राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ
(मौखिक)
अपील संख्या-1926/2023
अशोक कुमार जायसवाल पुत्र भोलानाथ जयसवाल
बनाम
शाखा प्रबन्धक कार्यालय भारतीय स्टेट बैंक शाखा कोराव जिला प्रयागराज
समक्ष:-
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित : कोई नहीं।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित : श्री साकेत श्रीवास्तव,
विद्वान अधिवक्ता।
दिनांक: 22.11.2024
माननीय न्यायमूर्ति श्री अशोक कुमार, अध्यक्ष द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सुनवाई हेतु आज सूचीबद्ध है। खेद का विषय है कि अपीलार्थी एवं अपीलार्थी के अधिवक्ता अनुपस्थित हैं, जबकि प्रत्यर्थी बैंक के अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव उपस्थित हैं।
अपीलार्थी की ओर से अधिवक्ता श्री बृजेश कुमार केसरवानी द्वारा अनुपस्थिति का कारण माननीय उच्च न्यायालय में व्यस्तता को उल्लिखित किया गया है।
इस न्यायालय द्वारा लगभग ढाई माह पूर्व दिनांक 12.09.2024 को विस्तृत आदेश पूर्व आदेशों को उल्लिखित करते हुए पारित किया गया, जो निम्नवत् है:-
“12.9.2024
Case is called out.
The instant appeal is listed before this court through video conferencing in pursuance of the following previous order dated 28.6.2024:
“28-6-2024
इस अपील की सुनवाई वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से की गई। अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से
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उपस्थित है।
प्रस्तुत अपील इस न्यायालय के सम्मुख निम्न अनुतोष प्रदान किये जाने हेतु प्रस्तुत की गई है:-
"अतः माननीय न्यायालय से विनम्रतापूर्वक कृपापूर्ण अनुरोध कि उपरोक्त परिस्तिथि मे माननीय राष्ट्रीय उपभोक्ता-विवाद निवारण आयोग नई दिल्ली CHANDRASENBATHAM बनाम M.P. GOVERNMENT REVISION PETITION NO. 4710 OF 2010 मे पारित निर्णय Dated: 10 Mar 2011 और मा० राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग उड़ीसा (C.D. Case No. 121. of 1990 Chintamani Mishra Vs. Tahasildaar, Khandapara and Ors.) एवं मा० राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग (PRABHAKAR VYANKOBA AADONE Vs. SUPERINTENDENT, CIVIL COURT :(2008) 1 CPJ 427) उपरोक्त न्यायिक निर्णयो का लाभ प्रार्थी को दिया जाए और वर्तमान अपील प्रार्थना पत्र एंव परिवाद स्वीकार किया जाए वांछित लोक दस्तावेजात सहित परिवाद मे चाहे गए अनुतोष दिलाई जाए वर्चुअल रूप से विडियो कांफ्रेंसिंग द्वारा सुनवाई कर माननीय जिला आयोग का आदेश दिनांक 02-11-2023 को निरस्त कर परिवाद रीस्टोर। कर विधि और साक्ष्य पर विचार करते गुणदोष के आधार पर निर्णय पारित करने के लिए आदेशित किया जाए।"
विगत कई तिथियों से इस न्यायालय द्वारा आदेश पारित किये जाते रहे परन्तु प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक द्वारा न तो कोई पक्ष प्रस्तुत किया गया न ही उत्तर, न ही कोई अधिवक्ता इस न्यायालय के सम्मुख उपस्थित हुए। अंततोगत्वा दिनांक 14.5.2024 को पूर्व आदेशों को उल्लिखित करते हुए इस न्यायालय द्वारा निम्न विस्तृत आदेश पारित किया गया:-
पुकारा गया। प्रस्तुत अपील वर्चुअल सुनवाई के माध्यम से पूर्व की भांति आज आज निश्चित तिथि पर सुनी गई। पत्रावली पर उपलब्ध आदेश फलक के परिशीलन से यह स्पष्ट है कि दिनांक 12.12.2023 को न्यायालय द्धारा निम्न आदेश पारित किया गया:-
‘आज यह अपील वर्चुअल सुनवाई हेतु प्रस्तुत हुई तथा अपीलार्थी को वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सुना गया।
