राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
(सुरक्षित)
अपील संख्या :2342/2011
(जिला मंच, गाजियाबाद द्धारा परिवाद सं0 201/2007 में पारित निर्णय/आदेश दिनांक 11.8.2011 के विरूद्ध)
M/s. Supertech Ltd. Plot No.-1, Sector-5, Vaishali, Ghaziabad (U.P.)
........... Appellants/Opp.Parties.
Versus
- Sh. Shanti Swaroop S/o Late Sh. Sardari Lal
- Smt. Sudershan Swaroop W/o Sh. Shanti Swaroop
Both residents of :- 808, Block-A, 7th Floor, Supertech Rameshwar Orchid Complex, H-1, Kaushambi, Ghaziabad (U.P.)
- Respondents/Complainants
समक्ष :-
मा0 श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य
मा0 श्री जुगुल किशोर, सदस्य
अपीलार्थी के अधिवक्ता : श्री विकास श्रीवास्तव बक्शी
प्रत्यर्थी के अधिवक्ता : श्री शान्ति स्वरूप
दिनांक :03/7/2015
मा0 श्री जे0एन0 सिन्हा, पीठासीन सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
परिवाद संख्या-201/2007 शान्ति स्वरूप बनाम आर0के0 अरोड़ा (एम.डी.) मैसर्स सूर्या मर्चन्तम लिमिटेड में जिला मंच, गाजियाबाद द्वारा दिनांक 11.8.2011 को निर्णय पारित करते हुए निम्नलिखित आदेश पारित किया गया कि,
"विपक्षी आर0के0 अरोड़ा (एम.डी.) मैसर्स सूर्या मर्चन्तस लिमिटेड (ए.सुपर टैक ग्रुप कम्पनी प्लॉट नं0-1 सैक्टर-5 वैशाली गाजियाबाद को आदेशित किया जाता है कि परिवादी को एग्रीमेंट की धारा-18 के अनुपालन में 40,000.00 रूपये की धनराशि अदा करें। इस धनराशि पर 01.8.2005 से वास्तविक अदायगी होने के बीच 06, प्रतिशत की दर से ब्याज भी देय होगा।
विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को फिनिसिंग के कार्य के लिए किए गये 4,50,000.00 की धनराशि भी वापस करें इस पर 04.7.2004 से वास्तविक अदायगी होने तक 06, प्रतिशत की दर से ब्याज देय होगा।
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विपक्षी को यह भी आदेशित किया जाता है कि वह मानसिक कष्ट की क्षतिपूर्ति के रूप में 5000.00रूपये (पॉच हजार रूपये की अदायगी करे तथा वाद व्यय के रूप में 2000.00रूपये (दो हजार रूपये की अदायगी करें। "
उपरोक्त वर्णित आदेश से क्षुब्ध होकर विपक्षी/अपीलार्थी पक्ष की ओर से वर्तमान अपील योजित की गई है।
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री विकास श्रीवास्तव बक्शी तथा प्रत्यर्थी श्री शान्ति स्वरूप व्यक्तिगत रूप से उपस्थित आये। यह प्रकरण वर्ष-2011 से पीठ के समक्ष विचाराधीन है। अत: पीठ द्वारा प्रश्नगत निर्णय व उपलब्ध अभिलेखों का गम्भीरता से परिशीलन किया गया।
प्रकरण संक्षेप में इस प्रकार परिवादी ने विपक्षी मैसर्स सूर्या मर्चन्तस लिमिटेड से फ्लेट सं0-802 ब्लाक नं0-1 सेक्टर-5 सुपरटेक रामेश्वर और चिड काम्पलेक्स कौशाम्बी, गाजियाबाद से क्रय करने के लिए एक एग्रीमेन्ट किया था और रू0 1,95,000.00 एडवान्स दिया और शेष रू0 6,55,000.00 कब्जा लेने से पहले देना था, इसके अलावा विपक्षी ने रू0 4,50,000.00 फिनिसिंग के नाम से अलग से लिए थे। परिवादी ने इकरारनामा की बकाया धनराशि 8,50,000.00रू0 दिनांक 04.7.2004 तक प्रतिवाद की ओर चुकता कर दिया फिनिसिंग के रू0 4,50,000.00 दिनांक 04.7.2004 को दे दिया और उसका कब्जा दिनांक 31.3.2005 तक दिया जाना था और यदि कब्जा नहीं दिया गया तो बाजारू किराया दर की दुगनी रकम देने के लिए बाध्य होगा और भुगतान करेगा। दिनांक 27.7.2005 को परिवादी द्वारा कब्जा प्राप्त किया गया और यह पाया गया कि विपक्षी द्वारा प्लास्टर में सस्ता और घटिया किस्म का मार्बल प्रयोग किया गया है, जो टूटा हुआ है एवं दीवार पर पानी की सीलिंग आदि कई कमियॉ हैं। परिवादी की शिकायत दर्ज कराने पर विपक्षी ने पानी की निकासी के लिए पाइप लगा दिया