Uttar Pradesh

StateCommission

A/2013/1459

Mahindra & Mahindra Financial Services - Complainant(s)

Versus

Shamsheer Ahamd - Opp.Party(s)

Adeel Ahmad

05 Oct 2020

ORDER

STATE CONSUMER DISPUTES REDRESSAL COMMISSION, UP
C-1 Vikrant Khand 1 (Near Shaheed Path), Gomti Nagar Lucknow-226010
 
First Appeal No. A/2013/1459
( Date of Filing : 01 Jul 2013 )
(Arisen out of Order Dated in Case No. of District State Commission)
 
1. Mahindra & Mahindra Financial Services
-
...........Appellant(s)
Versus
1. Shamsheer Ahamd
-
...........Respondent(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MR. Gobardhan Yadav PRESIDING MEMBER
 HON'BLE MR. Vikas Saxena JUDICIAL MEMBER
 
PRESENT:
 
Dated : 05 Oct 2020
Final Order / Judgement

राज्‍य उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।

सुरक्षित

अपील संख्‍या-1459/2013

(जिला उपभोक्‍ता फोरम, द्वितीय बरेली द्वारा परिवाद संख्‍या 292/2009 में पारित निर्णय दिनांक 31.01.2013 के विरूद्ध)

महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेन्सियल सर्विसेस लि0। महिन्‍द्रा टावर

फैजाबाद रोड, लखनऊ आन बिहाफ आफ जी.के.एस पैलेस 63

अय्यूब खान, चौपुला रोड, सिविल लाइन्‍स, पी.एस. कोतवाली तहसील,

जिला बरेली।                                   ......अपीलार्थी/विपक्षी

बनाम्

शमशीर अहमद पुत्र नजीर अहमद निवासी ग्राम हरहरपुर, मटकली

पी.एस. हाफिज गंज, तहसील नवाबगंज, जिला बरेली।  ......प्रत्‍यर्थी/परिवादी

समक्ष:-

1. मा0 श्री गोवर्धन यादव, सदस्‍य।

2. मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य।

अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : श्री अदील अहमद, विद्वान अधिवक्‍ता।

प्रत्‍यर्थी की ओर से उपस्थित   : श्री टी0एच0 नकवी, विद्वान अधिवक्‍ता।

दिनांक 29.10.2020

मा0 श्री विकास सक्‍सेना, सदस्‍य द्वारा उदघोषित

निर्णय

1.   यह अपील जिला उपभोक्‍ता विवाद प्रतितोष फोरम द्वितीय बरेली द्वारा परिवाद संख्‍या 292/2009 में पारित प्रश्‍नगत निर्णय एवं आदेश दि. 31.01.2013 से व्‍यथित होकर योजित की गई है, जिसके माध्‍यम से विद्वान जिला फोरम ने परिवादी का परिवाद अंशत: आज्ञप्‍त करते हुए विपक्षी/फाइनेन्‍सर को क्रय किए गए वाहन का मूल्‍य रू. 138270/- की धनराशि भुगतान करने और इस पर वाद प्रस्‍तुति से अंतिम भुगतान तक 10 प्रतिशत वार्षिक ब्‍याज का आदेश दिया।

2.   मामले के कथन इस प्रकार है कि परिवादी/प्रत्‍यर्थी ने एक तिपहिया वाहन महिन्‍द्रा चैम्पियन लोडर, टैम्‍पो दि. 10.12.2004 को क्रय मूल्‍य रू. 173000/- में क्रय किया, जिसमें उसने रू. 43000/- नगद और रू. 130000/- विपक्षी से ऋण कराके विक्रेता को दिया था। ऋण का भुगतान

