जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण अजमेर
श्रीमति पूजा पत्नी श्री सुरेष जी, जाति- राजपूत, उम्र-23 वर्ष, निवासी- संजयनगर, बोराज रोड, अजमेर ।
प्रार्थीया
बनाम
1. डा0 मानकरण षारदा स्मारक अस्पताल(षारदा नर्सिग होम) एवं संस्थान जरिए मालिक/प्रबन्धक, षारदा भवन, दौलत बाग के पास, अजमेर ।
2. डा0 किरण षारदा, स्त्री रोग चिकित्सक, डा0 मानकरण षारदा स्मारक अस्पताल(षारदा नर्सिग होम) एवं संस्थान, षारदा भवन, दौलत बाग के पास, अजमेर ।
3. डा0 नम्रता ष्षारदा, स्त्री रोग विषेषज्ञ ,डा0 मानकरण षारदा स्मारक अस्पताल(षारदा नर्सिग होम) एवं संस्थान, षारदा भवन, दौलत बाग के पास, अजमेर ।
अप्रार्थीगण
परिवाद संख्या 20/2013
समक्ष
1. गौतम प्रकाष षर्मा अध्यक्ष
2. श्रीमती ज्योति डोसी सदस्या
उपस्थिति
1.श्री जवाहर लाल षर्मा, अधिवक्ता, प्रार्थीया
2.श्री प्रदीप चैरी,अधिवक्ता अप्रार्थीगण
मंच द्वारा :ः- आदेष:ः- दिनांकः- 13.05.2015
1. परिवाद के तथ्योनुसार प्रार्थीया को हार्मोनल डिस्आर्डर होने के कारण उसकी योनि से रक्त स्त्राव असीमित मात्रा में बहना ष्षुरू हो गया जिसके इलाज हेतु पहले वह डाक्टर देविका चैधरी, सह आचार्य, स्त्री रोग एवं प्रसूति विभाग, राजकीय महिला चिकित्सालय, अजमेर के पास गई । उक्त चिकित्सक ने काफी लम्बे समय तक उसका इलाज किया लेकिन जब उसको कोई फायदा नहीं हुआ तो उक्त डाक्टर की सलाहनुसार अप्रार्थी अस्पताल में दिखलाया जहां उसे दिनंाक 2.2.2012 को भर्ती कर लिया गया । अप्रार्थी अस्पताल द्वारा प्रार्थीया की जांचें जो इस अस्पताल में भर्ती करने से पूर्व डाक्टर देविका चैधरी द्वारा करवाई गई थी, का अवलोकन किया जिसमें ब्लड लेवल सामान्य था तथा युट्र्रस की साईज भी सामान्य थी । दिनांक 20.1.2012 को कराई गई सोनोग्राफी की रिर्पोट भी सामन्य थी । दिनांक 3.2.2012 को अप्रार्थी ने अपने यहां पुनः सोनोग्राफी करवाई जिसमें भी युट्र्रस व ओवरी दोनो सामान्य पाई गई । दिनांक 6.2.2012 को प्रार्थीया के युट्र्रस की बायोप्सी की जांच कराई गई जो भी सामान्य पाई गई । अप्रार्थी अस्पताल के चिकित्सकगण संख्या 2 व 3 द्वारा प्रार्थीया को लगातार विष्वास दिलाया जाता रहा है कि वे उसका इलाज कर देंगेे किन्तु उनके द्वारा दी गई दवाईयों का उस पर कोई असर नही ंहुआ । तत्पष्चात अप्रार्थी अस्पताल के चिकित्सगण ने बिना किसी कारण व बिना जंाच के प्रार्थीया का युट्र्रस निकालना तय किया एवं इस हेतु प्रार्थीया को केवल अवगत कराया गया । युट्र्रस निकालने के बाद वे युट्र्रस व उसमें पाए जाने वाले तरल पदार्थ की कैन्सर हेतु कोई जांच नहीं करवाई गई और ना ही युट्र्रस के हिस्से को बायोप्सी हेतु भेजा और ना ही अप्रार्थी के पास कोई रिर्पोट थी कि प्रार्थीया के युट्र्रस में कैन्सर है । इस प्रकार अप्रार्थी चिकित्सकों ने अपने चिकित्सकीय ज्ञान व अपनी योग्यता व सामान्य बुद्वि का उपयोग किए बिना युट्र्रस को निकालने का निर्णय लिया । परिवाद की चरण संख्या 8 में यह भी उल्लेख किया है कि अप्रार्थी संख्या 2 व 3 ने आपरेषन के लिए डाक्टरी सामान्य ज्ञान की अवेहलना करते हुए आर.