राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
पुनरीक्षण सं0-२६/२०१३
(जिला मंच, महाराजगंज द्वारा परिवाद सं0-२०/२००८ में पारित आदेश दिनांक २१-१२-२०१२ के विरूद्ध)
सहारा इण्डिया, ब्रान्च आफिस घुघुली, जिला-महाराजगंज द्वारा ब्रान्च मैनेजर।
..............पुनरीक्षणकर्ता/विपक्षी।
बनाम्
शारदा देवी पत्नी स्व0 बंशीधर गुप्ता वार्ड नं0-८, तप्पा, मठकोपा, परगना हवेली, तहसील सदर, जिला महाराजगंज।
............... प्रत्यर्थी/परिवादिनी।
समक्ष:-
१. मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से उपस्थित :- श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- कोई नहीं।
दिनांक : ०४-०४-२०१६.
मा0 श्री उदय शंकर अवस्थी, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत पुनरीक्षण, जिला मंच, महाराजगंज द्वारा परिवाद सं0-२०/२००८ में पारित आदेश दिनांक २१-१२-२०१२ के विरूद्ध योजित की गयी है।
संक्षेप में तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादिनी के कथनानुसार उसके पति बंशीधर गुप्ता ने पुनरीक्षणकर्ता के यहॉं सहारा-डी योजना के अन्तर्गत २०,०००/- रू० तथा गोल्डेन-७ योजना के तहत ४८,०००/- रू० एकाउण्ट नं0-१०२९५०१४१५१ में जमा किए थे। प्रत्यर्थी/परिवादिनी के पति की मृत्यु दिनांक १७-०७-२००३ को हो गयी। पुनरीक्षणकर्ता के नियमानुसार डेथ हेल्प धनराशि के रूप में ०३.०० लाख रू० का भुगतान होना था। प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा सभी औपचारिकताऐं पूर्ण करते हुए डेथ हेल्प के लिए आवेदन पुनरीक्षणकर्ता के यहॉं प्रेषित किया, किन्तु पुनरीक्षणकर्ता द्वारा कोई धनराशि परिवादिनी को अदा नहीं की गयी। अत: विपक्षीगण से ३,००,०००/- रू० बतौर डेथ हेल्प, १०,०००/- रू० बतौर हर्जाना एवं १०,०००/- रू० परिवाद व्यय स्वरूप कुल ३,२०,०००/- रू० ०८ प्रति-
-२-
शत वार्षिक ब्याज सहित प्रत्यर्थी/परिवादिनी को दिलाये जाने हेतु परिवाद जिला मंच के समक्ष योजित किया गया।
पुनरीक्षणकर्ता की ओर से कथन किया गया कि बाण्डधारक की मृत्योपरान्त पॉंचों बॉण्डों में जमा राशि ५०,०००/- रू० मय ब्याज तथा गोल्डेन-७ में जमा राशि ४८,०००/- रू० परिवादिनी के आवेदन के आधार पर सहारा-डी योजना के बाण्ड का भुगतान दिनांक १३-१०-२००४ तथा जी-७ खाते का भुगतान दिनांक १३-०४-२००५ को कर दिया गया। भुगतान प्राप्त करते समय परिवादिनी ने पूर्ण संतुष्टि के साथ बिना विरोध के अन्तिम भुगतान प्राप्त किया। पुनरीक्षणकर्ता के अनुसार सहारा-डी योजना के नियम १२ एवं गोल्डेन-७ योजना के नियम-११ में यह उल्लिखित है कि ‘’ कम्पनी एवं बाण्डधारक के मध्य किसी प्रकार का विवाद उत्पन्न होता है तो उस विवाद का निस्तारण कम्पनी द्वारा नियुक्त एक आर्बिट्रेटर द्वारा किया जायेगा ‘’। उपरोक्त शर्त के अनुसार बॉण्डधारक तथा कम्पनी के मध्य विवाद की स्थिति में विवाद मध्यस्थ को सन्दर्भित किया जायेगा। मध्यस्थ द्वारा दिया गया एवार्ड अन्तिम तथा पक्षकारों पर बाध्यकारी होगा।