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विपक्षी द्वारा तय की गई 35 किश्‍त में प्राप्‍त रू. 5268/- प्रतिमाह में किया जाना था। परिवादी के अनुसार वह कुछ समय तक किश्‍तें अदा करता रहा और टैम्‍पो चलता रहा, किंतु टैम्‍पो सही न चलने के कारण परिवादी/प्रत्‍यर्थी द्वारा दिए जाने वाली किश्‍ते टूट गई। पुन: दि. 14.06.2006 के उपरांत प्रत्‍यर्थी ने कुछ धनराशि पुन: विपक्षी को अदा की और इस प्रकार समस्‍त धनराशि रू. 95270/- विपक्षी को अदा कर दिया, किंतु दि. 02.04.2007 को विपक्षी के मातहत कर्मचारीगण ने परिवादी का टैम्‍पो रूकवाकर परिवादी के ड्राइवर से चाभी छीन ली और उक्‍त वाहन कब्‍जे में ले लिया। परिवादी का कथन है कि इसके पूर्व विपक्षी/अपीलार्थी ने परिवादी को कोई नोटिस नहीं दिया था और न ही किश्‍तों का कोई हिसाब ही दिा था। मई 2008 में परिवादी को सहायक संभागीय परिवहन अधिकारी, उधम सिंह नगर का पत्र दिनांकित 12.05.2008 प्राप्‍त हुआ, जिससे परिवादी को ज्ञात हुआ कि उसे बिना कोई सूचना दिए ही विपक्षी/अपीलार्थी ने परिवादी का उक्‍त टैम्‍पो किसी व्‍यक्ति तृतीय पक्ष को कर दिया है। परिवादी का कथन आया कि विपक्षी ने सेवा में त्रुटि की है।

3.   विपक्षी ने अपने उत्‍तर पत्र में परिवादी को हायर परचेज एग्रीमेन्‍ट के अधीन तिपहिया वाहन क्रय करने के लिए रू. 130000/- का ऋण देना स्‍वीकार किया। अपीलार्थी के अनुसार उक्‍त ऋण का भुगतान 35 मासिक किश्‍तों में किया जाना था। अपीलार्थी के अनुसार परिवादी ने कभी भी नियमित रूप से ऋण की किश्‍तों का भुगतान नहीं किया, जिसके फलस्‍वरूप हायर परचेज एग्रीमेन्‍ट के अनुसार उसके ऊपर दण्‍डात्‍मक ब्‍याज लगाया गया। बार-बार मांगने पर भी ऋण की अदायगी नहीं की गई। अपीलार्थी का कथन है कि ऋण संविदा के अनुसार ऋण की अदायगी पूर्ण होने तक

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प्रश्‍नगत वाहन का मालिकाना हक विपक्षी का है, इस आधार पर विपक्षी ने परिवाद को खारिज किए जाने की प्रार्थन की।

4.   उभय पक्ष के कथनों एवं समस्‍त अभिलेखीय साक्ष्‍य के अवलोकन के उपरांत विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम द्वारा प्रश्‍नगत निर्णय दिनांकित 31.01.2013 पारित किया गया, जिसमें परिवाद अंशत: आज्ञप्‍त किया गया और विपक्षी को आदेशित किया गया कि वह परिवादी को वाहन मूल्‍य रू. 138270/- की धनराशि व इस पर परिवाद प्रस्‍तुत करने की तिथि से वास्‍तविक अदायगी तक 10 प्रतिशत साधारण बयाज प्रदान करें। इसके अतिरिक्‍त मानसिक कष्‍ट एवं वाद व्‍यय की धनराशि भी आज्ञप्ति की गई। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने निर्णय में यह तर्क लिया है कि विपक्षी की ओर से ऐसा कोई साक्ष्‍य नहीं प्रस्‍तुत किया गया है कि उन्‍होंने कानूनी प्रक्रिया अपनाते हुए वाहन को अपने कब्‍जे में प्राप्‍त किया है, जबकि परिवादी ने साक्ष्‍य से सिद्ध किया है कि विपक्षी ने उक्‍त वाहन को जबरन छीन लिया है। इसके अतिरिक्‍त पत्रावली में प्रस्‍तुत साक्ष्‍य से स्‍पष्‍ट है कि विपक्षी ने परिवादी को कोई सूचना या नोटिस नहीं दी और यह माननीय राष्‍ट्रीय आयोग के निर्णयों के अनुसार वाहन को ऋणी से जबरन छीनना अनुचित व्‍यापार की श्रेणी में आता है। इस आधार पर परिवाद आज्ञप्‍त किया गया।

5.   हमने अपीलकर्ता के विद्वान अधिवक्‍ता श्री अदील अहमद तथा प्रत्‍यर्थी के विद्वान अधिवक्‍ता श्री टी0एच0 नकवी के तर्क सुने तथा अभिलेखों का अवलोकन किया गया।