टी में कट लगा दिया एवं एक ब्लेड भी अन्दर ही छोड दिया । युट्र्रस निकालने के बाद भी रक्त स्त्राव नहीं रूका । अप्रार्थी चिकित्सालय के चिकित्सक प्रार्थीया को गुमराह करते हुए व दवाईदया देते रहे तब प्रार्थीया को पुनः जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय के डाक्टर को दिखलाया जहां दिनंाक 1.5.2012 को प्रार्थीया को भर्ती किया गया व दोबारा आपरेषन किया गया और प्रार्थीया की रक्त वाहिनी को ठीक किया तब जाकर प्रार्थीया को राहत मिली । इस तरह से अप्रार्थी अस्पताल व चिकित्सकगण के विरूद्व चिकित्सकीय लापरवाही का मामला दषार्ते हुए यह परिवाद पेष किया एवं अनुतोष की मांग की है ।
2. अप्रार्थीगण की ओर से जवाब पेष हुआ जिसमें दर्षाया कि प्रार्थीया दिनंाक 2.2.2012 को अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती हुई व भर्ती होने पर उसके पूर्व के इलाज व पूर्व की जांचों की रिर्पोट का अवलोकन किया गया तथा अन्य जांचें भी करवाई जाकर इलाज षुरू किया । प्रार्थीया का यह रक्त स्त्राव स्वयं प्रार्थीया के कथनानुसार लम्बी अवधि से हो रहा था जो दवाईयों के उपरान्त भी नहीं रूका । अतः प्रार्थीया के युट्र्रस को निकलाने का ही विकल्प षेष था जिस हेतु प्रार्थीया को सूचित किया व प्रार्थीया द्वारा सहमति प्राप्त करने के उपरान्त प्रार्थीया के युट्र्रस को निकाला गया । प्रार्थीया के युट्र्रस में कैन्सर होने का कोई षक नही ंथा अतः उसकी जांच इस हेतु कराना उचित नहीं समझा गया क्योंकि प्रार्थीया के युट्र्रस की राजकीय चिकित्सालय में दिनांक 26.2.2011 व 6.2.2012 को बायोप्सी हो रखी थी । जहां तक प्रार्थीया का कथन कि आपरेषन केे दौरान कोई कट लगा दिया गया व भीतर ब्लेड छोड दी , तथ्य गलत होना दर्षाया क्योंकि सोनोग्राफी रिर्पोट प्रदर्ष-20 जो दिनांक 20.4.2012को हुई तथा जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय के बेडहेड टिकिट के अनुसार ऐसी कोई ब्लेड प्रार्थीया के ष्षरीर में नहीं पाई गई थी तथा प्रार्थीया का यह कथन भी गलत बतलाया कि युट्र्रस निकालने के बाद भी प्रार्थीया का रक्तस्त्राव नहीं रूका था एवं उसे पुनः आपरेट करना पडा बल्कि डिस्चार्ज टिकिट को देखने से उपर की अन्य ब्रान्च ’’ आयलियक’’( प्दजमतदंस पसपंब) को बान्धा गया था । अतः प्रार्थीया का यह कथन कि दोबारा आपरेषन करना पडा एवं रक्त स्त्राव रोका गया, कहना गलत है एवं किसी प्रकार की चिकित्सकीय लापरवाही से इन्कार किया ।
