Rajasthan

Jaipur-I

CC/615/2008

SMT. KOSHLYA DEVI - Complainant(s)

Versus

SHARMA CHERITABLE HOSPITAL - Opp.Party(s)

RAJENDRA KUMAR

10 Jul 2014

ORDER

Heading1
Heading2
 
Complaint Case No. CC/615/2008
 
1. SMT. KOSHLYA DEVI
VILLAGE PATALVAS TEH.- JAMWARAMGARH, DIST JAIPUR
...........Complainant(s)
Versus
1. SHARMA CHERITABLE HOSPITAL
RAMGARH ROAD SAYAPURATEH JAMWARAMGARH JAIPUR
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE R.K.Mathur PRESIDENT
 HON'BLE MRS. Seema sharma MEMBER
 HON'BLE MR. O.P. Rajoriya MEMBER
 
For the Complainant:RAJENDRA KUMAR , Advocate
For the Opp. Party: ARUN JAIN, Advocate
ORDER

जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष मंच, जयपुर प्रथम, जयपुर

समक्ष:    श्री महेन्द्र कुमार अग्रवाल - अध्यक्ष
          श्रीमती सीमा शर्मा - सदस्य
          श्री ओमप्रकाश राजौरिया - सदस्य

परिवाद सॅंख्या: 615/2008
श्रीमती कौशल्य देवी पत्नि श्री नानगराम शर्मा उम्र 37 साल, निवासी ग्राम पातलवास तहसील जमवारागढ़, जिला जयपुर (मृतक) दौरान परिवाद दिनांक 19.11.2013

1/1 - नानगराम शर्मा पुत्र श्री प्रभूदयाल शर्मा (पति)
1/2 - सुरेश पुत्र श्री नानगराम शर्मा (पुत्र)
1/3 - राजेश पुत्र श्री नानगराम शर्मा (पुत्र)
निवासीयान ग्राम पातलवास तहसील जमवारामगढ़, जिला जयपुर 

                                              परिवादी
               ं     बनाम

1.    शर्मा चैरीटेबल हास्पिटल एवं रिसर्च संस्थान, रामगढ रोड़, सायपुरा तहसील जमवारामगढ़, जयपुर जरिए प्रबंध निदेशक 
2.    मधुसुदन शर्मा पुत्र श्री घनश्याम शर्मा, निवासी ई-5 नरवरपुरी काॅलोनी, बास बदनपुरा जयपुर हाल शर्मा चैरीटेबल हास्पिटल एवं रिसर्च संस्थान, रामगढ रोड़, सायपुरा तहसील जमवारामगढ़, जयपुर
3.    त्रिलोकचंद पुत्र श्री रामस्वरूप गुप्ता, निवासी ग्राम डूडीपुरा, तहसील सपोटरा, जिला करोली हाल शर्मा चैरीटेबल हास्पिटल एवं रिसर्च संस्थान, रामगढ रोड़, सायपुरा तहसील जमवारामगढ़, जयपुर
              विपक्षी

अधिवक्तागण :-
श्री राजेन्द्र कुमार - परिवादी
श्री अरूण जैन - विपक्षी सॅंख्या 1 व 2