6.   उभय पक्ष के अभिकथनों एवं पत्रावली पर उपलब्‍ध साक्ष्‍य से स्‍पष्‍ट है कि अपीलार्थी फाइनेन्‍सर ने विपक्षी/प्रत्‍यर्थी को एक टैम्‍पो खरीदने के लिए

 

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ऋण दिया, जिसकी अदायगी के लिए रू. 5268/- की 35 मासिक किश्‍तें तय हुई थी। स्‍वीकृत रूप से विपक्षी कुछ किश्‍तों की अदायगी नहीं कर पाया, जिसके कारण अपीलकर्ता ने अपने कर्मियों के बल पर परिवादी/प्रत्‍यर्थी से उक्‍त वाहन को अपने कब्‍जे में ले लिया। विद्वान जिला उपभोक्‍ता फोरम ने मा0 राष्‍ट्रीय आयोग के 2 निर्णयों पर आधारित करते हुए यह दिय कि इन निर्णयों में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग ने यह स्‍पष्‍ट राय दी है कि वाहन को ऋणी से जबरन छीनना वित्‍त पोषक द्वारा अनुचित व्‍यापार की प्रथा है। इस आधार पर विद्वान जिला फोरम परिवादी को वाहन का मूल्‍य रू. 138270/- की धनराशि मय 10 प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्‍याज परिवाद प्रस्‍तुति से भुगतान की तिथि तक अदायगी का आदेश दिया। उभय पक्ष के मध्‍य विवाद और विद्वान जिला फोरम के निर्णय को दृष्टिगत रखते हुए अीपल हेतु निम्‍नलिखित बिन्‍दु उत्‍पन्‍न होते हैं:-

1.क्‍या प्रश्‍नगत वाहन को अपीलकर्ता/फाइनेन्‍सर को अपने कब्‍जे में लेने का अधिकार था।

2.क्‍या अपीलकर्ता ने प्रश्‍नगत संव्‍यवहार में सेवा में कमी की है, इस आधार पर परिवाद स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।

7.   प्रथम बिन्‍दु के संबंध में प्रत्‍यर्थी/परिवादी का कथन है कि लिए गए ऋण की मासिक किश्‍तें देने में व्‍यवधान हुआ, किंतु उसके द्वारा अपीलकर्ता/फाइनेन्‍सर को ऋण की अग्रिम किश्‍तें प्रदान किए जाने का आश्‍वासन प्रदान किया गया था और कुछ धनराशि उसके द्वारा प्रदान भी की गई थी, किंतु इसके बावजूद अपीलार्थी फाइनेन्‍सर ने अपने कर्मियों की मदद से बलपूर्वक यह वाहन अपने कब्‍जे में ले लिया।

 

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8.   परिवाद पत्र के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि परिवादी ने रू. 130000/- का ऋण लिया गया था, जिसमें से रू. 95270/- की किश्‍ते अदा की गई थी। परिवाद पत्र के प्रस्‍तर-5 में किश्‍तों की अदायगी का पूर्ण विवरण एक तालिका में दिया गया है। विपक्षी के कथनानुसार उभय पक्ष के मध्‍य हुए करार के अनुसार रू. 130000/- के मूलधन की अदायगी के लिए कुल रू. 173875/- का करार तय हुआ था, जिसमें से परिवादी ने रू. 95270/- की अदायगी की थी। स्‍वयं परिवादी द्वारा दिए गए ऋण अदायगी की तालिका परिवाद के प्रस्‍तर-5 से स्‍पष्‍ट है कि दि. 17.04.2006 तक परिवादी द्वारा नियमित रूप से किश्‍तों की अदायगी की गई, तदोपरांत अगले 4 महीनों में अदायगी अनियमित हो गई और पूर्ण धनराशि नहीं दी गई। तालिका से स्‍पष्‍ट है कि माह सितम्‍बर 2006 से फरवरी 2006 कुल 6 माह तक कोई भी किश्‍तें नहीं दी गई। इसके पूर्व भी किश्‍त की पूर्ण धनराशि माह अप्रैल 2006 के उपरांत नहीं दी गई। इस प्रकार स्‍वयं परिवादी के अभिवचनों से ही यह स्‍पष्‍ट है कि लिए गए ऋण की अदायगी की किश्‍तों में लगातार अनियमितता और व्‍यवधान रहा है तथा लगभग 6 माह तक कोई भी किश्‍तें अदा नहीं की गई, तदोपरांत माह अप्रैल 2007 में परिवादी ने प्रश्‍नगत वाहन को अपने कब्‍जे में ले लिया।

