Uttar Pradesh

StateCommission

A/2011/540

Central Bank Of India - Complainant(s)

Versus

Shankar Beej Bhandar - Opp.Party(s)

Zafar Aziz

20 Jul 2022

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2011/540
( Date of Filing : 31 Mar 2011 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Central Bank Of India
a
...........Appellant(s)
Versus
1. Shankar Beej Bhandar
a
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR PRESIDENT
 HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 20 Jul 2022
Final Order / Judgement

                                                                                                     (सुरक्षित)

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ

अपील संख्‍या-540/2011

(जिला उपभोक्‍ता आयोग, गोरखपुर द्वारा परिवाद संख्‍या-308/2009 में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.02.2011 के विरूद्ध)

 

1.    सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, ए.डी. टावर, बैंक रोड, गोरखपुर, द्वारा चीफ ब्रांच मैनेजर।

2.    सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया, 15/16, बजाज भवन, रजनी पटेल रोड, नरिमन प्‍वाइंट, बॉम्‍बे।

अपीलार्थीगण/विपक्षीगण

                                               बनाम        

मैसर्स शंकर बीज भण्‍डार, द्वारा प्रोपराइटर, केशरी नन्‍द त्रिपाठी पुत्र आर.बी. त्रिपाठी, निवासी एम.पी. बिल्डिंग, गोलघर, यू.पी.।

                                                   प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-                                                   

1. माननीय न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष

2. माननीय श्री सुशील कुमार, सदस्‍य।

अपीलार्थीगण की ओर से उपस्थित : श्री जफर अजीज, विद्वान

                                                     अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित      : श्री अम्‍बरीश कौशल श्रीवास्‍तव,

                                                      विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक:  22.07.2021 

मा0 न्‍यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्‍यक्ष द्वारा उदघोषित

निर्णय/आदेश

           परिवाद संख्‍या-308/2009, मैसर्स शंकर बीज भण्‍डार बनाम सेण्‍ट्रल बैंक आफ इण्डिया तथा एक अन्‍य में विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग, गोरखपुर द्वारा पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक 28.02.2011 के विरूद्ध यह अपील प्रस्‍तुत की गई है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा निम्‍नलिखित आदेश पारित किया गया :-

           '' परिवादी का परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध स्‍वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 को निर्देशित किया जाता है कि वह निर्णय के 01 माह के अंदर परिवादी द्वारा जमा किए गए 61541.00 रू0 एवं उस पर दिनांक 17.07.09 से निर्णय की तिथि तक 6 प्रतिशत ब्‍याज सहित भुगतान करे तथा परिवादी को अनावश्‍यक भागदौड़ के कारण हुए शारीरिक एवं मानसिक कष्‍ट की क्षतिपूर्ति के रूप में 15 हजार रू0 एवं परिवाद व्‍यय 2000.00 रू0 भी अदा करे। चूक में समस्‍त धनराशि पर निर्णय की तिथि से 09 प्रतिशत साधारण ब्‍याज देय होगा। विपक्षी सं0-2 के विरूद्ध परिवाद निरस्‍त किया जाता है। ''