3. हमने पक्षकारान की बहस सुनी एवं पत्रावली का अवलोकन किया । अप्रार्थीगण की ओर से दृष्टान्त 2009क्छश्र;ैब्द्ध 310 प्देण् डंसीवजतं टे ।ण् ज्ञतपचसंदप ंदक 2013;1द्धब्तण्स्ण्त्ण्;त्ंरण्द्ध91 श्रपजमदकतं ज्ञनउंत;क्मण्द्ध टे ैजंजम व ित्ंरंेजरंदक - ।दतण् भी पेष किए तथा संबंधित चिकित्सीय संदर्भ भी पेष किए ।
4. परिवाद के निर्णय हेतु हमारे निम्नांकित बिन्दु तय करने के लिए है:-
(1) क्या प्रार्थीया को अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती करने से पूर्व से ही लम्बे समय से रक्त स्त्राव हो रहा था जो रक्त स्त्राव प्रार्थीया द्वारा राजकीय महिला चिकित्सालय में इलाज के उपरान्त भी नहीं रूका था ?
(2) क्या अप्रार्थी अस्पताल व उसके चिकित्सकगण संख्या 2 व 3 ने प्रार्थीया के युट्र्रस को बिना कारण व बिना प्रार्थीया की सहमति व बिना कैंसर की जांच के निकाल दिया ? तथा उसी क्रम में आरटी में कट लगा दिया एवं एक ब्लेड भी अन्दर छोड दी । इस प्रकार अप्रार्थीगण ने चिकित्सकीय लापरवाही बरती है ?
(3) अनुतोष
5. हमने उपरोक्त कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं के संबंध में पक्षकारान को सुना एवं प्रार्थीया द्वारा लिखित बहस पर मनन किया ।
6. अब हम उपरोक्त कायम किए गए निर्णय बिन्दुओं का निर्णय निम्नतरह से करते है:-
(1) निर्णय बिन्दु संख्या 1:- जहां तक इस निर्णय बिन्दु का प्रष्न है स्वयं प्रार्थीया ने अपने परिवाद की चरण संख्या 2,3,4 में वर्णित अनुसार दर्षाया है कि उसके हार्मोनल डिस्आर्डर के कारण उसकी योनि से रक्त स्त्राव असीमित मात्रा में बहना षुरू हो गया था एवं इस हेतु पहले डा. देविका चैधरी, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग, राजकीय महिला चिकित्सालय, अजमेर को दिखलाया । इस संबंध में पत्रावली पर डा. चैधरी के इलाज संबंधी पर्चिया उपलब्ध है । पर्ची दिनंाक 24.2.2012 व 20.1.2012 में उल्लेखित अनुसार प्रार्थीया क्न्ठ (क्लेनिदबजपवदंस नजमतपदम इसममकपदह ) रोग से ग्रसित होना वर्णित है । दिनंाक 24.2.2011 की यह पर्ची प्रार्थी जो दिनांक 2.12.2012 को अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती हुई उसके लगभग 1 वर्ष पहले की है । दूसरी पर्ची दिनंाक 2.1.2012 की डाक्टर देविका चैधरी की है जिसमें भी प्रार्थीया को क्न्ठ से ग्रसित होना दर्षाया है । इस प्रकार स्वयं प्रार्थीया द्वारा अपने परिवाद में वर्णित अनुसार प्रार्थीया को हार्मोनल डिस्आर्डर होने के कारण उसकी योनि से रक्त स्त्राव हो रहा था जो लम्बे समय से होता आ रहा था एवं राजकीय महिला चिकिसालय की चिकित्सक डा. देविका चैधरी द्वारा उस इलाज भी इसी समय में