9.   पीठ के समक्ष प्रश्‍न यह है कि क्‍या इन दशाओं में अपीलकर्ता को वाहन स्‍वयं अपने कब्‍जे में लेने का अधिकार था अथवा नहीं। उक्‍त प्रश्‍न के निर्धारण के लिए उभय पक्ष के मध्‍य हुए करार के उपबंध देखे जाने आवश्‍यक है, जिनके अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि अपीलकर्ता फाइनेन्‍सर द्वारा प्रश्‍नगत वाहन का संरक्षण एवं अधिकार अपने पक्ष में रखा गया था।

3) The borrower expressly agrees and covenants with the Lender

a) To keep the product in sound and working condition and at the reasonable time to allow the Lender and/or its authorised representative to inspect the same.

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b) Not to engage any person other than authorised mechanic of the manufacturer of the dealer/supplier to effect the repair if any to the said product.

c) To keep the product and accessories in the borrower's own custody and not to change the registration number/registered address without the Lender's previous consent in writing and not to sell or pawn or hire or otherwise deal with or dispose of the said product in any manner whatsoever.

d) Without prejudice to the provisions of the Sub-clause( c) above, it is understood that in no event will the Lender consent to the product and accessories being removed from the above mentioned address. The borrower hereby expressly agrees that if he is about to remove the said product he will give a 15 days prior written notice to the lender of such intention and will before removing observe such terms as the lender may stipulates.

e) To pay the Lender on demand all the expenses, costs or charges incurred in ascertaining the whereabouts of the Borrower or the said product or recovering or endeavouring to recover the possession thereof from anyone in whose possession the product shall for the time being be:

f) In case the product being a motor vehicle, not to use it as a means of transport in the smuggling of any goods or for any unlawful and/or illegal purpose

g) Not to sell, mortgage, pledge, hypothecate, hire or otherwise deal with the product nor part with the possession of the product nor remove it out of the state where original delivery was effected without the express written permission of the Lender previously obtained and also not to use the product for any purpose other than that declared in the Borrower's proposal/application as the case may be.

h) To pay in the name and on behalf of the lender all fees and taxes payable in respect of the product as and when the same become due and to indemnify the Lender against all such payments.

i) Permit the Lender and/or its authorized representative to inspect the Product at all reasonable times, and for that purpose permit the Lender and/or authorized representatives to enter any premises where the Product is parked/located.

j) Follow all instructions given by the manufacturer/dealer/supplier for use of the Product.

k) Always remain in possession of the Product and not mortgage, pledge, hire or otherwise deal with the Product without the prior express written permission from the Lender.

l) Indemnify the Lender against loss or damage to the Product or any part thereof from whatever cause whether or not  such loss or damage is as a consequence of the negligence of the Borrower.

m)………………………….

n)……………………………

 o)………………………….

p)…………………………

q)………………………….

4)………………………………………………………………………………………………………………………………………………………….

5) The Borrower in whose name the Product is going to be registered acknowledges with the express consent of the Co-Borrower and the Guarantor  that the Borrower shall, at the time of delivery of the Product to the Borrower, by an oral agreement, hypothecate the Product in favour of the Lender in order to secure the Lender’s  dues land charges on the terms and conditions contained in this Agreement and, upon such oral Agreement  the Product shall stand hypothecated in favour of the Lender. The Borrower undertakes to get the registration certificate of the Product endorsed with the name Mahindra & Mahindra Financial Services Limited in accordance with clause 9 below within a period of 3 days from the date of delivery of the Product to confirm and record the fact the Borrower has hypothecated the Product in favour of the Lender at the time of delivery of the Product to the Borrower as per the provisions of this Agreement. The parties hereto agree that the endorsement on the registration certificate with the name Mahindra & Mahindra Financial Services Ltd. as stipulated in the clause 9 shall operate as conclusive evidence of such hypothecation. Provided that the default by the Borrower to get the Registration Certificate endorsed with the name Mahindra l& Mahindra Financial Services Ltd. shall not be deemed to be or construed as an absence of the Borrower’s oral hypothecation  of the Product in favour of MMFSL as mentioned above simultaneous with delivery of the Product. The Borrower undertakes to supply the details of the Product (either directly or

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through the dealer) as soon as such details are available. The said  proposed hypothecation shall be by way of first and exclusive charge against the Lender’s dues and charges. The Borrower shall not encumber or transfer the Product in any manner whatsoever without the express consent in writing of the Lender.  Without prejudice to the above, the Borrower has also, pursuant to a power of attorney, authorized the Lender to hypothecate the Product in favour of the Lender at the time of delivery of the Product to the Borrower or at any time thereafter.