                             परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक: 05.06.08

                    आदेश     दिनांक: 07.01.2015

परिवादिया श्रीमती कौशल्य देवी पत्नि श्री नानगराम ने शर्मा चेैरीटेबल हाॅस्पिटल एवं रिसर्च संस्थान, रामगढ़ रोड़ एवं मधुसुदन शर्मा व त्रिलोकचंद के विरूद्ध यह परिवाद अन्तर्गत धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 पेश किया है । परिवाद के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार है कि दिनांक 22.03.2007 को परिवादिया के पेटे में दर्द की शिकायत होने पर वह अपने पति के साथ विपक्षी सॅंख्या 1 अस्पताल में इलाज के लिए गई जहां पर चिकित्सकों द्वारा उसकी जांच की गई । इस पर परिवादिया ने विपक्षी सॅंख्या 2 चिकित्सक के बताए अनुसार दवाइयां ली परन्तु दिनांक 08.05.2007 को परिवादिया के पेट में पुन: दर्द की शिकायत होने पर वह दुबार विपक्षी सॅंख्या 1 के अस्पताल में गई । विपक्षी सॅंख्या 2 द्वारा परिवादिया का एक्स-रे व अन्य जांच के लिए लिखा गया । विपक्षी सॅंख्या 2 ने जांच रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि परिवादिया की बच्चेदानी खराब है तथा अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ मौजूद है जिनसे जांच करवाया जाना आवश्यक है । इस प्रकार परिवादिया ने विपक्षी सॅंख्या 3 के पास जाकर अपनी जांच रिपोर्ट दिखाई । विपक्षी संख्या 3 ने पुन: जांच करवाते हुए परिवादिया को बताया कि बच्चेदानी का आॅपरेशन करने पर ही उसकी बतीयत ठीक हो सकती है । इस पर विपक्षी सॅंख्या 3 ने दिनांक 09.05.2007 को आॅपरेशन करते हुए परिवादिया की बच्चेदानी निकाल दी और दिनांक 16.05.2007 को  अस्पताल से छुट्टी दी गई । तत्पश्चात विपक्षी सॅंख्या 3 द्वारा बताई गई दवाइयां लेने पर भी परिवादिया के पेट दर्द होने के कारण परिवादिया विपक्षी सॅंख्या 1 अस्पताल में गई जाहं उसे भर्ती कर लिया गया और उसकी स्थिति में सुधारा नहीं होने के कारण व स्थिति ज्यादा खराब हो जाने के कारण परिवादिया को सवाई मानसिंह अस्पताल , जयपुर में रैफर कर दिया । दिनांक 03.06.2007 को परिवादिया को सवाई मानसिक अस्पताल में भर्ती किया गया और दिनांक  07.06.2007 को को परिवादिया का अपेन्डिक्स का आॅपरेशन किया गया । दिनांक 13.06.2007 को परिवादिया को छुट्टी दे दी गई । सात दिन की दवाइयां लिखी जिससे परिवादिया के पेट दर्द की शिकायत दूर हो गई ।
परिवादिया ने अपने परिवाद में आगे कहा है कि विपक्षी सॅंख्या 1 के अस्पताल में विपक्षी सॅंख्या 2 व 3 के द्वारा भी परिवादिया को अनावश्यक दवाइयाॅं दी गई तथा अपेन्डिक्स के स्थान पर बच्चे दानी का आॅपरेशन कर दिया गया । जिससे परिवादया को बेहद शारीरिक व मानसिक परेशानियां झेलनी पड़ी। इस  बाबत विपक्षीगण द्वारा गई लापरवाही की शिकायत पुलिस थाना आमेर में दर्ज करवाई गई । जिस पर पुलिस द्वारा प्रकरण दर्ज कर तपतीश की गई । डेली न्यूज समाचार पत्र में भी विपक्षीगण की लापरवाही की खबर प्रकाशित हुई । विपक्षीगण द्वारा परिवादिया ने अनुचित लाभ कमाने की नियत से अनावश्यक दवाइयां दी गई । अनावश्यक बच्चेदानी का आॅपरेशन कर दिया गया जिससेस परिवादिया को हैरानी व परेशानी का सामना करना पड़ा तथा मानसिक व शारीरिक वेदना झेलनी पड़ी जिसके लिए परिवादिया ने  2,50,000/- रूपए, धन व समय के नुकसान के पेटे 1,00,000/- रूपए, अनुचित रूप से वसूल किए गए 5000/- रूपए, परिवाद खर्च के 5500/- रूपए इस प्रकार कुल 3,60,000/- रूपए मय ब्याज परिवाद प्रस्तुत करने की दिनांक से दिलवाए जाने का निवेदन किया है ।