किया जाना पाया गया । अतः हम पाते है कि निर्णय बिन्दु संख्या 1 सिद्व हुआ है कि प्रार्थीया को यह रक्त स्त्राव अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती होने से करीब 1 वर्ष पूर्व से हो रहा था एवं प्रार्थीया क्न्ठ से ग्रसित होना पाई गई एवं यह रक्त स्त्राव असीमित मात्रा में होना भी स्वयं प्रार्थीया के अनुसार बतलाया गया है । अतः यह निर्णय बिन्दु इसी अनुरूप निर्णित किया जाता है ।
7. निर्णय बिन्दु संख्या 2:- इस निर्णय बिन्दु के संबंध में हुई बहस पर हमने गौर किया । परिवाद में वर्णित अनुसार एवं प्रार्थीया द्वारा की गई बहस के अनुसार प्रार्थीया की ओर से अप्रार्थीगण संख्या 2 व 3 के विरूद्व चिकित्सकीय लापरवाही इस आषय की दर्षाई कि अप्रार्थीगण ने पहले तो प्रार्थीया का इलाज किया फिर भी खून आना नहीं रूका तब प्रार्थीया के यूट्र्रस को बिना कारण व बिना जांच के निकाल दिया एवं उक्त क्रिया में भी आरटी में कट लगा दिया व एक ब्लेड भी भीतर छोड दी । अप्रार्थीगण का जवाब रहा है कि प्रार्थीया का रक्त स्त्राव अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती से पूर्व लम्बी अवधि से एवं असीमित मात्रा में हो रहा था इस हेतु प्रार्थीया का राजकीय महिला चिकित्सालय,अजमेर में इलाज चला एवं इलाज में फायदा नहीं होने पर प्रार्थीया को अस्पताल में भर्ती कराया गया किन्तु जो रक्त स्त्राव लम्बी अवधि से हो रहा था, वह इलाज से नहीं रूका एवं प्रार्थीया की जान बचाने हेतु एवं इस असीमित बहते रक्त स्त्राव को रोकने हेतु यूट्र्रस को निकालना ही एक विकल्प था । अतः प्रार्थीया की सहमति के बाद उसका यूट्र्रस निकाला गया ।प्रार्थीया का रक्त स्त्राव लम्बी अवधि से हो रहा था एवं उपचार व दवाईयों के बाद भी रूक नहीं रहा था यह तथ्य निर्णय बिन्दु संख्या 1 से सिद्व हुआ है ।
8. जहां तक यूट्र्रस निकालने से पूर्व प्रार्थीया को अवगत कराया एवं उसकी सहमति से ऐसा किया , के संबंध में अप्रार्थीगण द्वारा पेष सहमति फार्म दिनांक 5.2.2012 में वर्णित अनुसार प्रार्थीया का यह कथन रहा है कि सारे उपचार के उपरान्त भी उसके रक्त स्त्राव में कोई फायदा नहीं हुआ इसलिए वह अपनी बच्चेदानी अपनी मर्जी से निकलवाना चाहती है । इस पृष्ठांकन के नीचे प्रार्थीया के हस्ताक्षर है तथा प्रार्थीया के पति सुरेष के भी हस्ताक्षर है । इस प्रकार प्रार्थीया के यूट्र्रस को निकालाने का निर्णय प्रार्थीया को अवगत कराने के उपरान्त उसकी सहमति के बाद लिया गया जाना पाया गया है ।
9. अब हमें यह देखना है कि क्या अप्रार्थीगण चिकित्सकों द्वारा बिना किसी कारण के प्रार्थीया के यूट्र्रस को निकाल दिया या प्रार्थीया के रक्त स्त्राव को रोकने का यही एक विकल्प था कि उसका यूट्र्रस निकाला जावे।