10.  उभय पक्ष के मध्‍य हुए ऋण की संविदा के प्रस्‍तर-5 के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है‍ कि फाइनेन्‍सर द्वारा यद्यपि यह अनुमति दी गई थी कि प्रश्‍नगत वाहन का पंजीकरण परिवादी का अपने नाम करा ले, किंतु इस वाहन को बैंक के पक्ष में आडमान(Hypothecated) रखा गया था।

11.  अपीलार्थी की ओर से यह तर्क दिया गया कि प्रश्‍नगत संव्‍यवहार हायर परचेज करार है, जिसमें वाहन का स्‍वामित्‍व ऋण देने वाले किरायेदाता के पक्ष में होता है। अपीलकर्ता की ओर से अपने समर्थन में मा0 राष्‍ट्रीय आयोग द्वारा पारित निर्णय जियाउल हक प्रति एलएनटी फाइनेन्‍स लि0 तथा अन्‍य 3(2014) सीपीजे 523 (एन.सी), देवर मोटर्स प्रति उत्‍तम भुईया 1(2017) सीपीजे पृष्‍ठ-408 मा0 सर्वोच्‍च न्‍यायालय द्वारा पारित निर्णय सूर्यपाल सिंह प्रति सिद्ध विनायक मोटर्स तथा अन्‍य 3(2012) सीपीजे पृष्‍ठ-4 सुप्रीम कोर्ट प्रस्‍तुत किया गया है, जिसमें यह निर्णीत किया गया है कि हायर परचेज के करार में वाहन का स्‍वामित्‍व ऋण देने वोले फाइनेन्‍सर के पक्ष में रहता है जब तक कि ऋण की समस्‍त किश्‍तें अदा नहीं हो जाती है।

12.  उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा के उपबंध के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि इसमें कहीं भी ''हायर-परचेज'' के आधार पर प्रश्‍नगत वाहन को दिया जाना अंकित नहीं है एवं उपबंधों में कहीं यह भी उल्‍लेख नहीं है कि वाहन का स्‍वामित्‍व किश्‍तों की अदायगी तक फाइनेन्‍सर के पक्ष में बना रहेगा। संविदा के प्रस्‍तर-5 के अवलोकन से स्‍पष्‍ट होता है कि प्रश्‍नगत वाहन को ऋण की सुरक्षा/प्रतिभूति हेतु फाइनेन्‍सर अपीलकर्ता के पक्ष में आडमान

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(Hypothecated) कर दिया गया था। संविदा के विषयवस्‍तु के आडमान के संबंध में उच्‍च न्‍यायालय आन्‍ध्र प्रदेश द्वारा पारित निर्णय स्‍टेट बैंक आफ इंडिया प्रति एस0बी0 शाह अली तथा अन्‍य प्रकाशित ए.आई.आर 1995 आन्‍ध्र प्रदेश पृष्‍ठ- 134 का यहां पर उल्‍लेख किया जाना उचित है, जिसमें '' आडमान करार '' (Hypothecation Agrement) की विस्‍तृत विवेचना करते हुए यह दिया गया है कि आडमान(Hypothecation) का संव्‍यवहार वैधानिक रूप से परिभाषित संव्‍यवहार नहीं है, बल्कि यह व्‍यावसायिक मामलो में प्रचलित एक शब्‍दावलि एवं संव्‍यवहार है, जिसमें विषय वस्‍तु को ऋणी के कब्‍जे में दे दिया जाता है, किंतु ऋण की सुरक्षा की दृष्टि से इस पर ऋणदाता का अधिकार बना रहता है और वह ऋण की सुरक्षा हेतु इसे कभी भी अपने कब्‍जे में ले सकता है।

