राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
मौखिक
अपील संख्या-683/2009
गाजियाबाद डेवलपमेन्ट अथारिटी गाजियाबाद द्वारा वाइस
चेयरमैन। .....अपीलार्थी@विपक्षी
बनाम
शान्ति देवी पत्नी पारस राम शास्त्री निवासी 3079
बीआईवी, वसंत कुन्ज न्यू दिल्ली। .......प्रत्यर्थी/परिवादिनी
समक्ष:-
1. मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य।
2. मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री मनोज कुमार, विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री आलोक सिन्हा, विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक 03.03.2023
मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
1. परिवाद संख्या 360/2002 शान्ति देवी बनाम वाइस चेयरमैन 2-दि सेक्रेटरी जी.डी.ए. गाजियाबाद में पारित निर्णय व आदेश दिनांक 26.03.2009 के विरूद्ध प्रस्तुत की गई अपील पर दोनों पक्षकारों के विद्वान अधिवक्ता को सुना गया तथा प्रश्नगत निर्णय व आदेश का अवलोकन किया गया।
2. दोनों पक्षकारों को यह तथ्य स्वीकार है कि परिवादिया के पक्ष में भवन संख्या 97/जे0के0 चतुर्थ एम.आई.जी. ज्ञान खंड इंदिरा नगर में आवंटित किया गया। 14.05.1998 को कब्जा दे दिया गया। पूर्व में धनराशि रू. 525000/- जमा कर दिया गया, इसलिए जिला उपभोक्ता मंच ने विक्रय पत्र निष्पादित करने और मानसिक प्रताड़ना के मद में
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रू. 5000/- और वाद व्यय के रू में रू. 1000/- का आदेश पारित किया है।
3. अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता का तर्क है कि पूर्व में केवल अनुमानित मूल्य के संबंध में सूचना दी गई थी। बाद में दि. 14.05.1998 को अंतिम कास्ट का निर्धारण करते हुए अंकन रू. 717656/- की मांग की गई। जिला उपभोक्ता मंच ने इस बिन्दु पर निष्कर्ष दिया गया कि प्राधिकरण द्वारा अनुचित व्यापार प्रणाली अपनाई गई है। अपीलार्थी के विद्वान अधिवक्ता की ओर से यह भी बहस की गई है कि जिला उपभोक्ता मंच को कीमत तय करने का कोई अधिकार प्राप्त नहीं है। प्रस्तुत केस में यथार्थ मूल्य के संबंध में विवाद मौजूद नहीं है, अपितु मुख्य विवाद यह है कि जब एक बार परिवादिया द्वारा अंकन रू. 525000/- की राशि जमा कर दी गई और परिवादी को कब्जा भी प्रदान कर दिया गया तब 2 वर्ष के पश्चात कुल मूल्य से लगभग डेढ़ गना राशि दर्शाते हुए यह नहीं कहा जा सकता कि अंतिम मूल्य रू. 717656/- निकलता है। भवन का कब्जा 15.05.96 को सौंपा गया है। अतिरिक्त मांग का पत्र 14.05.1998 को जारी किया गया है, अत इस देरी का कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं है, केवल क्षतिपूर्ति की राशि अपास्त होने योग्य है।
आदेश
4. अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला उपभोक्ता मंच द्वारा पारित निर्णय व आदेश केवल क्षतिपूर्ति की राशि प्रदान
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करने के संबंध में अपास्त किया जाता है। शेष निर्णय पुष्ट किया जात है।
अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अंतर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्याज सहित जिला उपभोक्ता आयोग को निस्तारण हेतु प्रेषित की जाए।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइड पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार) सदस्य सदस्य
राकेश, पी0ए0-2
कोर्ट-3