और करिडोर में 20 इंच चौडी लगभग घिसाई कर नये रंग के मार्बल लगा दिये। इकरारनामे के अनुसार परिवादी ने समय से फ्लेट का कब्जा नहीं दिया, जिस कारण परिवादी को दिनांक 31.3.2005 से 27.5.2005 तक का किराया 68,000.00 भी अदा करने तथा इसकी भरपाई करने की जिम्मेदारी विपक्षी की है। परिवादी कई बार उन कमियों को दूर करने के लिए कहा लेकिन विपक्षी ने कुछ नहीं किया और इस प्रकार विपक्षी द्वारा अपनी सेवा में कमी की गई। अत: परिवादी द्वारा विपक्षी के विरूद्ध क्षतिपूर्ति दिलाये जाने हेतु परिवाद संस्थित किया गया। विपक्षी की ओर से परिवाद का विरोध किया गया और मुख्य रूप से यह
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अभिवचित किया गया कि परिवाद असत्य कथन पर आधारित है एवं उभय पक्ष के मध्य ऐसी कोई शर्त नहीं थी कि यदि दिनांक 31.3.2005 को कब्जा नहीं दिया गया, तो विपक्षी बाजारू दर पर किराये की राशि अदा करेगा और यह भी अभिवचित किया गया कि भवन कब्जे के लिए तैयार था, परन्तु परिवादी ने स्वयं जानबूझकर कब्जा प्राप्त नहीं किया एवं परिवादी/प्रत्यर्थी ने जब भी कोई शिकायत की तो उसका निराकरण अपीलार्थी/विपक्षी द्वारा किया गया और इस प्रकार परिवाद खण्डित किये जाने योग्य है।
उभय पक्ष के अभिवचन एवं तर्कों पर विचार करते हुए जिला मंच द्वारा प्रश्नगत उपरोक्त वर्णित निर्णय/आदेश पारित किया गया, जिससे क्षुब्ध होकर वर्तमान अपील योजित है।
अविवादित रूप से भवन पर कब्जा देने में विलम्ब हुआ और विलम्ब के संदर्भ में उभय पक्ष के बीच शर्त थी, उस शर्त के अनुसार अपीलार्थी 1500.00-2000.00 रू0 वास्तविक मार्केट रेन्ट परिवादी को देने के लिए तैयार था, परन्तु जिला मंच द्वारा रू0 5,000.00 प्रतिमाह के हिसाब से जो किराये देने का आदेश पारित किया गया है, वह विधि अनुकूल नहीं है एवं अविवादित रूप से रू0 4,50,000.00 परिवादी ने विपक्षी/अपीलार्थी को अदा किये थे। ऐसी स्थिति में अपीलार्थी/विपक्षी का कहना है कि उसने परिवादी की इच्छा अनुसार और उसकी संतुष्टि में उक्त धनराशि की बावत भवन में कार्य कर लिया था। ऐसी स्थिति में परिवादी/प्रत्यर्थी का यह कथन है कि विपक्षी/अपीलार्थी ने उक्त धनराशि के संदर्भ में कोई कार्यवाही नहीं की। परिवाद पत्र की धारा-14 में परिवादी ने स्पष्ट रूप से अभिवचित किया है कि परिवादी से अपीलार्थी/विपक्षी ने फ्लेट की फिनिशिंग हेतु रू0 4,50,000.00 प्राप्त किये थे और सुविधा देने का इकरारनामा दिनांक 03.4.2004 को निष्पादित किया गया था, उसमें विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा पूर्णत: पालन नहीं किया गया और संतोषजनक सुविधा परिवादी को उपलब्ध नहीं करायी गई। ऐसी स्थिति में विपक्षी द्वारा लिखित कथन प्रस्तुत किया गया और यह अभिवचित किया गया कि परिवादी की संतुष्टि में उसने भवन में कार्य कर दिया था, परन्तु क्या कार्य कराया था, उसका उल्लेख स्पष्ट नहीं किया गया और इस संदर्भ में जिला मंच द्वारा स्पष्ट निष्कर्ष दिया गया और विपक्षी/अपीलार्थी ने परिवाद पत्र की धारा-14 के संदर्भ में गोल-मोल उत्तर दिया है। ऐसी स्थिति में परिवादी का कथन स्वीकार किये जाने योग्य पाया जाता है।
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पीठ इस निष्कर्ष पर पहुंचती है कि भवन पर कब्जा परिवादी को विलम्ब से दिया गया और रू0 4,50,000.00 के संदर्भ में फिनिशिंग का कार्य विपक्षी/अपीलार्थी द्वारा नहीं किया गया और ऐसी स्थिति में जिला मंच द्वारा दिया गया निष्कर्ष में किसी प्रकार की त्रुटि होना नहीं पाया जाता है। अपील खण्डित किये जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील खण्डित की जाती है।
(जे0एन0 सिन्हा) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
हरीश आशु.,
कोर्ट सं0-3