि ग्राहक की मृत्यु होने पर दावा धनराशि उसके नामित व्यक्ति को मिलनी थी। दावे के सम्बन्ध में भुगतान करने का दायित्व बीमा कम्पनी का था, अत: भुगतान दावा भी बीमा कम्पनी को सीधे प्रेषित किया जाना चाहिए था।
मानवीय आधार पर कोई विलम्ब नहीं है, अगले ही दिन दिनांक १६-०२-२००८ को अपीलार्थी बैंक ने विपक्षी बीमा कम्पनी को सम्पूर्ण अभिलेख भेज दिए। विपक्षी बीमा कम्पनी द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गई। अपीलार्थी बैंक ने पुन: दिनांक २५-०६-२००८ को वहॉं स्मृति पत्र भेजा। सदाशयता के साथ अपीलार्थी बैंक ने दिनांक १९-०८-२००८ को परिवादिनी को एक पत्र भेजा। अपीलार्थी बैंक ने दिनांक १९-०८-२००८ को ही पुन: स्मृति पत्र मण्डलीय प्रबन्धक, बीमा कम्पनी को भेजा लेकिन उनके द्वारा कोई कार्यवाही नहीं की गई। इसी बीच परिवादिनी ने अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध परिवाद प्रस्तुत कर दिया।
बीमा कम्पनी द्वारा तब तक कोई कार्यवाही नहीं की गई थी। अपीलार्थी बैंक ने परिवाद पत्र में उपस्थित होकर अपना लिखित कथन प्रस्तुत किया लेकिन बीमा कम्पनी ने जानबूझकर परिवाद पत्र का सामना नहीं किया। अपीलार्थी बैंक ने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया और बीमा कम्पनी को कई पत्र भी भेजे। बीमा कम्पनी को सभी वांछित प्रलेख भेज दिए थे। विद्वान जिला फोरम ने इन सब तथ्यों की अनदेखी करते हुए
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अपीलार्थी बैंक के विरूद्ध आदेश पारित किया जबकि अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई थी।
विद्वान जिला फोरम द्वारा विधि विरूद्ध कार्य किया गया और गलत तरीके से परिवाद को स्वीकृत किया। प्रश्नगत निर्णय अपास्त किए जाने योग्य है। परिवादिनी ने झूठी और बनावटी कहानी प्रस्तुत की है। किसी भी व्यक्ति को कानून के दूरूपयोग की छूट नहीं है। अपीलार्थी ने परिवादिनी के दावे के भुगतान के लिए पूरा प्रयास किया और कई पत्र वांछित अभिलेखों के साथ बीमा कम्पनी को भेजे किन्तु बीमा कम्पनी ने अपने दायित्व का निर्वहन नहीं किया। अपीलार्थी बैंक द्वारा सेवा में कोई कमी नहीं की गई। अत: इन परिस्थितियों में वर्तमान अपील स्वीकार करते हुए विद्वान जिला फोरम के प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश को अपास्त किया जाए।
हमने उभय पक्ष के विद्वान अधिवक्तागण की बहस सुनी तथा पत्रावली का सम्यक रूप से परिशीलन किया।
हमने सर्वप्रथम प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया। स्पष्ट है कि यह योजना अपीलार्थी बैंक और बीमा कम्पनी के बीच आपसी संविदा के अन्तर्गत तैयार की गई थी और इसका लाभ उस खाताधारक को मिलना था जिसके बैंक खाते में औसत ५,०००/- रू० प्रति माह शेष है। मृतक इस श्रेणी का उपभोक्ता था और इसीलिए अपीलार्थी बैंक द्वारा उसे ०१.०० लाख रू० की बीमा पालिसी उपलब्ध कराई गई। यहॉं पर मृतक उपभोक्ता था तथा अपीलार्थी बैंक सेवा प्रदाता और इन दोनों के बीच उपभोक्ता व सेवा प्रदाता का सम्बन्ध था। बीमा कम्पनी के साथ अपीलार्थी की संविदा एक अलग तथ्य है जो मृतक और अपीलार्थी बैंक के सम्बन्धों से प्रभावित नहीं है। यदि कोई ग्राहक बैंक में जाता है और बैंक द्वारा उसे यह विश्वास दिलाया जाता है कि कि खाता खोलने और औसत ५,०००/- रू० खाते में शेष रहने पर उसे नि:शुल्क ०१.०० लाख रू० की बीमा पालिसी उपलब्ध कराई जाएगी तब किसी अनहोनी के होने पर उपभोक्ता बैंक से ही इस धनराशि के भुगतान का दावा करेगा न कि बीमा कम्पनी से। वर्तमान मामले में भी यही स्थिति है कि उपभोक्ता ने बैंक के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और अपना खाता खुलवाया। जब उसकी मृत्यु हो गई तब उसके द्वारा नामित परिवादिनी ने भुगतान के लिए आवेदन
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बैंक में किया जो उचित है। बैंक द्वारा समय से भुगतान न करा पाना सेवा में कमी है।
अपीलार्थी बैंक के विद्वान अधिवक्ता का यह कहना कि इस मामले में विद्वान जिला फोरम ने आदेश दिया है कि बैंक दावे का भुगतान करे और फिर बैंक, बीमा कम्पनी से इस धनराशि को बसूलने का दावा प्रस्तुत करे, जो गलत है।
हमने प्रश्नगत निर्णय का अवलोकन किया और पाया कि प्रश्नगत निर्णय विधि सम्मत है क्योंकि बैंक ही प्रथम दृष्ट्या सेवा प्रदाता है और निश्चित समयावधि में बीमा दावे का भुगतान न करा पाना उसके द्वारा सेवा में कमी है। इसके लिए प्रथम दृष्ट्या अपीलार्थी बैंक ही उत्तरदायी है। अत: प्रश्नगत निर्णय में किसी हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं है। ऐसी स्थिति में इन समस्त परिस्थितियों को देखते हुए वर्तमान अपील निरस्त किए जाने योग्य है तथा विद्वान जिला फोरम द्वारा पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश पुष्ट होने योग्य है।
आदेश
अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम/आयोग, हमीरपुर द्वारा परिवाद सं0-११७/२००९ में पारित प्रश्नगत निर्णय एवं आदेश दिनांक ०१-१०-२०१३ की पुष्टि की जाती है।
अपील व्यय उभय पक्ष पर।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रति नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
वैयक्तिक सहायक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
निर्णय आज खुले न्यायालय में हस्ताक्षरित, दिनांकित होकर उद्घोषित किया गया।
(राजेन्द्र सिंह) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
प्रमोद कुमार,
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट नं.-२.