           परिवाद पत्र के तथ्‍य संक्षेप में इस प्रकार हैं कि परिवादी ने अपने कैश क्रेडिट खाते के लिए विपक्षी के यहां अपनी पत्‍नी शीला देवी त्रिपाठी बेतियाहाता स्थित भवन के स्‍वामित्‍व का मूल दस्‍तावेज मारगेज किया था। भवन का मूल्‍य अंकन 17 लाख रूपये था। वर्ष 1998 में परिवादी का उपरोक्‍त खाते में बै‍लेन्‍स लिमिट से अधिक हो जाने के कारण दिनांक 30.09.1998 को खाता एन.पी.ए. हो गया, जिसकी लिखित सूचना विपक्षी संख्‍या-1 द्वारा पत्र दिनांक 28.03.2003 के द्वारा दी गई। उक्‍त खाता एन.पी.ए. हो जाने के कारण उसे बैलेन्‍स करने के लिए अपनी बीमा पालिसी की मूल प्रति विपक्षी संख्‍या-1 के पास गिरवी रखी। बीमा पालिसी की परिपक्‍वता अवधि पूरी हो जाने पर विपक्षी संख्‍या-1 द्वारा बीमित राशि का समायोजन कर खाते को एन.पी.ए. से मुक्‍त कर दिया। विपक्षी द्वारा कैश क्रेडिट खाते की बकाया राशि के निराकरण हेतु एकमुश्‍त जमा योजना के संबंध में परिवादी को दिनांक 11.02.2003 को एक पत्र दिया गया, जिसमें बकाया ऋण जमा करने की अविध दिनांक 30.04.2003 थी। परिवादी ने अपने बकाया की समस्‍त राशि दिनांक 26.03.2005 को अंकन 1.84 लाख रूपये जमा कर दिया। बकाया राशि जमा करने के पश्‍चात परिवादी ने विपक्षी संख्‍या-1 से स्‍टेटमेंट आफ अकाउण्‍ट की मांग की, जिसे विपक्षी द्वारा परिवादी को दिनांक 14.03.2007 को दिया गया, उसमें यह उल्लिखित था कि परिवादी के ऊपर कोई बकाया नहीं है। परिवादी ने दिनांक 04.07.2007 को अपनी पत्‍नी के मकान से संबंधित मूल दस्‍तावेजों की मांग की, जिस पर बैंक ने परिवादी को एक पत्र दिया, जिसमें परिवादी के ऋण खाते में अंकन 61,541/- रूपये बकाया हैं ओर जमा करने के लिए कहा। विवश होकर परिवादी ने उपरोक्‍त धनराशि दिनांक 17.07.2009 को जमा कर दी, क्‍योंकि उसके द्वारा जमा किए गए मूल दस्‍तावेज अपीलार्थी बैंक के पास रखे थे। धनराशि जमा करने के पश्‍चात परिवादी को विपक्षी ने उपरोक्‍त दस्‍तावेज वापस किए। इस प्रकार विपक्षी बैंक द्वारा सेवा में कमी की गई है, इसलिए परिवाद प्रस्‍तुत किया गया।  

           विपक्षी/अपीलार्थी ने अपनी आपत्‍ति‍ में कहा कि दिनांक 17.07.2009 को परिवादी द्वारा बकाया धनराशि जमा की गई, जिस पर उसे नो ड्यूज प्रमाण पत्र उसी दिन दे दिया गया। परिवादी का यह कहना गलत है कि परिवादी ने अंकन 05 हजार रूपये जमा करके कैश क्रेडिट खाता खुलवाया। कैश क्रेडिट खाता बैंक द्वारा ऋणी को दी गई ऋण सुविधा है और निर्धारित सीमा तक बैंक ऋण को बिना उसके खाते में कोई पैसा रहे धनराशि का भुगतान करती है और उसकी क्रम में परिवादी को अंकन 04 लाख रूपये तक का ऋण कैश क्रेडिट सुविधा के रूप में उपलब्‍ध कराया गया, जिसके भुगतान की गारण्‍टी में श्रीमी शीला देवी त्रिपाठी की सम्‍पत्ति को मूल बैनामा जमा कर बन्‍धक किया गया था। परिवादी द्वारा नियमानुसार अपने खाते का संचालन नहीं किया गया और न ही सेल प्रोसीड जमा किया गया। इस कारण परिवादी का ऋण खाता दिनांक 20.09.1998 को एन.पी.ए. घोषित हो गया। विपक्षी बैंक द्वारा कोई सेवा में कमी नहीं की गई है।

           दोनों पक्षों के विद्वान अधिवक्‍तागण को सुनने के उपरांत विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग द्वारा उपरोक्‍त वर्णित निर्णय एवं आदेश पारित किया गया।

