राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
सुरक्षित
अपील संख्या-१७४५/२०१३
(जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-१२७/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११/०४/२०१३ के विरूद्ध)
डा0 राम मनोहर लोहिया अवध यूनीवर्सिटी फैजाबाद द्वारा वाईस चांसलर।
.............. अपीलार्थी।
बनाम्
शैलेष सक्सेना उम्र लगभग ३० वर्ष पुत्र श्री शिव गोपाल सक्सेना निवासी मकान नं0 ६९७ मुनीराबाद माल गोदाम रोड जिला बाराबंकी एवं दो अन्य।
............... प्रत्यर्थीगण।
समक्ष:-
१. मा0 श्री राज कमल गुप्ता, पीठासीन सदस्य।
२. मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य।
अपीलार्थी की ओर से उपस्थित :- श्री नवीन कुमार तिवारी विद्वान
अधिवक्ता।
प्रत्यर्थी की ओर से उपस्थित :- श्री अमरीश सहगल विद्वान
अधिवक्ता ।
दिनांक : 29/11/2017
मा0 श्री महेश चन्द, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
प्रस्तुत अपील, जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-१२७/२००८ शैलेष सक्सेना बनाम डा0 राम मनोहर लोहिया अवध यूनीवर्सिटी, फैजाबाद में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११/०४/२०१३ के विरूद्ध योजित की गयी है ।
संक्षेप में विवाद के तथ्य इस प्रकार हैं कि प्रत्यर्थी/परिवादी ने शिक्षा सत्र वर्ष २००६-२००७ में जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल पोस्ट ग्रेजुएट कालेज बाराबंकी से एमए द्वितीय वर्ष अर्थशास्त्र की परीक्षा प्राईवेट अभ्यर्थी के रूप में दी थी। उक्त महाविद्यालय अपीलकर्ता/विपक्षी सं0-1 से मान्यता प्राप्त है तथा संबद्ध है। प्रत्यर्थी/परिवादी ने परीक्षा के लिए निर्धारित शुल्क जमा कियाथा और विपक्षी सं0-2 लाल बहादुर शास्त्री मेमोरियल गोण्डा में दिनांक २२/०५/२००७ को उसने मौखिक परीक्षा भी दी थी। प्रत्यर्थी/परिवादी का उक्त परीक्षा के लिए अनुक्रमांक ६२७१११ था किन्तु अपीलकर्ता विश्वविद्यालय द्वारा अर्थशास्त्र विषय की एमए द्वितीय वर्ष का परीक्षाफल घोषित किया गया तो प्रत्यर्थी/परिवादी के परिणाम के समक्ष अपूर्ण लिखा गया और उसकी मौखिक परीक्षा के अंक प्राप्त न होने के कारण परीक्षाफल रोक लिया गया । वह अपीलकर्ता विपक्षी सं0-1 तथा विपक्षी सं0-2 के कार्यालय में चक्कर काटता रहा कि कदाचित उसका मौखिक परीक्षा के अंक प्राप्त हो जाए और उसका परिणाम घोषित हो किन्तु कोई कार्यवाही नहीं हुई । अंतत: प्रत्यर्थी/परिवादी को मा0 उच्च न्यायालय की लखनऊ पीठ के समक्ष रिवीजन पिटीशन सं0-९२८(एम/एस) वर्ष २००८ प्रस्तुत करनी पड़ी जिसमें मा0 उच्च न्यायालय ने अपने आदेश दिनांक २२/०२/२००८ के द्वारा अपीलकर्ता को निर्देशित किया गया कि वह १५ दिन की अवधि में प्रत्यर्थी/प्रार्थी का परीक्षफल घोषित करे। मा0 उच्च न्यायालय के द्वारा पारित आदेश दिनांक २२/०२/२००८ के क्रम में विश्वविद्यालय द्वारा