(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
अपील सं0- 1840/1999
(जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, झांसी द्वारा परिवाद सं0- 507/1998 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 01.06.1999 के विरुद्ध)
Branch Manager, Jhansi Golden Transport Company, Puran Bus Stand, Jhansi.
……..Appellant
Versus
1. M/s Sharma Ayurved Mandir through Lekpal Shri Balram Gupta, S/o Late Ratanlal Gupta, R/o Sharma Ayurved Kendra, Shivpuri road, Jhansi.
2. Prabandhak, Jhansi Golden Transport Company, Bans Mandi, Gurudwara Road, Nakahindola, Lucknow.
……….Respondents
समक्ष:-
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
माननीया डॉ0 आभा गुप्ता, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से : श्री वी0पी0 शर्मा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 1 की ओर से : श्री आलोक सिन्हा,
विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0- 2 की ओर से : कोई नहीं।
दिनांक:- 28.03.2022
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उद्घोषित
निर्णय
1. परिवाद सं0- 507/1998 मै0 शर्मा आयुर्वेद मन्दिर बनाम दि मैनेजर गोल्डेन ट्रांसपोर्ट कम्पनी व एक अन्य में जिला उपभोक्ता आयोग, झांसी द्वारा पारित निर्णय व आदेश दि0 01.06.1999 के विरुद्ध यह अपील धारा 15 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 के अंतर्गत राज्य आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई है।
2. मामले के तथ्य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने इन अभिकथनों के साथ परिवाद योजित किया है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनी है और सम्पूर्ण देश में औषधियों के निर्माण एवं वितरण का व्यवसाय करती है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने दि0 10.04.1997 तथा दि0 13.04.1997 को अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 दि ब्रांच मैनेजर झांसी गोल्डेन ट्रांसपोर्ट कम्पनी से झांसी से सीवान के लिए माल बुक कराया था जिसकी डिलीवरी स्वयं प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी को प्राप्त करनी थी। माल बुक कराने के उपरांत प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने अपने सीवान कार्यालय को माल बुक करने की सूचना भेज दी, किन्तु दस दिन तक माल गंतव्य स्थान पर नहीं पहुँचा। अपीलार्थी/विपक्षीगण से सम्पर्क करने पर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी को कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। अपीलार्थी/विपक्षीगण को विधिक नोटिस देने के उपरांत भी अनुतोष प्राप्त नहीं हुआ, जिससे व्यथित होकर प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने परिवाद प्रस्तुत किया है।
3. जिला उपभोक्ता आयोग के सम्मुख अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 द्वारा प्रतिवाद-पत्र प्रस्तुत किया गया है, जिसमें अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 ने इस आधार पर परिवाद का विरोध किया कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी अथवा उसके अधिकृत विक्रेता के माल प्राप्त करने हेतु डिलीवरी स्थल पर न पहुँचने के कारण माल अभी तक डिलीवरी स्थल पर पड़ा है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी डेमरेज आदि अदा करके माल प्राप्त कर सकता है।
4. प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने केवल झांसी से माल ले जाने के लिए संविदा की थी। अत: सीवान से वापस झांसी माल वापस लेने के लिए अपीलार्थी/विपक्षीगण का उत्तरदायित्व नहीं है। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के सीवान स्थित अधिकृत विक्रेता ने माल की बिल्टी का भुगतान नहीं किया था जिस कारण बैंक द्वारा बिल्टी वापस कर दी गई थी। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी को सीवान स्थित अधिकृत विक्रेता माल लेने का इच्छुक नहीं था, इसीलिए उसने माल के मूल्य का भुगतान बैंक को नहीं किया था। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने अनुचित दबाव डालने के लिए यह परिवाद प्रस्तुत किया है।
5. विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने इन आधारों पर परिवाद आज्ञप्त किया कि कैरियर ट्रांसपोर्ट कम्पनी का उत्तरदायित्व केवल माल बुक किए गए माल को गंतव्य स्थान तक सुरक्षित पहुँचाना है। माल में हुई क्षति के लिए कैरियर ट्रांसपोर्ट कम्पनी उसी प्रकार से उत्तरदायित्व रखती है जिस प्रकार का उत्तरदायित्व बीमा कम्पनी का होता है तथा उपभोक्ता को कैरियर ट्रांसपोर्ट कम्पनी की लापरवाही साबित करना आवश्यक नहीं है। उपरोक्त निर्णय से व्यथित होकर यह अपील प्रस्तुत की गई है।
