जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण फोरम कोरबा (छ0ग0)
प्रकरण क्रमांकः CC/14/86
प्रस्तुति दिनांकः27/11/2014
समक्षः छबिलाल पटेल अध्यक्ष
श्रीमती अंजू गबेल सदस्य
श्री राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय सदस्य
श्रीमती देवानीन बाई उम्र लगभग......
पत्नि स्व0 श्री बालक राम निवासीसर्वमंगला नगर दुरपा
तहसील व जिलाकोरबा (छ0ग0)..................................................आवेदिका/परिवादिनी
विरूद्ध
शाखा प्रबंधक
भारतीय जीवन बीमा निगम
शाखा कार्यालय कोरबा 02
तहसील व जिलाकोरबा (छ0ग0)...........................................अनावेदक/विरोधीपक्षकार
आवेदिका द्वारा श्री कमलेष साहू अधिवक्ता।
अनावेदक द्वारा श्री पी0के0 अग्रवाल अधिवक्ता।
आदेश
(आज दिनांक 28/02/2015 को पारित)
01. परिवादी/आवेेदिका श्रीमती देवानीन बाई ने उसे पति स्व0 बालक राम के द्वारा लिये गये विवादित जीवन बीमा पालिसी क्रमांक 384238223 से संबंधित 500000/रू0 की बीमाधन राशि का भुगतान बालकराम की मृत्यु के पष्चात् अनावेदक के द्वारा नहीं करके सेवा में कमी किये जाने के आधार पर उक्त बीमाधन राशि शारीरिक मानसिक परेषानी क्षतिपूर्ति के रूप में राशि 50000/रू0 तथा वाद व्यय एवं ब्याज की राशि दिलाये जाने हेतु यह परिवादपत्र धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत प्रस्तुत किया है।
02. यह स्वीकृत तथ्य है कि आवेदिका के पति बालकराम के द्वारा अपने जीवन काल में विवादित बीमा पालिसी क्रमांक 384238223 रकम 500000/रू0 दिनांक 22/01/2010 को क्रय किया था। उसके संबंध में आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत बीमादावा को दिनांक 16/07/2014 को लिखे पत्र के द्वारा अस्वीकार किये जाने की सूचना उसे दी गयी थी। शेष बातें विवादित है।
03. परिवादी/आवेदिका का परिवादपत्र संक्षेप में इस प्रकार है कि उसके पति बालक राम के द्वारा अपने जीवनकाल में दिनांक 28/01/2002 को अनावेदक भारतीय जीवन बीमा निगम षाखा कार्यालय कोरबा 02 से एक बीमा पालिसी क्रय किया था जिसका पालिसी क्रमांक 382542816 रकम 50000/रू0 प्रीमियम की राशि 420/रू0 था तथा दूसरा बीमा पालिसी दिनांक 22/01/2010 को क्रय किया था जिसका पालिसी क्रमांक 384238223 रकम 500000/रू0 जिसका प्रीमियम राशि 2042/रू0 था। आवेदिका के पति बालक राम के द्वारा उक्त बीमा पाॅलिसियों की प्रीमियम की राशि नियमित रूप से अदा की जा रही थी। उपरोक्त बीमा पालिसी के बीमा अवधि में आवेदिका के पति बालक राम की मृत्यु हो जाने पर अनावेदक के द्वारा उक्त बीमित के नामिनी आवेदिका देवानीन बाई को बीमाधन राशि देय थी। उपरोक्त बालक राम की दिनांक 04/01/2013 को सुबह अचानक बीमार होने के बाद कुसमुण्डा स्थित विकास नगर अस्पताल में इलाज के दौरान मृत्यु हो गयी। आवेदिका के द्वारा बालक राम की मृत्यु के बाद उसके दोनों बीमा पालिसी की बीमाधन राशि प्राप्त करने के लिए अनावेदक के पास दस्तावेज पेश किये गये। अनावेदक के द्वारा बालक राम की प्रथम बीमा पालिसी क्रमांक 282542816 की बीमाधन राशि 50000/रू0 का भुगतान आवेदिका को कर दिया गया। अनावेदक के द्वारा आवेदिका को उसके पति बालक राम की दूसरी बीमा पालिसी क्रमांक 384238223 की बीमाधन राशि 500000/रू0 का भुगतान करने से इंकार कर दिया गया। अनावेदक के द्वारा बताया गया कि बीमित बालक राम के द्वारा उक्त बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए प्रस्ताव प्रत्रक में अपने बीमारी के तथ्यों को अनावेदक से छिपा दिया गया। इस प्रकार आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत उक्त द्वितीय बीमा पालिसी जिसे आगे विवादित बीमा पालिसी के रूप में संबोधित किया जायेगा की राशि भुगतान करने हेतु प्रस्तुत दावा को अनावेदक के द्वारा अवैधरूप से निरस्त कर दिया गया। अनावेदक के द्वारा आवेदिका के बीमाधन राशि को हड़पने के लिए दुर्भावनापूर्वक बीमादावा को निरस्त कर सेवा में कमी की गयी है जिससे आवेदिका को आर्थिक एवं मानसिक क्षति हुई है। अतः आवेदिका को उपरोक्त बीमाधन राशि एवं 50000/रू0 मानसिक क्षतिपूर्ति की राशि तथा आवेदिका के द्वारा अनावेदक के पास दावा प्रस्तुति दिनांक 13/06/2014 से उक्त राशि पर ब्याज तथा वाद व्यय भी अनावेदक से दिलायी जावे।
04. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत जवाबदावा संक्षेप में इस प्रकार है कि आवेदिका के पति बालक राम की मृत्यु दिनांक 04/01/2013 को हो जाने की सूचना दी गयी थी। उक्त बालक राम के द्वारा ली गयी प्रथम बीमा पालिसी की बीमाधन राशि का भुगतान आवेदिका को किया जा चुका है। आवेदिका के पति बालकराम ने दूसरी विवादित बीमा पालिसी दिनांक 22/01/2010 को क्रय किया था। बालक राम के द्वारा उक्त बीमा पालिसी के प्रस्ताव पत्रक की कंडिका11 में अपने पूर्व के बीमारी के संबंध में तथ्यों को छिपाते हुए गलत जानकारी दिया गया था उसने उक्त बीमा प्रस्ताव में अपने को स्वस्थ होना तथा पूर्व में कोई बीमारी जिसके संबंध में चिकित्सक की सलाह लेकर इलाज कराया गया हो ऐसी कोई बीमारी नहीं होना बताया गया था। उपरोक्त बीमित बालक राम साउथ ईस्टर्न कोल्डफिल्ड लिमिटेड के कुसमुण्डा प्रोजेक्ट में कार्यरत था उक्त प्रबंधन के द्वारा बालक राम के स्वास्थ्य के संबंध में मेडिकल सर्विस कार्ड भी जारी किया गया था जिसके अंतर्गत दिनांक 22/09/2004 को बालक राम को हाईपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) की बीमारी होने का पता चलना बताया गया था। बालक राम के द्वारा उक्त बीमारी का इलाज अस्पताल में कराया जा रहा था जिसका विवरण उसके मेडिकल सर्विस कार्ड में दर्ज है। बालक राम के द्वारा विवादित बीमा पालिसी क्रय किये जाने के 03 वर्ष के अंदर ही उसकी मृत्यु हो गयी ऐसी स्थिति में विवादित बीमा पालिसी लिये जाने के पूर्व बालक राम बीमार रहा है जिसका इलाज अस्पताल में कराया जाता रहा है इसके बारे में जानबूझकर गलत जानकारी बीमा प्रस्ताव पत्रक में दी गयी। इसलिए आवेदिका द्वारा प्रस्तुत उसके विवादित बीमा पालिसी के संबंध में बीमादावा को विधिवत निरस्त कर दिया गया है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा उसकी सेवा में कोई कमी नहीं की गयी है इसलिए परिवादपत्र को सव्यय निरस्त किया जावे।
05. परिवादी/आवेदिका की ओर से अपने परिवादपत्र के समर्थन में सूची अनुसार दस्तोवज एवं शपथपत्र दिनांक 26/11/2014 का पेश किया गया है। अनावेदक के द्वारा जवाबदावा के समर्थन में पी0ए0राव प्रबंधक भारतीय जीवन बीमा निगम मंडल कार्यालय बिलासपुर का शपथपत्र दिनांक 05/02/2015 का तथा सूची अनुसार दस्तावेज भी प्रस्तुत किया गया है। उभय पक्षों द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों का अवलोकन किया गया।
06. मुख्य विचारणीय प्रश्न है कि:
क्या परिवादी/आवेदिका द्वारा प्रस्तुत यह परिवादपत्र स्वीकार किये जाने योग्य है ?