परिवादिया द्वारा परिवाद पेश किए जाने के उपरांत विपक्षी शर्मा चैरिटेबल अस्पताल की ओर से श्री अरूण जैन, श्री प्रशांत मंत्री की ओर से वकालतनाम पेश किया गया है । दिनांक 30.04.2012 को विपक्षीगण की ओर से कोई उपस्थित नहीं हुआ ना ही जवाब पेश किया गया । इस पर विपक्षीगण के विरूद्ध एक तरफा कार्यवाही के आदेश किए गए । तत्पश्चात परिवादिया की मृत्यु हो जाने पर उसके उत्तराधिकारीगण को पत्रावली पर लिए जाने हेतु प्रार्थना-पत्र पेश किया गया । जिस पर मंच द्वारा दिनांक 23.12.2013 के ओदश से परिवादिया श्रीमती कौशल्य देवी के उत्तराधिकारीगण नानगराम पति, सुरेश व राजेश को बतौर उत्तराधिकारी परिवाद लड़ने की अनुमति प्रदान की गई । इसके उपरांत दिनांक 10.11.2014 को विपक्षी सॅंख्या 1 व 2 की ओर से एकतरफा कार्यवाही को निरस्त किए जाने व जवाब को रिकाॅर्ड पर लेने का प्रार्थना-पत्र पेश किया जिसे मंच ने अपने आदेश दिनांक 10.11.2014 के द्वारा खारिज कर दिया ।   
तत्पश्चात विपक्षीगण की ओर से उनके अधिवक्ता उपस्थित हुए और यह कहा गया कि उनका जवाब रिकाॅर्ड पर नहीं लिया गया है परन्तु उन्हें बहस करने की अनुमति दी जावे ।                                                                                                                                                                                                     
हमने दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्ता को सुना एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया । 
परिवादीगण के अधिवक्ता की ओर से बहस की गई कि नानगराम की पत्नि व सुरेश तथा राजेश की माता श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया पेटे में दर्द की शिकायत होने पर दिनांक 22.03.2007 को इलाज के लिए विपक्षी संस्थान शर्मा चैरिटेबल अस्पताल अपने पति नानगराम के साथ गई । जहां पर विपक्षी सॅंख्या 2 ने श्रीमती कौशल्य देवी की जांच करने के पश्चात दवाइयां लिख दी और जांच करवाने के लिए कहा । श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया के खून की जांच रिपोर्ट आने पर विपक्षी सॅंख्या 2 डाॅक्टर मधुसुदन द्वारा कहा गया कि सब कुछ सामान्य है परन्तु  दिनांक 08.05.2007 को श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया के पेट में पुन: दर्द की शिकायत होने पर वह दुबार विपक्षी सॅंख्या 1 के अस्पताल में इलाज के लिए गई जहां पर विपक्षी सॅंख्या 2 द्वारा उसका एक्स-रे, ई.सी.जी. व जांच करवाई गई । विपक्षी सॅंख्या 2 ने जांच रिपोर्ट देखने के बाद बताया कि मृतक परिवादिया की बच्चेदानी खराब है तथा अस्पताल में स्त्री रोग विशेषज्ञ मौजूद है जिसे दिखाया जावे । इस पर कौशल्य देवी मृतक परिवादिया को विपक्षी सॅंख्या 3 को दिखाया तो उन्होंने जांच रिपोर्ट देखकर बताया कि बच्चेदानी का आॅपरेशन होने पर ही उसकी बतीयत ठीक हो सकती है ।  दिनांक 09.05.2007 को आॅपरेशन करते हुए मृतक परिवादिया की बच्चेदानी निकाल दी और दिनांक 16.05.2007 को  अस्पताल से छुट्टी दी गई । दिनांक 30.05.2007 को मृतक परिवादिया के पेट दर्द होने के कारण वह विपक्षी सॅंख्या 1 अस्पताल में गई जहंा उसे भर्ती कर लिया गया और उसकी स्थिति में सुधारा नहीं होने के कारण व स्थिति ज्यादा खराब हो जाने के कारण  सवाई मानसिंह अस्पताल , जयपुर के लिए रैफर कर दिया । दिनांक 03.06.2007 को मृतक परिवादिया को सवाई मानसिक अस्पताल में भर्ती किया गया और