(सुरक्षित)
राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग, उ0प्र0, लखनऊ।
परिवाद सं0 :- 186/2018
राम लाल पुत्र श्री राम दुलारे उम्र करीब 33 वर्ष निवासी ग्राम भुड़पुरवा, पोस्ट सरौरा, लखनऊ।
- परिवादी
बनाम
सेन्ट मेरी पॉलीक्लीनिक, गौराबाग, गुडम्बा, पो0आ0 कुसी रोड़, लखनऊ 226026 द्वारा प्रबंधक।
- विपक्षी
समक्ष
- मा0 श्री सुशील कुमार, सदस्य
- मा0 श्री विकास सक्सेना, सदस्य
उपस्थिति:
परिवादी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री आमोद राठौर
विपक्षी के विद्वान अधिवक्ता:- श्री अचिंत्य पाण्डेय
दिनांक:-13.03.2023
माननीय श्री विकास सक्सेना, सदस्य द्वारा उदघोषित
निर्णय
- यह परिवाद परिवादी राम लाल ने अपनी पत्नी व अपने नवजात शिशु की विपक्षी सेंट मेरी पॉलीक्लीनिक में किये गये इलाज में लापरवाही के आधार पर क्षतिपूर्ति हेतु योजित किया गया है।
- परिवादी के अनुसार परिवादी दिनांक 12.10.2017 को अपनी गर्भवती पत्नी को नार्मल डिलीवरी हेतु विपक्षी अस्पताल में ले गया। लगभग 12:00 बजे डिलीवरी के दौरान पत्नी की जोर-जोर से चीखने की आवाजें सुनायी दीं। चिकित्साकर्मियों से पूछने पर उन्होंने कोई संतोषजनक जवाब नहीं दिया। परिवादी की पत्नी रोते हुए बताया कि बुरी तरह से पेट को दबा रहे हैं तथा दवाई की मात्रा अधिक देने की वजह से सिर में चक्कर भी आ रहा है। सुबह 4:00 बजे तक पत्नी की चीखने-चिल्लाने की आवाज आती रही, प्रार्थी की मां ने डिलीवरी रूम में में जाकर देखा कि परिवादी की पत्नी के दोनों हाथ-पैर रस्सियों से बांधे हुए हैं तथा पत्नी बेसुध हालत में हैं। लगभग 4:30 बजे चिकित्सक महोदय ने परिवादी को बताया कि बच्चेदानी में बच्चा फंस गया है, ऑपरेशन करना पड़ेगा। सुबह 6:00 बजे परिवादी को बताया कि लड़का पैदा हुआ है। प्रार्थी ने नवजात शिशु को देखा, उसके चेहरे और शरीर के अन्य हिस्से पर नीले रंग की चोट के निशान मौजूद थे, इसका चिकित्सक ने कोई जवाब नहीं दिया गया। परिवादी ने बच्चे को न्यू लाइफ हॉस्पिटल में जाकर दिखाया, जहां शाम लगभग 4:00 बजे नवजात शिशु की मृत्यु हो गयी। इसके उपरान्त परिवादी की पत्नी कौमा में चली गयी। परिवादी ने उसे सहारा हॉस्पिटल में भर्ती कराया। सहारा हॉस्पिटल में लगभग 17 दिन इलाज चला, तमाम महंगी दवाइयां ली गयी। चिकित्सकों से परामर्श लिया, किन्तु 17 दिन के उपरान्त उसकी पत्नी की मृत्यु हो गयी। परिवादी के कथनानुसार विपक्षी सेंट मेरी पॉलीक्लीनिक में गलत इलाज एवं ऑपरेशन में नसे काट देने के कारण यह स्थिति पैदा हुई है। इस आधार पर क्षतिपूर्ति की मांग की गयी है एवं परिवाद योजित किया गया।