           अपीलार्थीगण की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री जफर अजीज तथा प्रत्‍यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्‍ता श्री अम्‍बरीश कौशल श्रीवास्‍तव को सुना गया तथा प्रश्‍नगत निर्णय/आदेश एवं पत्रावली का अवलोकन किया गया।

           विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय एवं आदेश में यह पाया है कि परिवादी द्वारा समस्‍त बकाया राशि जमा कर दी गई तथा एकमुश्‍त योजना में अंकन 1.84 लाख रूपये की धनराशि जमा करने के उपरांत विपक्षी से स्‍टेटमेंट आफ अकाउण्‍ट की मांग की गई, जिसे विपक्षी बैंक द्वारा दिनांक 14.03.2007 को परिवादी को उपलब्‍ध कराया गया, उसमें उल्‍लेख किया गया कि परिवादी के ऊपर कोई बकाया नहीं है। परिवादी द्वारा बकाया धनराशि जमा करने के बाद भी बैंक द्वारा बंधक रखी गई डीड वापस नहीं की गई, इस संबंध में परिवादी द्वारा विपक्षी बैंक से पत्राचार किया गया, परन्‍तु केवल आश्‍वासन दिया जाता रहा। विपक्षी बैंक द्वारा परिवादी को पुन: दिनांक 14.07.2009 को अंकन 61,500/- रूपये की राशि 03 दिन में जमा करने के लिए कहा गया, जिसे विवश होकर परिवादी ने दिनांक 17.07.2009 को अंकन 61,541/- रूपये भी जमा कर दिया गया, क्‍योंकि बैंक के पास परिवादी के मूल दस्‍तावेज जमा थे, जिनकी परिवादी को आवश्‍यकता थी। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने अपने निर्णय में यह भी पाया कि अंकन 61,500/- रूपये जमा करने हेतु दिनांक 14.07.2009 को 03 दिन का समय दिया गया था और परिवादी ने दिनांक 17.07.2009 को ही उक्‍त धनराशि जमा कर दी गई तो किस आधार पर अंकन 61,500/- रूपये के सापेक्ष 61,541/- रूपये जमा कराए गए, इसका कोई समुचित उत्‍तर विपक्षी बैंक द्वारा नहीं दिया गया।

           विद्वान अधिवक्‍तागण को सुनने एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍यों का अवलोकन करने के उपरांत हम यह पाते हैं कि परिवादी द्वारा जमा की गई राशि अंकन 61,541/- रूपये ब्‍याज सहित परिवादी वापस प्राप्‍त करने का अधिकारी है। विद्वान जिला उपभोक्‍ता आयोग ने साक्ष्‍यों की पूर्ण विवेचना करने के उपरांत अपना निर्णय एवं आदेश पारित किया है, जिसमें हस्‍तक्षेप करने का कोई विधिसम्‍मत आधार नहीं है। अपील तदनुसार निरस्‍त होने योग्‍य है।

           प्रस्‍तुत अपील निरस्‍त की जाती है।

पक्षकार अपना-अपना अपीलीय व्‍यय स्‍वंय वहन करेंगे।

अपीलार्थी द्वारा धारा-15 के अन्‍तर्गत जमा धनराशि अर्जित ब्‍याज सहित जिला उपभोक्‍ता आयोग को निस्‍तारण हेतु प्रेषित की जाए।

आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दे।

 

 

                     

     (न्‍यायमूर्ति अशोक कुमार)              (सुशील कुमार)

                  अध्‍यक्ष                         सदस्‍य

 

 

 

 लक्ष्‍मन, आशु0,

    कोर्ट-1

 

 
 
[HON'BLE MR. JUSTICE ASHOK KUMAR]
PRESIDENT
 
 
[HON'BLE MR. SUSHIL KUMAR]
JUDICIAL MEMBER
 

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