जिला मंच, उपभोक्ता संरक्षण, अजमेर
प्रदीप कुमार षर्मा,एडवोकेट,150/11, सांखला भवन के पास, हाथीभाटा, अजमेर हाल 48, षिव षक्ति काॅलोनी, षिवसागर, फाॅयसागर रोड़, अजमेर ।
- प्रार्थी
बनाम
षान्तिलाल कुमावत पुत्र श्री पुरूषोत्तम कुमावत, जाति- कुमावत, निवासी- षिव षक्ति काॅलोनी,षिवसागर, फाॅयसागर रोड़, अजमेर ।
- अप्रार्थी
परिवाद संख्या 252/2013
समक्ष
1. विनय कुमार गोस्वामी अध्यक्ष
2. नवीन कुमार सदस्य
उपस्थिति
1.श्री मानसिंह रावत, अधिवक्ता, प्रार्थी
2.श्री जे.एस.सोढ़ी, अधिवक्ता अप्रार्थी
मंच द्वारा :ः- निर्णय:ः- दिनांकः- 03.01.2017
1. संक्षिप्त तथ्यानुसार प्रार्थी ने अपने षिव काॅलोनी,षिवनगर, फाॅयसागर रोड, अजमेर में स्थित भूखण्ड के खाली हिस्से 590 वर्गफीट में नक्षे के अनुरूप एक कमरा, एक हाल, एक छोटा कमरा, एक पोर्च, एक छोटे कमरे में अटैच लेट्रिन, एक अटैच लेट बाथरूम एवं उपर चढ़ने के लिए सीढियों के निर्माण के साथ साथ नीवों में 6 फीट की खुदाई कर पत्थरों व सीमेन्ट से भरने तथा डीपीसी लगाने, चुनाई ईंटांे की सीमेन्ट से करने, छत पर पट्टियां डालने, छत पर कांगर्सी इंट लगाने , फर्ष पर मार्बल लगाना व ग्रेनाईट पालिष करने, पानी के टेंक का निर्माण करने तथा बाहर रेम्प बनाने और 2.50 फीट के लगभग बाॅलकानी का निर्माण करने की ठेका रू. 1,00,000/- में अप्रार्थी को दिया । जिसकी एवज में प्रार्थी ने अप्रार्थी को परिवाद की चरण संख्या 7 में अंकित विवरणानुसार रू. 50,000/- का भुगतान कर दिए जाने के बावजूद भी अप्रार्थी ने भवन की दीवारों को बिना सुत एवं लेवल के खड़ा कर दिया, जिससे दीवारें टेढ़़ी बांकी हो गई तथा सीढ़ियों का निर्माण भी ठीक प्रकार से नहीं किया गया एवं सीढी़ के नीचे निर्मित लेट्रिन का निर्माण इस प्रकार किया कि उसमें आदमी के खड़े होने पर उसका सिर छत से टकराता है । इसी प्रकार कमरों में डाली गई पट्टियों को ठीक ढंग से नहीं लगाया जिसके कारण पट्टियों के जोईन्ट में बड़े बडे छेद रह गए । इस प्रकार अप्रार्थी ने करार के अनुसार सही कार्य नहीं करके दिया और दिनंाक 18.12.2012 को भवन निर्माण का कार्य अधूरा छोड दिया । प्रार्थी ने अधूरे कार्य को पूरा करने के लिए दिनंाक 26.12.2012 को नोटिस भी भिजवाया । इसके बावजूद भी अप्रार्थी द्वारा कार्य पूरा नहीं करने पर दिनांक 8.4.2013 को अन्य ठेकेदार से रू. 75,000/- में अधूरा कार्य पूरा करवाना पड़ा । प्रार्थी ने परिवाद प्रस्तुत कर उसमें वर्णित अनुतोष दिलाए जाने की प्रार्थना की है । परिवाद के समर्थन में स्वयं के षपथपत्र के अलावा श्रीमति किषोरी षर्मा एवं श्री भूपेन्द्र सिंह के षपथपत्र पेेष किए है ।
2. अप्रार्थी ने जवाब प्रस्तुत कर कथन किया है कि उत्तरदाता एक देहाड़ी मजदूर है और प्रार्थी ने उसे भवन निर्माण कार्य के लिए लगाए गए मिस्त्री के साथ देहाड़ी मजदूरी पर रखा था । दिसम्बर, 2012 में प्रार्थी ने उत्तरदाता से मजदूरी की दर कम करने के लिए कहने पर उसने कम दर पर काम करने से मना कर दिया । इसी कारण ही प्रार्थी ने फर्जी व झूठी तहरीर कूटरचित कर तैयार की है, जिस पर अप्रार्थी के हूबहूु हस्ताक्षर कर उसके विरूद्व यह झूठा परिवाद पेष किया है । परिवाद प्रस्तुत किए जाने की जानकारी उत्तरदाता को प्राप्त होने पर उसने प्रार्थी से सम्पर्क किया । जिस पर प्रार्थी ने उसे जातिसूचक षब्दांे से संबोधित करते हुए मारपीट की । इस पर उत्तरदाता ने प्रार्थी के विरूद्व पुलिस अधीक्षक के समक्ष दिनांक 4.12.2013 को षिकायत की, जो अनुसंधानरत है । प्रार्थी