प्रत्यर्थी को कार्यालय द्वारा 02 सप्ताह में नोटिस जारी की जाए। पैरवी 01 सप्ताह में की जाए। प्रत्यर्थी अपना उत्तर शपथपत्र 06 सप्ताह में प्रस्तुत करें। प्रस्तुत अपील को पुन: दिनांक 12.4.2024 को पूर्वान्ह 10.30 बजे नवीन वाद सूची में वीडियो कान्फ्रेसिंग के माध्यम से सुनवाई हेतु सूचीबद्ध
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किया जावे। ‘’
उक्त आदेश के अनुपालन में कार्यालय द्धारा निम्न आख्या तिथिवार उल्लिखित की गई :-
‘’ अपीलार्थी की ओर से वकालतनामा प्राप्त हुआ। पत्रावली पर संलग्न व नाम अंकित किया गया। (22.12.2023)’’
‘’ प्रत्यर्थी को नोटिस जारी। (12.01.2024)’’
‘’ प्रत्यर्थी को भेजी गई नोटिस आज तक वापस प्राप्त नहीं हुई। (09.04.2024)’’
पंजीकृत डाक से नोटिस विपक्षी बैंक के शाखा प्रबंधक को प्रेशित किया जाना पत्रावली पर उपलब्ध है तदोपरान्त निश्चित तिथि दिनांक 12.04.2024 को अपील की सुनवाई सम्बन्धित पीठ द्धारा सुनिश्चित नहीं हुई। अगली निश्चित तिथि दिनांक 18.04.2022 को अपीलार्थी को वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से पुन: सुना गया तथा निम्न आदेश पारित किया गया :-
‘’ 18-04-2024
पुकार हुयी ।
प्रस्तुत अपील में इस न्यायालय द्वारा दिनांक 12.12.2023 को पारित आदेश के अनुपालन में पंजीकृत डाक से नोटिस दिनांक 12.01.20024 को प्रेषित की गयी एंव दिनांक 12.04.2024 की तिथि निश्चित की गयी ।
दिनांक 12.04.2024 को सुनवाई न होने के कारण अपील की सुनवाई आज दिनांक 18.04.2024 हेतु नियत की गयी थी। अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल द्वारा प्रस्तुत अपील ई-दाखिल के माध्यम से योजित की गयी है जिसकी सुनवाई वर्चुअल वीडियो कान्फ्रेसिगं के माध्यम से आज सुनिश्चित की गयी । यद्यपि वर्चुअल वीडियो कान्फ्रेसिगं में ध्वनि से संबंधित कुछ व्यवधान हो रहा है परन्तु दौरान पत्रावली परीक्षण यह पाया गया कि कार्यालय द्वारा अपनी आख्या दिनांक 09.04.2024 में निम्नवत् उल्लेख किया गया है:-
'' मा0 महोदय, प्रत्यर्थी को भेजी गयी नोटिस आज तक वापस प्राप्त नहीं हुयी है । ''
चूंकि कार्यालय द्वारा नोटिस वापस प्राप्त न होने की आख्या उल्लिखित की गयी है, अतएव न्यायहित में नोटिस प्राप्ति अथवा नोटिस तामीली की आख्या कार्यालय द्वारा प्रेषित किया जाना आदेशित किया जाता है।
तदनुसार तीन सप्ताह की अवधि में कार्यालय नोटिस की तामीली/प्राप्ति की आख्या प्रस्तुत करे।
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अपील वर्चुअल वीडियो कान्फ्रेसिगं के माध्यम से सुनवाई हेतु दिनांक 14.05.2024 को 10.30 बजे हेतु पुन: सूचीबद्ध की जाए।‘’
कार्यालय द्धारा दिनांक 18.04.2024 के आदेश के संबंध में पूर्व आदेशों का उल्लेख किया गया तथा दिनांक 29.04.2024 को निम्न आख्या उल्लिखित की गई :-
‘’ अपीलार्थी की ओर से दरख्वास्त ई-मेल दिनांक 08.04.2024 प्राप्त हुआ। अवलोकन हेतु पत्रावली पर संलग्न है। ‘’
अपीलार्थी द्धारा दिनांक 29.04.2024 को एक पत्र सक्षम अधिकारी/ नकल अनुभाग अधिकारी, राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0 प्र0 लखनऊ को प्रेषित किया गया जो निम्नवत् है :-
बिन्दु सं. | आवेदन दिनॉक 18.04.2024 के द्धारा वांछित नकल दस्तावेज | वर्तमान स्थिति |
1. | माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ के द्धारा पारित निर्णय दिनांक 18.04.2024 की प्रमाणित आदेश की नकल उपलब्ध कराए | नकल दिनांक 26.04.2024 को प्राप्त हो गई |
2. | माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग लखनऊ को जरिये रजिस्टर्ड डाक से भेजे पत्र दिनांक 01.04.2024 की प्रमाणित नकल सभी संलग्नक दस्तावेज के साथ उपलब्ध कराये | अभी तक अप्राप्त है कृपया शीघ्र उपलब्ध करवाई जाए |
3. | माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ को जरिये ई-मेल( up-sforum@nic.in) पर मेरे ई-मेल ( 08.04.2024 की प्रमाणित नकल सभी संलग्नक दस्तावेज के साथ उपलब्ध कराये | अभी तक अप्राप्त है कृपया शीघ्र उपलब्ध करवाई जाए |
4. | माननीय राज्य उपभोक्ता आयोग, लखनऊ की नोटिस प्रेषित किये जाने की तामीला रिपोर्ट की नकल उपलब्ध करावाए | अभी तक अप्राप्त है कृपया शीघ्र उपलब्ध करवाई जाए |
उपरोक्त के संबंध में कार्यालय द्धारा अपेक्षित प्रक्रिया के संबंध में
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आवश्यक जानकारी नकल अनुभाग से अपेक्षित। तदनुसार 02 सप्ताह की अवधि में नकल अनुभाग द्धारा अपेक्षित जानकारी उपलब्ध कराई जावे।
प्रस्तुत अपील में विपक्षी के रूप में शाखा प्रबंधक कार्यालय भारतीय स्टेट बैंक शाखा कोराव जिला- प्रयागराज पिन 212306 मोबाइल नंबर- 8799594179 एवं ई-मेल 15510@sbi.co.in उल्लिखित किया गया।
वास्तव में अपीलार्थी जिस बैंक से अपेक्षित प्रपत्र वास्ते अपीलार्थी के कैश क्रेडिट एकाउन्ट, टर्म लोन एकाउन्ट एवं एफ आई टी एल एकाउन्ट की सत्यापित प्रतिलिपि की मांग कर रहे है जिस हेतु उनके द्धारा विपक्षी बैंक के सम्मुख प्रार्थना पत्र वास्ते उपरोक्त प्रपत्र उपलब्ध कराये जाने हेतु प्रेषित किया जिस पर विपक्षी बैंक द्धारा आज दिनांक तक कोई प्रपत्र प्राप्त नहीं कराये जाने का कथन अपीलार्थी अशोक कुमार जायसवाल को पूर्व में वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से सुना गया था। अपीलार्थी द्धारा पुन: आज भी वही तथ्य उल्लिखित किया गया। अतएव निम्न आदेश पारित किया जाना उचित प्रतीत होता है:-
तद्नुसार अपीलार्थी द्धारा इस आदेश की प्रति प्राप्त कर आदेश की प्रति के साथ एक प्रार्थना पत्र वास्ते पूर्व प्रार्थना पत्र में अपेक्षित प्रपत्रों को विपक्षी द्धारा प्राप्त न कराये जाने के संबंध में एवं पूर्व के प्रार्थना पत्र का तत्काल परीक्षण कर समुचित प्रक्रिया अपनाते हुये विपक्षी द्धारा अपीलार्थी को वांछित प्रपत्रों को यदि प्राप्त नहीं कराया जाता तब उस स्थिति में समुचित विवरण उल्लिखित करते हुये अपीलार्थी के प्रार्थना पत्र पर शाखा प्रबंधक विपक्षी बैंक द्धारा इस आदेश की प्राप्ति के 02 सप्ताह में सूचना अपीलार्थी को उपलब्ध कराई जावे। तदनुसार अपीलार्थी सूचना प्राप्त करने के पश्चात इस न्यायालय के सम्मुख प्राप्त करायी गई सूचना की प्रति प्रार्थना पत्र के साथ प्रेषित करे जिससे अगली तिथि पर सुनवाई की जा सके।
यहां स्पष्ट किया जाता है कि अपीलार्थी द्धारा इस आदेश की प्रति प्राप्त होते ही विपक्षी पर अपील से सम्बन्धित अपेक्षित प्रक्रिया की नोटिस प्राप्ति स्वमेव मानी जावेगी। तदनुसार विपक्षी द्धारा अपेक्षित कार्यवाही सुनिश्चित की जावे।
प्रस्तुत अपील वर्जुअल वीडियो कान्फ्रेन्सिंग के माध्यम से सुनवाई हेतु दिनांक 28.06.2024 को 10.30 बजे प्रथम वाद के रूप में पुन: सूचीबद्ध की जावे।"
उपरोक्त आदेश दिनांक 14.5.2024 में स्पष्ट रूप से इस तथ्य को उल्लिखित किया गया कि अपीलार्थी द्वारा आदेश दिनांक 14.5.2024 की प्रति प्राप्त कर आदेश की प्रति के साथ एक प्रार्थना पत्र वास्ते पूर्व प्रार्थना पत्र में अपेक्षित
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प्रपत्रों को प्रत्यर्थी/विपक्षी को प्राप्त कराये जाने हेतु प्रस्तुत किया जावेगा जिस पर प्रत्यर्थी/विपक्षी तत्काल प्रक्रिया सुनिश्चित करते हुए कार्यवाही सुनिश्चित करेगा। तद्नुसार आज अपील निश्चित तिथि पर वर्चुअल हियरिंग/वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई हेतु सूचीबद्ध है जिस पर सुनवाई के दौरान अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल को सुना गया।
अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल द्वारा कथन किया गया/ न्यायालय को अवगत कराया गया कि उनके द्वारा दिनांक 14.5.2024 के आदेश के अनुपालन में प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक को आदेश की प्रति व प्रार्थना पत्र द्वारा पंजीकृत डाक एवं ई-मेल के माध्यम से प्रेषित की गई। प्रश्न यह उठता है कि जब अपीलार्थी और प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक की शाखा के मध्य, अपीलार्थी द्वारा बताई गई दूरी, मात्र 600-700 मीटर अर्थात लगभग पौन किलोमीटर ही है तब अपीलार्थी द्वारा इस न्यायालय के आदेश दिनांक 14.5.2024 की प्रति बैंक के शाखा प्रबन्धक को व्यक्तिगत रूप से क्यों प्राप्त नहीं करायी गई, जिससे कि न्यायालय के आदेश की गरिमा को रखते हुए बैंक के शाखा प्रबन्धक द्वारा त्वरित कार्यवाही सुनिश्चित की जाती।
अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल एक व्यापारी के रूप में कार्य करते हैं, जैसा कि उनके द्वारा अवगत कराया गया। इस न्यायालय द्वारा यह पाया गया कि विगत कई माह से अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल द्वारा न जाने कितने प्रार्थना पत्र सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत महामहिम राष्ट्रपति महोदया, माननीय प्रधानमंत्री भारत सरकार, माननीय मुख्य न्यायाधिपति उच्चतम न्यायालय, माननीय मुख्य न्यायाधिपति उच्च न्यायालय, केन्द्रीय मंत्रीमंडल के विभिन्न मंत्रालयों के माननीय मंत्रियों के सम्मुख, विभिन्न वरिष्ठ केन्द्रीय सरकार व राज्य सरकार के पदाधिकारी/विभागाध्यक्षों के सम्मुख, माननीय राष्ट्रीय आयोग के माननीय अध्यक्ष के सम्मुख, इस न्यायालय के सम्मुख लगातार लगभग प्रति सप्ताह सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत सूचना मॉगे जाने से सम्बन्धित प्रपत्र, उ0प्र0 शासन के विभिन्न कार्यालयों के सम्मुख सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र प्रेषित किये जाते रहे हैं एवं किये जा रहे हैं।
उपरोक्त जन सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत न जाने कितने प्रकार की सूचनायें अपीलार्थी द्वारा विभिन्न कार्यालयों से, विभिन्न मंत्रालयों से, विभिन्न संस्थानों से एवं विभिन्न पदाधिकारियों से मॉगी जाती हैं, जिससे यह स्पष्ट रूप से प्रथम दृष्टया परिलक्षित होता है कि वास्तव में
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अपीलार्थी का कार्य विभिन्न कार्यालयों, संस्थाओं पर दबाव बनाना एवं जन सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 की प्रक्रिया को अवैधानिक रूप से प्रयोग करना व अपीलार्थी द्वारा मॉगी गई सूचना प्रदान किये जाने हेतु न सिर्फ सरकारी संगठनों, कार्यालयों एवं विभिन्न संस्थानों पर अत्याधिक भार डालना है वरन् सूचना एकत्रित किये जाने का कार्य किये जाने हेतु कार्यालयों में नियुक्त अधिकारियों/ कर्मचारियो का समय बर्बाद करना प्रतीत होता है।