07. आवेदिका देवानीन बाई ने अपने पति बालक राम की द्वितीय विवादित बीमा पालिसी की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक पी1 का पेश की है। उसी बीमा पालिसी की फोटोप्रति अनावेदक के द्वारा दस्तावेज क्रमांक डी2 के रूप में पेश किया गया है जिससे स्पष्ट होता है कि उक्त बीमा पालिसी दिनांक 22/01/2010 को बालक राम के द्वारा 500000/रू0 बीमाधन राशि के संबंध में क्रय किया गया था। जिसकी बीमा अवधि दिनांक 22/01/2020 तक थी। उक्त बीमा पालिसी में बालक राम ने अपनी पत्नि श्रीमती देवानीन बाई को नामित किया था।
08. आवेदिका ने अपने पति बालक राम की मृत्यु दिनांक 04/01/2013 को उसके कार्यस्थल वाले विकास नगर के अस्पताल कुसमुण्डा एस.ई.सी.एल. प्रोजेक्ट में इलाज के दौरान हो जाना बताया है। आवेदिका ने अपने पति की मृत्यु होने पर बीमाधन राशि प्राप्त करने हेतु दावा अनावेदक के पास दिनांक 13/06/2013 को प्रस्तुत किया था। इसके संबंध में अनावेदक के द्वारा जारी की गयी पावती दस्तावेज क्रमांक पी3 है। उक्त दस्तावेज से यह स्पष्ट होता है कि आवेदिका ने अपने पति की मेडिकल सर्विस कार्ड मूलतः अनावेदक के पास जमा की थी। अनावेदक की ओर से उक्त मेडिकल सर्विस कार्ड की फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक डी3 के रूप में प्रस्तुत किया है तथा उसकी मूल प्रति भी दस्तावेज क्रमांक डी3ए के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इस तथ्य का खंडन आवेदिका की ओर से नहीं किया गया है।
09. आवेदिका के पति बालक राम के द्वारा विवादित बीमा पालिसी प्राप्त करने के लिए जो प्रस्ताव पत्रक अनावेदक के पास प्रस्तुत किया गया था उसकी फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक डी1 है। जिसकी कंडिका11 में पूछे गये प्रष्नों का उत्तर बालक राम के द्वारा दर्शाया जाना स्पष्ट होता है। जिसमें अपने को बीमार न होना बताते हुए अपने स्वास्थ्य की हालत अच्छा होना व्यक्त कर उसने अपने को मधुमेंह क्षय उच्च या निम्न रक्तचाप मिर्गी केंसर आंत्रवृद्धि जलसंग्रह या किसी अन्य रोग से पीडि़त नहीं होना बताया है। उपरोक्त बीमा प्रस्ताव पत्रक जो दिनांक 01/01/2010 को निस्पादित है उसके खंडन के लिए आवेदिका ने कोई दस्तावेज पेश नहीं किया है।
10. आवेदिका के द्वारा विवादित बीमा पालिसी के संबंध में प्रस्तुत बीमाधन राशि प्राप्त करने हेतु दावा के निराकरण के लिए आवेदिका से दस्तावेज क्रमांक पी2 के अनुसार दिनांक 04/02/2013 को दस्तावेज प्रस्तुत करने हेतु अनावेदक केे द्वारा सूचित किया गया था। जिसके पालन में दस्तावेेज क्रमांक पी3 के अनुसार दिनांक 13/06/2014 को आवेदिका ने दस्तावेज पेश किये थे। दिनॉंक 16/07/2014 को आवेदिका के बीमाधन राशि प्राप्त करने हेतु प्रस्तुत दावा को अस्वीकार किये जाने की सूचना आवेदिका देवानीन बाई को दे दी गयी थी। उक्त पत्र की फोटोप्रति अनावेदक की ओर से दस्तावेज क्रमांक डी5 के रूप में पेश किया गया है। इस तथ्य को भी आवेदिका के द्वारा खंडित नहीं किया है।
11. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत किये गये आवेदिका के पति बालक राम के मेडिकल सर्विस कार्ड मूल दस्तावेज क्रमांक डी3ए जिसकी फोटोप्रति दस्तावेज क्रमांक डी3 है। उक्त मूल दस्तावेज के अवलोकन से यह स्पष्ट होता है कि दिनांक 22/09/2004 को बालक राम को हाईपरटेंशन (उच्च रक्तचाप) की बीमारी होना मालूम हुआ था। जिसके संबंध में इलाज हेतु दवाईयॉं उक्त बालक राम के द्वारा लिये जाने हेतु एस.ई.सी.एल. के विकास नगर अस्पताल के चिकित्सक के द्वारा सिफारिष किया गया था। उपरोक्त दस्तावेज में दिनांक 04/09/2004 को हाइड्रोसिल की बीमारी होना दर्शाया गया है दिनांक 04/09/2008 को एवं 06/09/2008 को उच्च रक्तचाप की बीमारी का इलाज किया जाना बताया गया है। इसी तरह उक्त बीमित बालकराम का इलाज दिनांक 08/09/2008 दिनांक 12/09/2008 दिनांक 19/09/2008 दिनॉंक 19/01/2011 उसके आगे भी कराया गया है। इस प्रकार वर्तमान विवादित बीमा पालिसी दिनॉंक 22/01/2010 को क्रय करने के पूर्व उक्त बालक राम के द्वारा अपने नियोक्ता एसईसीएल कुसमुण्डा प्रोजेक्ट के विकास नगर स्थित अस्पताल में उच्च रक्तचाप (हाईपरटेंशन ) तथा हाइड्रोसिल संबंधी बीमारी का इलाज कराया गया था। अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक डी1 स्वजीवन बीमा प्रस्ताव पत्रक में उक्त बीमित बालक राम के द्वारा उपरोक्त बीमारियों से कभीभी पीडि़त होने या उसका इलाज कराने के तथ्य से इंकार किया है और उनके संबंध में उत्तर नकारात्मक अर्थात् ’’नहीं ’’में दिया है।