प्रत्यर्थी/परिवादी का परिणाम घोषित किया गया । मौखिक परीक्षा में प्राप्त ६५ प्रतिशत अंक प्राप्त हुए। परिवादी का तृतीय श्रेणी में उत्तीर्ण परीक्षाफल घोषित कर प्रकरण का निस्तारण कर दिया किन्तु इस समस्त कार्यवाही में प्रत्यर्थी/परिवादी को बहुत ही मानसिक शारीरिक और आर्थिक उत्पीड़न सहना पड़ा और उसका एक वर्ष का समय बरबाद हुआ। इसी से क्षुब्ध होकर परिवादीने यह परिवाद जिला मंच के समक्ष दायर किया।
उक्त परिवाद पत्र में अनुरोध किया गया कि परिवादी को मानसिक क्षतिपूर्ति के लिए रू0 ०२ लाख का भुगतान मय ब्याज के कराया जाए और आर्थिक एवं सामाजिक क्षति के लिए १५००००/- रूपये भी दिलाया जाए एवं वाद व्यय के लिए ५५०००/-रू0 दिलाया जाए।
उक्त परिवाद का विपक्षी सं0-2 एवं 3 ने विरोध किया और अपने-अपने प्रतिवाद पत्र दाखिल किए। अपीलकर्ता ने कोई विरोध जिला मंच के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया। विद्वान जिला मंच ने पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखीय साक्ष्यों का परिशीलन करने तथा उभय पक्षों को सुनने के बाद निम्न आदेश पारित किया है-
‘’ परिवाद विपक्षी सं0-1 के विरूद्ध एकपक्षीय रूप से स्वीकार किया जाता है। विपक्षी सं0-1 को निर्देश दिया जाता है कि वह इस निर्णय व आदेश की प्रति पाने के ४५ दिन के अन्दर परिवादी को उसके मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक क्षति तथा परिवाद व्यय के लिए ०१ लाख रूपये अदा करे। यदि विपक्षी सं0-1 उपरोक्त अवधि के अन्दर उपरोक्त धनराशि अदा नहीं करता है तो उसे परिवादी को इस निर्णय से धनराशि की अदायगी तक १० प्रतिशत वार्षिक साधारण ब्याज सहित अदा करना होगा। परिवाद विपक्षी सं0-२ व ३ के विरूद्ध निरस्त किया जाता है। परिवादी विपक्षी सं0-1 को अनुपालन हेतु इस निर्णय व आदेश की प्रति अपने खर्चे पर उपलब्ध करावे। ‘’
उक्त आक्षेपित आदेश से क्षुब्ध होकर यह अपील दायर की गयी है।
अपील में जो आधार लिए गए हैं उसमें कहा गया है कि विद्वान जिला मंच द्वारा पारित प्रश्नगत आदेश दिनांक ११/०४/२०१३ विधि विरूद्ध है और एकपक्षीय है। यह भी आधार लिया गया है कि परिवादी उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के अन्तर्गत उपभोक्ता की श्रेणी में नहीं आता है। इस आधार पर प्रश्नगत आदेश खण्डित करने की प्रार्थना की गयी।
अपीलकर्ता की अपील का प्रत्यर्थी की ओर से प्रतिवाद किया गया।
यह अपील इस पीठ के समक्ष सुनवाई हेतु प्रस्तुत हुई। अपीलार्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री नवीन कुमार तिवारी एवं प्रत्यर्थी की ओर से विद्वान अधिवक्ता श्री अमरीश सहगल उपस्थित हुए। उभय पक्षों के विद्वान अधिवक्ताओं के तर्क सुने गए तथा पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों का अवलोकन किया।
