राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-2825/2013
(जिला उपभोक्ता फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-163/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 31.10.2013 के विरूद्ध)
ओरियण्टल इन्श्योरेन्स कम्पनी, द्वारा ब्रांच मैनेजर सी-वी-2-85 रघुवंशी काम्प्लेक्स, वामुला रोड, सिविल लाइन्स, बरेली द्वारा ब्रांच मैनेजर, हेड आफिस, संजय पैलेस, आगरा द्वारा रिजनल आफिस, हजरतगंज, लानऊ।
अपीलार्थी/विपक्षी सं0-1
बनाम्
1. शाकिर अली पुत्र श्री राशिद अली, निवासी मोहल्ला बड़ा बाजार, कस्बा, थाना व तहसील भोगांव, जिला मैनपुरी।
2. श्री पी0सी0 अग्रवाल, डेवलेपमेंट आफिसर, ओ0आई0सी0, लि0, निवासी खड़गजीत नगर, मैनपुरी, जिला मैनपुरी।
प्रत्यर्थीगण/परिवादी/विपक्षी सं0-2
समक्ष:-
1. माननीय श्री जितेन्द्र नाथ सिन्हा, पीठासीन सदस्य।
2. माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : सुश्री अलका सक्सेना, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-1 की ओर से उपस्थित : श्री एस0पी0 पाण्डेय, विद्वान अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
दिनांक 14.01.2016
माननीय श्री जुगुल किशोर, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
यह अपील, जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-163/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 31.10.2013 के विरूद्ध योजित की गयी है, जिसके अन्तर्गत जिला फोरम ने निम्नवत् आदेश पारित किया है :-
'' परिवादी द्वारा प्रस्तुत परिवाद विपक्षी बीमा कम्पनी से रू0 821,050/- रू0 की वसूली हेतु स्वीकार किया जाता है। इस धनराशि पर परिवाद प्रस्तुत किये जाने की दिनांक 29.06.2011 से वास्तविक वसूली की दिनांक तक 07 प्रतिशत
वार्षिक साधारण ब्याज भी परिवादी को विपक्षी बीमा कम्पनी से प्राप्त करेगा।
विपक्षी को आदेशित किया जाता है कि वह परिवादी को निर्णय के एक माह के अन्दर उपरोक्तानुसार आदेशित धनराशि का भुगतान करें। ''
अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता सुश्री अलका सक्सेना तथा प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता श्री एस0पी0 पाण्डेय उपस्थित हैं। प्रत्यर्थी सं0-2 की ओर से कोई उपस्थित नहीं है। तदनुसार विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुना गया तथा अभिलेखों का अनुशीलन व परिशीलन किया गया।
संक्षेप में प्रकरण के तथ्य इस प्रकार हैं कि परिवादी ने विपक्षी सं0-1 बीमा कम्पनी के यहां से अपने ट्रक सं0-RJ 14/2 G 9440 का बीमा, पॉलिसी सं0-252602/31/2006/02068 के माध्यम से दिनांक 22.02.2006 से दिनांक 21.02.2007 तक की अवधि के लिये कराया था, जिसका प्रीमियम रू0 20,966/- अदा किया गया था और प्रश्नगत बीमित ट्रक की कीमत रू0 8,88,000/- मानी गयी थी। प्रश्नगत ट्रक दिनांक 09.10.2006 को पत्थर लादकर गोहाटी जा रहा था जहां रास्ते में पुलिस चौकी अराव फिरोजाबाद के अन्तर्गत भारौली पुलिया टूटी होने के कारण ट्रक असंतुलित होकर पलट गया, जिससे गाड़ी में भारी क्षति हुई, जिसकी सूचना दिनांक 10.10.2006 को थाना चौकी अराव जिला फिरोजाबाद में दी गयी और बीमा कम्पनी को भी सूचित किया गया। बीमा कम्पनी ने सर्वे कराया, जिसमें रू0 34,700/- कुल खर्चा बताया, किन्तु कागजात दाखिल करने के बावजूद बीमा कम्पनी ने क्लेम नहीं दिया तथा दिनांक 02.12.2006 को उक्त ट्रक माडारीहट जिला जलपायीगुडी पंश्चिम बंगाल स्थित चेकामारी के पास पहुंचा ही था कि अचानक ट्रक में आग लग गयी और ट्रक जलकर नष्ट हो गया। इस पर बीमा कम्पनी के सर्वेयर श्री बी0आर0 चक्रवर्ती ने उक्त ट्रक का सर्वे किया तो पूडी गाड़ी नष्ट होने की रिपोर्ट दी। परिवादी ने सभी कागजात बीमा कम्पनी के कार्यालय में बीमा क्लेम हेतु उपलब्ध करा दिये, परन्तु बीमा कम्पनी ने कोई क्लेम नहीं दिया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित करना पड़ा।