12. अनावेदक की ओर से दस्तावेज क्रमांक डी4 का प्रस्तुत किया गया जो डीएमआर/जेएमआर के द्वारा दावा के संबंध में दी गयी मेडिकल ओपेनियन होना दर्शाया गया है। इसमें भी मृतक बालक राम को वर्तमान बीमा पालिसी क्रय किये जाने के पूर्व से उच्च रक्तचाप (हाइपटेंषन) की बीमारी से ग्रस्त होना बताया गया है। इसके अलावा अनावेदक की ओर से ही दस्तावेज क्रमांक डी6 अस्पताल की चिकित्सक का प्रमाणपत्र दिनांक 12/09/2013 को विकास नगर चिकित्सालय कुसमुण्डा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के द्वारा जारी किया जाना बताते हुए यह तर्क किया गया है कि उक्त दस्तावेज की कंडिका 10 में भी बालक राम को दिनांक 22/09/2004 से उच्च रक्तचाप एवं दिनांक 04/09/2008 से दृष्टिदोष से बीमारी होने संबंधी तथ्य दर्शाया गया है। इस प्रकार अनावेदक का तर्क है कि परिवादपत्र को निरस्त किया जाये।
13. अनावेदक की ओर यह तर्क किया गया है कि आवेदिका के पति बालक राम के द्वारा विवादित बीमा पालिसी क्रय करने के पूर्व बीमा प्रस्ताव पत्रक दस्तावेज क्रमांक डी1 के अनुसार दिनांक 22/01/2010 के पूर्व सन् 2004 से वह उच्च रक्तचाप से पीडि़त था इस तथ्य की जानकारी होते हुए भी बालक राम के द्वारा जानबूझकर उक्त बीमारी के तथ्य को छिपा दिया गया। इसलिए आवेदिका उक्त बीमित के मृत्यु होने पर विवादित बीमा पालिसी के संबंध में बीमाधन राशि प्राप्त करने की अधिकारी नहीं है।
14. अनावेदक की ओर से परिवादपत्र को निरस्त किये जाने योग्य होना बताते हुए उपरोक्त तर्क के समर्थन में माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर के द्वारा ’’अपील क्रमांक एफए/13/88 सीनियर मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम संभागीय कार्यालय बिलासपुर विरूद्ध कुमारी मंजु भट्टाचार्य’’ आदेश दिनांक 07/02/2014 में पारित आदेश को न्याय दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसमें उक्त अपीलार्थी के माता के द्वारा अपने जीवन काल में अपने स्वास्थ्य के संबंध में बीमा प्रस्ताव पत्रक में पूर्व की बीमारी के तथ्यों को छिपाकर गलत जानकारी दिये जाने के आधार पर बीमादावा को बीमाकर्ता के द्वारा अस्वीकार कर दिये जाने पर सेवा में कमी नहीं किया जाना माना गया है।
15. अनावेदक की ओर से ही एक अन्य न्याय दृष्टांत माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर का ’’संभागीय कार्यालय भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य विरूद्ध सूरजमन धु्रव 2006(2)सी.पी.आर.142’’ प्रस्तुत किया गया है जिसमें प्रस्ताव पत्रक में बीमित मृतक पुत्र के मिर्गी की बीमारी से ग्रस्त होने संबंधी पूर्व बीमारी के संबध में गलत जानकारी उसके पिता प्रस्तावकर्ता (परिवादी) के द्वारा दी गयी थी। इसलिए परिवादी की बीमादावा को अस्वीकार करने में बीमा कंपनी के द्वारा सेवा में कमी नहीं किया जाना माना गया है।
16. आवेदिका की ओर से अनावेदक के तर्क का खंडन करते हुए अपने पक्ष के समर्थन में माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर के द्वारा ’’अपील क्रमांक एफए/13/643 ब्रांच मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय क्रमांक 2 कोरबा विरूद्ध श्रीमती कंचन थवाईत ’’ आदेश दिनांक 02/10/2014 में पारित आदेश की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। जिमसें बीमा कंपनी के द्वारा बीमित के संबंध में बीमा पालिसी प्राप्त करने के पूर्व बीमारी के महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर गलत जानकारी दिये जाने से संबंधित तथ्य को साक्ष्य के द्वारा प्रमाणित नहीं किये जाने के कारण बीमादावा को बीमा कंपनी के द्वारा अस्वीकार किये जाने को गलत होना बताया गया है।