यह तथ्य निर्विवाद है किप्रत्यर्थी/परिवादी ने शिक्षा सत्र २००६-२००७ में एमए द्वितीय वर्ष की परीक्षा अर्थशास्त्र विषय में प्राईवेट अभ्यर्थी के रूप में दी थी। यह भी निर्विवाद हैकि उक्त परीक्षा की मौखिक परीक्षा लाल बहादुर शास्त्री गोण्डा द्वारा संचालित की गयी थी और अपीलकर्ता ने यह भी स्वीकार किया है कि उनके द्वारा मौखिक परीक्षा के अंक विश्वविद्यालय को नहीं भेजे गए थे जिसके कारण अपीलकर्ता विश्वविद्यालय द्वारा उसका परिणाम घोषित नहीं हो सका। अपीलकर्ता ने यह भी स्वीकार किया है कि मा0 उच्च न्यायालय के आदेश दिनांक २२/०२/२००८ की प्रति विश्वविद्यालय में दिनांक ०५/०३/२००८ को प्राप्त हुई थी और उसके अनुपालन में दिनांक ३१/०३/२००८ को तत्काल उसका परिणाम घोषित कर दिया गया था ।
पत्रावली पर उपलब्ध अभिलेखों के परिशीलन से यह स्पष्ट होता है कि विश्वविद्यालय से संबद्ध कालेज के स्तर पर लापरवाही के चलते प्रत्यर्थी/परिवादी का परिणाम समय से घोषित नहीं हो सका और उसके जीवन का एक वर्ष का महत्वपूर्ण समय यूंही बरबाद हो गया था। परीक्षाफल के लिए प्रत्यर्थी/परिवादी ने फीस प्राईवेट अभ्यर्थी के रूप में जमा की थी और परीक्षा दी थी। उसका परिणाम घोषित करने का अपीलकर्ता का कर्तव्य था जिसमें घोर लापरवाही का परिचय अपीलकर्ता के स्तर पर दिया गया था। इस प्रकार उसके स्तर पर सेवा में कमी हुई है। चूंकि उसने फीस का भुगतान किया है, इसलिए प्रत्यर्थी/परिवादी, अपीलकर्ता विश्वविद्यालय का उपभोक्ता है। अपीलकर्ता के स्तर पर सेवा में कमी के कारण प्रत्यर्थी/परिवादी के जीवन का एक वर्षका महत्वपूर्ण समय खराब हो गया जिससे उसको बहुत ही मानसिक क्षति हुई । विद्वान जिला मंच द्वारा पारित आदेश पूर्णत: विधि के अनुसार है जिसमें किसी प्रकार के हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है। विद्वान जिला मंच द्वारा अनुमन्य की गयी क्षतिपूर्ति किसी विद्यार्थी के जीवनका एक वर्ष के समय की प्रतिपूर्ति नहीं की जा सकती। विद्वान जिला मंच द्वारा अधिरोपित की गई रू0 १०००००/- की क्षतिपूर्ति अधिक प्रतीत होती है। रू0 ५००००/- की क्षतिपूर्ति पर्याप्त है। तदनुसार अपील आंशिक रूप से स्वीकार किए जाने योग्य है।
आदेश
प्रस्तुत अपील आंशिक रूप से स्वीकार की जाती है। जिला मंच बाराबंकी द्वारा परिवाद सं0-१२७/२००८ में पारित निर्णय एवं आदेश दिनांक ११/०४/२०१३ संशोधित किया जाता है। अपीलार्थी को निर्देशित किया जाता है कि वह प्रत्यर्थी/परिवादी को इस निर्णय की तिथि से एक माह की अवधि में रू0 ५००००/- की क्षतिपूर्ति का भुगतान करे। निर्धारित समय में भुगतान न किये जाने पर उक्त राशि पर ०६ प्रतिशत वार्षिक की दर से ब्याज परिवाद दायर करने की तिथि से वास्तविक भुगतान की तिथि तक देय होगा।
अपील व्यय के सम्बन्ध में कोई आदेश पारित नहीं किया जा रहा है।
उभय पक्ष को इस निर्णय की प्रमाणित प्रतिलिपि नियमानुसार उपलब्ध करायी जाय।
(राज कमल गुप्ता) (महेश चन्द)
पीठासीन सदस्य सदस्य
सत्येन्द्र, कोर्ट-5.