- विपक्षी की ओर से जवाब आया, जिसमें कहा गया है कि परिवादी अपनी गर्भवती पत्नी को दिनांक 12.10.2017 को दिखाने आया था। परिवादी को बता दिया गया था कि जच्चा-बच्चा की हालत ठीक नहीं है इसलिए भर्ती करके इलाज करा सकते हैं। परिवादी ने अपनी स्वेच्छा से गर्भवती पत्नी को भर्ती करवाया था, जिसका नियमानुसार डिलीवरी करके लड़का पैदा हुआ था। दोनों की हालत काफी गंभीर थी। उक्त लड़के को डिस्चार्ज कराके न्यू लाइफ हॉस्पिटल में परिवाद ले गया था, जहां नवजात शिशु की मृत्यु हो गयी। विपक्षी के डॉक्टर द्वारा गर्भवती पत्नी का सुचारू रूप से इलाज किया जाता रहा। परिवादी की पत्नी जब 12.10.2017 को अस्पताल में आयी थी तो उसकी स्थिति काफी गंभीर थी, जो मात्र 24 घंटे विपक्षी के अस्पताल में भर्ती रही थी। इलाज में कोई लापरवाही विपक्षी के डॉक्टर द्वारा नहीं की गयी है। इस आधार पर परिवाद निरस्त किये जाने की मांग की गयी है।
- परिवादी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री आमोद राठौर एवं विपक्षी की ओर से विद्धान अधिवक्ता श्री अचिंत्य पाण्डेय को विस्तार से सुना गया। पत्रावली का अवलोकन किया गया।
- परिवादी की ओर से असामान्य परिस्थिति दर्शायी गयी है, जिसमें परिवादी की पत्नी की डिलीवरी रूम में हाथ-पैर रस्सियों से बंधे होने और नवजात शिशु के चेहरे व शरीर पर चोट के समय होना बताया गया है। यह अत्यंत असामान्य परिस्थिति है एवं यह अपेक्षा नहीं की जा सकती कि चिकित्सीय कर्मी जिसमें सभी चिकित्सक शामिल हैं। अनावश्यक रूप से गर्भवती महिला अथवा नवजात शिशु को चोटें पहुंचायेंगे। दूसरी ओर चिकित्सक द्वारा अपना स्पष्टीकरण इस प्रकार दिया गया है कि मृतका जब दिनांक 12.10.2017 को उनके अस्पताल में दिखाने आयी थी, उसी समय परिवादी को बता दिया गया था कि जच्चा-बच्चा की हालत ठीक नहीं है इसलिए भर्ती करके इलाज करा सकते हैं। परिवादी ने अपनी स्वैच्छा से अपनी गर्भवती पत्नी को भर्ती करवाया था। डिलीवरी के समय दोनो की हालत काफी गंभीर थी। परिवादी अपने लड़के को डिस्चार्ज करके न्यू लाइफ अस्पताल में ले गया था।
- दिनांक 13.10.2017 के डिस्चार्ज सर्टिफिकेट की प्रतिलिपि भी अभिलेख पर है, जिसमें उच्च चिकित्सीय केन्द्र को संदर्भित किए जाने का उल्लेख है एवं अंकित है ‘’ रेफर टू हायर सेन्टर’’ इस पर्चे में मुख्य रूप से अंकित है:-
Nine month Amenorrhea underment emergency LSCS for obsterated L.A.
