Chhattisgarh

Durg

CC/168/2013

Suresh Kumar Sharma - Complainant(s)

Versus

Shakun Restorent & Cet. - Opp.Party(s)

Smt. Chandrakala Sahu

13 Feb 2015

ORDER

DISTRICT CONSUMER DISPUTES REDRESSAL FORUM, DURG (C.G.)
FINAL ORDER
 
Complaint Case No. CC/168/2013
 
1. Suresh Kumar Sharma
Polsay para Station Road Durg
Durg
C.G.
...........Complainant(s)
Versus
1. Shakun Restorent & Cet.
Bhilai Nagar Durg
Durg
C.G.
............Opp.Party(s)
 
BEFORE: 
 HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर् PRESIDENT
 HON'BLE MRS. श्रीमती शुभा सिंह MEMBER
 
For the Complainant:Smt. Chandrakala Sahu, Advocate
For the Opp. Party:
ORDER

                                                  प्रकरण क्र.सी.सी./13/168

                                                                                                  प्रस्तुती दिनाँक 28.06.2013

 

सुरेश कुमार शर्मा, आ. स्व.गणेश प्रसाद शर्मा, आयु-40 वर्ष, निवासी- पोलसाय पारा, स्टेशन रोड, दुर्ग (छ.ग.)       

- - - -            परिवादी

विरूद्ध 

अतिथि रेस्टोरेंट, शकुन रेस्टोरेंट एण्ड केटरर्स, प्रो.-धवन कुमार साहनी, पता-भिलाई, निवास-भिलाई नगर, तह. व जिला-दुर्ग (छ.ग.)

 

आदेश

(आज दिनाँक 13 फरवरी 2015 को पारित)

श्रीमती मैत्रेयी माथुर-अध्यक्ष

                                परिवादी द्वारा अनावेदक से 634.45रू. भोजन बिल के अंतर की राशि, मानसिक कष्ट हेतु 1,000रू., वाद व्यय व अन्य अनुतोष दिलाने हेतु यह परिवाद धारा-12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के अंतर्गत प्रस्तुत किया है।

परिवाद-

                                (2) परिवादी का परिवाद संक्षेप में इस प्रकार है कि अनावेदक भिलाई इस्पात संयंत्र के द्वारा केटरिंग सुविधा उपलब्ध करानें एवं भिलाई निवास परिसर में रेस्टोरेंट चालाने हेतु अनावेदक को कांट्रेक्ट बेस पर ठेका दिया गया है, जिसके आधार पर अनावेदक भिलाई निवास में उक्त रेस्टोरेंट चलाता है। भिलाई इस्पात संयंत्र के द्वारा निर्धारित अनुबंध के तहत अनावेदक के द्वारा संचालित रेस्टोरेंट के लिए वहां खाद्य सामग्री के मूल्य निर्धारित किए गए है, जिसके आधार पर उक्त रेट पर ही अनावेदक को खाद्य सामग्री ग्राहकों को देना होता है। परिवादी के द्वारा दिनांक 01.05.13 को अपने परिवार सहित अनावेदक के रेस्टोरेंट में जाकर भोजन किया गया, जिसमें उसके द्वारा मिनरल वाटर 3 बाॅटल, आलूगोभी मटरकी सब्जी एक प्लेट, काजू करी 1 प्लेट, मिक्स वेजीटेबल 1 प्लेट और स्टीम राईस 4 प्लेट का आर्डर देकर भोजन किया तथा पैकिंग करवाया गया, जिसका बिल अनावेदक के द्वारा परिवादी को दिया गया, जिसके अनुसार कुल 840रू. का भुगतान परिवादी द्वारा अनावेदक को किया गया, जिसके कुछ दिनों पश्चात परिवादी को अपने परिचत के द्वारा यह ज्ञात हुआ कि अनावेदक के द्वारा परिवादी से बी.एस.पी. एवं अनावेदक के मध्य अनुबंध के अंतर्गत परिवादी से ज्यादा बिल की राशि वसूल की गई है, जिसके अंतर की राशि चुकाए गए बिल से क्रमशः मिनरल वाटर 3 बाॅटल-10.68रू. प्रति नग अनावेदक द्वारा लिया गया 90रू., आलूगोभी सब्जी-35.60रू. अनावेदक द्वारा लिया गया 130रू., काजूकरी 23.23रू. अनावेदक द्वारा लिया गया 180रू., मिक्स वेज-35.60रू. अनावेदक द्वारा लिया गया 160रू., स्टीम राईस-19.77रू. अनावेदक द्वारा लिया गया 280रू., इस प्रकार कुल 634.45रू. पर अनावेदक द्वारा लिया गया 840रू. इस प्रकार कुल अंतर की राशि 634.45रू. है, जिसे अनावेदक द्वारा परिवादी से वसूलकर की गई सेवा में कमी के लिए अनावेदक से परिवादी को अतिरिक्त वसूल की गई राशि 634.45रू. तथा मानसिक क्षतिपूर्ति स्वरूप 1,000रू., वाद व्यय 1,000रू. इस प्रकार कुल 2634रू. दिलाया जावे।