10. अप्रार्थीगण चिकित्सकों का इस संबंध में जो कथन रहा है उसको देखने से एवं प्रार्थीया का इलाज जो अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती होने से पूर्व करीब एक वर्ष पहले से डा. देविका चैधरी , राजकीय महिला चिकित्सालय, अजमेर द्वारा दिनांक 24.2.2011 को किया में प्रार्थीया को क्न्ठ (क्लेनिदबजपवदंस नजमतपदम इसममकपदह ) रोग से ग्रसित होना बतलाया है एवं पर्ची प्रदर्ष-4 में वर्णित अनुसार प्रार्थीया को आवष्यक उपचार दिया गया । दिनंाक 20.1.2012 की पर्ची भी इसी चिकित्सक डा. देविका चैधरी की है जिसमें भी प्रार्थीया को क्न्ठ (क्लेनिदबजपवदंस नजमतपदम इसममकपदह ) रोग से ग्रसित होना बतलाया है एवं आवष्यक उपचार दिया जाना इस पर्ची में उल्लेखित है । इसके बाद प्रार्थीया अप्रार्थी अस्पताल में भर्ती हुई । अप्रार्थी अस्पताल की उपचार पर्ची में भी प्रार्थीया को क्न्ठ रोग का ग्रसित होना बतलाया है एवं प्रार्थीया को 2.2.2011 को अस्पताल में भर्ती किया गया तथा दिनांक 5.2.2012 को डिस्चार्ज किया गया ।
11. अप्रार्थीगण का कथन रहा है कि प्रार्थीया का रक्त स्त्राव जो हो रहा था वह असीमित मात्रा में व लम्बी अवधि से हो रहा था तथा दी गई दवाईयों से रक्त स्त्राव नहीं रूकने पर उनके द्वारा प्रार्थीया के यूट्र्रस को निकालने का निर्णय लिया गया जो निर्णय सही था । इस संबंध में अप्रार्थीगण की ओर से संबंधित चिकित्सकीय संदर्भ म उमकपबपदमण्उमकेबंचमण्बवउध्ंतजपबसमध्257007ण्वअमतअपमू भी पेष हुआ है । इसमें वर्णित अनुसार क्न्ठ के मामले में क्या प्रेक्टिस आवष्यक होगी, दर्षाया है तथा क्न्ठ रोग से संबंधित कारणों आदि का उल्लेख किया गया है । इस चिकित्सकीय संदर्भ में डंदहंहमउमदज हेड में निम्नतरह से उल्लेख है:-
’’ ।इकवउपदंस वत अंहपदंस ीलेजमतमबजवउल उंल इम दमबमेेंतल पद चंजपमदजे ूीव ींअम ंिपसमक वत कमबसपदम ीवतउवदंस जीमतंचलए ूीव ींअम ेलउचजवउंजपब ंदमउपंए ंदक ूीव ंतम मगचमतपमदबपदह ं कपेतनचजपवद पद जीमपत ुनंसपजल व िस्पमि तिवउ चमतेपेजमदजए नदेबीमकनसमक इसममकपदह ’’
12. अप्रार्थीगण चिकित्सकों का भी इस प्रकरण में यही कथन है कि प्रार्थीया को जो असीमित मात्रा में व अनियमित रूप से अत्यधिक रक्त स्त्राव हो रहा है वह दवाईया से नहीं रूका एवं ऐसे मामले में उनकी ओर से अप्रार्थीगण चिकित्सकों ने प्रार्थीया के यूट्र्रस को निकालना उचित समझा था एवं उनके निर्णय की पुष्टि चिकित्सकीय सामग्री से भी पाई जाती है ।
13. हमारे विनम्र मत में उपर विवेचित अनुसार प्रार्थीया को अत्यधिक रक्त स्त्राव एवं लम्बी अवधि से होने का तथ्य स्वीकृषुदा है तथा दवाईयों के उपरान्त भी उक्त रक्त स्त्राव नहीं रूका तब अप्रार्थीगण चिकित्सकों द्वारा प्रार्थीया को इस स्थिति से अवगत कराने के उपरान्त एवं प्रार्थीया की सहमति प्राप्त करने के उपरान्त उसकी बच्चेदानी निकालने का जो निर्णय लिया वो निर्णय चिकित्सकीय सामग्री के अनुसार भी सहीं होना पाया गया ।