6. अपील में मुख्य रूप से यह कथन किया गया है कि परिवाद पावर आफ अटार्नीधारक बलराम गुप्ता द्वारा योजित किया गया है। अत: परिवाद संधारणीय नहीं है। इस तथ्य को विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने नजरंदाज किया है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 की ओर से सेवा में कोई कमी नहीं की गई थी तथा गंतव्य स्थान पर प्रश्नगत माल को पहुँचा दिया। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी द्वारा ट्रांसपोर्टेशन एवं डेमरेज शुल्क भी अदा नहीं किया गया जिसको छिपाकर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया था। श्री बलराम गुप्ता के पक्ष में कोई पावर आफ अटार्नी निष्पादित नहीं किया, अत: उन्हें वाद योजित करने का कोई अधिकार नहीं है। विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग का निष्कर्ष तथ्य एवं साक्ष्य के विपरीत हैं। अत: प्रश्नगत निर्णय अपास्त होने एवं परिवाद खारिज होने योग्य है।
7. हमने अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता श्री वी0पी0 शर्मा तथा प्रत्यर्थी सं0- 1 के विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक सिन्हा को सुना एवं प्रश्नगत निर्णय व आदेश तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का सम्यक परिशीलन किया गया।
8. प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी द्वारा परिवाद पत्र में यह कथन किया गया है कि उसने अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 1 झांसी गोल्डन ट्रांसपोर्ट से अपना माल सीवान भेजने की संविदा की थी। उक्त माल उसके स्वयं के अभिकर्ता/विक्रेता द्वारा सीवान में प्राप्त किया जा रहा था। परिवाद पत्र में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 का कथन यह है कि उक्त बिल्टी का भुगतान न होने पर भी बिना माल के भुगतान की सुपुर्दगी अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 द्वारा क्रेता को दे दी गई थी, जब कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 का कथन है कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने इस माल को स्वयं प्राप्त नहीं किया था। परिवाद पत्र के प्रस्तर 5 में स्पष्ट रूप से अंकित किया गया है कि ''माल बुक कराने वाला प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी एवं माल की डिलीवरी लेने वाला प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी स्वयं ही था'' परिवाद पत्र के प्रस्तर 6 में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ''माल बुक कराने के बाद अपने सीवान कार्यालय एवं अधिकृत विक्रेता को सूचित कर दिया कि हमने अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 के माध्यम से माल भेज दिया है। परिवाद के प्रस्तर 7 में कथन है कि दस दिन व्यतीत हो जाने के उपरांत माल गंतव्य स्थान तक नहीं पहुँचा। इसी आधार पर यह परिवाद प्रस्तुत किया गया है।
9. प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 का कथन है कि ट्रांसपोर्टर के रूप में उन्होंने गंतव्य स्थान पर माल पहुँचा दिया था, किन्तु वादी अथवा उसके अधिकृत प्रतिनिधि माल अथवा दवायें उठाने नहीं आये। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 के प्रतिनिधि से माल और दवा उठाने को कहा, किन्तु उन्होंने नहीं उठाया जब कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी का कथन है कि माल गंतव्य स्थान पर पहुँचा ही नहीं। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 द्वारा प्रस्तुत किए गए जवाबदावे में इस तथ्य को स्पष्ट नहीं किया गया है कि वह कौन से प्रतिनिधि थे जिनसे अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 मिले थे एवं भेजा गया माल उठाने के लिए कहा गया था। अत: अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 के कथनों से यह स्पष्ट नहीं होता है कि वास्तव में माल गंतव्य स्थान पर पहुँचा था।
10. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 की ओर से इन्हीं पक्षकारों के मध्य अपील सं0- 3100/2001 तथा 3101/2001 निर्णय व आदेश दिनांकित 13.12.2021 पर बल दिया गया जो इसी आयोग की पीठ द्वारा निस्तारित किया गया है। उक्त निर्णयों में प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के विद्वान अधिवक्ता द्वारा दिए गए विधिक नोटिस पर आधारित करते हुए यह निष्कर्ष दिया गया कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी ने प्रश्नगत माल को गंतव्य स्थान पर पहुँचाना स्वीकार किया है। उक्त अधिवक्ता का नोटिस जो प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी की ओर से ही दिया गया। प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी की सस्वीकृति मानी जा सकती है, क्योंकि धारा 18 भारतीय साक्ष्य अधिनियम के अनुसार पक्षकारों के प्रतिनिधि द्वारा ली गई सस्वीकृति पक्षकार पर बाधित होती है।