ने परिवाद में वर्णित नक्षे को न तो उसे दिखाया और ना ही इसकी उसे कोई जानकारी है । परिवाद में वर्णित उसे अदा की गई राषि, उसे अदा नहीं की गई थी वरन् अप्रार्थी व उसके साथ आने वाले मजदूरों को एक मुष्त चार पांच दिन की प्रार्थी द्वारा मजदूरी की राषि थी । प्रार्थी ने केवल उसे एक बार चैक से राषि अदा की । उत्तरदाता ने प्रार्थी के यहां जितने दिन मजदूरी की उस हिसाब से उसे भुगतान किया गया है । मजूदरी की दर को लेकर हुए विवाद के कारण अप्रार्थी ने प्रार्थी के यहां कार्य करना छोड़ दिया । उत्तरदाता अकेला मिस्त्री नही ंथा जो प्रार्थी के भवन निर्माण के कार्य को पूर्ण कर रहा था बल्कि अन्य 3-4 मिस्त्री भी उक्त कार्य कर रहे थे । परिवाद को झूठा मनगढन्त बताते हुए खारिज किए जाने की प्रार्थना की है । जवाब के समर्थन में अप्रार्थी ने स्वयं के षपथपत्र के साथ साथ श्री नेमीचन्द का भी षपथपत्र पेष किया है ।
3. यहां यह उल्लेखनीय है कि अप्रार्थी द्वारा परिवाद का जवाब दिए जाने के बाद प्रार्थी की ओर से जवाबुलजवाब प्रस्तुत किए जाने हेतु दिनंाक
22.4.2014 को प्रार्थना पत्र मय जवाबुलजवाब रिकार्ड पर लिए जाने हेतु निवेदन किया गया व प्रति अप्रार्थी को दिलवाई जाकर उक्त प्रार्थना पत्र पर अब तक कोई आदेष नहीं हुआ है । न्याय हित में अभिवचनों के प्रकाष में प्रार्थी को जवाबुलजवाब प्रस्तुत किए जाने की अनुमति प्रदान की जाती है ।
4. प्रार्थी ने जवाबुलजवाब पेष किया हैं।
5. उभय पक्षकारान ने अपने अपने पक्ष कथन को बहस में तर्क के रूप में दोहराया है । हमने सुना, रिकार्ड देखा ।
6. विवाद का बिन्दु यह है कि क्या अप्रार्थी ने प्रार्थी के साथ हुए इकरार के अनुसार दिए गए नक्षे के तहत निर्माण कार्य पूरा नहीं की बीच में ही छोड़ते हुए प्रार्थी को क्षति कारित की है एवं बिना तकनीकी मापदण्डो के लापरवाही करते हुए अधूरा भवन निर्माण कर गैर जिम्मेदारी का परिचय दिया है, जिसके लिए प्रार्थी क्षतिपूर्ति प्राप्त करने का अधिकारी है ?
7. परस्पर प्रस्तुत अभिवचनों को देखते हुए अप्रार्थी का प्रार्थी द्वारा प्रष्नगत निर्माण कार्य करना सामने आया है । किन्तु विवाद का विषय अधूरा निर्माण कार्य तयषुदा स्तर का नहीं होना है । प्रार्थी ने इस संदर्भ में अप्रार्थी का ’’अ’’ श्रेणी का ठेकेदार होना व इस ठेकेदारी का प्रमाण पत्र उसके द्वारा संबंधित विभाग से प्राप्त करना व इसकी एक प्रति स्वयं का अप्रार्थी द्वारा बताना कहा है । इस विष्वास पर उसने अप्रार्थी को भवन निर्माण का ठेका देना भी कहा है । अप्रार्थी ने इन तथ्यों से इन्कार किया है तथा स्वयं को साधारण मजदूर होना बताया है व किए गए कार्य को अन्य मिस्त्रियों के साथ करना कहा है । समर्थन में उसकी ओर से नेमीचन्द का षपथपत्र प्रस्तुत हुआ है । प्रार्थी ने अप्रार्थी के पास ठेकेदारी का प्रमाण पत्र होना बताया है व उक्त अप्रार्थी से इसे मंगवाए जाने की प्रार्थना की है । मंच की राय में जब प्रार्थी को अप्रार्थी ने स्वयं का ’’अ’’ श्रेणी का ठेकेदार होना बताया है तो प्रमाण स्वरूप उसने जो उक्त ’’अ’’ श्रेणी के ठेकेदारी का प्रमाण पत्र संबंधित विभाग से प्राप्त करना बताते हुए उसकी फोटोप्रति प्रार्थी को भी बताना अभिकथित किया है तथा ऐसी स्थिति में प्रार्थी के लिए यह अपेक्षित था कि वह अप्रार्थी के ’’अ’’ श्रेणी के ठेकेदार होने का या तो प्रमाण पत्र प्रस्तुत करता अथवा इस संबंध में कोई पुख्ता प्रमाण पत्र प्रस्तुत करता जो कि उसके द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है । अतः उसका यह कथन कि अप्रार्थी ’’अ’’ श्रेणी का ठेकेदार था, स्वीकार किए जाने योग्य नही ंहै ।