विपक्षी सं0-1 की ओर से जिला फोरम के समक्ष परिवाद पत्र का विरोध करते हुए जवाबदावा प्रस्तुत किया गया और यह अभिवचित किया गया कि पहले घटना जिला फिरोजाबाद में हुई और दूसरी घटना जलपायीगुड़ी, पश्चिम बंगाल में हुई, इसलिए जिला फोरम, मैनपुरी को प्रश्नगत परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार नहीं है। बीमा कम्पनी द्वारा यह भी अभिवचित किया गया कि परिवादी की सूचना पर प्रश्नगत ट्रक का सर्वे कराय गया था, जिसमें रू0 18,050/- की क्षति होनी पायी गयी थी और दूसरी घटना में भी सर्वे कराया गया, किन्तु घटना के संबंध में चालक उमेश चन्द्र का लाइसेन्स फर्जी होने के कारण बीमा क्लेम खारिज कर दिया गया था। बीमा कम्पनी की ओर से यह भी अभिवचित किया गया कि प्रश्नगत परिवाद दो वर्ष के उपरान्त योजित किया गया है, इसलिए परिवाद कालबाधित है, जो खारिज होने योग्य है।
जिला फोरम द्वारा दोनों पक्ष को विस्तार से सुनने तथा पत्रावली का परिशीलन करने के उपरान्त उपरोक्त निर्णय प्रतिपादित किया है।
उपरोक्त निर्णय से क्षुब्ध होकर अपीलार्थी की ओर से यह अपील प्रस्तुत की गयी है और मुख्यत: यह तर्क किया गया है कि पहला बिन्दु परिवाद समय सीमा के उपरान्त जिला मंच के समक्ष योजित किया गया। दूसरा विवादित बिन्दु यह कि बीमित ट्रक के चालक का वैध लाइसेन्स नहीं था। तीसरा विवादित बिन्दु यह कि जिला मंच को प्रश्नगत परिवाद सुनने का क्षेत्राधिकार नहीं था।
अपीलार्थी के उपरोक्त् बिन्दुओं पर पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिसमें पाया गया कि अपीलार्थी ने पहले विवादित बिन्दु में जो परिवाद पत्र को समय सीमा से बाधित होना बताया है, वह सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि परिवाद पत्र के पैरा 4 में यह अंकित है कि दिनांक 11.02.2010 को अन्तिम बार बीमा कम्पनी से सम्पर्क करने पर परिवादी को क्लेम देने से मना किया गया था तथा प्रश्नगत परिवाद दिनांक 29.06.2011 को दाखिल किया गया है। इस प्रकार परिवाद समय सीमा के भीतर दाखिल किया गया है। दूसरे विवादित बिन्दु में प्रश्नगत ट्रक के चालक का वैध लाइसेन्स का न होना बताया गया है, के सम्बन्ध में पत्रावली का परिशीलन किया गया, जिसमें पाया गया कि परिवादी ने डीएल की प्रतिलिपि दाखिल की गयी है, जो अंतिम बार जिला इटावा उत्तर प्रदेश में नवीनीकरण किया गया है। डीएल प्रारम्भ में गोहाटी से जारी हुआ है। लाइसेन्स फर्जी होने के सम्बन्ध में निम्नलिखित विधि व्यवस्था जिला मंच के समक्ष बीमा कम्पनी ने प्रस्तुत की की, जो निम्नवत् है :-
2007 (4) सीपेजे 1 (एससी) यूनाइटेड इंडिया इं0कं0लि0 बनाम देवेन्द्र सिंह, II (2008) सीपीजे 28 (एससी) प्रेम कुमारी बनाम प्रहलाद देव तथा 2008 सीपीजे 35 (एससी) नेशनल इं0कं0लि0 बनाम हरभजन लाल।
उपरोक्त विधि व्यवस्था के विरूद्ध परिवादी द्वारा जिला मंच के समक्ष वैध लाइसेन्स के नवीनीकरण को फर्जी न माने जाने पर प्रस्तुत की, जो कि निम्न है:-
2002 (7) एसससी 456 निकोलेट रोहतगणी बनाम नेशनल इं0कं0लि0, 203 (एससीआर) साधना लोथरा बनाम नेशनल इं0कं0लि0 तथा 2010 (1) डीएमपी 512 इलाहाबाद नेशनल इं0कं0 बनाम महादेव रावत।