- उक्त मामले की जांच परिवादी की शिकायत पर मुख्य चिकित्साधिकारी द्वारा करायी गयी जो 2 अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉक्टर डॉक्टर राजेन्द्र कुमार चौधरी एवं डॉक्टर सुनील कुमार रावत द्वारा की गयी। रिपोर्ट दिनांक 12.04.2018 अभिलेख पर है, जिसमें रिपोर्ट दी गयी है कि दिनांक 12.10.2017 को दोपहर, ओपीडी में जब मरीज को एडमिट होकर इलाज कराने की सलाह दी गयी, तब उसने सलाह नहीं मानी और अपने घर चली गयी। मरीज के पूरे शरीर एवं पैरों में सूजन थी और वह प्रीएक्लैमसिया कंडीशन में जा चुकी थी। मरीज के रिश्तेदारों को बता दिया गया था कि मरीज की हालत ठीक नहीं है एवं उसे कभी भी झटका आ सकते हैं यदि झटके आना शुरू हो गये तो मरीज को बचाना बहुत मुश्किल काम होता है साथ ही अन्य सारे खतरे बताते हुए नार्मल डिलीवरी कराने का प्रयास किया गया लेकिन उसी बीच गर्भाशय की झिल्ली फट जाने से काफी मात्रा में एमनियोटिक फ्लूड बाहर आने लगा जिसको देखने से पता चला कि बच्चे ने पेट के अंदर ही मल त्याग कर दिया है वह इस मल को कभी भी निगल सकता है जिससे पेट मे ही बच्चे की मृत्यु हो सकती है। चिकित्सकों ने अवगत कराया की उसी समय अमलाईकल कार्ड भी बाहर आने लगी थी। डॉक्टरों के दल द्वारा तत्काल मरीज का सिजेरियन ऑपरेशन करने का निर्णय लिया गया एवं परिवार को सभी खतरों से अवगत कराते हुए उनकी ऑपरेशन करने की राय ली गयी तब तक सुबह के 05:00 बज चुके थे। ऑपरेशन के दौरान मरीज को झटके आने लगे जो प्रीएक्लैमसिया के बाद की स्टेज होती है जिसे एक्लेमशिया कहा जाता है इसमें मरीज की स्थिति नाजुक हो चुकी होती है।
- इस प्रकार मुख्य चिकित्साधिकारी लखनऊ के निर्देश पर अपर मुख्य चिकित्साधिकारीगण द्वारा जो जांच की गयी है उसमें मरीज एम्नियोकार्टेस हो जाने अर्थात Amniotic Fluid के लीक हो जाने का वर्णन है। Amniotic निम्नलिखित प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है जो www.parents.com में निम्नलिखित प्रकार से दिया गया है:-
Amniotic fluid leaks occur when a hole or tear is present in the amniotic sac. Ruptures usually signify the start of labor. This is what's meant by your water "breaking." If your water breaks before labor begins in a full-term pregnancy, it's called premature rupture of membranes (PROM). If it occurs before 37 weeks of pregnancy, it's called preterm premature rupture of membranes.
- इसी वेबसाइट पर दिया गया है कि Amniotic पदार्थ का लीक 08 से 15 प्रतिशत गर्भधारण में ही पाया गया है। इसके अतिरिक्त चिकित्सक महोदय ने अपनी जांच रिपोर्ट में यह दिया है कि गर्भवती महिला Pre-eclampsia स्थिति में पहुंच गयी थी, जिसकी परिभाषा ऑक्सफोर्ड डिक्सनरी में निम्नलिखित प्रकार से दिय गया है:-
A condition pregnancy by high blood pressure sometime with relation and protean urea. Pre-eclampsia को वेबसाइट www.mayoclinic.org में इस प्रकार परिभाषित किया गया है कि Pre-eclampsia गर्भधारण में उत्पन्न हुई एक जटिलता है जो blood pressure अथवा हाई प्रोटीन के अत्यधिक मात्रा के कारण हो जाता है और इसके कारण किडनी या शरीर के अन्य अंग प्रभावित अथवा रस्ट हो जाते हैं।