17. यह उल्लेखनीय है कि आवेदिका के द्वारा प्रस्तुत उपरोक्त न्याय दृष्टांत में बीमित के कार्यालय द्वारा जारी किये गये बीमित के चिकित्सीय अवकाश एवं अर्जित अवकाश लिये जाने के प्रमाणपत्र के आधार पर बीमादावा को बीमा कंपनी के द्वारा अस्वीकार किये जाने को प्रर्याप्त नहीं होना पाया गया था। वर्तमान मामले में इस तरह की परिस्थिति नहीं है बल्कि अनावेदक के द्वाना प्रस्तुत साक्ष्य यह स्पष्टरूप से प्रमाणित होता है कि वर्तमान बीमा पालिसी को क्रय किये जाने के दिनांक 22/01/2010 के पूर्व से ही आवेदिका के पति बालक राम उच्च रक्तचाप एवं अन्य बीमारियों का इलाज अपने नियोक्ता के अस्पताल के चिकित्सा अधिकारी से कराते आ रहा था। उक्त बालक राम के द्वारा अपने गंभीर बीमारी एवं उसका इलाज अस्पताल में कराने संबंधी तथ्य को बीमा प्रस्ताव दस्तावेज क्रमांक डी1 में छिपा दिया गया और स्वास्थ्य की सही जानकारी नहीं दी गयी इसके बारे में अनावेदक द्वारा प्रर्याप्त साक्ष्य पेश किया गया है।
18. यह उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग नई दिल्ली के द्वारा ’’सकुतंला विरूद्ध भारतीय जीवन बीमा निगम 2014(3)सीपीजे 517(एनसी)’’ निर्णय दिनॉंक 11/04/2014 वाले मामले में यह सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है कि बीमा पालिसी लेने वाले व्यक्ति के द्वारा बीमा प्रस्ताव पत्रक में अपने बीमारी के संबंध में तथ्यों को जो उसकी जानकारी में है उसे सहीसही दर्षाना चाहिए। यह बीमा पालिसी लेने वाले के लिए जानना आवष्यक नहीं कि उसके द्वारा दी गयी जानकारी कितनी महत्वपूर्ण है या नहीं। उपरोक्त न्याय दृष्टांत में इसके संबंध में माननीय उच्चतम न्यायालय के द्वारा ’’सतवंत कौर संधु विरूद्ध न्यु इंडिया इष्योरेंस कंपनी लिमिटेड 2009(4) सीपीजे 8(एससी)’’ में प्रतिपादित सिद्धांत का का उल्लेख किया गया है। इस प्रकार अनावेदक के द्वारा दस्तावेज क्रमांक डी5 के पत्र दिनांक 16/07/2014 के द्वारा आवेदिका के बीमादावा को अस्वीकार करने में कोई वैधानिक त्रुटि नहीं किया जाना पाया जाता है। जिसके आधार पर आवेदिका द्वारा प्रस्तुत वर्तमान परिवादपत्र को स्वीकार किये जाने योग्य नहीं होना पाया जाता है।
19. अतः मुख्य विचारणीय प्रश्न का निष्कर्ष ’’नहीं’’ में दिया जाता है।
20. तद्नुसार परिवादी/आवेदिका देवानीन बाई की ओर से प्रस्तुत इस परिवादपत्र को धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्वीकार किये जाने योग्य नहीं होना पाते हुए निरस्त किया जाता है। इस मामले की परिस्थिति को देखते हुए यह आदेश दिया जाता है कि उभय पक्ष अपनाअपना वाद व्यय स्वयं वहन करेंगे।
(छबिलाल पटेल)
अध्यक्ष
उपरोक्त कंडिका 11 से 20 तक में माननीय अध्यक्ष महोदय के निष्कर्ष से सहमत न होते हुए हमारे निष्कर्ष निम्नानुसार है
21. आवेदिका के अधिवक्ता ने तर्क में बताया है कि आवेदिका के पति बालक राम जो एस.ई.सी.एल. का कर्मचारी था एवं मात्र कक्षा पांचवी तक पढ़ा था। जिसके द्वारा दस्तोवज पी1 एवं अनावेदक का दस्तावेज क्रमांक डी2 दिनांक 01/01/2010 को प्रस्ताव के आधार पर विवादित बीमा पालिसी क्रमांक 384238223 बीमाधन 500000/रू0 प्राप्त किया था जिसकी किस्तों का नियमित रूप से 2042/रू0 प्रतिमाह भुगतान किया जाता रहा है एवं उक्त पालिसी में आवेदिका नामिनी है। दिनांक 04/01/2013 को सुबह अपने कार्यस्थल पर कार्य करते वक्त तबियत अचानक खराब हो जाने के कारण मृत्यु हो गयी। जिस पर आवेदिका द्वारा बीमाधन हेतु दावा करने पर अनावेदक के द्वारा यह कहते हुए उपरोक्त पालिसी के तहत बीमाधन का भुगतान करने से मना कर दिया गया कि बीमाधारक के द्वारा तथ्यों को छिपाते हुए उक्त बीमा पालिसी ली गयी है। जबकि बीमाधारक को अपनी किसी गंभीर बीमारी की कोई जानकारी ही नहीं थी।