14. जहां तक किए गए उपचार के क्रम में प्रार्थीया की एक आरटी काट दी गई एवं एक ब्लेड भीतर छोड दिया गया, के संबंध में जो अप्रार्थी प़क्ष का कथन रहा है उस पर भी गौर किया । इस संबंध में प्रार्थीया का इलाज जवाहर लाल नेहरू चिकित्ससालय में हुआ एवं जिसका रिकार्ड प्रदर्ष-26 पत्रावली पर है, को देखने से प्रार्थीया का जो आपरेषन किया गया उसे पुनः आॅपरेट नहीं किया गया बल्कि उसके उपर की अन्य ब्रान्च ’’ आयलियक’’( प्दजमतदंस पसपंब) को बान्धा गया था तथा सोनोग्राफी रिर्पोट प्रदर्ष-20 दिनंाक 20.4.2012 के अवलोकन से भी प्रार्थीया के षरीर में कोई ब्लेड आदि नहीं पाई गई थी इस तरह से प्रार्थीया का जो आपरेषन किया गया था , के संबंध में कोई दोबारा आपरेषन जवाहर लाल नेहरू चिकित्सालय में नही हुआ था ।
15. प्रकरण में प्रार्थीया का यह कथन भी नहीं है कि उसका इलाज जिन चिकित्सकगणो अर्थात अप्रार्थी संख्या 2 व 3 द्वारा किया गया वे इस हेतु कुषल चिकित्सक एवं उपयुक्त योग्यताधारी नहीं थे । इसके विपरीत अप्रार्थीगण का जवाब रहा है कि प्रार्थीया का इलाज अप्रार्थी संख्या 2 व 3 चिकित्सगणाों द्वारा किया गया जो इस हेतु कुषल एवं उपयुक्त योग्यताधारी थे । अप्रार्थीगण की ओर से पेष दृष्टान्त प्दे डंसीवजतं टे ।ण्ज्ञतपचंसंदप में भी माननीय उच्चतम न्यायालय ने अभिनिर्धारित किया है कि चिकित्सकगण जिन्होने इलाज किया वे कुषल चिकित्सक तथा उपयुक्त योग्यताधारी हो तो ऐसे चिकित्सकगण द्वारा किए गए इलाज के संबंध में चिकित्सकीय लापरवाही नहीं मानी जा सकती ।
16. उपरोक्त सारे विवेचन से हम यह निर्णय बिन्दु प्रार्थीया की ओर से सिद्व नहीं पाते है बल्कि अप्रार्थी पक्ष का जो कथन रहा है उसके अध्ययन से एवं इस संबंध में प्रस्तुत रिकार्ड व संबंधित चिकित्सकीय संदर्भ से भी यहीं पाया जाता है कि अप्रार्थीगण चिकित्सकों ने प्रार्थीया के यूट्र्रस को निकालने में कोई गलती या लापरवाही नहीं की है एवं उनका यह निर्णय सहीं पाया गया है।
17. अनुतोष:- निर्णय बिन्दु संख्या 1 व 2 जिस तरह से निर्णित हुए हैं, के दृष्टिगत हमारा मत है कि प्रार्थीया का यह परिवाद अप्रार्थीगण के विरूद्व चिकित्सकीय लापरवाही हेतु सिद्व नहीं पाया गया है । अतः परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
18. प्रार्थीया का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
(श्रीमती ज्योति डोसी) (गौतम प्रकाष षर्मा)
सदस्या अध्यक्ष
19. आदेष दिनांक 13.05.2014 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
सदस्या अध्यक्ष