- उल्लेखनीय है कि डिस्चार्ज के समय मरीज को उच्च चिकित्सीय केन्द्र में संदर्भित करते समय सेन्ट मैरी पॉलीक्लीनिक की ओर से स्पष्ट कर दिया था कि मरीज मृतका श्रीमती राधा को Amniotic पदार्थ के लीक हो जाने के कारण गर्भ के समय जटिलता उत्पन्न हो गयी है। यह भी स्पष्ट किया गया था कि बच्चे के फंस जाने के कारण उसका आकस्मिकता से एक शल्य क्रिया के माध्यम से डिलीवरी की गयी है। इस प्रकार चिकित्सीय रिपोर्ट एवं इलाज के पर्चों से यह स्पष्ट होता है कि मृतका की मृत्यु गर्भधारण के समय गर्भ में जटिलता आ जाने के कारण हुई थी, दूसरी ओर परिवादी की ओर से किसी भी विशेषज्ञ रिपोर्ट से अथवा चिकित्सीय साहित्य के माध्यम से यह नहीं दर्शाया गया है कि किस प्रकार गर्भवती श्रीमती राधा के प्रसव एवं डिलीवरी के समय चिकित्सीय लापरवाही की गयी, जिसके कारण उसकी मृत्यु हुई।
- माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय कुसुम शर्मा तथा अन्य प्रति बतरा हॉस्पिटल एवं मेडिकल रिसर्च सेंटर व अन्य प्रकाशित (2010) वॉल्यूम III S.C.C. पृष्ठ 480 में यह प्रदान किया गया है कि चिकित्सीय व्यवसायिक व्यक्ति से उम्मीद की जाती है कि वह एक युक्ति-युक्त स्तर की कुशलता रखते हैं उनसे बहुत अधिक अथवा बहुत कम कुशलता की उम्मीद नहीं की जा सकती है यदि यह पाया जाता है कि चिकित्सक ने उचित प्रकार से सामान्य रूप से इलाज किया है तो उन्हें चिकित्सीय उपेक्षा का दोषी नहीं माना जा सकता है। निर्णय में यह भी दिया गया था कि चिकित्सीय लापरवाही तभी मानी जा सकती है जबकि उनके द्वारा किसी आवश्यक चिकित्सीय कर्तव्य का पालन न किया गया हो।
- इसी प्रकार माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्णय एस0के0 झुनझुनवाला प्रति धनवंती कौर व अन्य प्रकाशित II (2019) CPJ page 41 (S.C.) में दोहराया गया, जिसमें माननीय सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष मामले में सर्जरी के दौरान अन्य उपरोक्त तरीके से सर्जरी किया जाना एवं चिकित्सा में लापरवाही का आक्षेप लगाया गया था किन्तु माननीय सर्वोच्च द्वारा यह पाया गया कि इसको साबित करना आवश्यक है और बिना किसी साक्ष्य के एवं मरीज की क्षति एवं इलाज में लापरवाही से जोड़ते हुए चिकित्सक को दोषी मानना उचित नहीं है।
- इस मामले में एक ओर परिवादी ने केवल चिकित्सीय लापरवाही के कारण अपनी पत्नी की मृत्यु होना दर्शाया है, किन्तु क्या लापरवाही हुई इसको स्पष्ट रूप से स्थापित नहीं किया गया। अत: बिना किसी साक्ष्य के एवं चिकित्सीय साहित्य के जो विपक्षी द्वारा किये गये इलाज में लापरवाही या कमी को दर्शा सके। मात्र मृत्यु हो जाने के आधार पर चिकित्सीय लापरवाही मान लेना उचित नहीं है, जबकि दूसरी ओर मुख्य चिकित्साधिकारी की ओर से प्रस्तुत की गयी अपर मुख्य चिकित्साधिकारीगण की रिपोर्ट में मृतका मरीज के प्रसव के दौरान आयी जटिलताओं का उल्लेख किया गया है एवं उसका स्पष्टीकरण भी दिया गया है। अत: इस परिस्थिति में चिकित्सीय लापरवाही मानकर चिकित्सक महोदय अथवा अस्पताल से क्षतिपूर्ति दिलवाया जाना आवश्यक नहीं है। तदनुसार परिवाद निरस्त होने योग्य है।
आदेश
परिवाद निरस्त किया जाता है।
आशुलिपिक से अपेक्षा की जाती है कि वह इस आदेश को आयोग की वेबसाइट पर नियमानुसार यथाशीघ्र अपलोड कर दें।
(विकास सक्सेना) (सुशील कुमार)
सदस्य सदस्य
संदीप, आशु0 कोर्ट नं0-2