13.  प्रत्‍यर्थी/परिवादी की ओर से यह तर्क दिया गया कि अपीलकर्ता ने अपने स्‍तर से ही प्रश्‍गनत वाहन का कब्‍जा ले लिया है, जबकि किश्‍तों की अदायगी न होने पर ऋणदाता अपीलकर्ता को वैधानिक प्रक्रिया के माध्‍यम से प्रश्‍नगत वाहन का कब्‍जा लेना था और इस प्रकार अपीलार्थी ने इस संव्‍यवहार में सेवा में कमी की है। उपभोक्‍ता संरक्षण अधिनियम, 1986(तत्‍समय लागू) की धारा 14 में फोरम को यह अधिकार है कि उपभोक्‍ता मामले में सेवा में कमी होने पर या उसके द्वारा अनुचित व्‍यापार पद्धति अपनाए जाने पर वह परिवादी को अनुतोष प्रदान कर सकता है। अत: इन प्रश्‍नों पर दोनों पक्षों के मध्‍य के करार को देखा जाए आवश्‍यक है। प्रस्‍तुत मामले में स्‍वीकृत रूप से प्रत्‍यर्थी ने किश्‍तों की अदायगी में व्‍यवधान किया था एवं उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा के अनुसार ऋणदाता अपीलार्थी

 

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को ऐसे में वाहन अपने कब्‍जे में लिए जाने का अधिकार था। संविदा के प्रस्‍तर-14 इस संबंध में निम्‍नलिखित प्रकार से है:-

14. Consequences upon default:

14.1 Upon the occurrence of any event of default and any time thereafter, the Lenders shall without prejudice to its rights in law, be entitled to declare al sums due and to become due hereunder for the full term of the agreement as immediately due and payable including that the Borrower shall be liable to pay the Lender foreclosure charges calculated as the percentage (as per Schedule1) of the balance principal outstanding along with other dues including unpaid installments, service taxes, late charges etc., due as on date of such declaration and upon the Borrower failing to make the said payment in full within 7 days thereof, the Lender may, at its sole discretion, do any one or more of the following:

i)          Upon notice to the Borrower terminate this agreement;

ii)         Demand that the Borrower should return the Product to the Lenders at the risk and expense of the borrower, in the same condition it was delivered to him (Ordinary wear and tear Excepted) at such location as the lender may designate and upon failure of the borrower to do so within the period of demand the lender/agents/allies as agent and constituted attorney of the borrower can enter upon premises where the product is located and take immediate possession of and remove the same without liability to the lenders or their  agents of such entry of for damages to property or otherwise. Upon such return of the property upon the lender taking possession of the product as herein before stated the loan agreement can be for closed or terminated by the lender at its discretion and provided however the remedies available to the lender as herein given shall survive such foreclosure and termination of loan and the lender shall be entitled and authorized to exercise its rights herein including in connection with the product to recover its dues under this Agreement. 

iii)        Of such terms and conditions and for such consideration as the Lender may deem fit with or without any notice to the Borrower sell the Product at a public or private sale, otherwise dispose of upon such return of the Product or use, or operate, lease to others or keep idle such Product, all free and clear of any rights to the Borrower and without any duty to account to the Borrower for such action or inaction or for any proceeds in respect thereof. 

iv)        By written notice to the Borrower, require the Borrower to pay to the Lender (as liquidated damages or loss of bargain and not as a penalty) on the date specified in such notice an amount (plus interest at the rate of 36% per annum for the period until receipt of the said amount) equal to all unpaid periodical installment payments and all other payments which, in the absence of a default, would have been payable by the Borrower hereunder for the full term hereof,

or

v)         Exercise any other right of remedy which may be liable to them under the applicable law.

vi)        It being agreed and understood by the Borrower that the right to the Lender to recover the amount payable and/or repayable or reimbursable to the satisfaction of the Lender shall survive any such Cancellation of Loan and/or termination if attached and the Lender’s rights wherever given in connection with initiating of action for enforcing its right to recover the amount shall also survive the Cancellation of the Loan or the termination of the agreement as the case may be and the Lender shall be entitled to take all or the any of the steps therefor and the Borrower shall not take defense of such termination or cancellation of Loan under this agreement.

14.2 a)             Distribution on realization.