22. अनावेदक की ओर से प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक डी1 प्रस्ताव पत्र का अवलोकन करने से स्पष्ट है कि आवेदिका के पति बालक राम द्वारा दिनांक 01/01/2010 को प्रस्ताव पत्र में क्रास मार्क को देखकर हिन्दी में हस्ताक्षर किया है। यह भी स्पष्ट होता है कि प्रस्तावक द्वारा घोषणा के अंग्रेजी प्रोफार्मा में उसका नाम एवं घोषणा लिखा गया है। तथा पूरा प्रस्ताव पत्र भी अंग्रेजी में भरा गया है। जबकि बालकराम मात्र कक्षा पांचवी तक ही पढ़ा था। इसलिए अंग्रेजी का घोषणा पत्र शर्ते एवं जानकारी को समझना उसके लिए संभव नहीं था एवं जानबूझकर कपटपूर्वक किसी गंभीर बीमारी को छिपाना प्रतीत नहीं होता।
23. अनावेदक द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक डी3 मेडिकल सर्विस कार्ड का अवलोकन करने पर प्रथम पृष्ठ में उसका नाम अंगेजी के साथ हिन्दी में भी लिखा गया है। जिससे अनुमान लगाया जा सकता है कि उसे अंग्रेजी का ज्ञान नहीं था। वह अपना मेडिकल सर्विस कार्ड पहचान सके इसलिए हिन्दी में बालकराम का नाम लिखा गया था। उसी दस्तावेज का पृष्ठ क्रमांक5 में दिनांक 22/09/2004 को बीपी 160/110 एवं कुछ दवाईयाॅ तथा बीपी की जांच संबंधी टीप अंकित है। इसके बाद सन् 04/09/2008 के पूर्व बीपी के संबंध में किसी प्रकार का कोई उल्लेख नहीं है एवं ना ही किसी प्रकार का चिकित्सा संबंधी उल्लेख है। दिनॉंक 04/09/2008 को विकास नगर अस्पताल में सिक की शील सहित बीपी180/120 एवं कुछ दवाईयाॅ अंकित है। दिनांक 06/09/2008 को बीपी 180/110 दिनांक 08/09/2008 दिनांक 12/09/2008 को बीपी के संबंध में कोई उल्लेख नहीं है। दिनांक 19/09/2008 को बीपी 130/80 नार्मल अंकित है तथा फिट की शील लगी हुई है। जिससे प्रतीत होता है कि बीमाधारी बालकराम को दिनॉंक 22/09/2004 में उल्लेखित बीपी एवं टीप की जानकारी नहीं एवं ना ही कोई बीमारी की जानकारी थी। अन्यथा 04 वर्ष के अंतराल में अवष्य चिकित्सालय में इलाज/जांच कराया होता। दिनांक 04/09/2008 से दिनांक19/09/2008 तक के चिकित्सीय कार्ड को देखने से प्रतीत होता है कि चिकित्सीय अवकाश के संबंध में प्रविष्टि है ना की किसी गंभीर बीमारी के संबंध में अन्यथा बीपी का नियमित उल्लेख उपरोक्त दस्तावेज में होता। बीमाधारक एस.ई.सी.एल. का कर्मचारी था एवं अवकाश हेतु कर्मचारियों के द्वारा मेडिकल का आश्रय लिया जाता है। इस बीच पालिसी धारक के द्वारा गंभीर बीमारी के संबंध में किसी चिकित्सालय में भर्ती या ईलाज से संबंधित दस्तावेज अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत नहीं किया गया है।
24. अनावेदक की ओर से परिवादपत्र को निरस्त किये जाने योग्य होना बताते हुए अपने तर्क के समर्थन में माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर के द्वारा ’’अपील क्रमांक एफए/13/88 सीनियर मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम संभागीय कार्यालय बिलासपुर विरूद्ध कुमारी मंजु भट्टाचार्य’’ आदेश दिनांक 07/02/2014 में पारित आदेश को न्याय दृष्टांत के रूप में प्रस्तुत किया गया किंतु उपरोक्त में बीमित द्वारा 14 वर्षो से मधुमेंह एवं हृदयरोग की गंभीर बीमारी को जानबूझकर छुपाने से संबंधित है। अतः इस प्रकारण में अनावेदक को उपरोक्त दृष्टांत का लाभ प्राप्त नहीं मिल सकता।
25. अनावेदक की ओर से ही एक अन्य न्याय दृष्टांत माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर का ’’संभागीय कार्यालय भारतीय जीवन बीमा निगम एवं अन्य विरूद्ध सूरजमन धु्रव 2006(2)सी.पी.आर.142’’ प्रस्तुत किया गया है जिसमें प्रस्ताव पत्रक में बीमित मृतक पुत्र के मिर्गी की बीमारी से ग्रस्त होने संबंधी पूर्व बीमारी के संबध में गलत जानकारी उसके पिता प्रस्तावकर्ता (परिवादी) के द्वारा जानबूझकर दी गयी थी। जबकि मिर्गी की गंभीर बीमारी कई वर्षो से थी इस तथ्य से प्रस्तावकर्ता वाकिफ था। अतः उक्त न्याय दृष्टांत के तथ्य एवं इस प्रकरण के तथ्य भिन्न होने के कारण इस दृष्टांत का लाभ अनावेदक को नहीं मिला सकता।