प्रश्नगत आदेश के अवलोकन से यह विदित होता है कि पुनरीक्षणकर्ता ने एक प्रार्थना पत्र दिनांकित ०६-०१-२००९ विद्वान जिला मंच के समक्ष इस आशय का प्रस्तुत किया कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा की शर्तों के अनुसार विवाद के निस्तारण हेतु श्री उदयराज राय को मध्यस्थ नियुक्त किया जा चुका है। मामले को मध्यस्थ को सन्दर्भित किए जाने की प्रार्थना की गयी। विद्वान जिला मंच ने यह अवधारित किया कि बिना इस प्रार्थना पत्र के इस फोरम द्वारा निस्तारित हुए पुनरीक्षणकर्ता ने मामले को मध्यस्थ को सन्दर्भित कर दिया तथा इस सन्दर्भ में विचारणीय बिन्दुओं पर विचारण करते हुए विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता के इस प्रार्थना पत्र दिनांकित ०६-०१-२००९ को प्रश्नगत आदेश दिनांकित २१-१२-२०१२ द्वारा निरस्त कर दिया। मध्यस्थ ने दिनांक २०-०६-२००९ को एवार्ड पारित कर दिया। पुनरीक्षणकर्ता का कथन है कि मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड पक्षकारों पर बाध्यकारी है एवं मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड के बाद दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा-११ के आलोक में परिवाद की कार्यवाही प्रांग न्याय
-३-
(रेसजूडिकेटा) के सिद्धान्त से बाधित होगी। अत: परिवाद को निरस्त करने हेतु अन्तर्गत धारा-११ दीवानी प्रक्रिया संहिता प्रार्थना पत्र विद्वान जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत किया गया। इस प्रार्थना पत्र को प्रश्नगत आदेश द्वारा विद्वान जिला मंच ने निरस्त कर दिया। इसी आदेश से क्षुब्ध होकर यह पुनरीक्षण योजित की गयी है।
हमने पुनरीक्षणकर्तागण की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री आलोक कुमार श्रीवास्तव के तर्क सुने तथा पत्रावली का अवलोकन किया। प्रत्यर्थी/परिवादिनी की ओर से कोई उपस्थित नहीं है।
पुनपरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता द्वारा यह तर्क प्रस्तुत किया गया कि उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम १९८६ की धारा-३ के प्रावधान अन्य अधिनियमों के प्रावधानों के अतिरिक्त हैं न कि अन्य अधिनियमों के अल्पीकरण के लिए। अत: पक्षकारों द्वारा निष्पादित संविदा की शर्तों के अनुसार प्रश्नगत विवाद मध्यस्थ के सम्मुख विचारणीय है, जिला मंच के समक्ष परिवाद की सुनवाई सम्भव नहीं है।
उपभोक्ता संरक्षण मंच एक पूरक मंच प्रदान करता है, किसी अन्य मंच द्वारा दिये गये निर्णय पर अपनी अधिकारिता प्रदान नहीं करता, क्योंकि वर्तमान प्रकरण में आर्बीट्रेशन एवं कन्सीलिएशन अधिनियम की धारा-८ के अन्तर्गत सभी प्रक्रियाओं को पूर्ण होने के उपरान्त मध्यस्थ द्वारा अन्तिम निर्णय दे दिया गया है, अत: उन्हीं तथ्यों पर दोबारा विचारण करना उचित नहीं होगा। पक्षकारों के मध्य विवाद का निबटारा मध्यस्थ ने अपने एवार्ड दिनांकित २०-०६-२००९ द्वारा कर दिया है। अत: परिवाद में आगे कोई कार्यवाही किए जाने का कोई औचित्य नहीं है। विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्ता का प्रार्थना पत्र निरस्त करके विधिक त्रुटि की है। पुनरीक्षणकर्ता के विद्वान अधिवक्ता ने दी इन्स्टालमेण्ट सप्लाई लि0 बनाम कंगरा ऐक्स-सर्विसमेन ट्रान्सपोर्ट कं0 व अन्य, २००६(३) सीपीआर ३३९ (एनसी) के मामले में माननीय राष्ट्रीय आयोग द्वारा दिये गये निर्णय पर विश्वास व्यक्त किया।