दिनांक  07.06.2007 को मृतक परिवादिया का अपेन्डिक्स का आॅपरेशन किया गया । दिनांक 13.06.2007 को परिवादिया को छुट्टी दे दी गई और सात दिन की दवाइयां लिखी जिससे श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया के पेट दर्द की शिकायत दूर हो गई । परिवादीगण के अधिवक्ता की ओर से यह बहस की गई है कि विपक्षी सॅंख्या 1 के अस्पताल में विपक्षी सॅंख्या 2 व 3 के द्वारा श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया को अनावश्यक दवाइयाॅं दी गई तथा अपेन्डिक्स के स्थान पर बच्चे दानी का आॅपरेशन कर दिया गया । जिससे श्रीमती कौशल्य देवी को मानसिक वेदना झेलनी पड़ी। प्रथम सूचना रिपोर्ट पुलिस थाना आमेर में दर्ज करवाई गई । विपक्षी सॅंख्या 2 व 3 की लापरवाही के कारण श्रीमती कौशल्य देवी के शारीरिक कमजोरी आ गई जिससे वह रोजमर्रा का कार्य करने में तकलीफ महसूस करने लगी । विपक्षीगण द्वारा मृतक परिवादिया से अनुचित लाभ कमाने की नियत से अनावश्यक दवाइयां दी गई और बिना कारण बच्चेदानी का आॅपरेशन कर दिया गया । परिवादीगण के अधिवक्ता की ओर से बहस की गई है कि तत्पश्चात श्रीमती कौशल्य देवी की विपक्षी सॅंख्या 2 व 3 द्वारा किए गए गलत इलाज के परिणामस्वरूप मृत्यु हो गई इसलिए विपक्षी संस्थान से श्रीमती कौशल्य देवी को हैरानी व परेशानी करने  तथा मानसिक व शारीरिक वेदना झेलनी पड़ी  और आर्थिक नुकसान वहन करना पड़ा जिसके लिए   3,50,000/- रूपए, अनुचित रूप से वसूल किए गए 5000/- रूपए दिलवाए जावें ।
विपक्षी शर्मा चैरिटेबल अस्पताल की ओर से बहस की गई है कि विपक्षी संस्थान द्वारा श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया की एल्ट्रासोनोग्राफी जांच करवाई गई थी । जांच के पश्चात उसकी बच्चेदानी में फाइब्राॅएड (केंसर की गांठ) पाई गई थी जिसके सम्बन्ध मेें कौशल्या देवी को बता दिया गया था और उसके द्वारा सहमति दिए जाने पर दिनांक 09.05.2007 को बच्चेदानी का आॅपरेशन किया गया । तत्पश्चात श्रीमती कौशल्य देवी 16.05.2007  को छुट्टी लेकर स्वेच्छापूर्वक अपने पति के साथ चली गई । विपक्षी संस्थान द्वारा श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया के इलाज में किसी प्रकार की लापरवाही बरती गई हो इस सम्बन्ध में परिवादीगण की ओर से किसी विशेषज्ञ की रिपोर्ट पेश नहीं की गई है तथा श्रीमती कौशल्य देवी की बच्चेदानी में फाइब्राॅइड्स (कंेसर की गांठ)  होने के कारण ही उसका आॅपरेशन किया गया तथा मृतक परिवादिया ने अस्पताल द्वारा जो दवाइयां लिखी थी उन्हें नियमित रूप से नहीं लेने के कारण  पोस्ट आॅपरेटिव एडीशन ओब्सट्रेक्शन हो जाने से एडीशन आॅब्स्ट्रेक्शन्स को हटाने के लिए आॅपरेट किया गया ताकि भविष्य में कोई तकलीफा न हो । अपेन्डिक्स में कोई खराबी नहीं थी बल्कि भविष्य में मरीज को बचाने के लिए अपेन्डिक्स का आॅपरेशन एस.एम.एस. अस्पातल में किया गया था । चूंकि श्रीमती कौशल्या देवी मृतक परिवादिया के इलाज में किसी प्रकार की कोई लापरवाही नहीं बरती गई ना ही सेवादोष कारित किया इसलिए परिवाद सव्यय खारिज किया जावे ।
विपक्षी की ओर से हमारा ध्यान माननीय उच्चतम न्यायालय के निर्णय (2010) 3 एस सी सी कुसुम शर्मा एण्ड अदर्स बनाम बत्रा हाॅस्पीटल एण्ड मेडिकल रिसर्च सेंटर एण्ड अदर्स, आन्ध्रप्रदेश राज्य आयोग के निर्णय 2010(3) सी पी आर 381 जी. वेन्कटेश्वर राॅय (डाॅ0) एण्ड अदर्स बनाम  सिद्धनथापु वेन्कटालक्ष्मी तथा राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली के निर्णय 2010(4) सी पी आर 79 (एन सी) रूथ राजेश्वरी बनाम डाॅ0 उपालापपति वेन्युगोपाला राॅय के मामले में दिए गए निर्णय की ओर दिलाया है।