जवाबदावाः-

                                (3) अनावेदक का जवाबदावा इस आशय का प्रस्तुत है कि अनावेदक रेस्टोरेंट संचालन के लिए पृथक से रेस्टोरेंस एरिया का किराया मार्केट रेट पर देता है और बिजली बिल की अदायगी भी तृतीय पक्ष /वाणिज्यिक दर जो सबसे अधिकतम दर है पर भिलाई इस्पात संयंत्र को करता है, इस कारण से रेस्टोरेंट के स्तर के अनुरूप मार्केट दर पर सामानों की मात्रा एवं गुणवत्ता को बिक्री करने के लिए स्वतंत्र है। अनावेदक के द्वारा उपलब्ध कराई जा रही खाने की सामग्री बेहद प्रतिस्पर्धात्मक कीमतों पर है और रेस्टोरेंट में अगर कोई भी नफा अथवा नुकसान होता है तो उसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार है। रेस्टोरेंट की आय अथवा नुकसान का ब्योरा भिलाई इस्पात संयत्र के द्वारा टेन्डर की शर्तों के अनुरूप नहीं मांगा जाता है और न ही इस संबंध में अनावेदक के द्वारा बी.एस.पी. को बिल प्रेषित किया जाता है। रेस्टोरेंट संचालन पूर्णतः स्वतंत्र रूप से अनावेदक को बी.एस.पी.  मैनेजमेंट के द्वारा सौंपा गया है और बी.एस.पी. मैनेजमेंट द्वारा सिर्फ प्रत्येक माह मार्केट दर पर किराया अनावेदक से वसूला जाता है और जो बिजली रेस्टोरेंट के लिए प्रदान की जाती है उसके लिए स्वतंत्र मीटर स्थापित है जिसके अनुसार वाणिज्यिक दर पर बिल प्रदान किया जाताहै सिे अनावेद बी.एस.पी. मैनेजमेंट को अदा करता है। परिवादी के द्वारा अनावश्यक रूप से भिलाई निवास की कैटरिंग की दर को रेस्टोरेंट मे तय की गई दर से जोड़ा जा रहा है जबकि किस तरह से टेंडर डाक्यूमेंट मे रेस्टोरेंट की दर का कहीं कोई उल्लेख नहीं है और अनावेदक जो रेस्टोरेंट चलाने के लिए बी.एस.पी. प्रबंधन को भारी किराया मार्केट दर पर अदा करता है और बिजली की दर भी बिल्कुल व्यवसायिक दर पर जो बी.एस.पी. प्रबंधन द्वारा तय की गई है उस दर पर अदा करता है, जिसका स्पष्ट आशय यह है कि जब मार्केट दर पर अनावेदक बी.एस.पी. प्रबंधन को भुगतान कर रहा है तब वह उसके प्रतिष्ठान मे विक्रय की जाने वाली खाद्य सामग्री को प्रतिस्पर्धात्मक दर पर विक्रय करने के लिए स्वतंत्र है। परिवादी के द्वारा यह परिवाद असत्य आधारों पर फोरम के समक्ष प्रस्तुत किया गया है अनावेदक के द्वारा परिवादी के प्रति किसी प्रकार की सेवा मे कमी नहीं की है अतः परिवादी के द्वारा प्रस्तुत परिवाद निरस्त किया जावे।