उपरोक्त् विधि व्यवस्थाओं के परिशीनल से यह स्पष्ट है कि माननीय उच्च्तम न्यायालय द्वारा पारित सिद्धान्तों का अनुसरण करते हुए यह स्थिर किया गया है कि लाइसेन्स नवीनीकरण एक बार हो जाता है तब लाइसेन्स फर्जी होने का कोई लाभ बीमा कम्पनी को नहीं मिलेगा और इस मामलें में घटना दिनांक 09.10.2006 को घटित हुई और दूसरी घटना दिनांक 02.12.2006 को घटित हुई। चालक का लाइसेन्स नवीनीकरण दिनांक 03.03.204 से दिनांक 02.03.2007 तक के लिए आरटीओ इटावा ने नवीनीकरण किया गया गया है, जिसके प्रपत्र पत्रावली पर उपलब्ध हैं। ऐसी स्थिति में बीमा कम्पनी का यह कथन कि आधारहीन है कि वाहन चालक के पास वैध लाइसेन्स नहीं था। तीसरे विवादित बिन्दु में बीमा कम्पनी ने परिवाद की सुनवाई का क्षेत्राधिकार के संबध में प्रश्न उठाया गया है, के संबंध में पत्रावली का परिशीलन किया गया और यह पाया गया कि इस मामलें में मा0 उच्चतम न्यायालय द्वारा कई विधि व्यवस्थायें दी गयीं हैं कि उपरोक्त मामलें में क्षेत्राधिकार के बिन्दु पर विवाद करना सही नहीं है। उपरोक्त् तीनों विवादित बिन्दुओं पर अपीलार्थी द्वारा जो तर्क किया गया है, उसमें कोई आधार नहीं पाया जाता है।
प्रत्यर्थी सं0-1 के विद्वान अधिवक्ता को विस्तार से सुना गया। उनके द्वारा यह तर्क किया गया कि अपीलार्थी ने जो तीन विवादित बिन्दु उठाये थे, वह आधारहीन हैं। यह सत्य है कि प्रश्नगत ट्रक दिनांक 09.10.2006 को पत्थर लादकर गोहाटी जा रहा था जहां रास्ते में पुलिस चौकी अराव फिरोजाबाद के अन्तर्गत भारौली पुलिया टूटी होने के कारण ट्रक असंतुलित होकर पलट गया, जिससे गाड़ी में भारी क्षति हुई, जिसकी सूचना दिनांक 10.10.2006 को थाना चौकी अराव जिला फिरोजाबाद में दी गयी और बीमा कम्पनी को भी सूचित किया गया। बीमा कम्पनी ने सर्वे कराया, जिसमें रू0 34,700/- कुल खर्चा बताया, किन्तु कागजात दाखिल करने के बावजूद बीमा कम्पनी ने क्लेम नहीं दिया तथा दिनांक 02.12.2006 को उक्त ट्रक माडारीहट जिला जलपायीगुडी पंश्चिम बंगाल स्थित चेकामारी के पास पहुंचा ही था कि अचानक ट्रक में आग लग गयी और ट्रक जलकर नष्ट हो गया। इस पर बीमा कम्पनी के सर्वेयर श्री बी0आर0 चक्रवर्ती ने उक्त ट्रक का सर्वे किया तो पूडी गाड़ी नष्ट होने की रिपोर्ट दी। परिवादी ने सभी कागजात बीमा कम्पनी के कार्यालय में बीमा क्लेम हेतु उपलब्ध करा दिये, परन्तु बीमा कम्पनी ने कोई क्लेम नहीं दिया, जिससे क्षुब्ध होकर प्रश्नगत परिवाद जिला फोरम के समक्ष योजित किया गया था, जिसमें जिला फोरम ने विधिक एवं तथ्यात्मक तथ्यों के आधार पर निर्णय पारित किया है। प्रत्यर्थी के विद्वान अधिवक्ता ने अपने कथन के समर्थन में निम्नलिखित विधि व्यवस्था का उद्धरण लिया गया है। मा0 सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस कं0 बनाम एज0के0जे0 कार्पोरेशन (1996) 6 एससीसी 428 में निम्नांकित विधिक सिद्धान्त प्रतिपादित किया गया है :-
" Insurer should be allowed a reasonable time of two months to take a decision whether the claim required to be settled or rejected."
प्रत्यर्थी द्वारा अपीलार्थी को विधिक नोटिस दिनांक 17.02.2010 को भेजे जाने के कारण वाद का कारण उत्पन्न हुआ, जो समय सीमा के अन्तर्गत है और जिला मंच के समक्ष परिवाद समय सीमा के अन्दर प्रस्तुत किया गया था, जिसे जिला फोरम ने भी अपने निर्णय में यह प्रतिपादित किया है।
विद्वान अधिवक्तागण को विस्तार से सुनने तथा पत्रावली के परिशीलन से यह तथ्य प्रकाश में आता है कि जिला फोरम ने पत्रावली पर उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर ही निर्णय प्रतिपादित किया है, जो पूर्ण विवेच्य तथ्यों व विधिक तथ्यों पर आधारित है। इस प्रकार प्रश्नगत निर्णय विधिक एवं तथ्यात्मक तथ्यों पर आधारित है, जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की आवश्यक्ता प्रतीत नहीं होती है। तदनुसार अपील निरस्त होने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है। जिला फोरम, मैनपुरी द्वारा परिवाद संख्या-163/2011 में पारित प्रश्नगत निर्णय/आदेश दिनांक 31.10.2013 की पुष्टि की जाती है।
(जितेन्द्र नाथ सिन्हा) (जुगुल किशोर)
पीठासीन सदस्य सदस्य
लक्ष्मन, आशु0
कोर्ट-3