हमने उभय पक्षों के तर्को पर गम्भीरतापूर्वक विचार किया और उनकी ओर से प्रस्तुत न्यायिक दृष्टांतों का सावधानीपूर्वक अवलोकन किया ।
इस सम्बन्ध में विवाद नहीं है कि श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया 22.03.2007 को पेट में दर्द होने की शिकायत होने पर अपने पति के साथ शर्मा चैरिटेबल हाॅस्पीटल में गई थी जहां उसका इलाज किया गया । शर्मा चैरिटेबल हाॅस्पीटल में किए गए ईलाज के दस्तावेजात परिवादीगण की ओर से परिवाद के साथ पेश किए गए है जिनके अवलोकन से स्पष्ट होता है कि दिनांक 22.03.2007 को श्रीमती कौशल्या देवी की अल्ट्रासोनोग्राफी की गई और उसके यूटरस में (फाइब्राॅएड) होना पाया गया । परिवादिया के डिस्चार्ज टिकिट व अन्य प्रेस्क्रेप्शन से यह बात स्पष्ट होती है कि श्रीमती कौशल्यदेवी व उसके पति की सहमति के आधार पर बच्चेदानी का आॅपरेशन किया जाकर बच्चेदानी को निकाल दिया गया था । परिवादीगण के अधिवक्ता का यह कथन है कि श्रीमती कौशल्या देवी के पेट में दर्द की शिकायत से निजात नहीं मिलने पर जब उसे दुबारा विपक्षी सॅंख्या 1 अस्पताल में भर्ती करवाया तब उसे एस एम एस अस्पताल में रैफर कर दिया जहां पर उसे भर्ती कर लिया और एस एम एस अस्पताल में अपेन्डिसेक्टोमी (अपेन्डिक्स का आॅपरेशन) किए जाने के पश्चात श्रीमती कौशल्या देवी को दर्द से मुक्ति मिल गई । विपक्षी शर्मा चैरिटेबल हाॅस्पीटल एवं रिसर्च संस्थान के चिकित्सक द्वारा श्रीमती कौशाल्य देवी की बच्चेदानी में केंसर की गांठ नहीं होने पर आॅपरेशन किया गया हो और बच्चेदानी निकाल दी गई हो ऐसी किसी विशेषज्ञ की रिपोर्ट पत्रावली पर नहीं है ।
माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा (2010) 3 एस सी सी कुसुम शर्मा एण्ड अदर्स बनाम बत्रा हाॅस्पीटल एण्ड मेडिकल रिसर्च सेंटर एण्ड अदर्स के मामले में दिए गए निर्णय में निर्णय के पैरा सॅंख्या 75 में यह उद्धत किया है कि ।   A doctor faced with an emergency "Oridinarily tries his best to redeem the patient out of his suffering.He dose not gain anything by acting with neglience or by omitting to do an act. Obviously,therefore, it will be for the complainant to clearly make out a case of negligence before a medical practitioner is charged with or proceeded against criminally."  सर्वोच्च न्यायालाय ने उपरोक्त न्यायिक दृष्टांत में इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है कि परिवादीगण के लिए यह बात साबित करना आवश्यक है संबंधित चिकित्सकों द्वारा श्रीमती कौशल्य देवी मृतक परिवादिया के इलाज में लापरवाही बरती गई है परन्तु ऐसी कोई रिपोर्ट परिवादीगण की ओर से पेश नहीं हुई है । 
माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग, नई दिल्ली के निर्णय 2010(4) सी पी आर 79 (एन सी) रूथ राजेश्वरी बनाम डाॅ0 उपालापपति वेन्युगोपाला राॅय के मामले में दिए गए निर्णय में इस सिद्धान्त को प्रतिपादित किया है कि किसी भी चिकित्सक को मेडिकल नेगलीजेन्शी का दोषी करार देने के सम्बन्ध में परिवादी को उसके लिए विश्वसनीय साक्ष्य पेश करना आवश्यक है ताकि डाॅक्टर पर लगाए गए आरोप प्रमाणित हो सके । इसी प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मेडिकल नेगलीजेन्शी के मामले में जो विभिन्न न्यायिक दृष्टांत दिए हैं उनमें यह कहा है - ‘ 