                                (4) उभयपक्ष के अभिकथनों के आधार पर प्रकरण मे निम्न विचारणीय प्रश्न उत्पन्न होते हैं, जिनके निष्कर्ष निम्नानुसार हैं:-

1.             क्या परिवादी, अनावेदक से अतिरिक्त वसूली गई भोजन बिल की राशि 634.45 रूपये प्राप्त करने का अधिकारी है?     नहीं

2.             क्या परिवादी, अनावेदक से मानसिक परेशानी के एवज मे 1,000रू. प्राप्त करने का अधिकारी है?     नहीं

3.             अन्य सहायता एवं वाद व्यय?           आदेशानुसार

परिवाद खारिज

 

निष्कर्ष के आधार

                                (5) प्रकरण का अवलोकन कर सभी विचारणीय प्रश्नों का निराकरण एक साथ किया जा रहा है। 

फोरम का निष्कर्षः-

                                (6) प्रकरण का अवलोकन करने पर हम यह पाते है कि परिवादी ने अभिकथित खाद्य सामग्री जो उसने एनेक्चर-2 अनुसार अनावेदक के रेस्टोरेंट में खाई थी में लगाई गई कीमत को एनेक्चर-3 के रेट लिस्ट को आधार बनाते हुए चुनौती दी है।

 

(7) परिवादी का तर्क है कि एनेक्चर-2 अनुसार अनावेदक ने मिनरल वाटर के दाम उससे ज्यादा वसूले हैं, परंतु परिवादी ने कहीं भी यह सिद्ध नहीं किया है कि उसने कौन से कंपनी का पानी आर्डर किया था उस विशेष बोतल में कितनी कीमत लिखी थी, जबकि परिवादी के लिए यह आवश्यक था कि उस बोतल के कागज को प्रकरण में पेश करता, फलस्वरूप किस कीमत की बोतल की कीमत कितनी थी यह परिवादी सिद्ध नहीं कर सका है।  अतः मिनरल वाटर संबंधी परिवादी के अभिकथन से परिवादी को कोई लाभ नहीं पहुंचता है।

(8) यदि हम एनेक्चर-2 के बिल का अवलोकन करें तो बिल सिस्टम जनरेटेड है, परंतु उसमें परिवादी का नाम हस्तलिपि में है उक्त नाम किस व्यक्ति द्वारा लिखा गया है और कब लिखा गया है यह परिवादी सिद्ध नहीं कर सका है, फलस्वरूप बिल एनेक्चर-2 पर शंका के परे युक्ति-युक्त रूप से विश्वास नहीं किया जा सकता, क्योंकि प्रकरण में ऐसी भी परिस्थिति और दस्तावेज प्रस्तुत किये गये है कि उक्त रेस्टोरेंट के संबंध में जो टेंडर दस्तावेज थे उसे परिवादी के लिए मोहन कुमार अग्रवाल नामक व्यक्ति ने सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किये हैं और इस मोहन कुमार अग्रवाल द्वारा उक्त रेस्टोरेंट के टेंडर के संबंध में अनावेदक के विरूद्ध बी.एस.पी. प्रबंधन के विरूद्ध अनेकोनेक प्रकार के मुकदमेबाजी हुई है, जिसके दस्तावेज अनावेदक द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं अतः स्थिति यही बनती है कि अनावेदक और उक्त मोहन कुमार अग्रवाल के बीच व्यवसायिक प्रतिद्वन्दता को लेकर संबंध मधुर नहीं है।  अनेकों प्रकरण चले है और जैसा कि अनावेदक का तर्क है कि अनावेदक के विरूद्ध दुर्भावनावश मोहन कुमार अग्रवाल द्वारा विभिन्न शिकायत भी की गई है और माननीय उच्च न्यायालय बिलासपुर द्वारा उक्त मोहन कुमार अग्रवाल की रीट को निरस्त भी किया गया है।  उक्त परिस्थितियों में एनेक्चर-2 का बिल जो कि परिवाद प्रस्तुत करने का मूल आधार है पर विश्वास किया जाना उचित नहीं है, जिसमें परिवादी का नाम हाथ से लिखा है जबकि यह सिद्ध नहीं है कि वह हस्तलिपि किस व्यक्ति की है।