दौरान बहस अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल से न्यायालय द्वारा इस तथ्य का विवरण प्रदान किये जाने का अनुरोध किया गया कि उनके द्वारा 'भारतवर्ष' के कितने न्यायालयों में कितने प्रकार के कितने वाद विगत वर्षों से आज की तिथि तक प्रस्तुत किये गये हैं, जिसका समुचित उत्तर उनके द्वारा न देते हुए मात्र यह कथन किया गया कि लगभग 6-7 न्यायालयों/संस्थाओं में वाद उनके द्वारा प्रस्तुत किये गये हैं। तद्नुसार अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल को आदेशित किया जाता है कि वे इस न्यायालय के सम्मुख सशपथ पत्र वास्ते उनके द्वारा विभिन्न न्यायालयों/संस्थाओं इत्यादि में प्रस्तुत किये गये सभी वादों, चाहे वे किसी भी स्तरीय न्यायालयों से सम्बन्धित हो, का विवरण एवं माननीय न्यायालयों द्वारा पारित किये गये आदेशों की प्रतियॉ इस न्यायालय के परीक्षण व परिशीलन हेतु 04 सप्ताह की अवधि में प्रस्तुत करें।
अपीलार्थी श्री अशोक कुमार जायसवाल द्वारा दौरान इस आदेश के पारित करते समय न्यायालय की कार्यवाही में बाधा पहुचाते हुए न्यायालय की अवहेलना करते हुए कथन किया कि न्यायालय को संविधान का कोई ज्ञान नहीं है, तद्नुसार न्यायालय की अवहेलना के सम्बन्ध में उनसे स्पष्टीकरण प्रस्तुत किये जाने हेतु आदेशित किया जाता है।
एक माह की अवधि में तद्नुसार अपेक्षित शपथपत्र सप्रपत्र एवं स्पष्टीकरण उनके द्वारा इस न्यायालय के सम्मुख प्रस्तुत किया जावे। तद्रनुसार अपील को पुन: दिनांक 12.9.2024 को पूर्वान्ह् 10.30 बजे वर्चुअल हियरिंग/वीडियो कान्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस पीठ के सम्मुख सुनवाई हेतु सूचीबद्ध किया जावे।
इस आदेश को पारित करते समय श्री साकेत श्रीवास्तव अधिवक्ता बैंक की ओर से उपस्थित हुए, जो अगली तिथि पर इस आदेश का अनुपालन प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के द्वारा सुनिश्चित करेगें।
इस आदेश की प्रति निबन्धक राज्य आयोग द्वारा ई-मेल व रजिस्टर्ड पोस्ट के माध्यम से अपीलार्थी को एक सप्ताह की अवधि में प्रेषित की जावे।
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अपीलार्थी द्वारा इस आदेश की प्रति व्यक्तिगत रूप से प्रार्थना पत्र के साथ प्रत्यर्थी/विपक्षी बैंक के शाखा प्रबन्धक को दिनांक 19.7.2024 तक प्राप्त करायी जावेगी तद्नुसार शाखा प्रबन्धक पूर्व उल्लिखित आदेश का अनुपालन सुनिश्चित करते हुए कार्यवाही द्वारा अधिवक्ता इस न्यायालय को तथ्यों से अवगत कराया जावेगा।”
By the aforesaid order, this court has directed the appellant to provide certain information which has not been provided by him even after as lapse of more than two and half months. However, during the course of hearing through video conferencing today, the appellant has not argued his case rather certain counsels represent him namely, Sri Brijesh Kumar Kesarwani, Sri Tara Chand Jangid and Sri Shyam Sunder Patel out of which Sri Brijesh Kumar Kesarwani is present alongwith Sri Ashok Kumar Jaiswal, the appellant. No information has been provided. On asking as to why the order dated 28.6.2024 is not complied with, the ld. counsel Sri Brijesh Kumar Kesarwani has informed the court that against the said order dated 28.6.2024, the appellant has approached the Hon’ble High Court, Allahabad through writ (c) petition no.24105 of 2024 in which the Hon’ble High Court has passed some order which has not been brought to the notice of this court for which Sri Brijesh Kumar Kesarwani has prayed and is allowed to send the certified copy of the order of the Hon’ble High Court within two weeks from today.
It is made clear that if the Hon’ble High court has not stayed the direction of this court in the above mentioned order dated 28.6.2024, the appellant must file the details as directed by this court within 4 weeks from today.