26. आवेदिका की ओर से अनावेदक के तर्क का खंडन करते हुए अपने पक्ष के समर्थन में माननीय छत्तीसगढ़ राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोषण आयोग रायपुर के द्वारा ’’अपील क्रमांक एफए/13/643 ब्रांच मैनेजर भारतीय जीवन बीमा निगम शाखा कार्यालय क्रमांक 2 कोरबा विरूद्ध श्रीमती कंचन थवाईत ’’ आदेश दिनांक 02/10/2014 में पारित आदेश की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। जिमसें बीमा कंपनी के द्वारा बीमित के संबंध में बीमा पालिसी प्राप्त करने के पूर्व बीमारी के महत्वपूर्ण तथ्यों को छिपाकर गलत जानकारी जानबूझकर दिये जाने से संबंधित तथ्य को साक्ष्य के द्वारा प्रमाणित नहीं किये जाने के कारण बीमादावा को बीमा कंपनी के द्वारा अस्वीकार किये जाने को गलत होना बताया गया है।
27. उल्लेखनीय है कि बीमा अधिनियम 1938 की धारा 45 के उपबंधों की भूमिका विचारण की जानी चाहिए। बीमा अधिनियम की धारा 45 निम्नानुसार पठित है ’’45. पालिसी को दो वर्ष पष्चात् गलत कथन करने के आधार आक्षिप्त नहीं किया जाना चाहिए इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पूर्व प्रभावशील जीवन बीमा की कोई भी पालिसी इस अधिनियम के प्रारंभ होने दिनांक से दो वर्ष पर्यवेसित होने के पष्चात् और इस अधिनियम के प्रभावशील होने के पष्चात् प्रभावी जीवन बीमा की कोई भी पालिसी उस दिनांक जिस दिन वह प्रभावी थी से दो वर्ष पर्यवेसित होने के पष्चात् बीमाकर्ता द्वारा इस आधार पर आक्षिप्त नहीं की जायेगी कि बीमा के लिए प्रस्ताव में किया गया कथन या किसी चिकित्सीय अधिकारी की रिपोर्ट में या बीमित के मित्र या रेफरी या किसी अन्य दस्तावेज में पालिसी के संबंध में प्रश्न असत्य था या मिथ्या था जब तक की बीमाकर्ता यह नहीं दर्शाता कि ऐसा कथन तात्विक विषय पर था या उसे छिपाया गया था जो प्रकट करना तात्विक था और यह कि पालिसी धारक द्वारा इसे कपटपूर्वक किया गया था और यह पालिसी धारक यह कथन करते समय जानता था कि यह कथन मिथ्या था या यह कि उन्होंने इस तथ्य को छिपाया था जबकि उसे प्रगट करना तात्विक था।
28. उपर्युक्त उपबन्ध का परिशीलन उपदर्शित करता है कि इस अधिनियम के प्रारंभ होने के पष्चात् प्रभावशील जीवन बीमा की कोई पालिसी इस अधिनियम के प्रारंभ होने दिनांक से दो वर्ष की अवधि के पर्यवेसित होने के पष्चात् इस आधार पर आक्षिप्त नहीं की जावेगी कि बीमा के लिए प्रस्ताव में किया गया कथन या किसी चिकित्सीय अधिकारी की रिपोर्ट में या किसी अन्य दस्तावेज में पालिसी के संबंध में प्रश्न असत्य था या मिथ्या था जब तक कि बीमाकर्ता यह नहीं दर्शाता कि ऐसा कथन तात्विक विषय पर था या उसे छिपाया गया था जो प्रकट करना तात्विक था और यह पालिसी धारक द्वारा इसे कपटपूर्वक किया गया था और यह कि पालिसी धारक यह कथन करते समय जानता था कि यह कथन मिथ्या था या यह कि उन्होंने इस तथ्य को छिपाया था जबकि उसे प्रकट करना तात्विक था। उक्त तथ्यों के सबूत का भार बीमाकर्ता पर होता है। अनावेदक के द्वारा कोई शपथपत्र या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं किया जा सका कि बीमाधारक किसी गंभीर बीमारी से पीडि़त था और वह जानता था तथा जानबूझकर उसके द्वारा कपटपूर्वक छिपाया गया है। बीमाधारक कक्षा पांचवी तक पढ़ा था एवं एस.ई.सी.एल. का कर्मचारी था अपने परिवार के भविष्य को देखते हुए दिनांक 01/01/2010 को प्रस्तावित कर विवादित बीमा पालिसी प्राप्त की थी। उक्त प्रस्ताव देने के 03 वर्ष के बाद एवं पालिसी स्वीकार होने के 02 वर्ष 11 माह उपरांत दिनॉंक 04/01/2013 को उसकी अचानक मृत्यु हो गयी। नियोजित क्षेत्र के वातावरण परिवेष एवं परिस्थिति एवं व्यक्ति बनावट के अनुसार दिनॉंक 22/09/2004 को केवल एक बार बीपी 160/110 कोई अतिसयोक्ति नहीं है।