यह तथ्य निर्विवाद है कि प्रश्नगत परिवाद वर्ष २००८ में प्रत्यर्थी/परिवादिनी द्वारा योजित किया गया था, किन्तु मध्यस्थ की नियुक्ति परिवाद योजित किए जाने के
-४-
उपरान्त की गयी। स्काई पैक कोरियर्स लि0 बनाम टाटा केमिकल्स (२०००) ५ एससीसी २९४ के मामले में माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्णीत किया गया है कि पक्षकारों के मध्य निष्पादित संविदा में आर्बीट्रेशन क्लॉज की उपस्थिति उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजन को प्रतिबन्धित नहीं करती, क्योंकि इस अधिनियम के अन्तर्गत विवाद निस्तारण की व्यवस्था अन्य अधिनियमों के प्राविधानों के अतिरिक्त की गयी है। जब प्रत्यर्थी/परिवादिनी ने विवाद निस्तारण हेतु उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत परिवाद योजित कर दिया था तब पुनरीक्षणकर्तागण से यह अपेक्षित था कि विवाद निस्तारण के सन्दर्भ में अपना पक्ष विद्वा जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत करते, किन्तु पुनरीक्षणकर्तागण ने विद्वान जिला मंच के समक्ष अपना पक्ष प्रस्तुत न करके परिवाद के लम्बित रहने के मध्य, मध्यस्थ द्वारा विवाद निबटाये जाने का प्रयास किया। ऐसी परिस्थिति में विद्वान जिला मंच का यह निष्कर्ष कि वस्तुत: पुनरीक्षणकर्तागण ने जिला मंच की कार्यवाही को निष्प्रभावी करने के उद्देश्य से मध्यस्थ द्वारा विवाद के निबटारे का प्रयास किया, हमारे विचार से त्रुटिपूर्ण नहीं है।
पुनरीक्षणकर्तागण के विद्वान अधिवक्ता द्वारा सन्दर्भित इन्स्टालमेण्ट सप्लाई लि0 बनाम कंगरा ऐक्स-सर्विसमेन ट्रान्सपोर्ट कं0 व अन्य, २००६(३) सीपीआर ३३९ (एनसी) के मामले में दिये गये निर्णय से सम्बन्धित वाद के तथ्य प्रस्तुत प्रकरण के तथ्यों से भिन्न हैं, उस वाद में परिवाद के संस्थित होने से पूर्व ही मध्यस्थ द्वारा एवार्ड पारित किया जा चुका था, जबकि प्रस्तुत प्रकरण में परिवाद के लम्बित रहने के मध्य मध्यस्थ की नियुक्ति किया जाना बताया गया है।
ऐसी परिस्थिति में प्रश्नगत मामले के सन्दर्भ में मध्यस्थ द्वारा पारित एवार्ड के आलोक में परिवाद की कार्यवाही धारा-११ दीवानी प्रक्रिया संहिता के अन्तर्गत बाधित होनी नहीं माना जा सकती। हमारे विचार से विद्वान जिला मंच ने पुनरीक्षणकर्तागण के प्रश्नगत प्रार्थना पत्र को निरस्त करके कोई त्रुटि नहीं की है। पुनरीक्षण में बल नहीं है।
परिणामस्वरूप, पुनरीक्षण निरस्त किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत पुनरीक्षण निरस्त किया जाता है। जिला मंच, महाराजगंज द्वारा परिवाद
-५-
सं0-२०/२००८ में पारित आदेश दिनांक २१-१२-२०१२ की पुष्टि की जाती है।
पुनरीक्षण व्यय-भार के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(उदय शंकर अवस्थी)
पीठासीन सदस्य
दिनांक : ०४-०४-२०१६.
प्रमोद कुमार
वैय0सहा0ग्रेड-१,
कोर्ट-४.