            The net proceeds of sale, realization, recovery and/or insurance claim proceeds relating to the Product herein, on receipt by the Lender shall be applied at its absolute discretion in the manner lit thinks fit. The Lender shall set off first cost incurred in relation to the enforcement of the agreement then secondly delayed payment charges arising out of the late remittance of the PI due under this agreement and finally the PI in the inverse order of maturity. The Borrower shall continue to be liable for any deficiency

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in the amount due to the Lender by the Borrower after adjustment of the net proceeds of sale, realization, recovery and/or insurance claim as above.

b)         No interest or compensation shall be payable by the Lender to the Borrower on the proceeds to be held by the Lender or during the period the same shall be held by the Lender for being applied in terms of clause 14.2(a) on distribution of realization. 

c)         Upon termination or earlier determination of this Agreement or the cancellation of the Loan as the case may be the Lender shall as the absolute Lender of the Product be at liberty to sell or otherwise dispose of the same in such manner as they may deem fit including by private sale which shall not be questioned or challenged by the Borrower or exercise, any one or more of the rights and remedies set out in this Agreement.

d)         If the price recovered on such sale or disposal falls short of the aggregate amount of installments remaining due and payable, the Lenders may, by a notice in writing, call upon the Borrower to pay the difference within such days of the receipt of the Notice by the Borrower, together with all over due some, owing and payable by the Borrower to the Lenders under or by virtue of these presents and the Borrower agrees to make such payment without demur;

14.3     In addition and without prejudice, to what is stated above, the Borrower shall be liable for all legal and other costs and expenses resulting from the forgoing defaults from exercise of the Lender’s remedies, including but not limited to possession of any of the product and/or collection recovery of all or any charges payable by the Borrower/Co-Borrower as the case may be.

14.4     No remedy referred to hereinabove is intended to be exclusive, but the same shall be in addition to any other remedy available to the Lenders at law. The Lenders reserves the rights to appoint bankers or financial institutions or any other persons it deems fit as their attorney or agent for the purposes of enforcing their right and remedies under this agreement.

14.  इस प्रकार उभय पक्ष के मध्‍य हुए करार के प्रस्‍तर-14 में स्‍पष्‍ट रूप से दिया गया था कि किश्‍तों में व्‍यवधान होने पर ऋणदाता को यह अधिकार होगा कि वह ऋण लेने वाले को नोटिस देकर बकाए धनराशि की मांग कर सकता है तथा उक्‍त मांग पूरी न होने पर प्रश्‍नगत संपत्ति को अपने कब्‍जे में अपने कर्मियों के माध्‍यम से ले सकता है और बिना किसी नोटिस के इसको किसी भी तृतीय पक्ष को बेच सकता है। इस प्रकार उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा में यह तयशुदा था कि किश्‍तों की अदायगी न होने पर अपीलकर्ता प्रश्‍नगत वाहन को अपने कब्‍जे में ले सकता है एवं ऋण की अदायगी हेतु इसे विक्रय कर सकता है। इस प्रकार उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा के अनुसार ही अपीलकर्ता ने प्रश्‍नगत वाहन को अपने कब्‍जे में लिया है। इस संबंध में पुन: उच्‍च न्‍यायालय आन्‍ध्र प्रदेश के उपरोक्‍त निर्णय स्‍टेट बैंक आफ इंडिया एस0बी0 शाह अली प्रकाशित ए.आई.आर 1995 आन्‍ध्र प्रदेश प्रष्‍ठ-134 का उल्‍लेख करना उचित होगा। इस निर्णय के तथ्‍य प्रस्‍तुत