29. इसमें संदेह नहीं की कोई व्यक्ति जीवन बीमा पालिसी को पूरे विश्वास व आशा के साथ इस आधार पर लेता है कि उसकी मृत्यु की दशा में उसके परिवार को हानि नहीं होगी और बीमा राशि से जीवीत रहने के योग्य होगा। बीमित के मध्यम वर्ग से संबंधित होने एवं शासकीय निगम पर निर्भर होने की दशा में निगम अधिकारियों का यह कर्तब्य है कि वह दावेदारों के मामले को उनकी सहायता करने के रूप में विचार करें न कि दोषो को देखने के रूप में व्यवहृत करें जब शासन कोई व्यवसाय चलाता है तो यह नागरिकों को शोषण से मुक्त सेवा करने की दृष्टि से होना चाहिए एवं संदेह के मामले में निर्णय नागरिकों को लाभ देने हेतु लिया जाना चाहिए न कि व्यवसायिक उद्देष्य के लिए। विधायिका ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 में उपभोक्ताओं को न्याय प्रदान करने की एक भिन्न व नवीन व्यवस्था स्थापित की है इस अधिनियम का उद्देष्य उपभोक्ता के हितों को अधिक बेहतर संरक्षण प्रदान करना है। बेहतर संरक्षण से तात्पर्य यह है कि उपभोक्ता के जो हित अन्य कानूनों के द्वारा संरक्षित नहीं किये जा सकते उन हितों का संरक्षण इस अधिनियम के प्रावधानों का प्रयोग करके किया जाना संभव है।
30. अनावेदक के द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज क्रमांक डी4 का प्रस्तुत किया गया जो डीएमआर/जेएमआर के ओपेनियन में मृत्यु का प्राथमिक कारण नहीं बताया गया हाईपरटेंशन को द्वितीयक कारण बताया गया है। उपरोक्त में ही बताया गया है कि हाईपरटेंशन अनकंट्रोल होने से मृत्यु का कारण हो सकता है। इसमें भी मृतक बालक राम को वर्तमान बीमा पालिसी क्रय किये जाने के पूर्व से उच्च रक्तचाप (हाईपरटेंशन ) की बीमारी गंभीर/अनकंट्रोल होना नहीं दर्शाया गया है। इसके अलावा अनावेदक की ओर से ही दस्तावेज क्रमांक डी6 अस्पताल की चिकित्सक का प्रमाणपत्र दिनांक 12/09/2013 को विकास नगर चिकित्सालय कुसमुण्डा के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) के द्वारा जारी किया गया है कि उक्त दस्तावेज की कंडिका 10 में दर्ज विवरण से स्पष्ट है कि बीमित हाईपरटेंशन /वर्टिगो की बीमारी हेतु एस.ई.सी.एल. मेन हास्पीटल कोरबा में दिनांक 19/01/2011 से दिनांक 21/01/2011 तक अस्पताल में रहकर इलाज कराया है जो पस्ताव पत्र भरने के पष्चात् है। बालक राम को दिनांक 22/09/2004 से उच्च रक्तचाप एवं दिनांक 04/09/2008 से दृष्टिदोष से बीमारी होने संबंधी तथ्य दर्शाया गया है। किंतु उसे इसकी जानकारी थी या नहीं क्योंकि उसके पूर्व बीमित के द्वारा डिस्पेंसरी में सामान्य परामर्श के अलावा किसी अस्पताल में भर्ती रहकर इलाज नही कराया गया है।
31. उपरोक्त कंडिका 21 से 30 तक की विवेचना में अनावेदक के द्वारा यह प्रमाणित नहीं किया जा सका है कि बीमाधारक के द्वारा किसी गंभीर बीमारी की जानकारी होते हुए भी उसने जानबूझकर कपटपूर्वक तात्विक तथ्य को छिपाकर प्रस्ताव भरकर बीमा पालिसी प्राप्त की है। अतः मुख्य विचारणीय प्रश्न का निष्कर्ष ’’हॉं’’ में दिया जाता है।
32. तद्नुसार परिवादी/आवेदिका की ओर से प्रस्तुत इस परिवादपत्र को धारा 12 उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 1986 के तहत स्वीकार करते हुए उनके पक्ष में एवं अनावेदक के विरूद्ध निम्नानुसार अनुतोष प्रदान किया जाता है और आदेश दिया जाता है किः
अ. आवेदिका को बीमा पालिसी क्रमांक 384238223 के संबंध में देय राशि 500000/रू0 तथा आवेदिका के आवेदन प्रस्तुति दिनांक 27/11/2014 से उक्त रकम की वसूली दिनांक तक 9 प्रतिशत की दर से वार्षिक ब्याज का भुगतान आज से 02 माह के अंदर अनावेदक करें। इसमें चूक करने पर उक्त राशि पर वाद प्रस्तुति दिनांक से 12 प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करें।
ब. आवेदिका को मानसिक कष्ट हेतु क्षतिपूर्ति के रूप में 40000/रू0 (चालीस हजार रूपये) भी अनावेदक प्रदान करें।
स. आवेदिका को परिवाद व्यय के रूप में 2000/रू0 (दो हजार रूपये) अनावेदक प्रदान करें।
(श्रीमती अंजू गबेल) (राजेन्द्र प्रसाद पाण्डेय)
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