The Supreme Court observed that the skill of medical practitioners differs from doctor to doctor. The very nature of the profession is such that there may be more than one course of treatment which may be advisable for treating a patient. Courts would indeed be slow in attributing negligence on the part of a doctor if he has performed his duties to the best of his ability and with due care and Caution. Medical opinion may differ with regard to the course of action to be taken by a doctor treating a patient, but as along as a doctor acts in a manner which is acceptable to the medical profession and the Court finds that he has attended on the patient with due care skill and diligence and if the patient still does not survive of suffers a permanent ailment, it would be difficult to hold the doctor to be guilty of negligence." 
इस प्रकार परिवादिया की ओर से ऐसी कोई विश्वसनीय अथवा विशेषज्ञ की साक्ष्य पेश नहीं की गई है जिससे यह बात प्रमाणित हो सके कि विपक्षी शर्मा चैरिटेबल हाॅस्पीटल एवं रिसर्च संस्थान द्वारा श्रीमती कौशल्या देवी मृतक परिवादिया के इलाज में कोई लापरवाही बरती गई हो और श्रीमती कौशल्या देवी की बच्चेदानी में केंसर की गांठ नहीं होने पर भी अनुचित लाभ उठाने के लिए आॅपरेशन कर बच्चेदानी निकाल दी गई हो ।
परिवादीगण की ओर से बहस की गई है कि श्रीमती कौशल्या देवी की मृत्यु इलाज में लापरवाही किए जाने के कारण वर्ष 2013 में हुई थी । हम परिवादीगण द्वारा उठाई गई इस आपत्ति से सहमति प्रकट नहीं करते हैं क्योंकि ऐसी कोई साक्ष्य पेश नहीं की गई है जिससे यह बात प्रमाणित हो सके कि श्रीमती कौशल्या देवी की मृत्यु विपक्षी संस्थान में इलाज के दौरान बरती गई लापरवाही के कारण हुई हो ।
हमारी राय में किसी भी चिकित्सक के विरूद्ध इलाज में लापरवाही का मामला उस समय तक नहीं बनता है जब तक यह बात स्पष्ट साक्ष्य अथवा किसी विशेषज्ञ रिपोर्ट से साबित नहीं की जावे कि उनके द्वारा इलाज में बीमारी के अनुरूप सावधानी नहीं बरती गई अथवा जो दवाइयाॅं दी गई तथा जो आॅपरेशन किया गया वह अनावश्यक था ।
उपरोक्त विवेचन के आधार पर मंच की राय में विपक्षी संस्थान के विरूद्ध कौशल्य देवी के इलाज के बारे में लापरवाही बरतने का मामला प्रमाणित नहीं होता है इसलिए यह परिवाद खारिज किए जाने योग्य है । 
                आदेश
अत: परिवादीगण का परिवाद खारिज किया जाता है । प्रकरण का खर्चा पक्षकारान अपना-अपना वहन करेंगे ।   
                                                                                                                                                                                                                                                                                                                               
निर्णय आज दिनांक 07.01.2015 को लिखाकर सुनाया गया।


( ओ.पी.राजौरिया )   (श्रीमती सीमा शर्मा)  (महेन्द्र कुमार अग्रवाल)    
     सदस्य              सदस्य          अध्यक्ष      


 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE R.K.Mathur]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. Seema sharma]
MEMBER
 
[HON'BLE MR. O.P. Rajoriya]
MEMBER

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