8. प्रार्थी ने अप्रार्थी को अपने भूखण्ड की लम्बाई चैड़ाई बताते हुए नक्षे के अनुसार निर्माण कार्य करना अभिकथित किया है तथा इसकी एक फोटोप्रति अप्राथी्र को देना कहा है । इसके अलावा उसने उक्त भूखण्ड में निर्माण का ठेका दिनांक 20.11.2012 को देना कहा है । परिवाद की चरण संख्या 5 में अंकित विवरण के अनुसार अप्रार्थी को सम्पूर्ण निर्माण तकनीकी मापदण्डों के अनुसार करने का निर्देष दिया था तथा समस्त निर्माण का ठेका रू. 1लाख में अप्रार्थी को देना बताया है। किन्तु इस बाबत् किसी प्रकार की कोई तहरीर अथवा लिखित प्रस्तुत नहीं हुई हैं, जो तथाकथित तहरीर प्रार्थी की ओर से प्रस्तुत हुई है तथा जिसको अप्रार्थी ने कूटरचित व फर्जी बताया है, के अनुसार अप्रार्थी ने प्रार्थी से रू. 50,000/- प्राप्त किए हैं तथा स्वेच्छा से काम छोड़ना बताया है । चूंकि स्वयं अप्रार्थी की यह स्वीकारोक्ति रही है कि उसने प्रार्थी द्वारा मजदूरी कम किए जाने की बात को लेकर काम छोडा़ है । अतः यह स्वीकृत स्थिति भी सामने आई है कि अप्रार्थी द्वारा प्रार्थी पक्ष का भवन निर्माण का कार्य सम्पूर्ण नहीं किया है अपितु अधूरा छोड़ा गया है । चूंकि प्रार्थी पक्ष यह सिद्व करने में सफल नहीं हो पाया है कि उसने अप्रार्थी को प्रस्तावित भवन निर्माण हेतु को एक निष्चित अवधि में पूरा करने के लिए आबद्व किया था । अतः यह नहीं कहा जा सकता है कि अप्रार्थी ने ऐसे किसी तथाकथित मुताबिक इकरार के उक्त निर्माण कार्य पूरा नहीं किया । जहां तक अप्रार्थी द्वारा रू. 20,000/- प्राप्त करना व 5 दिवस में नहीं लौटाने तथा समय समय पर तकाजा किए जाने के बावजूद भी नहीं लौटाने का प्रष्न है, इस बाबत् अनुतोष प्राप्त करने का माध्यम यह मंच नहीं है। अपितु प्रार्थी पक्ष के लिए यह अपेक्षित है कि वह इस हेतु स्वतन्त्र रूप से वसूली हेतु दीवानी दावा कर रकम प्राप्त कर सकता है ।
9. जहां तक किए गए अधूरे निर्माण कार्य व निर्धारित मापदण्डो के अनुसार नहीं होेने बाबत् तर्क का प्रष्न है , चूंकि इस बाबत् पक्षकारों के मध्य किसी प्रकार का कोई लिखित करार प्रस्तुत ही नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में किए गए व हुए निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर यह मंच किसी प्रकार की कोई टीका टिप्पणी किया जाना उचित नहीं समझता है । इसी प्रकार प्रार्थी द्वारा उसके विरूद्व जाति सूचक षब्दांे का उपयोग किए जाने बाबत् आक्षेप का प्रष्न है, मंच इस संदर्भ में न तो किसी प्रकार का अनुतोष प्रदान करने के लिए सक्षम है और ना ही इस बिन्दु का हस्तगत प्रकरण के गुणावगुण से कोई संबंध है ।
10. सार यह है कि अप्रार्थी द्वारा किए गए निर्माण कार्य आदि के संदर्भ में प्रार्थी पक्ष द्वारा किसी प्रकार की कोई लिखित अथवा इकरार नामे के अभाव में उसके द्वारा अभिकथित आरोपेां के संदर्भ में अप्रार्थी को किसी प्रकार जिम्मेदार नहीं माना जा सकता व परिवाद में उठाए गए तथ्यों को सिद्व करने में सफल नहीं हो पाया है । मंच की राय में प्रार्थी का परिवाद निरस्त किए जाने योग्य है एवं आदेष है कि
-ःः आदेष:ः-
11. प्रार्थी का परिवाद स्वीकार होने योग्य नहीं होने से अस्वीकार किया जाकर खारिज किया जाता है । खर्चा पक्षकारान अपना अपना स्वयं वहन करें ।
आदेष दिनांक 03.01.2017 को लिखाया जाकर सुनाया गया ।
(नवीन कुमार ) (विनय कुमार गोस्वामी )
सदस्य अध्यक्ष