List again on 22.11.2024.”
प्रत्यर्थी बैंक के अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव द्वारा उल्लिखित किया गया कि वास्तव में अपीलार्थी द्वारा बैंक को लगातार प्रताडि़त किया जा रहा है। डी0आर0टी0 के सम्मुख भी वाद लम्बित है, जिसमें प्रस्तुत अपील में अपीलार्थी द्वारा अपेक्षित समस्त प्रपत्र वर्ष 2022 में ही अपीलार्थी को प्राप्त कराए जा चुके हैं व इस न्यायालय द्वारा पूर्व में पारित आदेशों के अनुपालन में भी अपेक्षित प्रपत्र अपीलार्थी को प्राप्त कराए जा चुके हैं, जिस संबंध में अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी बैंक को सन्तुष्टि पत्र भी प्राप्त कराया गया, जो पत्रावली पर प्रत्यर्थी बैंक के अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव के माध्यम से आज सुनवाई के दौरान प्राप्त कराया गया।
दौरान बहस प्रत्यर्थी बैंक के अधिवक्ता श्री साकेत श्रीवास्तव द्वारा इस न्यायालय को यह भी अवगत कराया गया कि अपीलार्थी
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द्वारा अनेकों बैंकों से अपने अनेकों परिवारीजनों के नाम से ऋण विभिन्न स्तरों पर प्राप्त किया गया है एवं ऋण का भुगतान न करना पड़े अथवा बैंक के द्वारा निर्धारित प्रक्रिया का पालन न करना पड़े, अतएव बैंक को व बैंक के वरिष्ठ अधिकारीगण/प्रबन्धक इत्यादि को व्यक्तिगत रूप से परेशान करने हेतु सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 के अन्तर्गत आधारहीन सूचनायें प्रदान किए जाने के प्रत्यावेदन प्रस्तुत किए जाते हैं, जिससे कि न सिर्फ जनता द्वारा बैंक में जमा की गयी धनराशि पर प्रभाव पड़ता है, वरन् बैंक की विधिक प्रक्रिया पर भी अनुचित दबाव बनाने के कारण प्रभाव पड़ता है।
समस्त तथ्यों को दृष्टिगत रखते हुए स्पष्ट रूप से प्रथम दृष्ट्या यह पाया जाता है कि अपीलार्थी द्वारा प्रत्यर्थी बैंक से ऋण प्राप्त कर बैंक के विरूद्ध सूचना अधिकार अधिनियम, 2005 का दुरूपयोग करते हुए ऋण न देने व बैंक को प्रताडि़त करने की प्रक्रिया लगातार की जा रही है, साथ ही बैंक से ऋण प्राप्त कर ऋण की अदायगी न किए जाने के अन्तर्गत बैंक प्रबन्धन को भी अवैधानिक रूप से प्रताडि़त किया जा रहा है। अपीलार्थी द्वारा इस न्यायालय के द्वारा अपेक्षित सूचनायें भी आज दिनांक तक प्राप्त न कराया जाना अपीलार्थी के उपरोक्त अनुचित कृत्य का स्पष्ट प्रमाण है।
तदनुसार अपीलार्थी की अनुपस्थिति एवं अविधिक प्रक्रियाओं को देखते हुए एवं उन्हे दृष्टिगत रखते हुए अपीलार्थी के विरूद्ध 50,000/-रू0 (पचास हजार रूपए) हर्जाना योजित करते हुए प्रस्तुत अपील निरस्त की जाती है।
अपीलार्थी द्वारा उपरोक्त हर्जाना धनराशि 50,000/-रू0 (पचास हजार रूपए) ''मुख्यमंत्री आपदा राहत कोष'' में निर्णय की तिथि से एक माह की अवधि में जमा की जावेगी अन्यथा की
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स्थिति में अपीलार्थी से उपरोक्त हर्जाना धनराशि की राजस्व वसूली की भांति वसूली की जावेगी।
इस आदेश की प्रति निबन्धक, राज्य उपभोक्ता आयोग द्वारा जिलाधिकारी, प्रयागराज तथा उपजिलाधिकारी व तहसीलदार, कोंराव, जिला, प्रयागराज को एक सप्ताह की अवधि में प्रेषित की जावे।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस निर्णय/आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(न्यायमूर्ति अशोक कुमार)
अध्यक्ष
जितेन्द्र आशु0
कोर्ट नं0-1