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मामले के तथ्‍यों से मिलते-जुलते हैं। उच्‍च न्‍यायालय के समक्ष मामले में भी प्रश्‍गनत वाहन को स्‍टेट बैंक आफ इंडिया में ऋण देकर अपने पक्ष में आडमान(Hypothecated) कराया था और बिना किसी नोटिस व सूचना के वाहन को अपने कब्‍जे में ले लिया था। निर्णय के प्रस्‍तर-27 में उच्‍च न्‍यायालय ने एक अन्‍य निर्णय एस.वाई.सी.डबल्‍यू प्रति एस0 मिल्‍स प्रकाशित ए.आई.आर. 1969 मैसूर पृष्‍ठ 280 पर आधारित करते हुए यह दिया कि आडमान(Hypothecation) के करार में यदि कोई चल संपत्ति ऋणदाता के पक्ष में आडमान(Hypothecated) की गई है तो नि:संदेह ऋणदाता बैंक को संपत्ति को अपने कब्‍जे में लेने और इसे बेचकर ऋण अदायगी करने का पूर्ण अधिकार है, यह बिना न्‍यायालय के हस्‍तक्षेप के भी किया जा सकता है। आडमान(Hypothecation) को परिभाषित करते हुए उच्‍च न्‍यायालय ने यह दिया है कि Hypothecation या आडमान ''Pledge'' विस्‍तृत रूप है, जिसमें ऋणदाता विषयवस्‍तु चल संपत्ति के संबंध में ऋणी को यह अनुमति देता है कि वह ट्रस्‍टी के रूप में संपत्ति को अपने कब्‍जे रख सके। निर्णय के प्रस्‍तर-28 में यह प्रदान किया गया कि ऋणदाता बैंक को यह अधिकार है कि आडमान(Hypothecated) की गई संपत्ति न्‍यायालय के माध्‍यम से अथवा स्‍वयं कब्‍जे में ले सके।

15.  इस संबंध में अपीलार्थी की ओर से प्रस्‍तुत किया गया मा0 राष्‍ट्रीय फोरम द्वारा पारित निर्णय महिन्‍द्रा एण्‍ड महिन्‍द्रा फाइनेन्‍सर सर्विस प्रति रमेश सावंत 4(2017) सीपीजे पृष्‍ठ-429(एन.सी) इस संबंध में दिशा निर्देशन देता है जिसके प्रस्‍तर-11 में यह निर्णीत किया गया है कि यदि ऐसी दशा में फाइनेन्‍सर द्वारा प्रश्‍नगत संपत्ति का बलपूर्वक कब्‍जा लिया है तो भी

 

-12-

यह धारा 2(आर) के परिभाषा के अनुसार '' अनुचित व्‍यापार पद्धति '' धारा 2(जी) के अनुसार '' सेवाओं में कमी '' की श्रेणी में कदापि नहीं आएगा।

16.  उपरोक्‍त विवेचन से स्‍पष्‍ट है कि प्रश्‍नगत मामले में अपीलकर्ता बैंक ने प्रश्‍गनत ऋण की अदायगी में व्‍यवधान होने पर उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा के उपबंधों के अनुरूप ही प्रश्‍नगत वाहन को अपने कब्‍जे में लिया। यद्यपि यह कब्‍जा बलपूर्वक था जो व्‍यवसाय की अनुचित प्रथा माना जा सकता है, किंतु इस आधार पर न तो इसे '' अनुचित व्‍यापार पद्धति '' अथवा '' सेवाओं में कमी '' की श्रेणी मानते हुए परिवादी को प्रश्‍नगत वाहन का मूल्‍य दिलाया जा सकता है और न ही कोई क्षतिपूर्ति दिया जाना उचित है, जैसाकि प्रश्‍नगत निर्णय में किया गया है। अपीलकर्ता द्वारा उभय पक्ष के मध्‍य हुई संविदा के अनुसार अधिकारों का प्रयोग करते हुए वाहन अपने कब्‍जे में लिया है, अत: परिवाद में मांगा गया अनुतोष परिवादी को दिया जाना उचित नहीं है, तदनुसार प्रश्‍गनत निर्णय अपास्‍त किए जाने योग्‍य है एवं अपील स्‍वीकार किए जाने योग्‍य है।        

आदेश

17.  प्रस्‍तुत अपील स्‍वीकार की जाती है। जिला मंच द्वारा पारित प्रश्‍नगत निर्णय निरस्‍त किया जाता है।

     उभय पक्ष अपना-अपना अपीलीय वाद व्‍यय स्‍वयं वहन करेंगे।

     निर्णय की प्रतिलिपि पक्षकारों को नियमानुसार उपलब्‍ध कराई जाए।

 

         (गोवर्धन यादव)                      (विकास सक्‍सेना)                                                                                                                                                     सदस्‍य                               सदस्‍य         

राकेश, पी0ए0-2

  कोर्ट-2

 
 
[HON'BLE MR. Gobardhan Yadav]
PRESIDING MEMBER
 
 
[HON'BLE MR. Vikas Saxena]
JUDICIAL MEMBER
 

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