11. प्रस्तुत मामले के तथ्य उपरोक्त मामले से भिन्न हैं। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 की ओर से अभिलेख पर ऐसे किसी विधिक नोटिस की प्रतिलिपि साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत नहीं की गई है जिसमें प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी या उसके प्रतिनिधि की ऐसी कोई सस्वीकृति हो कि प्रश्नगत माल को, पार्टी को या उसके प्राधिकृत व्यक्ति को सुपुर्द कर दिया गया था जब कि पूर्व के निर्णय में विधिक नोटिस अभिलेख पर थी जिसमें अधिवक्ता द्वारा यह कहा गया था कि प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के माल को प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी की पार्टी को बिल्टी के हस्तगत कर दिया गया है। इस प्रकार माल को गंतव्य स्थान पर पहुँचाने की सस्वीकृति प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के विधिक प्रतिनिधि द्वारा की गई थी जब कि इस मामले में ऐसा कोई अभिलेख प्रस्तुत नहीं किया गया है जिससे यह साबित हो सके कि माल गंतव्य स्थान पर पहुँचा दिया गया था, अत: अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 द्वारा प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी का यह तथ्य साबित नहीं किया गया है कि माल को ट्रांसपोर्टर द्वारा गंतव्य स्थान पर पहुँचाया गया था, अत: यह नहीं माना जा सकता कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 परिवहनकर्ता ने अपना कार्य माल को गंतव्य स्थान पर पहुँचा कर संविदा पूर्ण की, अत: प्रत्यर्थी सं0- 1/परिवादी के कथन उचित माने जाते हैं एवं यह मानना उचित है कि अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 परिवहनकर्ता ने समय से गंतव्य स्थान पर माल न पहुँचाकर सेवा में त्रुटि की है। इसके लिए उसे विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने उचित प्रकार से क्षतिपूर्ति प्रदान की है।
12. इस मामले में The Carriage by Road Act, 2007 के प्रावधान उल्लेखनीय हैं। इस अधिनियम के अंतर्गत दी गई परिभाषाओं से अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 कॉमन कैरियर की परिभाषा के अंतर्गत आता है जिसके अनुसार कॉमन कैरियर वह व्यक्ति होता है जो माल को ले जाने व अग्रसारित करने का कार्य करता है। धारा 2A के अनुसार-
“common carrier” means a person engaged in the business of collecting, storing, forwarding or distributing goods to be carried by goods carriages under a goods receipt or transporting for hire of goods from place to place by motorised transport on road, for all persons undiscriminatingly and includes a goods booking company, contractor, agent, broker and courier agency engaged in the door-to-door transportation of documents, goods or articles utilising the services of a person, either directly or indirectly, to carry or accompany such documents, goods or articles, but does not include the Government;"
13. उपरोक्त परिभाषा के अनुसार अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 झांसी गोल्डेन ट्रांसपोर्ट कम्पनी कॉमन कैरियर की परिभाषा में आता है जिनका उत्तरदायित्व उपरोक्त अधिनियम की धारा 12 के अनुसार नॉन डिलीवरी के मामले में बनता है तथा अधिनियम की धारा 12(2) के अनुसार नॉन डिलीवरी के मामले में कंसाइनी को यह साबित करने की आवश्यकता नहीं है कि यह नॉन डिलीवरी कॉमन कैरियर के किसी कर्मचारी या एजेंट की लापरवाही के कारण हुई है। धारा 12 निम्नलिखित प्रकार से है:-
Conditions limiting exonerating the liability of the common carrier.—
(1) Every common carrier shall be liable to the consignor for the loss or damage to any consignment in accordance with the goods forwarding note, where such loss or damage has arisen on account of any criminal act of the common carrier, or any of his servants or agents.
(2) In any suit brought against the common carrier for the loss, damage or non-delivery of consignment, it shall not be necessary for the plaintiff to prove that such loss, damage or non-delivery was owing to the negligence or criminal act of the common carrier, or any of his servants or agents.
14. इस प्रकार प्रस्तुत मामले में अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 कॉमन कैरियर का उत्तरदायित्व इस नॉन डिलीवरी के सम्बन्ध में बनता है। यह भी उल्लेखनीय है कि अधिनियम की धारा 10(1) के अनुसार यह उत्तरदायित्व भेजे गए माल के मूल्य के बराबर निर्धारित किया जा सकता है, अत: प्रस्तुत मामले में उचित प्रकार से भेजी गई धनराशि की क्षतिपूर्ति के रूप में विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग द्वारा निर्धारित किया गया है जो उचित प्रतीत होता है।
15. अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 की ओर से एक तर्क यह दिया गया कि विद्वान जिला उपभोक्ता आयोग ने दि0 13.04.1997 से वास्तविक अदायगी तक 18 प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज प्रदान किया है जो अत्यधिक उच्च दर का है। अपीलार्थी/विपक्षी सं0- 2 का यह तर्क उचित प्रतीत होता है। इस तर्क को मानते हुए 18 प्रतिशत वार्षिक के स्थान पर 08 प्रतिशत वार्षिक ब्याज दर से ब्याज दिलवाया जाना उचित है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य हैं।
आदेश
16. अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती हैं। प्रश्नगत निर्णय व आदेश दिनांकित 01.06.1999 परिवर्तित करते हुए ब्याज दर 18 प्रतिशत वार्षिक के स्थान पर 08 प्रतिशत वार्षिक निर्धारित की जाती है। शेष निर्णय व आदेश की पुष्टि की जाती है।
अपील में उभयपक्ष अपना-अपना व्यय स्वयं वहन करेंगे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (डॉ0 आभा गुप्ता)
सदस्य सदस्य
शेर सिंह, आशु0,
कोर्ट नं0-3