(9) चूंकि टेंडर संबंधी दस्तावेज परिवादी ने बी.एस.पी. प्रबंधन से आर.टी.आई. से प्राप्त नहीं किया है, बल्कि मोहन कुमार अग्रवाल द्वारा प्राप्त करना उल्लेखित है तो इस स्थिति में परिवादी यह सिद्ध करने में असफल रहा है कि जब परिवाद उसने प्रस्तुत किया था तो आर.टी.आई. से उसने ही दस्तावेजों क्यों प्राप्त नहीं किया।

(10) यदि मोहन कुमार अग्रवाल का शपथ पत्र प्रस्तुत दि.05.12.2013 का अवलोकन किया जाये तो उसमें उल्लेखित है कि उसने आर.टी.आई. के माध्यम से बी.एस.पी. से दस्तावेज प्राप्त किये थे और उक्त दस्तावेजों को उसने परिवादी को दिये थे।  अनावेदक के तर्क के अनुसार व्यवसायी प्रतिद्वंदी यही मोहन कुमार अग्रवाल है, जिसने आर.टी.आई. से परिवादी के लिए दस्तावेज प्राप्त किया है यही स्थिति साफ दृष्य स्थापित करती है कि परिवादी का मोहन कुमार अग्रवाल से जुड़ना परिवादी के मामले में जहां एक शंका उत्पन्न करता है वहीं अनावेदक के तर्क को विश्वसनीय बनाता है कि वस्तुतः मोहन कुमार अग्रवाल ने परिवादी के माध्यम से एक और मुकदेमबाजी इस परिवाद पत्र के रूप में अनावेदक के विरूद्ध दुर्भावनापूर्वक प्रस्तुत की है।

 

(11) प्रकरण के अवलोकन से यह भी स्पष्ट है कि परिवादी अपने परिवाद के चरण क्र.5 में यह भी उल्लेख किया गया है कि बिल चुकाने के कुछ दिन पश्चात् अपने परिचित मोहन कुमार अग्रवाल से जानकारी प्राप्त हुई कि अनावेदक ने निर्धारित मूल्य से अधिक मूल्य उक्त खाद्य सामग्री का लिया है, जिससे यह भी सिद्ध होता है कि परिवादी ने रेस्टोरेंट में तुरंत ज्यादा कीमत लेने के संबंध में तुरंत आपत्ति नहीं ली, बल्कि यह सिद्ध होता है कि पश्चात् सोच के चलते परिवादी ने मोहन कुमार अग्रवाल से मिलकर अभिकथित कार्यवाही की, तो यही सिद्ध होता है कि वास्तव में मोहन कुमार अग्रवाल की व्यवसायिक प्रतिद्वंता के चलते ही उक्त व्यक्ति ने परिवादी के माध्यम से एक और केस अनावेदक के विरूद्ध किया।

(12) यदि टेंडर दस्तावेज का अवलोकन किया जाये तो उसमें यह कहीं भी उल्लेखित नहीं है कि उक्त रेट लिस्ट उन ग्राहकों के लिए लागू होगी जो कि अनावेदक के रेस्टोरेंट में खाना खाने आयेंगे, टेंडर के नियम शर्त अनुसार अनावेदक और बी.एस.पी. प्रबंधन के बीच के हैं, यदि कोई अनियमितता अनावेदक करेगा तो उसमें बी.एस.पी. प्रबंधन कार्यवाही करने में सक्षम है, कोई ग्राहक अनावेदक के रेस्टोरेंट में बने हुए खाने की कीमत पर आपत्ति नहीं कर सकता है यदि उसने मैन्यूकार्ड अवलोकन कर खाने का आर्डर दिया है। इस प्रकार परिवादी टेंडर संबंधी रेट लिस्ट के माध्यम से अनावेदक के विरूद्ध व्यवसायिक कदाचरण किया जाना सिद्ध करने में असफल रहा है। यहां यह उल्लेख करना आवश्यक है कि टेंडर/अनुबंध की जो भी शर्तें हैं वह बी.एस.पी. प्रबंधन और अनावेदक के बीच की है।  उक्त दस्तावेजों में कहीं भी यह नहीं लिखा गया है कि जब अनावेदक अपने किचन में खाना बनायेगा तो यही रेट लिस्ट अन्य ग्राहकों पर भी लागू होगी तो इस स्थिति में यह नहीं माना जा सकता कि अनावेदक ने जो भी कीमत अपने बनाये खाद्य सामग्री की लगाई गयी थी वह गलत तरीके से लगाकर अनावेदक ने कदाचरण किया।

(13) परिवादी ने तर्क के दौरान यह भी आपत्ति लगाई थी कि शकुन रेस्टोरेंट के नाम से टेंडर प्राप्त करने के बावजूद एनेक्चर-2 अतिथि रेस्टोरेंट के नाम से जारी कर अनावेदक ने व्यवसायिक कदाचरण किया है, परंतु हम परिवादी के इन तर्कों से सहमत नहीं हैं क्योंकि एनेक्चर-2 के बिल में ही जहां अतिथि रेस्टोरेंट लिखा है वहीं शकुन रेस्टोरेंट का नाम भी लिखा है, अतः यह सिद्ध नहीं होता है कि अनावेदक ने किसी भी प्रकार का दुराचरण किया है।

(14) उपरोक्त विवेचना से हम यही निष्कर्षित करते हैं कि परिवादी द्वारा प्रस्तुत एनेक्चर-2 का बिल संदेहास्पद है।  परिवादी ने अभिकथित मिनरल वाटर के संबंध में समुचित साक्ष्य प्रस्तुत नहीं की है कि उसने कौन सा मिनरल वाटर पिया था, परिवादी ने यह भी सिद्ध नहीं किया है कि अनावेदक जन साधारण को मैन्यू अनुसार खाद्य सामग्री की कीमत वसूलने का अधिकार नहीं रखता था, बल्कि अनावेदक के तर्क स्वीकार योग्य माने जाते हैं कि परिवादी के परिचित मोहन कुमार अग्रवाल को उक्त टेंडर हासिल नहीं हो सका, जिसके चलते परिवादी उक्त मोहन कुमार अग्रवाल के परिचित होने के आधार पर असत्य आधारों पर यह दावा प्रस्तुत किया है।

(15) फलस्वरूप हम अनावेदक के विरूद्ध सेवा में निम्नता एवं व्यवसायिक दुराचरण किया जाना सिद्ध नहीं पाते हैं और परिवादी के परिवाद को स्वीकार किये जाने का समुचित आधार नहीं पाते हैं और खारिज करते हैं।

(16) प्रकरण के तथ्य एवं परिस्थितियों को देखते हुए पक्षकार अपना-अपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।

 

 

 
 
[HON'BLE MRS. मैत्रेयी माथुर्]
PRESIDENT
 
[HON'BLE MRS. श्रीमती शुभा सिंह]
MEMBER

Consumer Court Lawyer

Best Law Firm for all your Consumer Court related cases.

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!
5.0 (615)

Bhanu Pratap

Featured Recomended
Highly recommended!

Experties

Consumer Court | Cheque Bounce | Civil Cases | Criminal Cases | Matrimonial Disputes

Phone Number

7982270319

Dedicated team of best lawyers for all your legal queries. Our lawyers can help you for you Consumer Court related cases at very affordable fee.